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Wednesday, 20 November, 2024
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राज्य का दर्जा पाने के इंतज़ार में J&K, कई केंद्रशासित प्रदेशों का रहा है इतिहास, मणिपुर भी एक उदाहरण

30 सितंबर या उससे पहले जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा मिलने के साथ यह उन राज्यों पर गौर करने का वक्त है जो केंद्र शासित क्षेत्रों से ‘बने’ हैं.

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30 सितंबर 2024 को या उससे पहले जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्ज़ा फिर से मिलने की संभावना के साथ, इस तथ्य पर गौर करना दिलचस्प होगा कि इस तरह की मिसालें पहले भी दी गई हैं. भारत की आंतरिक सीमाओं का पुनर्निर्माण देश का गठन करने वाले विविध भाषाई और जातीय समूहों की वैध राजनीतिक आकांक्षा के रूप में राज्य की स्वीकृति के लिए एक प्रमाण पत्र की तरह है.

इसमें सबसे पहला उदाहरण नागालैंड का है, जिसे 1963 में राज्य का दर्जा मिला. हालांकि, यहां के जो जिले राज्य बने, वो संविधान के अनुच्छेद-239 या 240 के तहत कभी भी औपचारिक रूप से केंद्र शासित प्रदेश नहीं थे, उनकी देखरेख केंद्र के अधीन असम के राज्यपाल द्वारा की जाती थी. यह सब आज़ादी से दो महीने पहले तत्कालीन गवर्नर सर सैयद हैदरी और नागा नेशनल काउंसिल के बीच नौ सूत्री समझौते पर आधारित था.

जब नागालैंड, मणिपुर और त्रिपुरा के लिए राज्य का मुद्दा राज्य पुनर्गठन समिति (एसआरसी) के सामने आया — जिसमें न्यायमूर्ति फज़ल अली, केएम पणिक्कर और एचएन कुंजरू शामिल थे — तो इसे खारिज कर दिया गया. 1955 की अपनी एक रिपोर्ट में आयोग ने कहा, “हमारी सीमाओं पर छोटे जिलों के बजाय अपेक्षाकृत बड़े, साधन संपन्न राज्यों का होना अधिक सुरक्षित होगा”.

हालांकि, 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद राज्य के दर्जे के लिए राजनीतिक आकांक्षाओं को प्राथमिकता देने की दिशा में बदलाव आया. इस तरह 1963 में एसआरसी की सिफारिशें भी बदलीं, जिससे नागालैंड राज्य का निर्माण हुआ. इसने अन्य केंद्र प्रशासित क्षेत्रों के लिए राज्य का दर्जा पाने की मिसाल कायम की.


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राज्यों के रूप में ‘विकास’ के तीन ट्रैक

1956 में पांच क्षेत्रों को केंद्रशासित प्रदेश नामित किया गया — इनमें हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मणिपुर और दिल्ली शामिल थे. हिमाचल प्रदेश 1971 में राज्य का दर्जा हासिल करने वाला पहला राज्य बना, जिसकी वह पंजाब के पुनर्गठन और 1966 में हरियाणा की एक अलग राज्य के रूप में स्थापना के बाद से उम्मीद कर रहा था.

पंजाब के गठन के तीन साल बाद एक और दिलचस्प घटनाक्रम हुआ. असम पुनर्गठन (मेघालय) अधिनियम 1969 को असम के खासी हिल्स, जयंतिया हिल्स और गारो हिल्स जिलों को शामिल करते हुए एक स्वायत्त उप-राज्य के गठन के लिए अधिनियमित किया गया. यह उप-राज्य संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत 37-सदस्यीय विधायिका के तहत था.

इसका नाम, मेघालय, संस्कृत शब्द मेघा और आ-ल्या से लिया गया है, जिसका अर्थ क्रमशः “बादल” और “घर” है, जिसे जियोग्राफर एसपी चटर्जी ने 1934 की शुरुआत में गढ़ा था. जैसा कि 1947-1963 तक नागा हिल्स के जिलों के मामले में था, यह राज्य सरकार के ढांचे के भीतर अधिकतम संभव स्वायत्तता देने की एक कोशिश थी.

हालांकि, यह छठी अनुसूची के दायरे में स्वायत्तता के प्रयोग की विफलता को भी चिह्नित करता है. मेघालय को 1972 में राज्य का दर्जा दिया गया, हालांकि इसने मूल राज्य असम के साथ एक संयुक्त कैडर बनाए रखा.

भारत के साथ सिक्किम का विलय भी उल्लेखनीय है. शुरुआत में यह 1974 के 35वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के अनुच्छेद 2ए के तहत भारत संघ का एक ‘सहयोगी राज्य’ बना, लेकिन 1975 में संविधान में 36वें संशोधन को अपनाने के साथ इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया. 2011 की जनगणना के अनुसार, 6 लाख से अधिक की आबादी के साथ, सिक्किम जनसंख्या के मामले में भारत का सबसे छोटा राज्य है (हालांकि, लगभग 3,700 वर्ग किलोमीटर के साथ सबसे छोटे क्षेत्रफल का खिताब गोवा के पास है).

