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Saturday, 23 November, 2024
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सीमा पार से आया एक मोर्टार शैल बदल देता है पूरी जिंदगी

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता है तो सबसे अधिक नुकसान सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों को ही उठाना पड़ता है. एलओसी को पास रहने वालों की हालत और भी खराब है.

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जम्मू: सीमावर्ती पुंछ क़स्बे से मात्र 10 किलोमीटर दूर स्थित झलास क्षेत्र के सलोत्री गांव के मोहम्मद युनूस रोज़ की तरह गत एक मार्च को अपने घर में परिवार के साथ सो रहे थे कि अचानक पाकिस्तान की ओर से की गई गोलाबारी ने हमेशा के लिए उनकी दुनिया बदल दी.

पाकिस्तान की तरफ़ से दागे गए एक गोले ने उनकी 22 वर्षीय पत्नी रूबीना कौसर, आठ वर्षीय बेटी शबनम और पांच वर्षीय बेटे फैजान की जान ले ली. खुद मोहम्मद युनूस भी इस हमले में घायल हो गए. पल भर में एक हंसता खेलता परिवार बर्बाद हो गया, शायद भारत-पाक नियंत्रण रेखा के करीब रहने वालों की यही नियति बन चुकी है.

इस घटना के एक दिन पहले 28 फरवरी की रात भी पाकिस्तान द्वारा की गई गोलाबारी में पुंछ के ही मनकोट क्षेत्र के छज्जला गांव में एक युवती अमीना अख़्तर की मौत हो गई. भारत-पाक नियंत्रण रेखा पर गत 28 फरवरी से जारी गोलाबारी में अभी तक कईं लोग घायल भी हो चुके हैं जिनमें सेना के मेजर सहित कुछ जवान भी शामिल है. सभी घायलों का जम्मू मेडिकल कालेज सहित विभिन्न अस्पतालों में इलाज चल रहा है.

यहां यह गौरतलब है कि जब-जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता है तो सबसे अधिक नुकसान सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों को ही उठाना पड़ता है. भारत-पाक नियंत्रण रेखा के पास रहने वालों की हालत तो और भी खराब है. दोनों देशों के बीच हल्का सा तनाव भी नियंत्रण रेखा के करीब रहने वालों के लिए बहुत भारी साबित होता है.


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देश के बड़े टेलिविज़न चैनलों के स्टूडियोज़ में भारत-पाकिस्तान के रिश्तों को लेकर आए दिन गर्मागर्म बहस करने वाले लोग इस बात का ज़रा सा भी अनुमान नहीं लगा सकते कि सीमा पर रहने वाले लोगों पर दोनों देशों के बीच थोड़े से भी तनाव का क्या असर पड़ता है, और कैसे सीमा पार से आया एक मोर्टार शैल उनकी पूरी जिंदगी बदल देता है. बहुत से लोगों को भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा और भारत-पाक नियंत्रण रेखा के बारीक फर्क का भी शायद ही पता हो.

गत 27 फरवरी को भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान के भीतर घुसकर आतंकी ठिकानों पर की गई कार्रवाई के बाद से भारत-पाक नियंत्रण रेखा पर लगातार तनाव बना हुआ है. जम्मू कश्मीर के पुंछ व राजौरी जिलो के साथ लगती नियंत्रण रेखा के साथ-साथ उड़ी क्षेत्र में स्थिति सबसे अधिक तनावपूर्ण बनी हुई है.

Mortar shells fired by Pakistan
जम्मू में पाकिस्तानी गोलाबारी में घायल /पीटीआई

हालांकि, गत दो दिनों से तनाव में थोड़ी कमी आई है और भारत-पाक नियंत्रण रेखा के पुंछ व राजौरी जिलों के अधिकतर इलाकों में स्थिति समान्य बनी हुई है. मगर हालात कब बदल जाएं कुछ कहा नहीं जा सकता. यह पंक्तियां लिखते समय ही मिली एक सूचना के अनुसार पाकिस्तान की ओर से राजौरी जिले के नौशेरा सेक्टर में गोलाबारी शुरू कर दी गई थी.


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उधर जम्मू ज़िले के पलांवाला इलाके में गत रात पाकिस्तान की ओर से भारी गोलाबारी की गई. पाकिस्तान ने नागरिक ठिकानों को भी अपना निशाना बनाया मगर किसी तरह के जान व माल के नुकसान की खबर नही आई है.

740 किलोमीटर लंबी भारत-पाक नियंत्रण रेखा पर जारी तनाव के बीच फ़िलहाल भले ही हालात कुछ बेहतर देखने को मिल रहे हों पर नियंत्रण रेखा के साथ सटे इलाक़ों में एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ है.

पुंछ ज़िले के कृष्णा घाटी, बलनोई, मेंढर, मनकोट, झलास और राजौरी जिले के लाम, कलसियां, झंगड, शेर मकड़ी, बाबा खोडी सेक्टरों के अलावा जम्मू जिले की अखनूर तहसील के पलांवाला क्षेत्रों में दहशत जारी है.

