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Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतआज के युद्ध की जरूरत है तकनीकी बढ़त, बिना इसके सेना के ‘इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स’ कमजोर ही रहेंगे

आज के युद्ध की जरूरत है तकनीकी बढ़त, बिना इसके सेना के ‘इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स’ कमजोर ही रहेंगे

‘आईबीजी’ में तीसरी पीढ़ी के टैंक रोधी हथियार व वायु प्रतिरक्षा हथियार, मिसाइलें तथा ड्रोन आदि सेना के यूनिट स्तर तक उपलब्ध होने चाहिए

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चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ जनरल मनोज पांडे ने कमान संभालते ही भारतीय सेना का नवीकरण और पुनर्गठन तेजी से शुरू कर दिया है. 9 मई को पत्रकारों के एक दल से बातचीत में उन्होंने ‘इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स’ (आईबीजी) के गठन की दिशा में प्रगति का ब्योरा स्पष्ट किया. ‘सेना में मौजूदा ढांचों (फॉर्मेशन्स) को इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स में बदलने का मकसद यह है कि सेनाओं का आकार जरूरत के मुताबिक हो और वे तेज हों ताकि कमांडरों को अलग-अलग ‘थिएटर’ में अपेक्षित नतीजे हासिल करने के लिए ज्यादा विकल्प उपलब्ध हों. इस दृष्टि से हमने ‘आईबीजी’ के गठन की शुरुआत करने के लिए पश्चिमी क्षेत्र में एक स्थायी फॉर्मेशन की, और उत्तरी सीमाओं पर आक्रमणकारी फॉर्मेशन की पहचान की है.’

करीब दो सदी से ‘डिवीजन’ ही युद्ध लड़ने वाला स्वतः उपलब्ध संयुक्त फॉर्मेशन रहा है. इसमें एक कमांडर के अधीन तीन आर्मर्ड /इन्फैन्ट्री/ माउंटेन ब्रिगेड्स होते हैं जिन्हें केंद्रीय नियंत्रण में युद्धक/ लॉजिस्टिक्स सपोर्ट यूनिट का सहारा हासिल होता है. यह विभिन्न ग्रुपों वाले तीन संयुक्त आर्म्स ब्रिगेड्स तैयार करने की क्षमता रखता है. तीन से चार डिवीजनों को मिलाकर एक कोर बनता है, जो बड़े पैमाने पर ऑपरेशन्स चला सकता है. ये फॉर्मेशन लंबे युद्ध में छोटी-छोटी लड़ाइयां लड़ने के लिए उपयुक्त होते थे.

लेकिन 21वीं सदी में अधिकतर देशों ने आकलन किया कि खासकर परमाणु शक्ति वाले देशों के बीच युद्ध निर्णायक जीत के लिए पूरे पैमाने पर युद्ध में शायद ही उलझने की संभावना काफी कम होगी. भविष्य में लड़ाइयां समय और स्थान के लिहाज से सीमित होंगी और उनमें प्रमुख रूप से उच्च स्तरीय सटीकता और घातक सैन्य तकनीक का इस्तेमाल होगा. ऐसी लड़ाइयों में पहल करके बढ़त लेने वाले ज्यादा तेज फॉर्मेशन्स के जरूरत होगी. डिवीजनों को अधिक बोझिल, और जवाबी कार्रवाई में सुस्त माना गया. पिछले दो दशकों में, अधिकतर देशों की सेना ने डिवीजनों को खत्म कर दिया है और उन्हें मिशन, खतरे और इलाके की मांग के मुताबिक दो से तीन संयुक्त आर्म्स ब्रिगेड में बदल दिया है, जो सीधे कोर के अधीन काम करें. आधुनिक तकनीक, संचार तंत्र और नेटवर्किंग ने विशाल डिवीजनों की जरूरत खत्म कर दी.

भारतीय सेना ने इस दिशा में देर से, 2018 में बढ़ना शुरू किया और इसके नये संयुक्त आर्म्स फॉर्मेशन्स को ‘आईबीजी’ कहा गया.


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प्रगति

भारतीय सेना के संगठन दूसरे विश्वयुद्ध के जमाने के हैं. लेकिन विशेष ऑपरेशन या अवधि के लिहाज से कामचलाऊ बैटल ग्रुप्स रूप उस समय से ही हुआ करते थे. 1980 के दशक में हमने मैदानी इलाकों के लिए रीऑर्गनाइज्ड प्लेन्स इन्फैन्ट्री डिवीजन बनाए और इन्फैन्ट्री डिवीजन को स्थायी रूप से आर्मर्ड ब्रिगेड दिए गए. डिवीजनों के अंदर सभी शाखाओं को उनके अपने रूप में रखा गया और ऑपरेशन्स के लिए उन्हें ब्रिगेड तथा बटालियन स्तर पर दूसरी शाखाओं के साथ जोड़ा गया.

