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Saturday, 21 December, 2024
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कौन बनेगा हरियाणा विधानसभा चुनावी दंगल का सुल्तान?

हरियाणा में चुनाव की हालत ये है कि लोग अब ये नहीं पूछ रहे हैं की किसकी कितनी सीटें आएंगी, बल्कि सवाल ये है, कि क्या मनोहर लाल देवीलाल के 75 सीटें जीतने का रिकॉर्ड तोड़ पाएंगे?

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जब कहीं हम हरियाणा सुनते हैं, तो दिमाग में कुछ तस्वीरें कौंध जाती हैं: खेती-ट्रैक्टर वाला हरियाणा, देसी बोली और हुक्का पीते ताऊ-ताईयों वाला हरियाणा, सपना चौधरी- सुशील कुमार- फोगाट बहनों का हरियाणा. खेलों में सबसे आगे और सेना में जवान भेजने में सबसे आगे रहने वाला प्रदेश. मशहूर सोशल मीडिया स्टार अमित बढ़ाना, ललित शौक़ीन और हर्ष बेनीवाल का हरियाणा. सुल्तान, दंगल और ‘म्हारी छोरियां छोरो से काम हैं के’ जैसे सबकी जुबान पे चढ़ने वाले डायलॉग से मशहूर हुआ हरियाणा. चौधरी छोटूराम का हरियाणा. लालों का हरियाणा (बंसीलाल, भजनलाल, देवीलाल और अब मनोहर लाल).

कुछ लोगों को कहते सुना है जित दूध दही का खाणा, औ है म्हारा हरियाणा. उसी हरियाणा में चुनावी शंखनाद बज चुका है. रणभेरी निकल गयी है. मनोहर लाल जैसे नेता तो अपने रथ पर सवार होकर लोगों से बात करने भी निकल चुके हैं. हरियाणा में चुनाव के हालात ये हैंि कि लोग अब ये नहीं पूछ रहे हैं कि किसकी कितनी सीटें आएंगी, बल्कि सवाल ये है, कि क्या मनोहर लाल देवीलाल के 75 सीटें जीतने का रिकॉर्ड तोड़ पाएंगे? सीटों के हिसाब से गृहयुद्ध से परेशान इनेलो (इंडियन नेशनल लोकदल) का खाता खुलेगा या अंदरूनी लट्ठम-लट्ठ से दुबकी हुई कांग्रेस का? आइये, तसल्ली से जानते हैं हरियाणा को, पार्टियों को, समाजिक और चुनावी गणित को.


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राजनीतिक परिदृश्य कैसा है?

हरियाणा प्रदेश 1 नवंबर 1966 को पंजाब प्रांत से अलग हुआ था. प्राकृतिक संसाधनों से दुरुस्त हरियाणा हमेशा से भारत का धनी प्रदेश रहा है. हरियाणा दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और हिमाचल प्रदेश घिरा हुआ है. प्रदेश की जनसंख्या करीब 2.5 करोड़ है जिसमें से 1 करोड़ 83 लाख के करीब वोटर हैं. 98.3 लाख पुरुष वोटर हैं और 84 लाख 65 हजार महिला वोटर हैं. हिंदी और हरियाणवी हरियाणा की प्रमुख भाषाएं हैं.

धर्म के लिहाज से देखा जाए तो हरियाणा में हिन्दू 87.46 %, मुस्लिम 7.02% और सिख 4.91% हैं. जाति के हिसाब से हरियाणा में 25% जाट हैं, 20% दलित, 12% अहीर, ब्राह्मण 8%, खत्री 8%, बनिया- 5%, राजपूत- 5%, सिख- 4%, गुज्जर- 2.8%, सैनी- 2.5%, कम्बोज- 2% और अन्य 5%. 2014 में हरियाणा की 90 सीटों पर हुए विधानसभा चुनाव में करीब 76.54% लोगों ने वोट किया था. भाजपा ने 47 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी. हरियाणा के चुनावी इतिहास में पहली बार भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी थी और मनोहर लाल खट्टर पहले भाजपाई मुख्यमंत्री. कांग्रेस को 15 और इनेलो को 19 सीटें मिली थीं और बाकी बचीं 9 सीटें अन्य पार्टियों-निर्दलीय के खातें में गईं थीं.

2014 विधानसभा चुनाव के बाद की कहानी

2014 का चुनाव रोचक था. हुड्डा अपने पिछले 5 साल का गुणगान कर रहे थे. उनके ‘नंबर वन है हरियाणा, सबसे आगे हरियाणा’ कैंपेन का गाना चल रहा था. चौटाला परिवार भी बिखरा हुआ नहीं था. कम से कम जाट-प्रधान सीटों पर उनकी पकड़ थी. मोदी लहर पर सवार होकर भाजपा ने पूर्ण बहुमत से पहली बार हरियाणा में सरकार बनाई. लेकिन जिस बात ने सबको चौंकाया था वो था मनोहर लाल खट्टर का मुख्यमंत्री बनना.

