उत्तर प्रदेश के बेहद अहम चुनावों का बिगुल बज चुका है और भारतीय जनता पार्टी के मोर्चे की अगुआई खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं. 2014 से ही उनकी ताकतवर नेता की छवि और राष्ट्रीय सुरक्षा लगातार चुनावी मुद्दा रहा है. भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखा के पार 28-29 सितंबर 2016 की रात सर्जिकल स्ट्राइक को 2017 के शुरुआती महीनों में उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में सफलतापूर्वक भुनाया गया. फिर 26-27 फरवरी 2019 की रात बालाकोट में हवाई हमले को 2019 के लोकसभा चुनावों में बड़े पैमाने पर भुनाया गया.
लगातार खंडन और अनदेखा करने के बावजूद पूर्वी लद्दाख में 2020 में बिगड़े हालात और जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की समय-समय पर घुसपैठ से राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में भाजपा की छवि को गंभीर झटका लगा है. हालांकि पार्टी नई-नई चुनावी तरकीबें इजाद करने में माहिर है. अब उसने अपना चुनावी मुद्दा रक्षा तैयारी और (रक्षा क्षेत्र में) आत्मनिर्भरता के प्रदर्शन को बना लिया है.
पिछले दस दिनों में प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश में अपने चुनावी प्रचार में बड़ी चतुराई से सेना को जोडने के लिए दो बड़े आयोजन किए. शायद मकसद है ताकतवर नेता की अपनी दरकती छवि को दुरुस्त करना और राज्य के लोगों की भावनाओं को भुनाना. आखिर सेना में इस राज्य से बड़ी संख्या में यानी 14.5 प्रतिशत जवान पहुंचते हैं. लगता है सेना के उच्च पदाधिकारी खुशी-खुशी सहयोग भले न कर रहे हों मगर चुप हैं और होने दे रहे हैं.
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पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पर हवाई करतब
प्रधानमंत्री मोदी ने 16 नवंबर को लखनऊ से गाजीपुर जाने वाले 341 किमी. लंबे पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का करवाल खेरी गांव में उद्घाटन किया. उन्होंने 14 जुलाई 2018 को आजमगढ़ में इसका दोबारा शिलान्यास किया था. दोबारा इसलिए कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का दावा है कि उन्होंने 22 दिसंबर 2016 इसकी आधारशिला रख दी थी और परियोजना के लिए 50 प्रतिशत जमीन अधिग्रहण और सभी तैयारियां की जा चुकी थीं. यह विवाद तो अलग है लेकिन पूर्वांचल एक्सप्रेसवे उत्तर प्रदेश के अपेक्षाकृत कम विकसित हिस्से के लिए बड़ी विकास परियोजना है, जो करीब तीन साल में पूरी हो गई.
हालांकि एक्सप्रेसवे के उद्घाटन में वायु सेना के 45 मिनट के शानदार हवाई करतब की धूम थी. एक्सप्रेसवे पर करवाल खेरी गांव के पास 3.2 किमी. की आपात हवाई पट्टी भी बनाई गई है. मोदी भी उद्घाटन के लिए विशाल सी-130 परिवहन विमान से एक्सप्रेसवे पर शान से उतरे और उसके बाद हवाई करतब शुरू हुए. उसमें किसी हवाई इलाके/हवाईपट्टी को सुरक्षित करने के लिए विशेष बलों और वायु सेना, गरुड कमांडो और आपात हवाई मरम्मत टीम के कार्यकलाप का शानदार प्रदर्शन किया गया. मरम्मत टीम दो एएन 32 परिवहन विमान से निकलकर मिराज 2000 को दुरुस्त करने में जुटी. उसके बाद एसयू 30/मिराज 2000/जागुआर जंगी जहाज/बहुपयोगी विमान ने उडनै/जमीन चूमकर हवा में कलाबाजी दिखाने जैसे करतब दिखाए गए. शो का अंत दो एसयू 30 लड़ाकू विमानों की निगरानी में उड़ रहे तीन एएन 32 विमानों के धुंए से बन रहे तिरंगे की आकृति और एक एसयू 30 विमान की कलाबाजी के साथ हुआ. इस हवाई करतब में तकरीबन 20 विमानों ने हिस्सा लिया, जिन्हें तीन से चार रिहर्सल करने पड़े होंगे. इस सब का खर्च जोड़ लें तो वायु सेना को सिर्फ जेट ईंधन पर ही 2.5 करोड़ रु. का खर्च हुआ होगा. उस काम में लगे जवानों और कर्मियों पर खर्च तो अलग है.
