scorecardresearch
Sunday, 2 November, 2025
होममत-विमतभारत का मिडिल क्लास मोटापे से तंग आ चुका है. ओज़ेम्पिक और मौनजारो हिट साबित हो रही हैं

भारत का मिडिल क्लास मोटापे से तंग आ चुका है. ओज़ेम्पिक और मौनजारो हिट साबित हो रही हैं

भारत में वज़न घटाने वाली दवाओं की तुरंत सफलता हमें बताती है कि देश कितनी तेज़ी से बदल रहा है. और पहली बार, यह बदलाव बेहतरी के लिए है.

Text Size:

राजनीति से थोड़ा विराम लेते हैं और उस बात पर बात करते हैं जो किसी न किसी उम्र में हममें से ज़्यादातर लोगों को प्रभावित करती है, लेकिन जिस पर बहुत कम लिखा जाता है.

हम सब जानते हैं कि कई भारतीय 35 या 40 की उम्र के बाद वजन बढ़ाने लगते हैं. और यह भी जानते हैं कि बढ़ा हुआ वजन ब्लड प्रेशर और दिल की बीमारियों का बड़ा कारण बनता है. इसी तरह, मधुमेह भी मध्यम उम्र के लोगों के लिए एक बड़ी परेशानी है. किसी और देश में मैंने ऐसा नहीं देखा कि सफल और मशहूर लोग पार्टियों में स्कॉच पीते हुए अपनी शुगर लेवल पर चर्चा करें.

भारतीय डॉक्टर इन समस्याओं को जानते हैं और आम तौर पर 40 की उम्र पार कर चुके लोगों को वही सलाह देते हैं — धूम्रपान छोड़ दें, व्यायाम शुरू करें, हेल्दी खाना खाएं और कम खाएं. डॉक्टरों को यह सलाह अब याद हो चुकी है और मरीज भी इसे एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देते हैं.

लेकिन बात जो हम समझ नहीं पाते, वह यह है कि मरीज जानते हैं कि समस्या है — बस वे डॉक्टरों की बताई बातों पर चलना नहीं चाहते. इसकी जगह अब वे नई पीढ़ी की दवाओं की तरफ बढ़ रहे हैं.

भारत में दूसरी सबसे ज़्यादा बिकने वाली दवा पहले से ही मौनजारो है, जो ओज़ेम्पिक की प्रतिद्वंद्वी है — दोनों को चमत्कारी दवाओं की तरह देखा जा रहा है. भारत में अभी हाल ही में आने के बावजूद, मौनजारो तेज़ी से बिक रही है.

द इकनॉमिस्ट की रिपोर्ट और जेपी मॉर्गन चेज़ के विश्लेषकों के मुताबिक, भारत में वज़न घटाने वाली दवाओं की मांग इतनी ज़्यादा है कि बाज़ार 2025 के 179 मिलियन डॉलर से बढ़कर 2030 में 1.5 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है.

सालों तक डॉक्टरों की बात (न) सुनने के बाद — मोटापे, डायबिटीज़ और दिल की बीमारियों के ख़तरे पर लेक्चर सुनने के बाद — भारतीय अब आखिरकार कुछ कर रहे हैं.

और नहीं, वे वह नहीं कर रहे जो डॉक्टर दशकों से कहते आ रहे हैं.

भारतीयों का ड्रग्स के साथ संबंध

भारतीयों का नई दवाओं के साथ रिश्ता थोड़ा जटिल होता है. जब 1997 में अमेरिका में फिनास्टेराइड नाम की दवा आई, जो पुरुषों में बाल झड़ने को रोकने में असरदार मानी गई, तो उम्मीद थी कि भारत में इसकी बहुत मांग होगी, क्योंकि यहां गंजापन काफी आम है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सस्ती जेनेरिक दवाओं की वजह से यह ठीक-ठाक चली है (हर साल करीब 6 प्रतिशत की बढ़त), लेकिन यह वैसी चमत्कारी दवा नहीं बन सकी जैसी उम्मीद थी. मुझे लगता है, ज्यादातर लोग जानते भी नहीं कि यह क्या है.

वियाग्रा इसके बिल्कुल उलट एक बड़ी सफलता है, जिस पर कोई बात नहीं करना चाहता. इसका बाज़ार हर साल करीब 90 मिलियन डॉलर का है और भारतीय कंपनियों की सस्ती दवाओं की वजह से यह हर साल 10 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है. लेकिन कोई भी मानता नहीं कि वह इसे लेता है और इस पर चर्चा भी कम होती है. शायद इसकी लोकप्रियता का एक संकेत यह भी है कि ‘सेक्सपर्ट्स’ और दूसरे झोलाछापों के विज्ञापन पहले की तरह ज़्यादा नहीं दिखते.

मौनजारो अलग है. लॉन्च होते ही कुछ महीनों में इसने वियाग्रा के सभी वर्ज़न की बिक्री पीछे छोड़ दी. ओज़ेम्पिक के साथ इसे दुनिया भर में चमत्कारी दवा माना जा रहा है. इसे लेने की बात स्वीकार करने में भी थोड़ी-सी ही शर्म महसूस होती है, क्योंकि इसके मेडिकल फायदे अब बहुत आम तौर पर जाने जाते हैं. तेज़ वजन घटाने के अलावा, मौनजारो ब्लड शुगर कम करता है और दिल की बीमारी, किडनी की समस्या और अल्ज़ाइमर से लड़ने में मदद कर सकता है — और शायद लोगों की उम्र भी बढ़ा सकता है.

