scorecardresearch
Sunday, 3 November, 2024
होममत-विमतजन्नत जैसा है लुटियन जोन, पासवान कैसे छोड़ कर जाएंगे ये बंगला और चौबारा

जन्नत जैसा है लुटियन जोन, पासवान कैसे छोड़ कर जाएंगे ये बंगला और चौबारा

रामबिलास पासवान लुटियन दिल्ली के 12 जनपथ के बंगले में करीब 30 सालों तक रहे. अब वहां उनकी धड़ प्रतिमा स्थापित कर दी गई है. इसलिए कहा जा रहा है कि वहां पर उनका स्मारक बनाने की कोशिश हो रही है.

Text Size:

रामबिलास पासवान लुटियन दिल्ली के 12 जनपथ के बंगले में करीब 30 सालों तक रहे. रामबिलास पासवान से पहले 12 जनपथ पर कांग्रेस की नेता मोहसिना किदवई रहा करती थीं. इधर ही दिल्ली के पहले उपराज्यपाल आदित्य नाथ झा रहे थे. अब 12 जनपथ देश के नए रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को आवंटित हुआ है. पर अब 12 जनपथ पर रामविलास पासवान की धड़ प्रतिमा स्थापित कर दी गई है. इसलिए कहा जा रहा है कि वहां पर उनका स्मारक बनाने की कोशिश हो रही है. पर यह हो नहीं सकता क्योंकि केन्द्र सरकार ने फैसला ले लिया है कि अब लुटियन दिल्ली के किसी बंगले को स्मारक में तब्दील नहीं किया जाएगा.

पर बड़ा सवाल यह है कि जहां पर नेताओं के स्मारक बने हैं वहां पर कौन जाता है? राम विलास पासवान के 12 जनपथ के बंगले से चंदेक कदमों की दूरी पर लालबहादुर शास्त्री का स्मारक है. वह भी जनपथ पर है. वहां पर सन्नाटा पसरा रहता है. वहां पर रोज पांच-दस लोग भी नहीं पहुंचते. शास्त्री जी इधर ही रहते थे देश के प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए. इधर से ही उनकी 1966 में शवयात्रा निकली थी विजयघाट के लिए. शास्त्री जी की मौत के बाद ये बंगला उनकी पत्नी ललिता शास्त्री को आवंटित कर दिया गया. वो 1993 तक यानी अपनी मृत्यु तक उसमें रहीं. फिर वहां पर शास्त्री जी का स्मारक बना दिया गया.

इधर शास्त्री जी के जीवन से जुड़ी खास चीजों को रखा गया है. पर, एक बार स्मारक बन गया तो उसे खत्म कौन करेगा? हालांकि शास्त्री जी के स्मारक को चलाने वाले ट्रस्ट की हालत बहुत पतली बताई जाती है. यूपीए-2 सरकार ने इस तरह के स्मारकों के लिए धन मुहैया बंद कराने का फैसला किया था. उसके बाद मोदी सरकार ने एक फैसला लिया है कि सरकार अब महात्मा गांधी के अलावा किसी भी नेता की जयंती या पुण्यतिथि नहीं मनाएगी. मतलब ये कि अब सरकार सिर्फ महात्मा गांधी की जन्म-तिथि एवं पुण्य-तिथि से ही खुद को जोड़ेगी और अन्य दिवंगत नेताओं की जन्म-तिथि एवं पुण्य-तिथि पर होने वाले कार्यक्रम उनसे संबंधित ट्रस्ट, पार्टी, सोसाइटी या समर्थक मनाएंगे.


य़ह भी पढ़ें: लुटियंस की दिल्ली ने क्यों नरेंद्र मोदी से मुंह फेर लिया है?


कौन आता शास्त्री स्मारक में

कहने वाले तो कहते हैं कि शास्त्री स्मारक कभी-कभार इसलिए गुलजार हो जाता है क्योंकि ये कुछ टूर ऑपरेटर्स की सूची में है. इसलिए वे पर्यटकों को इधर ले आते हैं. शनिवार और रविवार को इधर 40-50 लोग आ जाते हैं. इधर कुछ गाइड और दूसरे मुलाजिम काम कर रहे हैं. शास्त्री जी के पुत्र अनिल शास्त्री ने कह चुके हैं कि अब स्मारक को चलाना लगातार मुश्किल होता जा रहा है. सरकार ने इसे मदद देना बंद कर दिया है.

