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Tuesday, 23 September, 2025
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जल्दबाज़ी में लागू हुए E20 से परेशान ड्राइवर और किसान, लेकिन फायदा सिर्फ केंद्र को

ज़्यादातर पेट्रोल पंपों पर E20 और E10 लगभग एक ही दाम पर बिक रहे हैं, जिससे असल में तेल कंपनियों का मुनाफा बढ़ रहा है.

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भारत में ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा देने के लिए 2023 की शुरुआत में कुछ पेट्रोल पंपों पर E20 पेट्रोल लाया गया, जिसमें 20 प्रतिशत एथेनॉल और 80 प्रतिशत पेट्रोल का मिश्रण होता है. इसका मकसद था प्रदूषण कम करना, तेल आयात पर निर्भरता घटाना और घरेलू खेती को बढ़ावा देना. कागज़ों पर यह योजना सबके लिए फायदे वाली लगी, किसानों को गन्ना और दूसरी फसल बेचने का नया बाज़ार मिला, ग्राहकों को साफ ईंधन मिला और देश ने तेल आयात से आज़ादी की दिशा में कदम बढ़ाया.

लेकिन ज़मीन पर तस्वीर अलग निकली. जनता की शिकायतों और रिपोर्टों ने एक परेशान करने वाली हकीकत उजागर की, जिसे कई लोग “E20 घोटाला” कह रहे हैं. इसमें ईंधन की क्षमता, खर्च, इंजन की संगतता और एथेनॉल मिलावट नीति से असल में किसे फायदा हुआ, इन सब बातों को लेकर गुमराह करने वाली तस्वीर सामने आई. यह बताता है कि E20 क्या है, क्या वादे किए गए थे और गड़बड़ी कहां हुई.

एथेनॉल और E20 ईंधन क्या है?

एथेनॉल एक नवीकरणीय ईंधन है, जो आमतौर पर गन्ना, मक्का और चावल जैसी फसलों के खमीरन (फर्मेंटेशन) से बनाया जाता है. भारत में गन्ना इसका सबसे अहम स्रोत है क्योंकि देश की बड़ी शुगर इंडस्ट्री है. पेट्रोल में एथेनॉल मिलाकर जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल कम किया जा सकता है और कार्बन उत्सर्जन घटाया जा सकता है.

E20 में 20 प्रतिशत एथेनॉल और 80 प्रतिशत पेट्रोल होता है. इसे सामान्य पेट्रोल (E10—जिसमें 10% एथेनॉल होता है) के मुकाबले परिभाषित किया जाता है. E20 से उम्मीद की जाती है कि यह:

  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन घटाएगा
  • ऑक्टेन रेटिंग और दहन (combustion) बढ़ाएगा
  • विदेशी तेल आयात कम करेगा
  • किसानों को अतिरिक्त आय का मौका देगा

अगर यह जिम्मेदारी से लागू हो, तो फायदे सच में बड़े हैं, लेकिन भारत की समस्या यह लगती है कि इसने कुछ अहम कदमों को नज़रअंदाज़ कर दिया.


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जल्दबाज़ी और जोखिम के साथ लागू करना

शुरुआत में सरकार ने 2030 तक पूरे देश में E20 लागू करने का प्लान बनाया था, लेकिन 2023 में इसकी समय-सीमा घटाकर 2025 कर दी गई. इसके तहत 100 से ज़्यादा शहरों के चुनिंदा पेट्रोल पंपों पर यह मिश्रण लॉन्च किया गया और आगे इसे और फैलाने की योजना बनाई गई.

यह कदम कागज़ों पर महत्वाकांक्षी और दूरदर्शी लगा, लेकिन तेल और ऑटोमोबाइल क्षेत्र के जानकारों ने कई चिंताएं जताईं:

