scorecardresearch
Tuesday, 23 April, 2024
होममत-विमतभारत के विधायक ज्यादा सवाल नहीं पूछते, ताबड़तोड़ बिल पास हो रहे हैं लेकिन सारा ध्यान केंद्र पर टिका है

भारत के विधायक ज्यादा सवाल नहीं पूछते, ताबड़तोड़ बिल पास हो रहे हैं लेकिन सारा ध्यान केंद्र पर टिका है

एक रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक की पिछली विधानसभा में 92 प्रतिशत विधेयक उन्हें पेश किए जाने के एक हफ्ते के अंदर ही पारित हो गए, यही ट्रेंड आमतौर पर पूरे भारत में है.

Text Size:

अधिकांश भारतीय राज्यों को केवल उनके मुख्यमंत्री कुछ भरोसेमंद सहयोगियों के साथ मिलकर चलाते हैं. मंत्री के विभागों को सार्वजनिक तौर पर बहुत स्पष्ट नहीं किया जाता है, विधानसभा में बहस कभी-कभार ही होती है और विधेयकों को पर्याप्त चर्चा के बिना पारित किया जाता है. यह दक्षता का आभास देने वाला हो सकता है लेकिन यह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अनदेखी करने वाला है. बहुत ही कम विधायक हैं जो सामान्य सिविक मसलों से इतर मुद्दों पर सक्रियता से काम करते हैं. राज्य स्तर पर कानूनों और नीति निर्धारण में ज्यादा कड़ाई नहीं बरती जाती है और मतदाता भी चुनाव से इतर कुछ खास परवाह नहीं करते हैं.

राजनीतिक और प्रशासनिक विश्लेषण काफी हद तक असंगत रूप से केंद्र पर केंद्रित है और विधेयकों को अक्सर नज़रअंदाज कर दिया जाता है.

एक संसदीय लोकतंत्र में कार्यपालिका को जवाबदेह बनाने में एक विधायिका की अहम भूमिका होती है और यह अपेक्षा भारत के संघीय ढांचे में हर स्तर पर रखी जाती है. सदस्यों के पास उपलब्ध एक सबसे कारगर हथियार है किसी कैबिनेट से सवाल-जवाब करने का अधिकार. विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं में पूछे गए सवालों का एक संक्षिप्त विश्लेषण हमें दीर्घकालिक नीतियों के मुद्दों को उठाने में विधायकों की रुचि को दर्शाता है. प्रश्नकाल के दौरान तारांकित प्रश्न पूछे जाते हैं और मौखिक प्रतिक्रिया को तरजीह मिलती है जबकि अतारांकित प्रश्न का उत्तर संबंधित विभाग की तरफ से लिखित में दिया जाता है.


यह भी पढ़ें: चीन ने लद्दाख के बाद इस तरह शुरू किया मनोवैज्ञानिक युद्ध, और भारत जवाब क्यों नहीं दे रहा


राज्य विधानसभाओं की विशेषताएं

17 प्रमुख राज्य* (नीति आयोग की परिभाषा के मुताबिक) विधानसभाओं में पूछे जाने वाले प्रश्नों की संख्या में खासी असमानता है. पिछले दो वर्षों में कुल तारांकित प्रश्नों की संख्या राजस्थान में 11,200 से लेकर पश्चिम बंगाल में 65 के बीच तक रही है. हालांकि, 14वीं राजस्थान विधानसभा में रखे गए तारांकित सवालों में से केवल 21 फीसदी का ही जवाब सदन पटल पर रखा गया. इनमें से अधिकांश शिक्षा, स्वास्थ्य और सार्वजनिक निर्माण विभागों से संबंधित थे और शहरी विकास और आवास पर सबसे कम ध्यान दिया गया.

* भारत इनोवेशन इंडेक्स 2019 में परिभाषित प्रमुख राज्यों का उपयोग उत्तर पूर्वी राज्यों, पहाड़ी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को छोड़कर सभी राज्यों को संदर्भित करने के लिए किया गया है, जिन्हें रिपोर्ट में अलग-अलग वर्गीकृत किया गया है. चित्रण: सोहम सेन | दिप्रिंट

कर्नाटक, जो भारत के इनोवेशन इंडेक्स में शीर्ष स्थान पर है, के पास ऐसे लगभग 1000 तारांकित प्रश्न हैं जिन्हें जून 2017 और जून 2020 के बीच विधानसभा में उठाया गया. प्रत्येक विधायक ने औसतन 58 प्रश्न पूछे और विधानसभा की हर कार्यवाही जिसमें प्रश्नकाल शामिल है की एक वीडियो रिपॉजिटरी ऑनलाइन उपलब्ध है. यह दर्शाता है कि कर्नाटक विधानसभा पारदर्शिता और सार्वजनिक पहुंच की परवाह करती है. हालांकि, उसकी चिंता स्वाभाविक तौर पर विधायिका की परफॉर्मेंस में तब्दील होती नहीं दिखती.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

पीआरएस की एक रिपोर्ट के अनुसार, राज्य की पिछली विधानसभा में 92 प्रतिशत विधेयकों को पेश होने के एक हफ्ते के भीतर ही पारित कर दिया गया था. भारत भर में आमतौर पर यही ट्रेंड दिखता है, जो बताता है कि इन कानूनों पर ज्यादा विस्तार से चर्चा नहीं की गई.

