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Sunday, 24 November, 2024
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कश्‍मीरी पंडितों के पलायन की सुगबुगाहट, मोदी सरकार के लिए चुनौती

केंद्र सरकार वहां पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को फिर से बहाल करना चाहती है, उसका लक्ष्‍य है कि राज्‍य में जल्‍द से जल्‍द से विधानसभा चुनाव करा दिए जाएं जिससे जनभागीदारी की अवधारणा को जमीनी हकीकत में बदला जाए.

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जम्‍मू कश्‍मीर में खासतौर से कश्‍मीर घाटी में लक्षित हत्‍याओं की बढ़ती घटनाओं ने सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के लिए चुनौतियां बढ़ा दी हैं. एक बार फिर कश्‍मीरी पंडितों और गैर कश्‍मीरियों को निशाना बनाया जा रहा है और एक मई से अब तक 10 लोगों की घाटी में हत्‍या की गई है. केंद्र सरकार लक्षित हत्‍याओं की बढ़ती घटनाओं को लेकर चिंतित है और गृह मंत्री अमित शाह की अध्‍यक्षता में नई दिल्‍ली में एक बैठक हुई जिसमें जम्‍मू कश्‍मीर के उपराज्‍यपाल मनोज सिंहा, राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, थल सेनाध्‍यक्ष मनोज पांडे समेत राज्‍य और केंद्र के आला अधिकारियों ने भाग लिया.

कश्‍मीर घाटी में लक्षित हत्‍याओं के कारण कश्‍मीरी पंडित अपनी जानमाल की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं और सुदूरवर्ती इलाकों में नौकरी नहीं करना चाहते हैं. वे चाहते हैं कि उनकी सुरक्षा के पुख्‍ता इंतजाम किए जाएं और उनका तबादला जिला मुख्‍यालयों में किया जाए. कश्‍मीरी पंडितों के साथ आतंकवादियों ने गैर कश्‍मीरियों को भी निशाना बनाया है और अलग अलग वारदातों में राजस्‍थान के रहने वाले बैंक मैनेजर विजय कुमार और बिहार के रहने वाले मजदूर दिलखुश और पंजाब निवासी गोरिया को निशाना बनाया. केंद्र सरकार ने इन घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए राज्‍य में और सुरक्षा बढ़ाने का निर्णय लिया है. वह 30 जून से शुरू होनेवाली अमरनाथ यात्रा की तैयारियों को लेकर पूरी तरह से चौकसी बरत रही है. जम्‍मू कश्‍मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद नरेंद्र मोदी सरकार के लिए राज्‍य में शांति बहाल करना और विकास कार्यों को गति देना सबसे बड़ी चुनौती है.


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कश्‍मीरी पंडित लगातार कर रहे पलायन 

लक्षित हत्‍याओं के कारण एक बार फिर कश्‍मीरी पंडितों के घाटी से पलायन की आवाजें उठने लगी हैं. कश्‍मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्‍यक्ष संजय टिक्‍कू ने पलायन को लेकर आ रही खबरों की पुष्टि की है. अनंतनाग के मट्टन स्थित ट्रांजिट कैंप से एक सौ से अधिक कश्‍मीरी पंडित परिवार पलायन कर चुके हैं और कई के जल्‍द पलायन करने की चेताव‍िनियां सुनने में आई हैं. सरकारी कर्मचारी कश्‍मीरी पंडित राहुल भट्ट की हत्‍या के बाद से घाटी से कश्‍मीरी पंडितों के पलायन की खबरें निरंतर आ रही है हालांकि राज्‍य सरकार ने इस आशय के खबरों की पुष्टि नहीं की है.

अमित शाह की बैठक में जम्‍मू कश्‍मीर की संपूर्ण सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की गई जिसमें कश्‍मीरी पंडितों और गैर कश्‍मीरियों की और चाक चौबंद करने की हिदायत दी गई. साथ ही आतंकवादी गतिविधियों पर पूरी तरह से अंकुश लगाने के लिए सुरक्षा बलों के बीच तालमेल को कारगर बनाने के उपाय करने पर जोर दिया गया. अमरनाथ यात्रा की तैयारियों की जिलेवार समीक्षा करने और पहलगांव से लेकर अमरनाथ गुफा तक लगने वाले तमाम शिविरों में सुरक्षा के एहतियाती उपायों में कोई ढिलाई नहीं बरतने का सख्‍त निर्देश दिया गया है. इस बीच राज्‍य सरकार ने स्‍पष्‍ट किया है कि सरकारी कर्मचारियों को घाटी से बाहर नहीं भेजा जायेगा बल्कि उनको सुरक्षित स्‍थानों पर सथानांतरित किया जाएगा.

कश्‍मीर घाटी में लक्षित हत्‍याओं को लेकर विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रियाएं व्‍यक्‍त की हैं. जम्‍मू कश्‍मीर के पूर्व मुख्‍यमंत्री फारूक अब्‍दुल्‍ला ने कहा है कि नागरिकों की लक्षित हत्‍याएं और कश्‍मीर के लोगों में भय सरकार के उन दावों को खारिज करता है कि जम्‍मू कश्‍मीर में हालात सामान्‍य हैं. उन्‍होंने आरोप लगाया कि प्रशासन अपना सिर रेत में घुसाकर बैठा है यह शुतुर्मुग का दृष्टिकोण ऐसी स्थिति में धकेल देगा,जहां से लौटना मुश्किल होगा.

