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Wednesday, 20 November, 2024
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भारत की आर्थिक वृद्धि की गति RBI को ब्याज दरों में हेरफेर करने से रोकती है

मुद्रास्फीति में नरमी और आर्थिक वृद्धि में तेजी के कुछ शुरुआती संकेत हैं. लेकिन लगता है कि रिजर्व बैंक अभी इन पर नज़र रखने के बाद ही दरों पर कोई फैसला करेगा.

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भारतीय रिजर्व बैंक इस सप्ताह अपनी मौद्रिक नीति की समीक्षा करने जा रहा है और उम्मीद है कि वह ब्याज दरों से अभी कोई छेड़छाड़ नहीं करेगी. आर्थिक वृद्धि में सुस्ती और जींसों की कीमतों में नरमी के कारण मौद्रिक नीति से संबंधित कमिटी पर ब्याज दरें बढ़ाने का दबाव कम हुआ है.

भारत में पिछले कुछ महीनों में बढ़ी महंगाई के पीछे कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में वृद्धि, जींसों की कीमतों, और सप्लाइ में बाधाओं का हाथ रहा है. खाद्य सामग्री की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में जून में गिरावट आई है. इसकी मुख्य वजह यह है कि वनस्पति तेलों और अनाजों की कीमतों में गिरावट आई है.

फूड और फ्युल

भारत में खुदरा कीमतों में इस साल जून में वृद्धि दर 6.23 प्रतिशत रही, जबकि मई में यह 6.3 प्रतिशत के रेकॉर्ड स्तर पर थी. लगातार दूसरे महीने महंगाई रिजर्व बैंक की सहन सीमा 6 प्रतिशत से ऊपर रही. ‘सीपीआइ’ (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) का सबसे प्रमुख तत्व है खाद्य सामग्री में महंगाई, जो मई में 5.01 प्रतिशत से जून में 5.15 प्रतिशत पर पहुंच गई. इसकी मुख्य वजह वनस्पति तेलों, दालों और फलों की कीमतों में वृद्धि थी. खासतौर से वनस्पति तेलों की कीमतों में जून में 34.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई.

कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में वृद्धि ‘फ्युल ऐंड लाइट’ और ‘ट्रांसपोर्ट और कम्यूनिकेशन’ क्षेत्रों में महंगाई के रूप में सामने आई. ‘फ्युल ऐंड लाइट’ में पिछले दो महीने में महंगाई दहाई के आंकड़े में दिखी. पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि के कारण ‘ट्रांसपोर्ट और कम्यूनिकेशन’ में भी महंगाई दहाई के आंकड़े में पहुंच गई.

आयात केंद्रित महंगाई में कमी

पिछले दो महीनों में महंगाई मुख्यतः आयात-केंद्रित रही. वनस्पति तेलों, जींसों और कच्चे तेल की कीमतों में लगातार पिछले कुछ महीने से वृद्धि हो रही है जिससे घरेलू कीमतें भी ऊपर जा रही थीं. लेकिन पिछले एक महीने से अंतरराष्ट्रीय कीमतों में नरमी के संकेत उभर रहे हैं.

दुनिया में खाद्य सामग्री की कीमतें ‘एफएओ फूड प्राइस इंडेक्स’ (एफएफपीआइ) नामक सूचकांक से मापी जाती हैं. इनमें जून में गिरावट दर्ज की गई. एफएफपीआइ आम खाद्य जींसों की अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर नजर रखता है. इनमें मई के मुक़ाबले जून में 2.5 प्रतिशत की कमी आई. यह कमी वनस्पति तेलों, अनाजों और दुग्ध उत्पादों की कीमतों में कमी को दर्शाती है.

खासतौर से, वनस्पति तेलों के एफएओ के प्राइस इंडेक्स में मई के स्टार से 9.8 प्रतिशत की गिरावट आई. यह मौसमी पैदावार में वृद्धि और आयात की मांग में कमी के कारण आई. वनस्पति तेलों की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में कमी आगामी महीनों में घरेलू कीमतों में गिरावट के रूप में सामने आ सकती है.

कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में भी आगामी महीनों में कमी आने की उम्मीद है क्योंकि ‘ओपेक+’ समूह के देशों ने अपने आपसी विवादों को सुलझा लिया है और अगस्त से उत्पादन बढ़ाने पर सहमत हुए हैं. अमेरिका और तेल का ज्यादा उपभोग करने वाले दूसरे देशों में कोविड के मामलों में फिर वृद्धि के कारण कच्चे तेल की मांग में कमी आ सकती है.


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ऊर्जा और खाद्य सामग्री से इतर जींसों की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में पिछले कुछ महीने से जो वृद्धि हो रही थी उसमें जुलाई के बाद नरमी दिखने लगी है. उदाहरण के लिए, मूल धातुओं के लिए विश्व बैंक के कमोडिटी प्राइस इंडेक्स में पिछले दो महीने से गिरावट आई है. इस्पात जैसे मूल धातु वाहन और भवन निर्माण जैसे कई उद्योगों में कच्चे माल की तरह काम आते हैं. जींसों की कीमतों में कमी के बाद महंगाई का खतरा भी फिलहाल कम हो गया दिखता है.

सप्लाइ में बाधाएं भी ढीली पड़ रही हैं

हाल में कीमतों में वृद्धि आयात-केंद्रित तो थी ही, स्थानीय स्तर पर लॉकडाउन लगाए जाने से चीजों के सप्लाइ में अड़चनों ने भी इसमें अपना योगदान दिया. लेकिन, लॉकडाउन में ढील और आर्थिक गतिविधियां फिर से सामान्य हो जाने के कारण सप्लाइ में अड़चनें दूर होंगी और कीमतों में भी कमी आएगी.

दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून ज़ोर पकड़ने लगा है जून के अंत से जुलाई के मध्य तक इसमें जो कमी आई वह कुछ हद तक पूरी हुई है. इसके बाद खरीफ फसल की बुवाई में तेजी आई है. इससे भी महंगाई पर और लगाम लगेगा.

आर्थिक वृद्धि की अनिश्चितता

आर्थिक वृद्ध के मोर्चे से मिले-जुले संकेत उभर रहे हैं. रिजर्व बैंक ने जुलाई के अपने बुलेटिन में कहा है कि कोविड की दूसरी लहर के कमजोर पड़ने और टीकाकरण अभियान में तेजी ने वृद्धि की संभावनाओं को मजबूत किया है, लेकिन मांग में उभार अभी बाकी है. दूसरी लहर के कारण आर्थिक सुधार में जो बाधा पड़ी थी वह अब कमजोर पड़ती दिख रही है. मैनुफैक्चरिंग पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआइ) नामक सूचकांक जून से जुलाई के बीच 48.1 से 55.3 पर पहुंच गया.

जुलाई में जीएसटी के मद में 1.16 ट्रिलियन रुपये की उगाही हुई, जिसने मैनुफैक्चरिंग पीएमआइ में उछाल की पुष्टि की है. कोविड के कारण लगी पाबंदियों में छूट के बाद ऑटो की बिक्री में तेजी आई है. लेकिन सेवा क्षेत्र के पीएमआइ में जुलाई में भी सिकुड़न जारी रही.

महंगाई में नरमी के और आर्थिक वृद्धि में तेजी के कुछ शुरुआती संकेत तो हैं लेकिन रिजर्व बैंक ब्याज दरों पर कोई फैसला करने से पहले आगामी महीनों में महंगाई और आर्थिक वृद्धि की गति के अलावा अंतरराष्ट्रीय स्थिति पर भी नज़र रखेगा.

(इला पटनायक एक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं. राधिका पांडे एनआईपीएफपी में सलाहकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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