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Friday, 20 December, 2024
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कपिल मिश्रा से लेकर पायल रोहतगी तक भारत के ‘नए बुद्धिजीवी’ पुराने चिंतकों को अप्रसांगिक बना रहे हैं

क्या अरुंधति रॉय, रामचंद्र गुहा या फिर प्रताप भानु मेहता कभी लोगों को एक साल में इतना 'इतिहास और विज्ञान' पढ़ लेने और 'शिक्षित' करने के लिए प्रेरित कर सकते?

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नई दिल्ली: भारत में बुद्धिजीवियों को अक्सर ‘आर्मचेयर लाउडस्पीकर’ की तरह बताया जाता है. लेकिन नेहरूवादी विचारकों और प्रताप भानु मेहता, अरुंधति रॉय और रामचंद्र गुहा जैसे बुद्धिजीवी जिन्होंने सोशल जस्टिस की थ्योरी की बात की, इतिहास और राजनीति को लेकर दृष्टिकोण दिया और कभी सरकारों की आलाोचना करने से पीछे नहीं हटे- अब ऐसे बुद्धिजीवियों के दिन नहीं रहे.

अब उनकी जगह कपिल मिश्रा, अमित मालवीय, गिरीराज सिंह, संबित पात्रा और इस ‘खेमे’ में शामिल होने को आतुर तजिंदर पाल सिंह बग्गा जैसे ‘नव चिंतक’ आ गए हैं.

इन ‘नव चिंतक’ सितारों के बीच आकाशगंगा में सबसे बड़े सितारे की तरह चमकने वाले प्रधानमंत्री मोदी हैं, जो ज्यादातर चुप रहते हैं. इन सभी के पास भारत के इतिहास को लेकर नई थ्योरी है और इसकी व्याख्या करने के अलग तरीके भी. कुछ भी हो जाए लेकिन सरकार की तारीफ में कोई कमी ना आने पाए, जैसा एक पैंतरा भी है. ये नए बुद्धिजीवी 70 साल से सोए हुए भारतीय को नींद से जगाने की ताकत रखते हैं.

ये थ्योरी ना सिर्फ सोए हुए आम लोगों को जगाती है बल्कि एक्शन लेने के लिए प्रेरित करती है. कपिल मिश्रा के शब्दों की ताकत को हाल ही में फेसबुक सीईओ मार्क जकरबर्ग ने भी स्वीकार किया है. हर रोज अमित मालवीय पुराने और नए भारत को लेकर एक नई थ्योरी ईजाद करते हैं और हजारों भारतीय उसे बिना सोचे समझे ही स्वीकार कर लेते हैं.

‘बेखौफ बुद्धिजीवी’ 

हाल ही में शांडिल्य गिरिराज सिंह ने एक ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने ब्रह्मेश्वर सिंह मुखिया को एक शहीद का दर्जा दिया, जो दर्जा भारतीय सैनिकों और स्वतंत्रता सेनानियों को दिया जाता है. हालांकि गिरिराज सिंह ने वो ट्वीट बाद में डिलीट कर दिया.

ब्रह्मेश्वर मुखिया बिहार में रणवीर सेना के चीफ थे और पटना के पास स्थित लक्ष्मणपुर बाथे गांव में 1997 में 300 दलितों और निचली जातियों के लोगों के हत्या के आरोपी भी थे. बाद में रणवीर सेना को भंग कर दिया गया था. गुहा, रॉय और मेहता ‘शहीद’ शब्द के मतलब पर ही बहस करते रहेंगे और कभी किसी भी बाद पर एक साथ सहमत भी नहीं होंगे.


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अरुंधति रॉय ने अपनी किताब एक था डॉक्टर एक था संत : अंबेडकर-गांधी संवाद में महात्मा गांधी के जाति और सोशल जस्टिस को लेकर विचारों पर बहस की है. लेकिन नए चिंतक अरुंधति के नज़रिए को मोड़-तोड़कर पेश करने और गांधी को लोगों की स्मृति से खत्म करने का इंतजार नहीं कर सकते. आखिरकार भारत में ही ऐसा हो सकता है कि प्रधानमंत्री गांधी को श्रद्धांजलि दें और उनकी पार्टी के नेता और समर्थक गांधी के हत्यारे गोडसे और इस हत्या के कथित साजिशकर्ता सावरकर की तारीफों के कसीदें गढ़ें. कभी-कभार प्रधानमंत्री भी अपने समर्थकों की तरह ही सावरकर को भी श्रद्धांजलि देते दिखाई देते हैं.