मेकेनाइज्ड फॉर्मेशन्स में ब्रिगेड स्तर पर आर्मर्ड और मेकेनाइज्ड इन्फैन्ट्री यूनिटों के स्थायी ग्रुप बनाए गए लेकिन यूनिट स्तर पर उन्हें ऑपरेशंस के लिए ही जोड़ा जाता था. इस ढांचे में संयुक्त आर्म्स वाली वास्तविक एकता और तालमेल नहीं होता था. इसके अलावा सार्थक ट्रेनिंग में भी बाधा आती थी. हमारे डिवीजन और कोर एक काल में अटक गए थे और वे लड़ाई के लिए सक्रिय होने और जवाबी कार्रवाई करने में सुस्त हो गए थे. दिसंबर 2001 और जनवरी 2002 में ‘ऑपरेशन पराक्रम’ के दौरान हम अवसर का लाभ नहीं उठा सके, बावजूद इसके कि हमने पहल की थी. इसकी वजह यह थी कि हमने युद्ध के लिए सक्रिय और तैयार होने में तीन सप्ताह लगा दिए थे. इसके बाद से ‘आईबीजी’ के विचार पर बहस शुरू हुई लेकिन हमारे संगठन में इसे लागू करने की इच्छाशक्ति की कमी थी.

2018 में जाकर ही इस विचार को औपचारिक रूप दिया गया और इसका श्रेय तत्कालीन चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ जनरल बिपिन रावत को जाता है. इस विचार का परीक्षण 2019 में मैदानी और पहाड़ी इलाकों में किया गया. उम्मीद की गई कि 2020 से आईबीजी का गठन धीर-धीरे शुरू हो जाएगा. लेकिन संगठन की सुस्ती के कारण दो साल की देरी हुई. पूर्वी लद्दाख में संकट एक कोरा बहाना है, जबकि लड़ाई के कारण तो सुधार और तेजी से किया जाना चाहिए. आशा की किरण यह है कि 2020 में आर्मेनिया-अजरबैजान युद्ध और फिलहाल जारी यूक्रेन युद्ध से 21वीं सदी के युद्ध के स्वरूप के बारे में सबक सीखा जा सकता है.

ढांचा

सेना के सामने केवल अपने 17 माउंटेन डिवीजनों (जिनमें तीन कथित इन्फैन्ट्री डिवीजन शामिल हैं), 18 इन्फैन्ट्री डिवीजनों (4-6 पुनर्गठित प्लेन्स इन्फैन्ट्री डिवीजन समेत), 3 आर्मर्ड डिवीजनों और 12 स्वतंत्र आर्मर्ड ब्रिगेडों के नवीकरण और पुनर्गठन की चुनौती ही नहीं है. उसे जरूरी संयुक्त आर्म्स संसाधन हासिल करने और उच्च स्तरीय सैन्य तकनीक को शामिल करने की भी जरूरत है. सभी शाखाओं और सेवाओं के यूनिट स्तर तक के संगठन की समीक्षा भी करनी है. यही काफी न हो तो, हमें उच्च स्तरीय सैन्य तकनीक को शामिल करने के लिए पैसे भी जुटाने हैं.

आईबीजी का गठन मिशन, इलाके और दुश्मन के लिहाज से करना होगा. पहाड़ों के लिए इन्फैन्ट्री वाले आईबीजी चाहिए. ऊंचाई वाली घाटियों/पठारों के लिए सुरक्षित वाहनों/आर्मर्ड पर्सोनल केरियर (एपीसी) में सवार इन्फैन्ट्री और मेकेनाइज्ड फोर्सेज की जरूरत होगी. मैदानी इलाकों के लिए भी ऐसे आईबीजी चाहिए जिनमें मेकेनाइज्ड फोर्सेज या इन्फैन्ट्री (सुरक्षित वाहनों/ एपीसी में) की प्रधानता हो. इसी तरह, समुद्र या वायु मार्ग से चलने वाले आईबीजी भी अपनी भूमिकाओं के लिहाज से तैयार किए जाएंगे. हमारे सैन्य संगठन में टोही यूनिटों की कमी है. यूनिट और आईबीजी के स्तरों पर इनकी बहुत जरूरत पड़ेगी.