विडंबना देखिए कि बस थोड़े-से ही दर्शक शामियाने में बैठे थे, जो शायद भाजपा के सदस्य और समर्थक थे. वहां आम लोग नदारद थे. वे शायद कुछ दूरी पर हवाई करतब देख रहे थे. मंच पर प्रधानमंत्री के साथ राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और चार भाजपा पदाधिकारी मौजूद थे और सभी वायु सेना के चिन्ह वाली टोपी पहने थे. चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ जनरल विपिन रावत और वायु सेना प्रमुख विवेक राम चौधरी दर्शकों के बीच बैठे थे. दुर्भाग्यपूर्ण निष्कर्ष यह है कि प्रधानमंत्री के सरकारी कार्यक्रम के नाते हवाई करतब का आयोजन करने वाली वायु सेना आखिरकार भाजपा के राजनैतिक हित को बढ़ावा दे आई. यही नहीं एक्सप्रेसवे/हाइवे की आपात हवाई पट्टी पर विमान उतारना भी अब कोई नई बात नहीं रह गई है. 2015 से ऐसा कई बार हो चुका है.
2016 में तो उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी वायु सेना के हवाई करतब के साथ आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे का उद्घाटन किया था.
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राष्ट्रीय रक्षा समर्पण पर्व
फिर 17-19 नवंबर को दूसरा भारी-भरकम सरकारी आयोजन ‘राष्ट्रीय रक्षा समर्पण पर्व’ झांसी में ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ के तहत किया गया. यह रक्षा मंत्रालय और उत्तर प्रदेश सरकार का साझा आयोजन था और मकसद कई रक्षा योजनाओं को राष्ट्र को समर्पित करना था. आयोजन के लिए 19 नवंबर को झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की 193वीं जन्मतिथि का विशेष ध्यान रखा गया था. रानी लक्ष्मी बाई राष्ट्र नायक तो हैं ही, भाजपा के लिए भी खास महत्व रखती हैं.
‘राष्ट्रीय रक्षा समर्पण पर्व’ का आयोजन भी पहली दफा हुआ. इसके पहले नए रक्षा उपकरणों या परियोजनाओं का उद्घाटन अमूमन रक्षा मंत्री या रक्षा उत्पादन राज्यमंत्री किया करते थे. मौजूदा आयोजन में तीन बड़े उपकरण एक-एक कर थल सेना, नौसेना और वायु सेना के प्रमुखों को औपचारिक तौर पर सौंपे गए. इसके लिए कोई जश्न जैसा आयोजन पहले कभी नहीं हुआ.
वायु सेना प्रमुख ने सांकेतिक तौर पर हल्के लड़ाकू हेलिकॉप्टर को स्वीकार किया. हथियारों से लैस यह हेलिकॉप्टर अत्याधुनिक हल्के हेलिकॉप्टर प्लेटफॉर्म ध्रुव पर आधारित है, लेकिन कुछ संशोधनों और सुधार के साथ. हल्के लड़ाकू हेलिकॉप्टर के निर्माण का काम करीब डेढ़ दशक से चल रहा था. यह सेना के तीनों अंगों के लिए अपाचे के साथ आक्रामक भूमिकाएं निभाएगा. यह दुनिया में इकलौता हेलिकॉप्टर है, जो 5,000 मीटर से उतर या उड़ सकता है. हल्के लड़ाकू हेलिकॉप्टर के लिए ऑर्डर दिया जा चुका है. हालांकि आयात किए जाने वाले हथियारों के पैकेज को अभी अंतिम मंजूरी नहीं मिली है.