इसलिए, 1956 के बाद से राज्यों का गठन केंद्र शासित प्रदेशों (उदाहरण के लिए, मणिपुर), उप-राज्यों (मेघालय) और सहयोगी राज्यों (सिक्किम) से हुआ है.


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कैडर प्रबंधन चुनौतियां

त्रिपुरा और मणिपुर को 1972 में राज्य का दर्जा मिला, लेकिन जटिल प्रशासनिक विशिष्टता के साथ. 1972 से 2015 तक 248 किलोमीटर की हवाई दूरी से अलग हुए इन दो अनिरंतर राज्यों ने तकनीकी रूप से तीन अखिल भारतीय सेवाओं: आईएएस, आईपीएस और वन सेवा के लिए एक संयुक्त कैडर साझा किया.

जब त्रिपुरा और मणिपुर रियासतें थीं — तो त्रिपुरा को 13 और मणिपुर को 11 तोपों की सलामी मिलती थी — दोनों बंगाल और असम के अधीन थे. इतिहास में झांकने पर भी गृह मंत्रालय द्वारा दोनों राज्यों के प्रशासन को एक साथ जोड़ने के पीछे के तर्क को समझना मुश्किल है. आखिरकार, केंद्र सरकार ने आठ साल पहले त्रिपुरा और मणिपुर के लिए दो अलग-अलग कैडर बना दिए हैं.

1972 में एक और दिलचस्प घटनाक्रम हुआ जब असम से दो अतिरिक्त केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए — मिज़ोरम और अरुणाचल. दोनों 1987 तक केंद्रशासित प्रदेश रहे, जब तक कि राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल के दौरान, उन्हें गोवा के साथ राज्य का दर्जा नहीं मिल गया.

आज, ये तीन राज्य विविध एजीएमयूटी कैडर (अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मिज़ोरम और केंद्रशासित प्रदेश) के अंतर्गत आते हैं. जैसा कि नाम से ज़ाहिर है कि कैडर में दिल्ली, चंडीगढ़, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, पुडुचेरी, दमन और दीव, दादरा और नगर हवेली, लद्दाख और वर्तमान में जम्मू और कश्मीर — केंद्र शासित प्रदेश शामिल हैं.

एजीएमयूटी कैडर मिलने वाले अधिकारियों को नियंत्रण प्राधिकरणों की बहुलता और अगली पोस्टिंग को लेकर अनिश्चितताओं के कारण अपने निजी और व्यावसायिक ग्रोथ में बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. हालांकि, अच्छी बात बस ये है कि इस कैडर में अधिकारियों को प्रमोशन और कार्यात्मक ज़िम्मेदारियां तेज़ी से मिलती हैं. फिर भी यह प्रशासनिक व्यवस्था काफी असंतोषजनक है. अब समय आ गया है कि गृह मंत्रालय (एमएचए) अन्य संभावनाओं की जांच करे — जैसे समान भाषा वाले राज्यों के अधिकारियों को साझा करना, उदाहरण के लिए गुजरात को दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव और तमिलनाडु के लिए पुडुचेरी.


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मणिपुर पहेली

जबकि राज्य का दर्जा मिले हुए अन्य केंद्र शासित प्रदेशों में जातीय और भाषाई मुद्दों को काफी हद तक हल कर लिया गया है, मणिपुर आज भी बड़ी समस्या है.

इसका कारण तीन प्रमुख समुदायों के बीच का आंतरिक संघर्ष है — मैतेई, जो इंफाल घाटी (इंफाल पश्चिम, पूर्व, थौबल और बिष्णुपुर) को नियंत्रित करते हैं; कुकी या ज़ो, जो चूड़ाचांदपुर, कांगपोकपी, चंदेल, टेंग्नौपाल और फिरज़ॉल में हावी हैं और नागा, जिनका तामेंगलोंग, चंदेल, उखरुल और सेनापति में प्रभाव है.

सभी मोर्चों पर राज्य सरकार की घोर विफलता को देखते हुए — कानून और व्यवस्था से लेकर विकास तक — मणिपुर के प्रशासन को विकास के उद्देश्यों के लिए NITI द्वारा और कानून और व्यवस्था के रखरखाव के लिए गृह मंत्रालय को कम से कम दस साल के लिए अपने अधिकार में ले लेना चाहिए. इस अवधि के बाद तीनों समूहों के लिए राजनीतिक रूप से स्वीकार्य समाधान खोजने के लिए नए सिरे से कोशिश की जा सकती है. हमने लंबे समय से चले आ रहे मुद्दों को सुलझाने के लिए कई प्रशासनिक प्रयास किए हैं. हालांकि, ये ईमानदार प्रयास एक बड़ी चुनौती होगा, लेकिन असंभव नहीं.

(संजीव चोपड़ा पूर्व आईएएस अधिकारी और वैली ऑफ वर्ड्स के फेस्टिवल डायरेक्टर हैं. हाल तक वे लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन के डायरेक्टर थे. उनका एक्स हैंडल @ChopraSanjeev. है. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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