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Thursday, 25 April, 2024
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भारत का डिफेंस सेक्टर आत्मनिर्भर नहीं है, सरकार इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रही है

पॉज़िटिव इंडीजेनस लिस्ट में कम मूल्य के पुर्जों को शामिल करने से आत्मनिर्भर बनने में भारत के डिफेंस सेक्टर द्वारा की गई प्रगति को गलत तरीके से पेश किया जा सकता है.

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भारत ने आजादी के बाद से रक्षा संबंधी ज़रूरतों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए विभिन्न प्रयास किए हैं लेकिन इसकी उपलब्धियां सीमित रही हैं.

आत्मनिर्भरता की खोज को वैज्ञानिक खोजों के साथ-साथ चलना होगा और सैन्य उद्देश्यों के लिए उनका उपयोग करना होगा. हाल में, आत्मनिर्भरता को फिर से एक नया स्वरूप दिया गया है और एक बड़े राष्ट्रीय एजेंडे के तौर पर इसे शामिल किया गया है जिसमें अनुसंधान एवं विकास संस्थानों, शिक्षाविदों, उद्योगों, स्टार्ट-अप्स, इन्डिविजुएल इनोवटर्स और यूजर्स शामिल हैं. राजनीतिक और रणनीतिक दृष्टि से, इस पारिस्थितिकी तंत्र के दृष्टिकोण का उद्देश्य अस्थिर और अराजक वैश्विक वातावरण में तेजी से स्वतंत्र नीतिगत निर्णय लेने की भारत की क्षमता की रक्षा और संरक्षण करना है.

रक्षा के क्षेत्र में, आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए कई नीतिगत निर्णय लिए गए हैं और इसलिए सरकार की मंशा पर संदेह नहीं किया जा सकता है.

लेकिन प्रासंगिक सवाल यह है कि क्या ये कदम आत्मनिर्भरता के ऊंचे लक्ष्यों को हासिल कर पाएंगे. यहां मैं दो नीतिगत पहलों का विश्लेषण करता हूं- आयात प्रतिबंध सूची, और इनोवेशन्स फॉर डिफेंस एक्सीलेंस (iDEX) योजना.

प्रगति को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना

सब-सिस्टम्स, असेंबली, सब-असेंबली और कंपोनेंट्स के आयात पर रक्षा मंत्रालय (MoD) के प्रतिबंध से स्वदेशी क्षमता के विकास को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है. अब तक, MoD ने चार सकारात्मक स्वदेशी सूचियों यानी पॉज़िटिव इंडीजेनस लिस्ट (PIL) को नोटीफाई किया है जो प्रतिबंधों के लिए समय-सीमा भी निर्दिष्ट करती है. अगस्त 2020 और मई 2023 के बीच जारी इन सूचियों में 351, 107, 780 और 928 आइटम प्रतिबंधित हैं. हालिया सूची में कम मूल्य के महत्वपूर्ण पुर्जे और कंपोनेंट्स शामिल हैं.

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MoD की वेबसाइट ‘सृजन‘ पर इन सूचियों और इसमें रुचि रखने वाली पार्टियों को प्रक्रियाओं इत्यादि के बारे में जानकारी दी गई है. पहली तीन सूचियों के लिए प्राप्त स्वदेशीकरण पर दिए गए विवरण काफी बढ़िया प्रोग्रेस का सुझाव देते हैं और नौसेना ने इसमें सबसे बेहतर प्रगति की है. लेकिन सारी परेशानी इसी विवरण में निहित है और कम मूल्य के पुर्जों और कंपोनेंट्स को शामिल करने की वजह से स्वदेशीकरण की वास्तविक प्रगति को सांख्यिकीय रूप से पहचानने के लिए गहन विश्लेषण की आवश्यकता होगी, एक वॉशर/बोल्ट एक समुद्री एक्स-बैंड रडार के बराबर होगा. इस तरह की अस्पष्टता प्राप्त स्वदेशीकरण की वास्तविकता को गलत ढंग से पेश कर सकती है और आत्मनिर्भरता में प्रगति को कृत्रिम रूप से बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर सकती है.

उपलब्धि के दावों को विश्लेषणात्मक रूप से केवल तभी देखा जा सकता है जब भारत के हथियारों के आयात के नवीनतम आंकड़ों को पिछले वर्षों के संदर्भ में अपेक्षाकृत व्यक्त किया जाता है. वर्तमान में, वे आंकड़े दावों को नहीं दिखाते हैं.

