scorecardresearch
Monday, 4 November, 2024
होममत-विमतमोदी-शाह का 2024 का लक्ष्य द्रविड़वाद को खत्म करना, यह उनका अगला दांव है

मोदी-शाह का 2024 का लक्ष्य द्रविड़वाद को खत्म करना, यह उनका अगला दांव है

मोदी-शाह-योगी त्रिमूर्ति ने 2024 में तमिल राजनीति में धारा-370 जैसा व्यवधान लाने का फैसला किया है. बीजेपी तमिल सांस्कृतिक राजनीति से अलगाववादी द्रविड़ आवेग को बाहर निकालना चाहती है.

Text Size:

मोदी-शाह-योगी त्रिमूर्ति ने 2024 में तमिल राजनीति में धारा-370 जैसा व्यवधान लाने का फैसला किया है. बीजेपी तमिल सांस्कृतिक राजनीति से अलगाववादी द्रविड़ आवेग को बाहर निकालना चाहती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की काशी तमिल संगमम की अवधारणा एक नया कार्यक्रम है और इसमें बड़ी राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षमता है. इसका उद्देश्य दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक वार्तालापों में से एक — द्रविड़वाद — को 21वीं सदी के हिसाब से बदलना है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने उत्तर भारतीय पार्टी के रूप में अपनी पुरानी छवि को सफलतापूर्वक पार कर लिया है, लेकिन तमिलनाडु हमेशा उससे दूर रहा है. आने वाले महीनों में तमिलनाडु पर पार्टी का फोकस बढ़ने वाला है और इसके लिए इसे एक खास तरह की तमिल असाधारणता के रूप में मानी जाने वाली सबसे बड़ी बाधा का सामना करना होगा.

काशी तमिल संगमम के केंद्रीय लक्ष्यों में से एक व्यापक तमिल संस्कृतिवाद के अत्यधिक प्रदर्शन के साथ मुकाबला करके द्रविड़वाद को खत्म करना है.

अपने 23 साल के राजनीतिक करियर में गुजरात के मुख्यमंत्री और तत्कालीन प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने अपने कई सार्वजनिक संबोधनों में यहां तक कि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी तमिल महाकाव्यों और साहित्य पर ध्यान केंद्रित किया. अपने “मन की बात” रेडियो कार्यक्रम के 106वें एपिसोड में मोदी ने तमिल कारीगरों-मज़दूरों, ड्राइवरों और सेवानिवृत्त सेना कर्मियों के साथ बातचीत करने का समय तय किया. इन संलग्नताओं का उद्देश्य विशिष्ट द्रविड़वाद के लिए एक वैकल्पिक तमिल कथा तैयार करना है — जिसमें सामाजिक पुनर्रचना के माध्यम से चुनावी लाभ प्राप्त करना शामिल है. यह भाजपा-आरएसएस की राष्ट्रवादी विचारधारा का अगला दांव है.

जैसे ही पिछले महीने हालिया विधानसभा चुनाव नतीजे आने शुरू हुए दुर्भाग्यपूर्ण उत्तर-दक्षिण विभाजन का मुद्दा फिर से उभर आया. यह वो उलझी हुई कहानी है जिसे मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह खत्म करना चाहते हैं.


यह भी पढ़ें: 2024 तमिलनाडु में एक चौंकाने वाली स्थिति पैदा करेगा, तीन नए चेहरे सामने आने वाले हैं


उत्तर-दक्षिण विभाजन की रार

तमिलनाडु में उत्तर भारतीयों विशेषकर भाजपा समर्थकों को अपमानजनक रूप से ‘गोमूत्र पीने वाले’ या ‘पानी पुरी बेचने वाले’ या फिर हिंदी भाषी भैय्ये के रूप में कहा जाता है. ऐसे अपशब्दों का अब एकजुटता से मुकाबला किया जाएगा. जैसे को तैसा के रूप में नहीं, बल्कि राष्ट्र के व्यापक आख्यान में तमिल संस्कृति को शामिल करके. राजनीतिक तौर पर सबसे बड़े द्रविड़ समर्थक डीएमके से मुकाबला करने के लिए मोदी ने एक तरफ राजनीतिक हमले किए और दूसरी तरफ ईडी से करवाए, लेकिन यह उस विचारधारा को खत्म करने के लिए काफी नहीं है जो तमिलों के अंदर बसी है. इसलिए, अब वह इसे काशी तमिल संगमम जैसी गतिविधियों के साथ करने की योजना बना रहे हैं. यह तमिल और हिंदी, तमिलों को उत्तर भारतीयों के साथ जोड़ने की सावधानीपूर्वक बनाई गई रणनीति है. भाजपा तमिल सांस्कृतिक राजनीति में राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना चाहती है. पिछले दस साल में पद्म पुरस्कार पाने वाले अधिकतर लोग दक्षिण से रहे हैं. फल उत्पादकों, बाजरा उत्पादकों, कठपुतली कलाकारों, नर्तकियों, बांस की टोकरी बुनने वालों को ‘पीपुल्स पद्म पुरस्कार’ प्राप्त हुआ है.

मोदी ने 17 दिसंबर को वाराणसी में 15 दिवसीय काशी तमिल संगमम उत्सव का उद्घाटन किया. इस कार्यक्रम में सांस्कृतिक कार्यक्रम, तमिल महाकाव्यों का पाठ, सेमिनार और उत्तर प्रदेश के मंदिरों का दौरा शामिल था. उन्होंने थिरुक्कुरल, मणिमेकलाई और अन्य तमिल साहित्यिक क्लासिक्स के बहु-भाषा और ब्रेल अनुवाद लॉन्च किए.

केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान ने केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सहयोग से इन अनुवादों में यह व्यापक कार्य किया. मोदी ने कन्याकुमारी-वाराणसी तमिल संगमम ट्रेन को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया और कहा कि यह ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना को आगे बढ़ाती है. उन्होंने कहा कि काशी और तमिलनाडु के बीच संबंध ‘भावनात्मक और रचनात्मक’ दोनों हैं.

काशी तमिल संगमम के उद्घाटन समारोह में मोदी ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करके वास्तविक समय में अनुवाद करने का भी प्रयास किया. एआई की मदद से तमिल में प्रधानमंत्री को सुनने का अवसर पाकर तमिल छात्र रोमांचित हो गए.

लेकिन इस सांस्कृतिक भाई-भाई वाली बातचीत के पीछे मोदी-शाह-योगी की त्रिमूर्ति है और उन्होंने 2024 में तीसरा कार्यकाल जीतने पर तमिल राजनीति में धारा 370 जैसा व्यवधान लाने का फैसला किया है. भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि पार्टी तमिल सांस्कृतिक राजनीति से अलगाववादी द्रविड़ आवेग को बाहर निकालना चाहती है. उनका यह भी मानना है कि इसकी शेल्फ लाइफ तेज़ी से खत्म होती जा रही है.

इसके लिए तात्कालिक राजनीतिक प्रेरणा तेलंगाना में कांग्रेस की जीत और उसके बाद उत्तर-दक्षिण विभाजन के बारे में एक्स पर की गई पोस्ट हैं. मोदी और शाह इस सिद्धांत को तोड़ना चाहते हैं. भाजपा में अब स्पष्ट दक्षिण की ओर देखो नीति आकार ले रही है.

(लेखक का एक्स हैंडल @RAJAGOPALAN1951 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ‘दक्षिण चलो’ की नीति के साथ भाजपा की नज़र अब तमिलनाडु पर, द्रमुक के लिए खतरे की घंटी


 

share & View comments