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Thursday, 25 April, 2024
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अमेरिकी रिपोर्ट में गौरक्षकों, सीएए और अनुच्छेद-370 का हवाला देकर भारत में धार्मिक ‘भेदभाव’ की बात कही गई

अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ द्वारा बुधवार को जारी की गई रिपोर्ट अमेरिकी कांग्रेस को यह कहते हुए प्रस्तुत की गई थी कि डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने अपने भारतीय समकक्षों के साथ इन चिंताओं को बार-बार उठाया था.

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नई दिल्ली: गौरक्षकों, अनुच्छेद-370 को खत्म करना, नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), तबरेज़ अंसारी की लिंचिंग और अयोध्या पर फैसला– अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने 2019 की अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता (आईआरएफ) पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट में इन मुद्दों का जिक्र किया है. इसमें ‘धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव’ की घटनाओं पर अमेरिकी अधिकारियों की चिंताओं को भी शामिल किया गया है.

अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ द्वारा बुधवार को जारी की गई रिपोर्ट अमेरिकी कांग्रेस को यह कहते हुए प्रस्तुत की गई थी कि डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने अपने भारतीय समकक्षों के साथ इन चिंताओं को बार-बार उठाया था.

रिपोर्ट जारी करते हुए लार्ज फॉर इंटरनेशनल धार्मिक स्वतंत्रता में राजदूत सैम ब्राउनबैक ने कहा, ‘आज विदेश विभाग ने दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति का विवरण देते हुए एक रिपोर्ट जारी की. यह रिपोर्ट इस तथ्य की गवाही देती है कि विश्व स्तर पर, कई स्थानों पर, व्यक्ति धार्मिक स्वतंत्रता से अधिक धार्मिक उत्पीड़न से परिचित हो गए हैं.’

रिपोर्ट के अनुसार, नरेंद्र मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर के मुस्लिम बहुल राज्य की विशेष स्थिति को रद्द कर दिया और पिछले साल अगस्त में दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया, तो इसके बाद ‘मुस्लिम नेताओं द्वारा विरोध प्रदर्शन, आलोचना और उच्चतम न्यायालय में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, विपक्षी नेताओं की तरफ से याचिकाएं दायर हुईं.’

‘(भारतीय) सरकार ने इस क्षेत्र में हजारों अतिरिक्त सुरक्षा बल भेजे, इंटरनेट और फोन लाइनों को बंद कर दिया और साल के अंत तक पूरी सेवा बहाल नहीं की. सरकार ने दिसंबर के मध्य तक क्षेत्र की अधिकांश मस्जिदों को भी बंद कर दिया. रिपोर्ट में कहा गया है कि विरोध प्रदर्शन के दौरान 17 नागरिकों और तीन सुरक्षाकर्मी मारे गए.’

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रिपोर्ट में सरकार के विवादास्पद सीएए कानून के कारण भारत में हुए व्यापक विरोध प्रदर्शनों और कानूनी चुनौतियों का भी विस्तार से उल्लेख किया गया है, जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई प्रवासियों के लिए नागरिकता देने की बात करता है, जो 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले देश में आए. रिपोर्ट में कहा गया है कि यह ‘समान रूप से स्थित प्रवासियों के लिए नहीं है जो मुस्लिम, यहूदी, नास्तिक या अन्य धर्मों के सदस्य हैं.’


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27 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सहित हिंदू-बहुसंख्यक दलों के कुछ अधिकारियों ने अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ भड़काऊ सार्वजनिक टिप्पणी और सोशल मीडिया पोस्ट किए.’

‘गाय के नाम पर हिंसा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने में प्रशासन विफल रहा’

वार्षिक धार्मिक अल्पसंख्यकों की रिपोर्ट में, विदेश विभाग ने देश भर में गाय के नाम पर बढ़ती घटनाओं का जिक्र किया.

अतिवादी हिंदू समूहों द्वारा अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिमों पर साल भर में कई हमले किए गए. अफवाहें फैलाई गई कि पीड़ित गायों का व्यापार और उन्हें बीफ के लिए मार रहे हैं. गाय के नाम पर हिंसा करने वाले ऐसे लोगों पर प्रशासन कार्रवाई करने में विफल रहा जिसमें मॉब लिंचिंग, हत्या और धमकी शामिल है.

इसमें पशु व्यापारी पहलू खान, रकबर खान और अन्य लोगों की 2017 भीड़ द्वारा किए गए मॉब लिचिंग के बाद मार डालने का भी जिक्र किया गया है.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘पूरे वर्ष के दौरान, दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों के प्रतिनिधियों ने धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से ईसाइयों और मुस्लिमों को हो रही दिक्कतों पर चर्चा करने के लिए सरकारी अधिकारियों से मुलाकात की. चर्चा में गाय के नाम पर हिंसा की घटनाएं, देश में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति और धार्मिक रूप से प्रेरित हिंसा पर बात हुई.’

‘सीएए- नागरिकता देने के लिए धर्म आधारित पहला कानून’

विदेश विभाग की रिपोर्ट में कहा गया है कि कैसे सीएए के कारण देशभर में पिछले साल व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए और इसकी चौतरफा आलोचना की गई.

‘धर्म के आधार पर नागरिकता देने की बात करने वाला यह पहला कानून है- जिसकी घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया, एनजीओ, धार्मिक समूहों, बुद्धिजीवियों और राजनीतिक पार्टियों ने जमकर विरोध किया. विपक्षियों ने इसे यह कह कर असंवैधानिक बताया कि ये धर्मनिरपेक्ष देश की मूल भावना के खिलाफ है.’ यह बात इस रिपोर्ट के जरिए यूएस कांग्रेस को बताई गई.

विदेश विभाग ने ये भी कहा कि ‘कुछ भारतीय अधिकारियों’ ने सीएए कानून को एनआरसी से जोड़ने का भी प्रयास किया. एनआरसी असम में अवैधानिक अप्रवासियों की पहचान करने की एक प्रक्रिया थी.


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रिपोर्ट में कहा गया, ‘दूतावास के प्रतिनिधि विशेष रूप से नागरिक अधिकार गैर सरकारी संगठनों, अल्पसंख्यक मामलों पर रिपोर्टिंग करने वाले मीडिया प्रतिनिधियों, अंतरजातीय सद्भाव समूहों, मुस्लिम धार्मिक नेताओं और मुस्लिम राजनेताओं के पास सीएए के बारे में उनके डर और संभावित सरकारी योजनाओं के संदर्भ में मुस्लिम आबादी पर इसके संभावित प्रभाव को समझने के लिए गए.’

उठाए गए अन्य मुद्दों में, इसमें तबरेज़ अंसारी की हत्या और मुसलमानों और ईसाइयों के बड़े पैमाने पर ‘नसबंदी’ का भी जिक्र किया. इसके अलावा, विदेश विभाग ने अपनी धार्मिक अल्पसंख्यकों की रिपोर्ट में केरल के सबरीमाला मंदिर के मुद्दे का भी जिक्र किया.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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