2015 में उस समय डिजिटलीकरण को एक बड़ी सफलता मिली जब महाराष्ट्र सरकार ने देश में पहली बार विधायकों के सवाल भेजने और सदन में प्रस्ताव पेश करने के लिए एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म लॉन्च किया. जून 2017 से जून 2020 के बीच 22,820 प्रश्न पूछे गए थे जिसमें से 5,570 तारांकित प्रश्न थे. यह प्रति सदस्य 79.2 प्रश्न पूछे जाने का एक अच्छा-खासा औसत है. हालांकि, पिछली विधानसभा में केवल 7 प्रतिशत तारांकित प्रश्नों का ही मौखिक उत्तर मिला. यह देखा जाना बाकी है कि महाराष्ट्र में ‘डिजिटल विधायकों’ की इस पहल से कानून में गुणात्मक सुधार होता है या नहीं.


यह भी पढ़ें: नेटफ्लिक्स पर ‘गुंजन सक्सेना’ ने मेरी बेटियों की नज़र में मुझे एक मज़बूत महिला की छवि से बेचारी बना दिया


इनोवेशन पर असर

सबसे नया राज्य तेलंगाना इनोवेशन में टॉप-5 की रैंक में शामिल है, इस सफलता में हैदराबाद का विशेष योगदान है. मौजूदा राज्य विधानसभा अभी अपने शुरुआती दौर में है जबकि पिछला सदन अपना कार्यकाल पूरा होने के 9 महीने पहले ही भंग हो गया था. तेलंगाना की पहली विधानसभा में सत्र का लगभग 21 प्रतिशत समय प्रश्नकाल में बीता था, जिसके लिए हर दिन 10 तारांकित प्रश्नों का चयन किया गया. इनमें से केवल 38 फीसदी का मौखिक तौर पर जवाब दिया गया. यहां ध्यान देने वाली एक महत्वपूर्ण बात यह है कि यद्यपि राज्य इनोवेशन परफॉर्मेंस के बूते ही उन्नति करता है, इनोवेशन के क्षेत्र में अपनी क्षमता के लिहाज से यह मध्य स्तर की रैंक में आता है जो आंध्र प्रदेश की तुलना में कम है.

एक और अपेक्षाकृत नया राज्य छत्तीसगढ़ इनोवेशन में सबसे निचले पायदान पर है. 2014 और 2018 के बीच इसकी चौथी विधानसभा में केवल 78 विधायकों ने सवाल पूछे, जिस दौरान इसने तीन अविश्वास प्रस्ताव भी देखे. कानून पर महज 5 फीसदी समय लगाया गया. इसके बावजूद सदन 104 विधेयक (विनियोग विधेयकों को छोड़कर) पारित करने में सफल रहा और इनमें से 94 फीसदी प्रस्ताव पेश होने के एक सप्ताह के अंदर पारित हो गए. इसके अलावा प्रश्नकाल के लिए चुने गए 25 तारांकित प्रश्नों में से केवल 9 का ही मौखिक रूप से उत्तर दिया गया.

फरवरी-मार्च 2020 के सत्र में उठाए गए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों की पड़ताल से पता चलता है कि शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए फंडिंग पर सदन का विशेष जोर रहा है. यह संभवत: राज्य की दो सबसे बड़ी समस्याओं गरीबी और नक्सल हिंसा पर परोक्ष प्रतिक्रिया हो सकती है. दूसरी वाली समस्या से संबंधित प्रश्नों में आम तौर पर मौतों और मारे गए सुरक्षाकर्मियों के संबंध में जानकारी मांगी गई.

छत्तीसगढ़ विधानसभा की तरफ से प्रकाशित सार के मुताबिक करीब छह सवाल स्मार्ट सिटी अभियान के बारे में पूछे गए थे. राज्य ने राष्ट्रीय शहरी विकास कार्यक्रम के लिए तीन शहर चयनित किए हैं और सवाल रायपुर और बिलासपुर के लिए धन मुहैया कराने और योजनाबद्ध निर्माण के संबंध में पूछे गए थे.

आमतौर पर इसे गलत ढंग से समझा जाता है. एक विधायक की भूमिका केवल कचरा प्रबंधन, सीवेज ट्रीटमेंट, सड़क निर्माण और बुनियादी जरूरतें पूरी करने जैसी छोटी-छोटी नागरिक समस्याएं हल करने तक सीमित नहीं है. असल में संविधान के 73वें संशोधन ने इस सब कार्यों के लिए नगर पालिकाओं और ग्राम पंचायतों को सशक्त बना दिया है.

चित्रण: सोहम सेन | दिप्रिंट

हालांकि, कई राज्यों में सत्ता का सही इस्तेमाल न होने की वजह यह है कि नागरिक अमूमन सिविक समस्याओं के लिए ही विधायक का हस्तक्षेप चाहते हैं. मतदाताओं में असंतोष का डर एक मंत्री की वास्तविक जिम्मेदारियों (संविधान में परिभाषित नहीं) से उनका ध्यान हटा देता है जो कुछ इस प्रकार हैं (i) भूमि, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे राज्य सूची में शामिल विषयों पर कानून बनाना, (ii) सार्वजनिक व्यय को मंजूरी देना, (iii) लोक महत्व के मामलों पर चर्चा करना और (iv) नीति के लिहाज से प्रासंगिक सवालों के जरिये सरकार को जवाबदेह बनाना.

इनोवेशन में सक्षम बनाने में शासन की अहम भूमिका होती है. यह सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है जो भारत को वास्तव में अपनी विकास क्षमता पहचाने में पीछे छोड़ देती है.

(निधि अरुण इंडियाना यूनिवर्सिटी ब्लूमिंगटन में मास्टर ऑफ पब्लिक अफेयर्स केंडिडेट हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: सुशांत सिंह की मौत भाजपा के लिए ब्रांड आदित्य ठाकरे को राहुल गांधी की छवि की तरह खत्म करने का मौका लेकर आई है


 

share & View comments