जहां राम बिलास शर्मा, कप्तान अभिमन्यु, ओम प्रकाश धनकड़ और अनिल विज जैसे पुराने नेता मुख्यमंत्री की होड़ में थे ऐसे में मनोहर लाल, एक गैर जाट (पंजाबी) मुख्यमंत्री का चुना जाना, उनके अपने साथी विधायकों के साथ समस्त मीडिया और लोगों के लिए भी हतप्रभ करने वाला था. कई लोगों ने उन्हें ‘वीक सीएम’ की संज्ञा भी दी. ‘रामपाल की गिरफ्तारी’, ‘जाट आंदोलन’ और ‘राम रहीम की गिरफ्तारी’ के कारण बिगड़े हालातों से लगने लगा कि शायद हरियाणा के क़ानून पर मुख्यमंत्री की उतनी पकड़ नहीं है. कई लोगों की मौत, सैकड़ों का घायल होना, और हजारों लोगों की गिरफ्तारी.

ये मनोहर लाल के दामन पर वो छींटे थे जो उनकी गद्दी छिनवा सकते थे. लेकिन जो लोग मनोहर लाल पर शक कर रहे थे, 2019 चुनाव आते-आते अब वो कह रहे हैं कि कोई बड़ी बात नहीं होगी अगर भाजपा प्रदेश में 80 का आंकड़ा पार कर ले तो. और इसीलिए विपक्षियों के लिए तो यह अस्तित्व बचाने का चुनाव है.

2019 लोकसभा चुनाव

2019 के आम चुनाव में भाजपा की वैसी लहर नहीं थी जैसी 2014 में थी. लेकिन 2019 में एक साइलेंट लहर थी. लोग अपने वोट को लेकर आश्वस्त थे. चाहे फिर वो हरियाणा ही क्यों न हो जहां से मोदी रथ पर सवार हुए तो हरियाणा की 10 की 10 सीटें जीत लीं. वो मोदी रथ, जो बालाकोट स्ट्राइक के बाद अनवरत दौड़ता रहा: हरियाणा में हुड्डाओं, चौटाला परिवार और बिश्नोई परिवार के दिग्गजों को परास्त करते हुए, विपक्ष को जमींदोज करते हुए. और लोगों ने भी साथ दिया. जाट-गैर जाट, जातीय समीकरण से ऊपर उठते हुए जब वोट डला तो मोदी रथ तो जीत ही चुका था. भाजपा का हरियाणा में वोट प्रतिशत 2014 के 34.7% से 58% पहुंच गया था. अगर विधानसभा के लिहाज से देखा जाए तो 2019 आम चुनाव में भाजपा ने 90 में से 79 विधानसभा (हलके) जीते. और शायद इसलिए भाजपा प्रचार टीम ने नारा गढ़ दिया : इस बार 75 पार.


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भाजपा की तैयारी

भाजपा को जहां ब्राह्मण-बनियों की पार्टी माना जाता था और चूंकि हरियाणा में अधिकतर जाट मुख्यमंत्रियों का वर्चस्व रहा है या कांग्रेसी नॉन जाट का, ऐसे में भाजपा ने हरियाणा की सामाजिक-राजनैतिक संरचना को जाट-नॉन जाट में बांट दिया है. भाजपा हरियाणा ने नारे निकाले हैं: ‘इस बार-75 पार’ और ‘फिर इस बार-मनोहर सरकार’. जो लोग कहते हैं या आश्चर्यचकित होते हैं कि भाजपा कैसे चुनावी मशीन बन गयी है, क्या वो फैक्टर्स हैं जो भाजपा को इतनी सीटें दिला देता है? उनको कोई बताए कि भैया ये वो हरियाणा भाजपा है जहां अमित शाह, नरेंद्र मोदी और जेपी नड्डा जैसे बड़े नेता हरियाणा में और वो भी हरियाणवी सम्बोधन के साथ अपनी एक-एक रैली कर चुके हैं.

वहीं विपक्ष तो ये तय नहीं कर पा रही है कि गठबंधन करें या अकेले जाएं चुनाव में. मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने चुनावी शंखनाद करते हुए 18 अगस्त से जन-आशीर्वाद यात्रा शुरू की जिसमें वो पूरा प्रदेश, मतलब 90 की 90 विधानसभाएं बस यात्रा से गांव-गांव जाकर, लोगों की, अपने नेताओं की और अपने कार्यकर्ताओं की नब्ज़ टटोली. वो लोगों से कह रहे थे, ‘हरियाणा की मैंने 5 साल सेवा की है, अब लाइसेंस रिन्यु कराने का समय है’. इससे कुछ नहीं होता, एक उत्साहवर्धन होता है, अपने कार्यकर्ता में, पदाधिकारियों में,  जिस नेता, जिस पार्टी के लिए हम हर घर पर 4 बार दस्तक देने वाले हैं, वो हमारे पास आता भी है या नहीं, चुनावी मोड में है भी या नहीं?