नौसेना प्रमुख ने अपनी जहाजों के लिए डीआरडीओ द्वारा विकसित अत्याधुनिक इलेक्ट्रॉनिक युद्धक सूट शक्ति को स्वीकार किया. इसकी तैनाती पहले ही नौसेना के नए विध्वंसक आइएनएस विशाखापत्तनम में हो चुकी है और जल्दी ही आइएनएस विक्रमादित्य में भी लग जाएगा. वायु सेना उप-प्रमुख ने देसी स्टॉर्टअप द्वारा विकसित ड्रोन/यूएवी स्वीकार किया.
प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तर प्रदेश के लंबित रक्षा उद्योग कॉरीडोर को भी बढ़ावा दिया. उन्होंने एंटी-टैंक मिसाइल के लिए प्रोपल्सन सिस्टम निर्माण के लिए भारत डायनामिक्स लिमिटेड की 400 करोड़ रुपये की रक्षा परियोजना का उद्घाटन किया.
कई दूसरी योजनाओं का भी ‘समर्पण’ हुआ. उनमें सरकारी-निजी भागीदारी में 100 नए सैनिक स्कूल, एनसीसी की सीमा और तटीय योजनाओं का अनावरण, एनसीसी एल्मुनी एसोसिएशन, एनसीसी कैडेटों की ट्रेनिंग का राष्ट्रीय कार्यक्रम और राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के लिए उसके मोबाइल ऐप से शहीद नायकों के सम्मान में डिजिटल क्यास्क की लांचिंग प्रमुख थी.
इसमें कोई संदेह नहीं कि सरकार ने अपने प्रमुख आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत रक्षा में आत्मनिर्भरता को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया है. लेकिन झांसी किले की प्राचीर के नीचे उपकरणों/योजनाओं/परियोजनाओं को राष्ट्र को समर्पित करने के सरकारी आयोजन के राजनैतिक मंसूबों पर शक होता है, क्योंकि राजनैतिक रूप से अहम उत्तर प्रदेश में बस तीन महीने बाद चुनाव होने वाले हैं. यही नहीं, वहां मुख्यमंत्री की मौजूदगी भी शुबहा पैदा करती है, जिनकी बुरी तरह डगमगाई छवि की कुछ भरपाई की मंशा हो सकती है.
इन जुड़वे रक्षा-राजनैतिक आयोजनों के समय के मद्देनजर हमारे सैन्य प्रतिष्ठान में भी संदेह पैदा होना चाहिए था और धीरे से सरकार को सलाह दी जानी चाहिए थी कि स्थितियों में फर्क जरूर रखना चाहिए और सेना को परोक्ष रूप से चुनावी अभियान का हिस्सा बनाए जाने से बचना चाहिए.अगर चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ और तीनों अंगों के प्रमुख अनचाहे इसका हिस्सा बन गए तो उन्हें भविष्य में इसका जरूर ख्याल रखना चाहिए. लेकिन, उन्होंने अगर जानबूझकर सहयोग किया है तो देश और सशस्त्र बलों को इसका खामियाजा भुगतना होगा!
(लेफ्टिनेंट जनरल एच.एस. पनाग पीवीएसएम, एवीएसएम(आर) सम्मानों से विभूषित हैं, भारतीय सेना में 40 साल सेवा प्रदान कर चुके हैं. वे उत्तरी कमान और केंद्रीय कमान के प्रमुख भी रह चुके हैं. सेवानिवृत्ति के बाद वे सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के सदस्य थे. उनका ट्विटर एकाउंट @rwac48 . यहां व्यक्त विचार निजी हैं)
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