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करीब 80-90 संयुक्त आईबीजी के गठन के लिए बुनियादी संसाधन हासिल करने के लिए सभी शाखाओं और सेवाओं की यूनिटों के गठन की कड़ी समीक्षा करनी पड़ेगी. हमारी यूनिटों का आकार आधुनिक सेनाओं की यूनिटों के आकार से 25-30 फीसदी बड़ा है. इन्फैन्ट्री बटालियन को चार की जगह तीन कंपनियों में गठित करने की जरूरत है. ऐसा करने से विभिन्न तरह की 500 इन्फैन्ट्री बटालियनों में से प्रत्येक से 120 सैनिकों की बचत की जा सकती है.

आर्मर्ड रेजीमेंट को 31 टैंकों वाला बनाया जा सकता है जिसमें हरेक स्क्वाड्रन में तीन टुकड़ियां हो सकती हैं और हरेक को तीन टैंक दिए जा सकते हैं और स्क्वाड्रन स्तर के ऊपर सभी कमांड बख्तरबंद कमांड वाहनों से किए जा सकते हैं. इससे मौजूदा 70 रेजीमेंटों में से कुल 980 टैंकों की बचत के साथ 31 नए टैंक रेजीमेंट बनाए जा सकते हैं, जो आईबीजी को उपलब्ध कराए जा सकते हैं. इसी तरह, मेकेनाइज्ड इन्फैन्ट्री को प्रति प्लाटून चार की जगह तीन इन्फैन्ट्री कंबैट वेहिकल्स (आइसीवी) में गठित किया जा सकता है, जिससे 450 आईसीवी की बचत से 10 नए मेकेनाइज्ड इन्फैन्ट्री बटालियन बनाए जा सकते हैं.

दूसरी शाखाओं और सेवाओं के मामले में इसी तरह की साहसिक कार्रवाई करके आईबीजी के लिए और साथ में नयी यूनिटोंके लिए भी तमाम संसाधन जुटाए जा सकते हैं जिससे मानव शक्ति का बचत होगी.

तकनीक का प्रयोग

नवीकरण और पुनर्गठन से ज्यादा बड़े चुनौती है अत्याधुनिक तकनीक को शामिल करना. 21वीं सदी की लड़ाइयों से सबसे अहम सबक यह है कि इनमें करीबी युद्ध नहीं होता है और स्टैंड-ऑफ रेंज से विभिन रूपों में प्रीसीजन गाइडेड म्यूनिशन (पीजीएम) के इस्तेमाल से दोनों तरफ की सेनाओं का विनाश किया जाता है. एक जगह स्थिर मोरचाबंदी को पीजीएम से नष्ट किया जा सकता है. अत्याधुनिक हथियार से लैस छोटी मोबाइल टीमों ने मुक़ाबले में खड़ी ज्यादा बड़ी सेना को नष्ट कर देती है.

आईबीजी में तीसरी पीढ़ी के टैंक-रोधी तथा वायु सुरक्षा के हथियार, और हवाई मार करने वाले हथियार यूनिटों को भी उपलब्ध होने चाहिए. यूनिट/आईबीजी/कोर स्टार की क्षमताओं के अनुसार टोही तथा हथियार से लैस ड्रोन यूनिटें भी शामिल की जाएं और संचार व्यवस्था को हस्तक्षेप मुक्त बनाया जाए. अटैक हेलिकॉप्टर भी मांग पर उपलब्ध हों. अपने साजोसामान तथा सैनिकों को पीजीएम के हमले से बचाव की और उन्हें नाकाम करने की व्यवस्था हो.

मानव शक्ति को कम करने की धुन में हम यह न भूलें कि सुरक्षित साजोसामान उपलब्ध हों, इसकी कमी के कारण ही यूक्रेन में रूस को हार का सामना करना पड़ रहा है.

स्पष्ट है कि डिवीजनों को आईबीजी में बदलने और पुनर्गठित करने से ज्यादा बड़ी चुनौती अत्याधुनिक तकनीक को शामिल करने की है. हमारे विशालकाय हाथीनुमा डिवीजन सुस्त हैं लेकिन तकनीक में बढ़त हासिल किए बिना आईबीजी बिना दांतों के शेर साबित होंगे.

(ले.जन. एचएस पनाग, पीवीएसएम, एवीएसएम (रिटायर्ड) ने 40 वर्ष भारतीय सेना की सेवा की है. वो नॉर्दर्न कमांड और सेंट्रल कमांड में जीओसी-इन-सी रहे हैं. रिटायर होने के बाद आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल के सदस्य रहे. उनका ट्विटर हैंडल @rwac48 है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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