6 सितंबर को मनोहर लाल की जन-आशीर्वाद यात्रा पूर्ण हुई और 8 को मोदी रैली हुई जिसमें वो लोगों को ‘नमोहर’ नाम की ब्रैंडिंग या यूं कहें राजनैतिक जुमला दे गए. भाजपा महासम्पर्क अभियान भी चालू है 15 सितंबर तक जिसमें अलग-अलग नेता लोगों के घर जाकर उनसे संवाद कर रहे हैं. जल्द ही आचार संहिता लग जाएगी और पार्टी आ जायेगी फुल चुनावी मोड में.

विपक्ष का लट्ठम-लट्ठ

कांग्रेस पार्टी का घमासान अब थमा हुआ लग रहा है. हालांकि कुलदीप बिश्नोई पर दो रेड हुईं लेकिन हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष पद कुमारी शैलजा के पास जाना, रणबीर हुड्डा का पार्टी में बने रहना एक राहत की सांस ज़रूर है लेकिन क्या कांग्रेस पार्टी का कार्यकर्ता इतना प्रेरित है कि वो भाजपा कार्यकर्ता से चुनावी दंगल लड़ सके? लेकिन तैयारी कितनी है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है कि न तो कोई नारा तैयार है, न कोई चुनावी गाना और न ही मुद्दों पर सरकार को घेरना. हरियाणा कांग्रेस को देखकर लगता है कि उन्होंने जीतने की उम्मीद छोड़ दी है और केवल औपचारिकता निभा रही है. कांग्रेस का वोट प्रतिशत 2019 लोकसभा चुनाव में 28.42% था.

हालांकि कुछ पुराने इनेलो के नेता (अशोक अरोड़ा) कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं लेकिन देखा यह जाता है कि किस तरह पार्टी चुनावी हवा बना रही है. एक ओर पार्टी विपक्ष में है. इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के पारिवारिक मनमुटाव के कारण नव-निर्मित पार्टी जेजेपी (जननायक जनता पार्टी). लोकसभा चुनाव में अपना जज्बा दिखाते हुए जजपा ने लगभग 5% वोट हासिल किये थे. आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन था. लेकिन इस बार उन्होंने गठबंधन बनाया बहुजन समाज पार्टी के साथ. अभी तो चुनाव घोषित भी नहीं हुए थे कि बहन मायावती अपनी आदत के मुताबिक़ फिर घोषणा करती हैं कि बसपा पूरे दमखम के साथ हरियाणा में अकेले चुनाव लड़ेगी.

अब ख़बरें आ रहीं हैं कि जजपा वापस जमींदोज हुई इनेलो के साथ गठबंधन कर सकती है जिसके लिए कुछ खापें पूरा जोर लगा रही हैं. इनेलो का 2014 के चुनाव में 24.10% वोट था जो लोकसभा 2019 में केवल 1.89% रह गया. जिस इनेलो ने 19 सीटें जीती थीं उसकी 2019 आते-आते केवल 7 सीटें रह गई हैं.


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मुद्दे क्या हैं?

मुद्दे अगर हैं भी तो विपक्ष माहौल नहीं बना पा रहा है. सरकार अपनी जो सफलताएं गिना रही है उसमें अंत्योदय योजना, गैस सिलेंडर की 48 घंटे में उपलब्धता और बीबीसी (भर्ती-बदली-सीएलयू) में पारदर्शिता प्रमुख है. इस चुनाव में जो मुद्दा भुनाया जा रहा है वो फिलहाल एक ही है: अनुच्छेद 370 हटाना. इसका उदाहरण भाजपा की जन-आशीर्वाद यात्रा और शीर्ष नेतृत्व की हुई रैलयों में भी देखने को मिला है जहां इसका बार-बार ज़िक्र किया गया है. विपक्ष के लिए जहां मुद्दे उछालना ही भारी पड़ रहा है वहां ‘अनुच्छेद 370 के हटने’ के मुद्दे को लेकर उनका पक्ष रखना उन्हें किसी भी तरह से चुनाव में पीछे ही ले जायेगा.

एक समय था कि हरियाणा का चुनाव हाउस ऑफ़ कार्ड्स सरीखा हुआ करता था. लेकिन इस बार पहले जैसी रोचकता नहीं है. नीरसता है. एकरूपता है. बोरिंग है. परिणाम सबको पता है. कई बार यकीन नहीं होता कि ये वो आयाराम-गयाराम वाला हरियाणा है. ये वही हरियाणा है जो पारिवारिक राजनीति, पक्ष-परिवर्तन और विधायकों की खरीद-फरोख्त के किस्सों से भरा हुआ रहा है. अजीब लगता है क्योंकि शायद विपक्ष का इस तरह बिछ जाना राजनीति को कमजोर तो बनाता ही है. लोकतंत्र की धार भी ख़त्म करता है.

(सागर विश्नोई पेशे से पॉलिटिकल कंसलटेंट और चुनावी विश्लेषक हैं. चुनाव, राजनीति और डिजिटल गवर्नेंस में ख़ास रुचि रखते हैं. विश्नोई गवर्न नामक गवर्नेंस इनोवेशन लैब को हेड कर रहे हैं. यह लेखक के निजी विचार हैं.)

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