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Sunday, 3 November, 2024
होममत-विमतमोदी का 1000 साल का विज़न तकनीक पर निर्भर है, अमेरिका की तरह रिसर्च एंड डेवलेपमेंट में निवेश करें

मोदी का 1000 साल का विज़न तकनीक पर निर्भर है, अमेरिका की तरह रिसर्च एंड डेवलेपमेंट में निवेश करें

इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को लोकतंत्र को प्रभावित करने वाली बुराइयों को खत्म करने और काम करने के लिए एक टेम्पलेट के रूप में राजनीतिक स्थिरता की आवश्यकता है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वतंत्रता दिवस संबोधन वास्तव में आकांक्षी भारत के दृष्टिकोण को उजागर कर रहा था. 15 अगस्त 1947 को जब देश “शिप टू माउथ” वाली सबसे गरीब अर्थव्यवस्थाओं में से एक था, तब के “नियति के साथ प्रयास (Tryst with Destiny)” से लेकर राजनीतिक अस्थिरताओं और इसकी सुरक्षा, लोकतांत्रिक ढांचे (कुख्यात आपातकाल के दौरान) के लिए खतरों के साथ, भारत आगे बढ़ गया है और एक दुर्जेय सैन्य शक्ति, दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, एक जीवंत लोकतंत्र और न केवल खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बल्कि खाद्य निर्यात में सक्षम बन गया है.

पीएम मोदी ने इस वादे के साथ सरकार के कार्यों, कार्यक्रमों और उपलब्धियों को उजागर किया है कि देश अगले कुछ वर्षों में जो करेगा वह अगले एक हजार वर्षों के लिए एक मजबूत भारत की नींव रखेगा. एक हजार साल की गुलामी, पराजयों और असफलताओं का जिक्र करते हुए, प्रधानमंत्री ने वर्तमान टाइम फ्रेम को “अमृतकाल” के रूप में पहचाना, जो कि “गुज़रे एक हजार साल की गुलामी और आने वाले एक हजार साल के भव्य भविष्य के बीच एक मील का पत्थर” है.

प्रधानमंत्री ने देश की कुछ शक्तियों को सही ढंग से चिन्हित किया है जो विकास को प्रोत्साहित करेंगी और देश को प्रगति के पथ पर ले जाएंगी.

विकास का वादा

दसवीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था होने से आगे बढ़ते हुए, भारत  अब दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. हालांकि, दुनिया भर की कई अर्थव्यवस्थाएं अभी भी महामारी से मिले झटकों और चल रहे रूस-यूक्रेन संघर्ष से उबर नहीं पाई हैं, लेकिन वित्त वर्ष 2023 की चौथी तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में 6.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप वार्षिक वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत हो गई है. 3 ट्रिलियन डॉलर के आंकड़े से आगे बढ़ते हुए, सकल घरेलू उत्पाद ने 2023 में 3.75 ट्रिलियन डॉलर के आंकड़े को छू लिया, जैसा कि वित्त मंत्रालय ने पुष्टि की है. अमेरिका, चीन और जर्मनी के बाद, मौजूदा मूल्य समता पर भारत चौथी सबसे ऊंची जीडीपी है.

भारत दुनिया की पहली तीन स्टार्टअप अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि स्टार्टअप ने भारत को दुनिया के नए औद्योगिक मानचित्र पर स्थापित कर दिया है और हमें उद्योग 4.0 के लिए तैयार किया है. फिर भी, आर्थिक विकास के इन नए इंजनों को फंडिंग, शत्रुतापूर्ण अधिग्रहण और बाजार में हेरफेर जैसी कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है. इन स्टार्टअप्स को कर राहत के अलावा अच्छी मात्रा में सहायता और समर्थन की आवश्यकता है.

भारत में एक ही समय में सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार और उत्पादन केंद्र बनने की अपार क्षमता है. 7.2 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि का श्रेय सेवा क्षेत्र की मजबूती और अतृप्त उपभोक्ता बाजार को दिया जाना चाहिए. सरकार के लिए केवल कुछ बड़े औद्योगिक घरानों को समर्थन देने के बजाय, जो किसी भी तरह से अपने हितों की देखभाल कर सकते है, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को मजबूत करना महत्वपूर्ण है.

भारत वैश्विक और क्षेत्रीय मंचों और संस्थानों की एक श्रृंखला के माध्यम से वैश्विक आपूर्ति और मूल्य श्रृंखला में एक प्रमुख भूमिका निभाने के लिए पूरी तरह तैयार है. इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) एक गेम चेंजर बनने का वादा करता है जहां भारत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है.


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पूर्व शर्तें

इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को लोकतंत्र को प्रभावित करने वाली बुराइयों को खत्म करने और काम करने के लिए एक टेम्पलेट के रूप में राजनीतिक स्थिरता की आवश्यकता है. प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद (वंशवादी राजनीति) और तुष्टीकरण को तीन बुराइयों के रूप में पहचाना, जिनसे लड़ने के लिए वह प्रतिबद्ध हैं. निःसंदेह प्रौद्योगिकी के उपयोग से सरकार को भ्रष्टाचार से लड़ने के प्रयास में मदद मिली है. फिर भी, बहुत कुछ करने की जरूरत है. प्रौद्योगिकी एक दोधारी तलवार की तरह है, जो एक अच्छा नौकर और एक बुरा मालिक हो सकता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि इसका उपयोग कौन करता है और किस उद्देश्य से करता है. साइबर अपराध बढ़ रहे हैं और धोखाधड़ी के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग अपराध का पता लगाने वाली एजेंसियों और उनके तरीकों से आगे निकल रहा है.

सरकार को प्रौद्योगिकी में और अधिक निवेश करने, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रक्रिया को बेहतर बनाने और उच्च शिक्षण संस्थानों को संस्थान-उद्योग इंटरफेस के लिए तैयार करने की आवश्यकता है. पीएम ने अपने संबोधन में कहा कि युवाओं की बढ़ती संख्या STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) की ओर बढ़ रही है. लेकिन समग्र शिक्षाशास्त्र में क्रांतिकारी बदलाव और अनुसंधान के लिए अधिक बजटीय आवंटन की आवश्यकता है. सरकार ने पांच वर्षों (2023-28) के दौरान 50,000 करोड़ रुपये की कुल अनुमानित लागत पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) की सिफारिशों के अनुसार देश में वैज्ञानिक अनुसंधान की उच्च स्तरीय रणनीतिक दिशा प्रदान करने के लिए एक शीर्ष निकाय, नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) की स्थापना की है जो कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के दिशा-निर्देशन में काम करेगा. इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह एक अच्छा विचार है, लेकिन अनुसंधान के लिए आवश्यक धन को ध्यान में रखते हुए, यहां यह सुझाव देना अनुचित नहीं होगा कि सरकार को इसे अमेरिकी एजेंसी DARPA (डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी) के $3.87 बिलियन का वार्षिक बजट स्तर तक बढ़ाना चाहिए.

प्रधानमंत्री के 2047 तक विकसित भारत के दृष्टिकोण में न केवल सरकारें बल्कि राजनीतिक दलों सहित लोग भी शामिल हैं. उनका सपना हर भारतीय और समावेशी भारत का सपना होना चाहिए. इसके लिए सभी हितधारकों के बीच आम सहमति होनी चाहिए.

(शेषाद्रि चारी ‘ऑर्गनाइज़र’ के पूर्व संपादक हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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