हथियारों के निर्यात को बढ़ावा देने के दावे भी किए जा रहे हैं, लेकिन यह भी इस वास्तविकता को छिपाता है कि जब कोई निम्न आधार से शुरू करता है तो वृद्धि का सुझाव काफी हद तक धोखा देने वाला होता है. जबकि उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना एक सामान्य प्रक्रिया बनी हुई है, कुछ योजनाएं प्रोसेस और प्रोसीजर की परेशानियों का मुकाबला करती हैं. यह रक्षा अधिग्रहण प्रणाली का अभिशाप रहा है. ऐसी ही एक योजना है iDEX.

iDEX योजना का शोषण

iDEX को फ़्लैगपोल योजना के रूप में पेश किया गया है जो सरकार के बाहर संस्थाओं और व्यक्तियों से प्रतिभा और इनोवेटिव क्षमता का लाभ उठा सकती है. यह MSMEs, स्टार्टअप्स, व्यक्तिगत इनोवेटर्स, R&D संस्थानों और शिक्षाविदों को शामिल करने का प्रयास करता है, और उन्हें भारतीय रक्षा और एयरोस्पेस की भविष्य की जरूरतों के लिए अच्छी क्षमता वाले काम करने के लिए अनुदान/धन और अन्य सहायता प्रदान करता है.

इस योजना में तीन अलग-अलग श्रेणियां में चुनौतियां हैं- डीआईएससी, प्राइम और ओपन.

इन चिंताओं में से एक विकसित/लागू प्रौद्योगिकियों के स्वामित्व अधिकारों की सुरक्षा से संबंधित है. हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) जैसे रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के प्रतिनिधि समीक्षा समितियों में बैठे हैं और विक्रेताओं से उत्पाद के बारे में जानकारी एकत्र कर रहे हैं जो बाद में स्वयं या बड़े कॉर्पोरेट इकाई द्वारा विकसित किए जाने के लिए उपयोग किया जा सकता है. कुछ छोटी संस्थाएं अपने दीर्घकालिक ब्याज का त्याग कर सकती हैं क्योंकि योजना में 1.5 करोड़ रुपये की पेशकश आकर्षक है. लेकिन इससे उसकी शोषणकारी प्रकृति खत्म नहीं हो जाती.

दूसरी चिंता कॉन्ट्रैक्ट में ‘मार्च इन क्लॉज’ से उत्पन्न होती है. यह खंड निर्धारित करता है कि MoD राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर उत्पादन और उपयोग को पूरी तरह से अपने हाथ में ले सकता है. हालांकि, मंत्रालय अधिग्रहण लागत/लाइसेंस शुल्क/रॉयल्टी का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा. स्टार्ट-अप के लिए, इस खंड को शोषण करने वाला माना जाता है, क्योंकि MoD एक लाभप्रद स्थिति से अधिग्रहण की शर्तों पर बातचीत कर सकता है.

इस तरह के शोषण के परिणाम यह हैं कि वे सरकार के बाहर मौजूद पूरी क्षमता का दोहन करने में विफल हो सकते हैं और आईडीईएक्स के मुख्य उद्देश्य को कमजोर कर सकते हैं. पांच साल की अवधि के लिए योजना के लिए आवंटित बजट को ध्यान में रखते हुए, प्रक्रियात्मक बाधाओं को तेजी से नेविगेट करने वाली संस्थाएं व्यक्तियों और छोटी संस्थाओं के विपरीत लाभान्वित होंगी, जिन्हें निश्चित रूप से सीमित और औसत 66 रुपये से 148 करोड़ प्रति वर्ष के बीच धन के लिए प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल होगा.

वितरण पर प्रक्रिया

रक्षा बजट आवंटन के पैटर्न को देखते हुए, ऐसा लगता है कि रक्षा मंत्रालय आत्मनिर्भरता की उपलब्धि में किए जा रहे प्रयासों की छाप देने के लिए नए और अलग-अलग मदों के तहत अल्प संसाधनों को फिर से आवंटित करने का प्रयास कर रहा है. लेकिन यह उम्मीद करना कि इनोवेशन और क्षमता विकास वास्तव में उपलब्ध धन की मात्रा से होगा, खुद को धोखा देने जैसा होगा. इसके अलावा, विकास के दौरान लगातार ऑडिट के लिए संस्थाओं को अधीन करते हुए विफलताओं को स्वीकार किए बिना इनोवेशन के फलने-फूलने की उम्मीद करना रचनात्मक सोच को मारने की संभावना है, जो काउंटर-प्रोडक्टिव है.

हालांकि सरकार के अच्छे इरादों पर संदेह नहीं किया जा सकता है, लेकिन ऐसा लगता है कि विरासत की मानसिकता और प्रबंधन प्रथाओं का वर्चस्व बना हुआ है. कई कथित उपलब्धियां काफी हद तक अतिशयोक्तिपूर्ण हैं. यहां आवश्यकता भारत के रक्षा क्षेत्र के अनुसंधान, विकास, अधिग्रहण और उत्पादन प्रणाली के मौलिक दृष्टिकोण को बदलने की है, जो अभी भी डिलीवरी पर प्रक्रिया को प्राथमिकता देने के लिए अपनी प्रवृत्ति को कम करने के लिए झूठे नैरेटिव को पेश करते हुए आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति को प्राप्त किया जा सकता है.

(लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) प्रकाश मेनन (रिटायर) तक्षशिला संस्थान में सामरिक अध्ययन कार्यक्रम के निदेशक; राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के पूर्व सैन्य सलाहकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @prakashmenon51 है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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