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Friday, 8 November, 2024
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2024 तमिलनाडु में एक चौंकाने वाली स्थिति पैदा करेगा, तीन नए चेहरे सामने आने वाले हैं

आठ प्रमुख क्षेत्रीय नेताओं का दक्षिण भारत पर काफी प्रभाव है. दक्षिण भारत में राजनीति के राज्य-वार गहन विश्लेषण से यह पता चल सकता है कि 2024 में क्या हो सकता है.

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आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव और दक्षिण भारतीय राजनीति को लेकर दो दिलचस्प भविष्यवाणियां की जा सकती हैं. पहली, पांच दक्षिणी राज्यों में आम चुनाव के नतीजे केंद्र सरकार के गठन को किसी भी महत्वपूर्ण तरीके से प्रभावित नहीं करेंगे. दूसरा, इनमें से किसी भी राज्य का फैसला किसी भी पार्टी की स्पष्ट जीत को प्रतिबिंबित नहीं करेगा – यह विभाजित हो जाएगा.

दक्षिण भारतीय राजनीति भ्रमित करने वाली नहीं है. यह बिल्कुल स्पष्ट है: आठ प्रमुख क्षेत्रीय क्षत्रप दक्षिण भारत पर हावी हैं और न तो कांग्रेस और न ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) यहां क्लीन स्वीप करने वाली है. आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में, जहां आध्यात्मिकता और सिनेमा राज्य की राजनीति से निकटता से जुड़े हुए हैं, पिछले कुछ वर्षों में कुछ प्रभावशाली हस्तियां राजनीतिक रूप से मजबूत हुई हैं – अभिनेता कमल हासन, पवन कल्याण और जोसेफ विजय, इनमें से कुछ नाम हैं.

दक्षिण भारतीय राज्यों की एक और खासियत यह है कि इस क्षेत्र में राजनीतिक भावनाओं में कोई एकरूपता नहीं है. आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल एक-दूसरे से बेहद अलग हैं, भले ही पहले दो तेलुगु भाषी राज्य हैं.

इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, दक्षिण भारत में राजनीति का गहन राज्य-वार विश्लेषण यह अनुमान लगाने में सक्षम हो सकता है कि 2024 में क्या हो सकता है.


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तमिलनाडु

आगामी लोकसभा चुनाव इस राज्य में एक बड़ी चौंकाने वाली स्थिति लेकर आएगा. द्रविड़ आंदोलन तेज़ी से खत्म हो रहा है: द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) और ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके) की पारंपरिक बाइनरी टूट जाएगी और तीन नए चेहरे तमिलनाडु की राजनीति का निर्धारण करेंगे. और वे कौन हैं? भाजपा के के अन्नामलाई, नाम तमिलर काची के सीमान और तमिल सिनेमा के प्रिय जोसेफ विजय.

ये नए चेहरे पहली और दूसरी बार के मतदाताओं को लुभाने के लिए तैयार हैं, जो द्रविड़ पार्टियों से कम से कम 25 से 30 प्रतिशत वोट शेयर छीनने के लिए बाध्य हैं. अगर अगले साल आम चुनाव में नहीं तो 2026 के विधानसभा चुनाव में ज़रूर.

बीते सालों के दिग्गजों के करुणानिधि और जे जयललिथा के निधन के बाद जो खालीपन आया है वह अभी तक नहीं भर पाया है. अब यह जगह कौन भरेगा? क्या यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होंगे या राहुल गांधी द्वारा समर्थित मल्लिकार्जुन खरगे?

भले ही हम अन्नाद्रमुक द्वारा कांग्रेस की तरफ बढ़ाए गए दोस्ती के हाथ पर विचार करें – एआईएडीएमके का भाजपा के साथ गठबंधन खत्म करने के बाद – कुछ भी हासिल होने की संभावना नहीं है. गठबंधन बदलने जैसा महत्वपूर्ण बदलाव कुछ हफ्तों में नहीं हो सकता. क्या दिसंबर के पहले सप्ताह में पांच विधानसभा चुनावों के नतीजे इस तरह के कदम को बढ़ावा दे सकते हैं? फिर से इसकी संभावना कम है – आम चुनाव से ठीक तीन महीने पहले गठबंधन में हेरफेर करना जोखिम भरा है.


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आंध्र प्रदेश और तेलंगाना

आंध्र प्रदेश की राजनीति भी दिलचस्प है: हालांकि, भविष्य में पीएम मोदी और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के एन चंद्रबाबू नायडू के बीच टकराव की संभावना है, लेकिन मौजूदा सीएम वाईएस जगन मोहन रेड्डी के पास अभी भी कंट्रोल है. हाल ही में अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी नायडू को भ्रष्टाचार के कथित आरोपों में गिरफ्तार करवाने के बाद रेड्डी शक्तिशाली बनकर उभरे – यह एक ऐसा कदम था जो बिल्कुल सही समय पर उठाया गया था. पूर्व सीएम बीजेपी और पीएम मोदी के सामने लगभग आत्मसमर्पण करने वाली मुद्रा में पहुंच गए थे. कांग्रेस आंध्र प्रदेश में बिल्कुल भी ताकतवर नहीं है, हालांकि, एक दशक पहले उसी ने राज्य का विभाजन किया था.

तेलंगाना में कांग्रेस की पकड़ है, जिसे भाजपा भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के वर्तमान सीएम के चंद्रशेखर राव की मजबूत व्यक्ति की छवि को तोड़ने के लिए पार्टी के शीर्ष नेताओं को भेजकर भुनाने की इच्छुक है.

केरल और कर्नाटक

यहां भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) एक प्रमुख ताकत है जिसके अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस को हराने की पूरी संभावना है. 2011 में, सीपीआई (एम) के दिग्गज नेता वीएस अच्युतानंदन ने वायनाड के सांसद राहुल गांधी को “अमूल बेबी” कहा था और आज भी वह प्रतिद्वंद्विता बरकरार दिखती है – पार्टी और वाम मोर्चा केरल में कांग्रेस को खत्म करना चाहते हैं. सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के कट्टर नेता सीपीआई (एम) की ओर रुख कर रहे हैं.

दूसरी ओर, क्या 2024 में केरल में भाजपा के लिए कोई जगह होगी? कुछ भी कह पाना मुश्किल है.

अंत में हम कर्नाटक आते हैं, जो कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण राज्य है. क्या कर्नाटक के 2024 लोकसभा नतीजों की कुंजी सीएम सिद्धारमैया के पास है? उत्तर पूरी तरह से ‘न’ है. कर्नाटक में सिद्धारमैया के कई कट्टर दुश्मन हैं और खरगे तथा तीन गांधी परिवार के सत्ता की परीक्षा है. जनता दल (सेक्युलर) 2024 के लिए भाजपा के साथ चतुराईपूर्वक गठबंधन करके कांग्रेस पर बढ़त हासिल करने की कोशिश कर रहा है. आप इसे किसी भी तरह से देखें, कर्नाटक में जीतना कोई आसान काम नहीं होगा – कांग्रेस के प्रति मतदाताओं के असंतोष के कारण भाजपा को लोकसभा में और अधिक फायदा होना तय है.

यह कहना सुरक्षित है कि अगले दशक में, एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी जो दक्षिण में अपनी पकड़ बढ़ा सकती है, वह भाजपा है. पहली बार के मतदाता, जिनका जन्म नरेंद्र मोदी युग में हुआ है और जिन्होंने डिजिटल क्रांति देखी है, वे इस गति को बनाए रख सकते हैं.

(लेखक का एक्स हैंडल @RAJAGOPALAN1951 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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