कैसे अंदर जाएं बाबू जी के स्मारक में

लुटियन दिल्ली के 6, कृष्ण मेनन मार्ग के विशाल बंगले से कहने को चल रहा है बाबू जगजीवन राम स्मारक. अगर कोई इसके भीतर जाना चाहे तो उसे जाने की इजाजत नहीं है. इसका गेट बंद रहता है. इसे जगजीवन राम फाउंडेशन देखता है. ये शायद एकमात्र स्मारक है,जहां पर किसी को आने की फुर्सत नहीं है. इसके बाहर लगे बोर्ड में सूचना दी गई है कि जगजीवन राम के चित्रों की प्रदर्शनी सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक. लेकिन, इधर का गेट बंद है. आप अंदर जाने की कोशिश करते रहिए आपको कहीं से कोई मदद नहीं मिलेगी.

हालांकि, जिन खुशनसीबों को इसके अंदर जाने का कभी मौका मिला, वे बताते हैं कि इसके दो कमरों में बाबू जगजीवन राम के सक्रिय जीवन से जुड़े चित्र लगे हैं. उनकी एक अर्दप्रतिमा भी लगी हुई है. इधर रहते हुए ही साल 1986 में जगजीवन राम चल बसे थे. उन्हें यह बंगला तब आवंटित हुआ था जब वे 1946 की अंतरिम सरकार में मंत्री थे. वे इस बंगले में दशकों रहे. कुल मिलाकर बात ये है कि आठ बैड रूम के इस बंगले में एक उस नेता का स्मारक बना हुआ है,जिधर कोई झांकता भी नहीं है.

आइये अब चलें नेहरु मेमोरियल

राजधानी के बेहद खास तीन मूर्ति इलाके में तीस एकड़ में बना हुआ नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय. इसकी स्थापना 1964 में जवाहरलाल नेहरू की मौत के बाद हुई. यही जवाहरलाल नेहरु का सरकारी आवास था प्रधानमंत्री के रूप में. इसके चार अंग हैं- स्मारक संग्रहालय,आधुनिक भारत से संबंधित पुस्तकालय, समसामयिक अध्ययन केन्द्र और नेहरु तारामण्डल. लेकिन इधर भी हालात कमोबेश वैसे ही हैं,जैसे बाकी स्मारकों में. इधर जवाहरलाल नेहरु के जीवन से जुड़ी कई खास सामग्रियां पड़ी हैं. जिसमें स्मृतिचिन्ह व उनके जीवन और भारत की आज़ादी के आंदोलन से जुड़ी वस्तुएं आदि प्रदर्शित हैं. लगता है, इन सबमें अब किसी की दिलचस्पी नहीं रही है.

हां, इधर के समृद्ध पुस्तकालय में रोज तमाम रिसर्च स्कालर जरूर पहुंचते हैं. कोविड काल से पहले नेहरु स्मारक में भी रोज 50-100 पयर्टक तो पहुंच जाते थे. चूंकि इधर बहुत समृद्ध लाइब्रेरी भी है तो इधर रिसर्च स्कालर काफी तादाद में पहुंचते हैं. हालांकि इसके कामकाज और शोध में भारतीय भाषाओं के लिए कोई जगह नहीं है.

इंदिरा गांधी के 1,सफदरजंग रोड में बनाए गए स्मारक की भी हालत पतली है. यहां भी एक-दो दर्जन पर्यटक ही पहुंचते हैं. इंदिरा गांधी का ये तब आशियाना बन गया था जब वह पहली बार कैबिनेट में आईं थीं. इधर कुछ गुब्बारे और पर्यटन से संबंधित किताबें बेचने वाले मायूस से ही खड़े थे.

इधर इंदिरा गांधी के वे खून से सने कपड़े भी रखे हैं,जो उन्होंने अपनी हत्या के वक्त पहने हुए थे. एक दौर में जिधर चहल-पहल रहती थी वहां पर अब गिनती के ही लोग पहुंचते हैं.


