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Friday, 19 April, 2024
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बाबा साहेब से सीखें हारे एमपी, खाली करें लुटियन जोन के बंगले

डा.भीमराव आंबेडकर ने पंडित नेहरु की कैबिनेट से 27 सितंबर,1951 को इस्तीफा दे दिया था. वे उसके अगले ही दिन यानी 28 सितंबर, 1951 को 26 अलीपुर रोड में शिफ्ट कर गए थे.

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17 वीं लोकसभा के चुनाव नतीजों की घोषणा के बाद अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी कैबिनेट का गठन भी कर लिया है. अब चाहें तो हारे हुए सांसद और मंत्री बाबा साहेब आंबेडकर की उस नजीर से प्रेरणा ले सकते हैं,जो उन्होंने पंडित नेहरु की कैबिनेट को छोड़ने के बाद रखी थी.

डा.भीमराव आंबेडकर ने पंडित नेहरु की कैबिनेट से 27 सितंबर,1951 को इस्तीफा दे दिया था. वे उसके अगले ही दिन यानी 28 सितंबर, 1951 को 26 अलीपुर रोड में शिफ्ट कर गए थे. मतलब कैबिनेट मंत्री का पद छोड़ने के बाद वे एक दिन भी 22 पृथ्वीराज रोड के सरकारी बंगले में नहीं रहे. वे चाहते तो सरकारी आवास में दो-तीन महीने तक आराम से रह सकते थे.


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17 वीं लोकसभा के 300 नए सदस्य निर्वाचित हुए हैं. जाहिर है, इन सबको राजधानी में रहने के लिए छत की दरकार होगी. नए सांसदों को स्थायी आवास उपलब्ध करवाने में एक- सवा माह का वक्त लग ही जाता है क्योंकि निवर्तमान सांसद अपने सरकारी आवासों को छोड़ने में कभी-कभी जानबूझकर भी देरी कर देते हैं. कुछ बंगलों में जमे रहने के बहाने तलाशते हैं.

खाली नहीं कर रहे थे बंगला अजीत सिंह

आपको याद होगा कि 2014 के लोकसभा चुनावों में हारने के बाद चौधरी अजीत सिंह ने 12 तुगलक रोड के अपने आवास को खाली करने में बहुत बखेड़ा खड़ा किया था. उन्हें बाद में सरकार ने बंगले से निकाला था. उनका इस बार फिर से सांसद बनने का सपना चूर हो गया. इसके विपरीत यूपीए सरकार में मंत्री सलमान खुर्शीद ने कुशक रोड के अपने बंगले को तुरंत खाली कर दिया था. वे उसे खाली करके अपने जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी स्थित पुश्तैनी आवास में चले गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने 5 जुलाई, 2013 के अपने एक फैसले में स्पष्ट कर दिया था कि मंत्री/सांसद ना रहने के एक माह के भीतर सरकारी आवास खाली कर दिया जाना आवश्यक है.

जैसा कि नियम है, हारे हुए सांसदों को एक माह के भीतर अपने सरकारी आवासों को संपदा निदेशालय के अधिकारियों को सौंपना होता है. पर इनकी भी कुछ मजबूरियां तो हो ही सकती हैं. इसलिए इनसे अपेक्षा रहती है कि वे यदि एक माह से अधिक समय तक सरकारी बंगले में रह रहें तो वे लोकसभा के स्पीकर को सूचित कर दें और मार्केट रेंट अदा करें.

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खाली करना पड़ सकता है आडवाणी, जोशी और शरद यादव को बंगला

बात हो रही थी, उन सांसदों की जो मंत्री ना होने के बावजूद कैबिनेट मंत्रियों को मिलने वाले बंगलों में रहते हैं. इस लिहाज से शरद पवार, मुलायम सिंह यादव और शरद यादव का नाम लिया जा सकता है. ये सब विपक्ष में थे, पर अपनी वरिष्ठता के कारण इन्हें कैबिनेट मंत्रियों को मिलने वाले बंगले आवंटित हुए थे.


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शरद पवार जनपथ में रहते हैं, मुलायम सिंह यादव का सरकारी आवास अशोक रोड पर है और शरद यादव का तुगलक रोड पर है. शरद यादव को अब अपना सरकारी बंगला छोड़ना होगा क्योंकि वे मधेपुरा से चुनाव हार गए हैं. मुलायम सिंह यादव फिर से निर्वाचित हुए हैं, शरद पवार राज्य सभा में हैं. देखा जाए तो अब भाजपा के वरिष्ठ नेताओं लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को भी अपने पृथ्वीराज रोड और रायसीना रोड के बंगले छोड़ने पड़ सकते हैं. कारण सबको पता है कि इन दोनों ने पिछला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था.

कहां मिलेंगे आशियाने

बहरहाल पहली बार लोकसभा के लिए चुनकर आए सांसदों को मुख्य रूप से साउथ और नार्थ एवेन्य में फ्लैट दिए जाते हैं. ये चार बैड रूम के हैं.साउथ एवेन्यू में 25 एकड़ में 196 फ्लैट है, जबकि नार्थ एवेन्यू में 22 एकड़ में 400 से अधिक फ्लैट हैं. इन्हें बने हुए छह दशक से अधिक का वक्त हो रहा है. ये सब लोकेशन के लिए लिहाज से शानदार माने जा सकते हैं, पर इनमें आधुनिक सुविधाओं का अभाव महसूस किया जाता है. उदाहरण के रूप में इनमें मोडयूलर किचन नहीं होता.

यदि पहली बार निर्वाचित हुआ सांसद अपने राज्य की विधानसभा का सदस्य या मंत्री रहा होता तो उसे कापरनिक्स मार्ग, बलवंत राय मेहता लेन, फिरोजशाह रोड वगैरह में पांच/छह कमरों का बंगला भी आवंटित हो जाता है. यदि वह अपने प्रदेश का मुख्यमंत्री रहा होता है, उसे तब भी मोतीलाल नेहरु लेन, राजेन्द्र प्रसाद रोड, जनपथ लेन वगैरह में केन्द्रीय मंत्री वाला सम्मानजनक बंगला आवंटित किया जाता है.

कब बने थे भव्य बंगले

इस बीच, लुटियंस बंगलो जोन ( एलबीजेड) में जो बंगले मंत्रियों और वरिष्ठ सांसदों को आवंटित होते हैं, वे नई दिल्ली के 1931 में निर्माण तक बन गए थे. इन बंगलों का निर्माण दो से चार एकड़ भूमि में किया गया. लोधी एस्टेट, अकबर रोड, अशोक रोड, सफदरजंग रोड, जनपथ, अमृता शेर गिल मार्ग, जंतर मंतर, तालकटोरा रोड, तुगलक रोड के बंगलों में प्राय: कैबिनेट मंत्री रहते हैं. ये आठ बैड रूम के बंगले हैं. इन सबका डिजाइन लुटियंस और रोबर्ट रसेल टोर ने किया था.

बहरहाल देखते है कि कितने पराजित सांसद बाबा साहेब की सीख को अपने जीवन में उतारेंगे.

(वरिष्ठ पत्रकार और गांधी जी दिल्ली पुस्तक के लेखक हैं )

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