इससे एक ऐसा माहौल बन गया है कि हिंदू महासभा की सदस्य पूजा शकुन पांडे बिना किसी डर के गांधी के पुतले पर गोलियां चलाते हुए गांधी हत्या का सीन दोहरा सकती हैं. ऐसा करते हुए उनके साथ खड़े उनके संस्थान के लोग ‘महात्मा नाथूराम गोडसे अमर रहे’ के नारे लगा सकते हैं.

‘जीवन के सभी क्षेत्रों के नव चिंतक आ रहे हैं सामने’

नए बुद्धिजीवियों का भारतीय जनमानस पर ज्यादा प्रभाव पड़ रहा है. और ये सिर्फ भारतीय जनता पार्टी के सदस्य ही नहीं हैं. ये अन्य क्षेत्रों के बुद्धिजीवियों का समर्थन भी पाते हैं. जैसे बॉलीवुड एक्टर अनुपम खेर, अक्षय कुमार और परेश रावल. इसके अलावा पायल रोहतगी और रंगोली चंदेल के साथ-साथ सेना के अति उत्साही पूर्व अधिकारी और मौजूदा आईएएस-आईपीएस अधिकारी जो अपने राजनैतिक झुकाव को छिपाते नहीं हैं.

गुहा, रॉय और मेहता को इस तरह का अभूतपूर्व समर्थन दशकों में भी नहीं मिल पाएगा लेकिन नए बुद्धिजीवी मिनटों में ही अपने विचारों को सोशल मीडिया पर ट्रेंड करवा देते हैं.

आप उदाहरण के लिए कपिल मिश्रा द्वारा यूएपीए के आरोप में गिरफ्तार जामिया की स्टूडेंट सफूरा जरगर पर की गई गंदी टिप्पणी ही देख लें. कुछ ही मिनटों में उनके ट्वीट पर हजारों लाइक्स और रीट्वीट आ गए थे.

इन सभी बुद्धिजीवियों के बॉस हैं पीएम मोदी. कोरोनावायरस को लेकर जब पहली बार लॉकडाउन की घोषणा की गई थी तो पीएम मोदी ने कहा था जैसे महाभारत की लड़ाई 18 दिन तक चली थी वैसे ही भारत भी कोरोनावायरस से लड़ाई 21 दिन में जीत लेगा. 11 जून तक भारत में लगभग तीन लाख कोविड पॉजिटिव केस हैं और 8100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.

पहले भी पीएम मोदी ने विज्ञान, गणित, जलवायु और इतिहास को लेकर कई नई थ्योरी ईजाद की हैं. और उन्होंने लेटर्स टू द मदर किताब के जरिए इतिहास के एक बड़े बुद्धिजीवी कहे जाने वाले जवाहरलाल नेहरू को रिप्लेस कर दिया है.

‘नए तर्कों का साथ’

नए बुद्धिजीवियों के पास सभी अकादमिक समस्याओं के लिए एक साधारण सा समाधान है. और वो ये है कि हम विदेशियों के सामाजिक-राजनैतिक दृष्टिकोण पर बहुत अधिक निर्भर ना रहें. आत्मनिर्भर बनें. अपने हिसाब से अपनी थ्योरी बनाएं. नई थ्योरीज को लोगों की भावनाओं की कद्र करनी होगी. ऐसे विज्ञान और सिद्धांतों का क्या मतलब है जो अपने ही लोगों की भावनाओं को ना समझे? ऐसे अगर नए बुद्धिजीवी कह रहे हैं कि गोमूत्र और गाय के गोबर से कोरोनावायरस को ठीक किया जा सकता है तो इन्हें नई दवाइयों के तौर पर देखा जाना चाहिए. इस पर कोई सवाल ही खड़ा नहीं किया जाना चाहिए.


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अगर आप साइंटिफिक टेंपर की बात करते हैं तो आप गोमूत्र और गोबर में साइंस खोजिए.