सीमा पर जारी तनाव के बाद इन इलाक़ों से कुछ लोगों ने सुरक्षित ठिकानों की ओर पलायन भी किया है मगर ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है. अभी भी अधिकतर लोग अपने घरों में इस आशा के साथ रुके हुए हैं कि अगले कुछ दिनों में दोनों देशों के बीच तनाव कम हो सकता है. सीमावर्ती राजौरी जिले के लाम इलाके के रहने वाले रमेश कुमार अभी भी अपने परिवार के साथ लाम में ही हैं. हालांकि,सीमा पर जारी तनाव के कारण बच्चों के स्कूल बंद हैं पर रमेश कुमार को आशा है कि अगले कुछ दिनों में हालात सुधर सकते हैं.


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उल्लेखनीय है कि भारत व पाकिस्तान के बीच सीमा पर तनाव को देखते हुए प्रशासन ने सीमा से सटे पांच किलोमीटर के क्षेत्र में तमाम स्कूल बंद रखने के आदेश जारी कर रखे हैं. यह आदेश भारत-पाक नियंत्रण रेखा के साथ-साथ जम्मू कश्मीर के साथ जुड़ी हुई 200 किलोमीटर लंबी भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे इलाक़ों पर भी लागू था पर जम्मू व कठुआ जिलों के भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे स्कूल मंगलवार से खुल गए हैं. कठुआ जिले के हीरानगर सेक्टर के लौंड़ी गांव के किसान अशोक सिंह के अनुसार इस क्षेत्र में स्थिति समान्य है.

यह भी एक सच्चाई है कि भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा और भारत-पाक नियंत्रण रेखा के करीब रहने वाले लोग बहुत जल्दी सीमा पर हालात बिगड़ने से घबराते नही हैं. इन लोगों के लिए सीमा पर हल्की-फुल्की गोलीबारी समान्य बात रहती है और बहुत अधिक स्थिति बिगड़ने पर ही अपने घरों से पलायन करते हैं. बहुत जल्दी पलायन संभव भी नही हो पाता, लोगों को अपने साथ-साथ अपने माल मवेशी की सुरक्षा का इंतजाम भी करना पड़ता है.

सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों की हिम्मत तब जवाब देती है जब आपातकालिक स्थिति में लोगों की निकासी नही हो पाती और लोगों को समय पर स्वास्थ्य सुविधाएं नही मिल पातीं.


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राजौरी जिल़े के सीमावर्ती झंगड गांव के मुराद अली का कहना है कि स्थानीय लोगों को सीमा पार से आने वाली गोली से डर नहीं लगता है. लोगों को गोलाबारी के बीच रहने की आदत पड़ गई है. मुराद अली का कहना है कि हिम्मत उस समय जवाब दे जाती है जब आपातकालिक स्थिति होने पर पक्के बंकर नही मिलते और स्थानीय अस्पतालों में लोगों का ढ़ंग से इलाज नही हो पाता. लोगों को इलाज के लिए दरबदर भटकना पड़ता है.

Pak shelling at LoC villages
जम्मू कश्मीर एलओसी पर पाकिस्तानी गोलाबारी से हुए नुकसान को दिखाते गांव वाले/ फोटो-पीटीआई

उल्लेखनीय है कि सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों की लंबे समय से मांग रही है कि सरकार उनके लिए पक्के बंकर बनाए और सीमा के करीब रहने वालों के लिए बुलेटप्रूफ एंबुलेंस की व्यवस्था की जाए.

लोगों का कहना है कि सीमावर्ती पुंछ जिले के झलास क्षेत्र के सलोत्री गांव में पाकिस्तान द्वारा गत एक मार्च को की गई गोलाबारी में मारे गए गांव के मोहम्मदयुनूस के परिवार के तीन सदस्यों की मौत टल सकती थी अगर सलोत्री गांव में पक्के बंकर होते. गांव के लोग मानते हैं कि पक्के बंकर व खराब सड़के खराब हालात में सबसे बड़े बाधक हैं.

भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे कुछ इलाक़ों में पक्के बंकर बनाए गए हैं पर भारत-पाक नियंत्रण रेखा पर अभी भी बंकर नही बन पाए हैं.

सीमावर्ती इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत काफी लचर है. कहीं डाक्टर नहीं तो कहीं दवाईयां नहीं. और कहीं पर एंबुलेंस का नहीं होना सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वालों को परेशान किए रहता है. हालत यह है कि सीमावर्ती पुंछ व राजौरी जिलों के जिला अस्पतालों में भी सुविधाओं की भारी कमी है, जिस कारण सीमावर्ती आपातकालिक स्थिति में मरीज़ों को जम्मू के मेडिकल कालेज अस्पताल रेफर कर दिया जाता है.

(लेखक जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं .लंबे समय तक जनसत्ता से जुड़े रहे अब स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं .)

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