जम्‍मू कश्‍मीर धारा 370 हटाए जाने के बाद से निरंतर बदलाव के दौर से गुजर रहा है और पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहां का दौरा किया. दरअसल जम्‍मू कश्‍मीर में धारा 370 को हटाए जाने के बाद नरेंद्र मोदी की वहां की यह पहली यात्रा थी जिसका मकसद वहां की जनता से सीधा संवाद करना और देश दुनिया को संदेश देना है कि वहां स्थिति बेहतर हुई है और केंद्र सरकार अपनी ओर से कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है. नरेंद्र मोदी ने दोबारा प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद जम्‍मू कश्‍मीर में धारा 370 को हटाने का काम किया और संघ परिवार के एजेंडे को लागू किया जिसका तर्क एक ही था कि एक देश में दो संविधान और निशान नही होने चाहिए. यह एक जटिल विषय था और इस राज्‍य को भारत का अंग बनाए रखने के लिए उस समय की राजनीतिक मजबूरियों के तहत लिए गए निर्णयों को पलटना था.


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कैसे रुकेगा कश्मीरी पंडितों का पलायन

केंद्र सरकार वहां पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को फिर से बहाल करना चाहती है, उसका लक्ष्‍य है कि राज्‍य में जल्‍द से जल्‍द से विधानसभा चुनाव करा दिये जायें जिससे जनभागीदारी की अवधारणा को जमीनी हकीकत में बदला जाए. राज्‍य में 2020 में पंचायत और स्‍थानीय निकायों के चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से कराये जा चुके हैं. प्रधानमंत्री ने अपनी इस यात्रा में यह संदेश दिया कि राज्‍य की जड़ों तक लोकतंत्र पहुंच गया है. पंचायतों को लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करने के लिए सीधे 22 हजार करोड़ रूपए का कोष दिया गया. पहले इस मद में पांच हजार करोड़ रूपए का ही आवंटन होता था. प्रधानमंत्री के कथन के मायने साफ हैं, केंद्र सरकार जमीनी स्‍तर पर लोकतंत्र को पहले मजबूत करना चाहती थी और उसमें उसे कामयाबी भी मिली है. अब वह विधानसभा चुनावों को लेकर गंभीर दिख रही है और चाहती है कि सभी राजनीतिक दल लोकतंत्र के इस उत्‍सव में शामिल हों.

केंद्र सरकार ने छह हजार कश्‍मीरी प्रवासी कर्मचारियों को बसाने के लिए 920 करोड रूपए की लागत से छह हजार फ्लैट बनाने का लक्ष्‍य रखा है. इनमे से 1025 फ्लैट बन चुके हैं और 1488 फ्लैट का निर्माण जोरों पर है. मोदी ने सत्‍ता में आने के बाद 2015 में ही राज्‍य के सर्वांगीण विकास के लिए 80 हजार करोड़ रूपए के बजट का प्रावधान किया था जिसके तहत राज्‍य में शिक्षा, रोजगार, ऊर्जा और पर्यटन समेत अन्‍य कई क्षेत्रों को बढ़ावा देना था. जम्‍मू कश्‍मीर को हर मौसम में जोड़ने के लिए बनिहाल-काजीगुंड रोड टनल का निर्माण, किश्‍तवाड में 850 मेगावाट की पनबिजली परियोजना पूरा करना शामिल है. इसके साथ मानवीय पहलुओं को ध्‍यान में रखते हुये 1989-1990 की हिंसा में कश्‍मीरी पंडितों के जो घर टूटे थे उनके जीर्णोद्धार के लिए साढ़े सात लाख रूपए की मदद शामिल है.

कश्‍मीर घाटी में 1989-1990 में हुई हिंसा के कारण बड़ी संख्‍या में कश्‍मीरी पंडितों का पलायन हुआ था. उपलब्‍ध आंकड़ों के अनुसार उस समय सवा लाख में एक लाख कश्‍मीरी पंडितों को घाटी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था. लक्षित हत्‍याओं ने एक बार फिर कश्‍मीरी पंडितों के मन में भय पैदा कर दिया है और वे मांग कर रहे हैं कि या तो उन्‍हें पूरी सुरक्षा मिले या फिर वे घाटी से पलायन करने के लिए मजबूर हो जाएंगे. अब बैंक मैनेजर विजय कुमार की हत्‍या ने सरकारी सुरक्षा के भरोसे कश्‍मीर घाटी में नौकरी करने की हिम्‍मत जुटानेवाले देश के बाकी हिस्‍सें के नागरिकों के मनोबल को झकझोरा है. जम्‍मू कश्‍मीर में शांति बहाली और विकास की गति तेज रखने के लिए हिंसा खासकर लक्षित हत्‍या को अंजाम देने वाले आतंकवादी संगठन सरकार के निशाने पर हैं. उसके लिए कश्‍मीरी पंडितों के डगमगाते विश्‍वास को बहाल करना सबसे बड़ी चुनौती है जिसमें वह कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है.

(लेखक अशोक उपाध्‍याय वरिष्‍ठ पत्रकार हैं. वह @aupadhyay24 पर ट्वीट करते हैं . व्यक्त विचार निजी हैं)


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