नए बुद्धिजीवियों के सिस्टम में अब अंतर्राष्ट्रीय संबंध भी बदल रहे हैं. ऐसे में अगर कोई पक्षी या टिड्डी दल भारत आता है तो वो कोई जासूस या आतंकवादी हो सकता है. अगर चीन के सैनिक भारत में घुसते हैं, भारतीय सैनिकों को पीटते हैं या भारतीय सीमा पर कब्जा कर लेते हैं तो नए ‘बुद्धिजीवी’ इसे एक कम गंभीर मसला बताएंगे. जिसका समाधान चीनी एप टिकटोक को अनइन्स्टॉल करके भी निकाला जा सकता है.

क्या आपने कहा कि भारतीय जानवरों और जलवायु की इज्जत नहीं करते? ये थ्योरी किसने दी थी कि तापमान ज्यादा होने से कोरोनावायरस मर जाएगा? केरल के ‘मल्लापुरम’ में हुई हथिनी की मौत पर कौन आक्रोशित नहीं था? लेकिन पलक्कड़ में हुई इस घटना में नए बुद्धिजीवियों को एक ‘मुस्लिम एंगल’ की जरूरत थी.

क्या आप भी नव चिंतक बनना चाहते हैं?

भारत में अगर आपको बुद्धिजीवी बनना है तो आपको कम से कम नेहरू, गांधी, अकबर, खिलजी, ‘अर्बन नक्सल’ को लेकर एक पोस्ट तो जरूर करनी है. और पुराने बुद्धिजीवियों या उनसे मिलते जुलते विचार वालों को काउंटर, गालियां देने, टारगेट करने और धमिकयां देने के लिए भी तैयार रहना है. इस तरह आप आम जनता को इतिहास, संविधान और राजनीति को लेकर सेंसेटाइज भी कर पाएंगे.

बालाकोट एयर स्ट्राइक से लेकर कोरोनावायरस तक भारतीयों ने कई मुद्दों पर इतनी रिसर्च की है जिसका उन्हें भी अंदाजा नहीं है. जैसे जेनेवा कन्वेंशन, आर्टिकल 370, आर्टिकल 30, आर्टिकल 14 से 21, सीएए-एनआरसी, दुनिया में हिंदू-मुस्लिमों का कुल प्रतिशत, भारत के पड़ोसी देश जैसे अफगानिस्तान और बांग्लादेश के साथ सीमाएं, कोरोनावायरस, दंगों की पद्धति आदि-आदि. क्योंकि अगर आप इतिहास को दोबारा लिखेंगे तो आप जनता को ये बात भी बताएंगे कि आखिर जो हटाया गया उसे क्यों हटाया गया?


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लेकिन क्या अरुंधति रॉय, रामचंद्र गुहा या फिर प्रताप भानु मेहता कभी लोगों को एक साल में इतना पढ़ लेने और ‘शिक्षित’ करने के लिए प्रेरित कर सकते? आप नए बुद्धिजीवियों को देखिए. उनका शुक्रिया भी कहिए. क्योंकि कई भारतीयों ने उनकी वजह से बहुत कुछ सीखा और एक समय में लंबा सफर तय कर लिया.

(व्यक्त विचार निजी हैं)

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3 टिप्पणी

  1. Article is look like a language of a troll who is in frustration from right wing. When u declare arundhati roy a intellectual..this explain whole motive of ur article. In my opinion arundhati roy is female version of kapil mishra. Kapil shout against muslims, as per roy all issues in this country bcoz of hindus, how conviniently u mention abt ranvir sena but totally ignored left extremist grps of bihar. Ur biasness towards other opinion is creating unrest. Believe me u ppl r d reason for these riots happen in country.

  2. Before joining BJP Kapil Mishra was a minister in AAP Government. He got training from AAP. Many intellectuals have passed out from AAP school and you can see all of them on TV channels. Arvind Kejariwal won the Delhi election only when he kicked out old brand intellectuals from his party. Kapil Mishra is more famous because you are writing and news channels are debating about him because you have no other option but to do something for him.

  3. Kuch nai bat likho ..is bakwass ko band karne ka Kya logo mem…..sir Pak gya. Hai….itana kachra likhne ke liy tumko kitna pagalpan. Karna hota hai

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