इन नई दवाओं का साइंस समझाना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन जानने लायक बात यह है कि ये शरीर के “प्लेज़र सेंटर” पर असर करती हैं और बहुत जल्दी पेट भरने जैसा एहसास कराती हैं. यानी आप वही स्वादिष्ट खाना खा सकते हैं — बस जल्दी पेट भर जाता है और आप कम खा पाते हैं.

शुरू में समझा गया था कि बाकी सभी फायदे केवल वजन घटने की वजह से हैं. लेकिन अब लगता है कि इन दवाओं के कुछ ऐसे फायदे भी हैं जो वजन घटने से अलग हैं — और साइंटिस्ट अभी भी उन पर रिसर्च कर रहे हैं.

सफलता के पीछे क्या है?

तो फिर ये नई दवाएं भारत में इतनी जल्दी क्यों लोकप्रिय हो गईं? वजह थोड़ी-सी डॉक्टरों के प्रिस्क्रिप्शन हैं, लेकिन केवल यही कारण नहीं हो सकता, क्योंकि ज़्यादातर डॉक्टर नई दवाएं लिखने में सावधानी बरतते हैं.

कीमत भी एक बड़ा कारण है. अमेरिका की तुलना में भारत में मौनजारो की कीमत करीब एक-तिहाई हो सकती है. कंपनियां एशियाई बाज़ारों पर ज़ोर दे रही हैं क्योंकि वे अमेरिका में होने वाले मुकदमों और झंझट वाली कानूनी लड़ाइयों से बचना चाहती हैं.

लेकिन सबसे बड़ी वजह है भारतीय मिडिल क्लास की बदलती सोच. भले यह मेडिकल तौर पर ठीक न हो और न ही पूरी तरह कानूनी, लेकिन बहुत से लोग खुद ही दवा लेना शुरू कर रहे हैं. कुछ साइड इफेक्ट होते हैं — जैसे मतली — लेकिन लोग दो हफ्तों तक इन्हें झेलने को तैयार हैं, जब तक यह ठीक न हो जाए.

मैं कहना चाहूंगा कि यह बढ़ती स्वास्थ्य-चेतना की वजह से हो रहा है. यह सही भी है. लेकिन सच यह है कि वजन कम होना इन दवाओं की बिक्री का सबसे बड़ा कारण है. भारतीय मिडिल क्लास मोटापे और पेट निकलने से परेशान हो चुका है.

और यह तो बस शुरुआत है. अगले कुछ सालों में दो बड़े बदलाव आने वाले हैं.

पहला, ओज़ेम्पिक का पेटेंट भारत में 2026 की शुरुआत में खत्म हो जाएगा. यानी कोई भी भारतीय कंपनी इसका सस्ता वर्ज़न बना सकेगी. अभी भी ओज़ेम्पिक भारत में पश्चिम की तुलना में सस्ता है, लेकिन फिर भी महंगा है. एक बार भारतीय कंपनियां इसे बनाने लगीं, तो कीमत कम हो जाएगी.

दूसरा बड़ा बदलाव यह है कि जल्द ही गोलियों वाला वर्ज़न आने वाला है. अभी ये दवाएं इंजेक्शन से दी जाती हैं क्योंकि पेट इन्हें नष्ट कर देता है. लेकिन वैज्ञानिक मानते हैं कि ऐसी गोली आने वाली है जो पेट में भी असरदार रहे. यह अगले साल तो शायद न मिले, लेकिन उसके अगले साल लगभग तय है.

इसका मतलब क्या है? अगर एक सस्ती गोली, जो डायबिटीज़ को कंट्रोल करे और कई और फायदों के साथ आए, आसानी से मिल जाए, तो इसका इस्तेमाल वजन घटाने वालों से कहीं ज़्यादा लोगों में फैल जाएगा और भारत की पब्लिक हेल्थ का ढांचा बदल सकता है.

कुछ महीने पहले जब डॉ. अम्बरीश मित्तल और शिवम विज की किताब The Weight Loss Revolution लॉन्च हुई, तो मैंने कार्यक्रम की बातचीत एंकर की. हॉल दिल्ली के बड़े-बड़े लोगों से भरा था. सबका ध्यान वजन घटाने पर था.

लेकिन जब डॉ. मित्तल ने कहा कि लंबे समय में वजन कम होना इन दवाओं का सबसे बड़ा फायदा नहीं होगा — बल्कि इनके दूसरे स्वास्थ्य लाभ ज़्यादा मायने रखेंगे — तो लोग शक में पड़ गए.

वे सही थे. भारत में इन दवाओं की तेज़ सफलता बताती है कि देश कितनी जल्दी बदल रहा है. और इस बार बदलाव अच्छे के लिए है.

वीर सांघवी एक प्रिंट और टेलीविजन पत्रकार हैं और टॉक शो होस्ट हैं. उनका एक्स हैंडल @virsanghvi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ट्रंप, मुनीर और शरीफ की ओवल ऑफिस तस्वीर में छुपा है बड़ा संकेत. भारत को गौर से देखना होगा


 

share & View comments