यह भी पढ़ें: बाबा साहेब से सीखें हारे एमपी, खाली करें लुटियन जोन के बंगले


वहां रहे थे बाबा साहेब

दिल्ली विश्वविद्यालय के करीब 26 अलीपुर रोड पर डा. अंबेडकर के स्मारक को नए सिरे से बनाया गया है. अटल बिहारी वाजपेयी ने 2 दिसंबर,2003 को इस बंगले को देश को समर्पित किया बाबा साहब के स्मारक के रूप में. उसके बाद इधर बाबा साहेब की एक प्रतिमा लगाई गई. वे 26, अलीपुर रोड पर आने के बाद 6 दिसंबर,1956 तक यानी अपनी मृत्यु तक यहां पर ही रहे. बाबा साहेब ने 26, अलीपुर रोड में रहते ही ‘बुद्धा एंड हिज धम्मा’ नाम से अपनी कालजयी पुस्तक लिखी.

बाबा साहेब का उस दौर में ज्यादातर वक्त अध्ययन और लेखन कार्यों में ही गुजरता था. उनके पीए नानक चन्द्र रत्तू खाना पकाने वाले सुदामा आमतौर पर उनके पास रहते थे. आप जैसे ही 26 अलीपुर रोड के अंदर पहुंचते हैं तो आपको कहीं ना कहीं लगता है कि बाबा साहेब यहां पर ही कहीं होंगे. वे कभी भी कहीं से आपके सामने खड़े हो जाएंगे. बेशक, जिस जगह पर बाबा साहेब जैसी शिखर हस्ती ने अपने जीवन के कुछ बरस बिताए वह जगह अपने आप में खास तो है. अलीपुर रोड के इस बंगले में कई कमरे हैं. बंगले के आगे एक सुंदर सा बगीचा भी है. बाबा साहेब के घर के दरवाजे सबके लिए हमेशा खुले रहते थे. कोई भी उनसे कभी मिलने के लिए आ सकता था. वे सबको पर्याप्त वक्त देते थे. मेहमानों को सादा भोजन या चाय भी मिलता था. पर अब यहां कोई बहुत लोग तो नहीं आते.

जन्नत जैसा है लुटियन जोन

कहने वाले कहते हैं कि लुटियन दिल्ली के बंगले को छोड़कर बाहर किसी अन्य जगह पर जाकर रहना कोई आसान काम नहीं है. असल में, लुटियन जोन का बंगला खाली करने के लिए बहुत साहस चाहिए. जन्नत जैसा है लुटियन जोन. दिल्ली की तपिश में जब सूरज देवता आग उगलते हैं, तब भी लुटियन दिल्ली के 26 किलोमीटर में फैले हरे-भरे क्षेत्र में मीठी बयार ही बहती है. इधर की हर सड़क के दोनों तरफ लगे घने दरख्तों की भारी-भरकम टहनियां सड़क के एक बड़े भाग को अपने आगोश में ले लेती हैं. इसके चलते सूरज की किरणें नीचे जाने से पहले ही रोक ली जाती हैं. इनकी मीठी बयार गर्मी में भी खुशनुमा अहसास देती हैं.

लुटियन दिल्ली में मुख्य रूप से इमली, अमलतास, जामुन,बरगद वगैरह के पेड़ लगे हैं. पर शायद सबसे ज्यादा जामुन है. सफदरजंग रोड,सुनहरी बाग, राजाजी मार्ग, कुशक रोड, त्यागराज मार्ग, मोतीलाल नेहरु मार्ग में जामुन हैं. अकबर रोड और तीन मूर्ति मार्ग पर इमली के पेड़ हैं. अकबर रोड के पीछे कुछ अमलतास भी हैं. पृथ्वीराज रोड, औरंगजेब रोड, तीस जनवरी मार्ग, कृष्ण मेनन मार्ग पर नीम हैं. तो बाबा खड़क सिंह मार्ग,तिलक मार्ग, फिरोजशाह रोड, तीन मूर्ति मार्ग इमली के पेड़ों से लबरेज है. जाहिर है, अब पासवान परिवार के लिए यहां से जाना आसान नहीं है.


यह भी पढ़ें: राजेंद्र प्रसाद से रामनाथ कोविंद तक- एक ऐसा स्कूल जहां देश के राष्ट्रपति भी शिक्षक बन जाते हैं


 

share & View comments