  • भारत में कुछ वाहन अभी E20 के लिए तैयार नहीं हैं. 2023 से पहले बने कोई भी वाहन E20-अप्प्रूव्ड नहीं हैं. पुराने वाहन सिर्फ E10 पर चलने लायक हैं. अगर उन्हें E20 पर चलाया गया तो लंबी अवधि में माइलेज घटेगा, इंजन में नॉकिंग होगी, जंग लगेगी और मशीनरी जल्दी घिसेगी.
  • ईंधन का नुकसान काफी है. एथेनॉल में पेट्रोल के मुकाबले 30-35% कम ऊर्जा होती है. नतीजा यह है कि उपभोक्ता को प्रति लीटर 15-20% कम माइलेज मिलता है, लेकिन दाम लगभग उतना ही चुकाना पड़ता है, यानी पैसे पूरे, माल कम.
  • ईंधन की कीमत पारदर्शी नहीं है. एथेनॉल बनाना पेट्रोल से सस्ता है, लेकिन इसका फायदा उपभोक्ता तक नहीं पहुंच रहा है. सरकार ने कीमत खुलकर तय नहीं की, इसलिए माना जा रहा है कि तेल कंपनियां और सप्लायर इसमें मुनाफा कमा रहे हैं.

धोखाधड़ी कहां है?

साफ तौर पर कहें तो: एथेनॉल मिलावट खुद में कोई घोटाला नहीं है. यह कई देशों जैसे ब्राज़ील और अमेरिका में काम करता है, जहां सही वाहन मानक, कीमतें और इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद हैं.

भारत में ‘E20 घोटाला’ नीति के लागू करने के तरीके को लेकर है, न कि विचार या कॉन्सेप्ट के बारे में.

मुख्य समस्याएं हैं:

  1. माइलेज का गलत दिखाना और नकारना

कार निर्माता और तेल व्यापारी E20 से होने वाले माइलेज घटने को कम दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. कई उपभोक्ता शिकायत करते हैं कि उनके वाहन, खासकर पुराने, प्रति लीटर बहुत कम किलोमीटर चल रहे हैं, जिससे खर्च बढ़ रहा है. कोई नोटिफिकेशन सिस्टम नहीं था जो बताए कि आपका वाहन E20 के लिए उपयुक्त है या नहीं. इसलिए लोग अनजाने में E20 भरते हैं और प्रदर्शन में गिरावट और इंजन को नुकसान होने का सामना करते हैं.

2. कीमत में कोई बदलाव नहीं

हालांकि, ईंधन में सस्ता एथेनॉल मिलाया गया, पर पेट्रोल पंप की कीमतें नहीं घटीं. अधिकांश पेट्रोल पंपों पर E20 और E10 लगभग एक ही दाम पर बिक रहे हैं, जिससे तेल कंपनियों का मुनाफा बढ़ रहा है और संभवत: सरकार को भी टैक्स के रूप में फायदा हो रहा है. अगर एथेनॉल सस्ता और साफ है, तो ग्राहक को फायदा क्यों नहीं मिलना चाहिए?

3. वास्तविक विकल्प नहीं

कुछ पेट्रोल पंप ही E20 और E10 को अलग दिखाते हैं. अधिकांश ने E10 को पूरी तरह बंद कर दिया है, इसलिए लोग अनजाने में E20 भरते हैं, चाहे उनका वाहन उसके लिए सही हो या नहीं. जानकारी के बिना विकल्प न देना उपभोक्ता धोखाधड़ी का आरोप खड़ा करता है.

4. संबद्ध पूंजीवाद के आरोप

कुछ आलोचकों का कहना है कि इस नीति से सबसे ज़्यादा फायदा किसान या उपभोक्ता नहीं बल्कि बड़े शुगर बारन और डिस्टिलरियों को हुआ है. इनमें से अधिकांश का राजनीतिक संबंध भी है. एथेनॉल उत्पादन को सब्सिडी और प्राथमिकता दी जा रही है, जिससे गन्ना और चावल खाद्य सामग्री से ईंधन की ओर जा रहे हैं और यह भोजन की कीमतों में बढ़ोतरी का कारण बन सकता है.


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क्या यह वाकई इतना “ग्रीन” है?

हालांकि, एथेनॉल नवीकरणीय है, लेकिन इसके पर्यावरणीय फायदे साफ नहीं हैं.

  1. गन्ना बहुत पानी मांगने वाली फसल है. एथेनॉल के लिए गन्ना उत्पादन बढ़ाने से भारत में पानी की समस्या और गंभीर हो जाती है, खासकर सूखे वाले इलाकों में
  2. एथेनॉल-केंद्रित खेती बड़े पैमाने पर एक ही फसल लगाने को बढ़ावा देती है, जिससे मिट्टी की सेहत बिगड़ती है और जैव विविधता घटती है
  3. चावल और अनाज को एथेनॉल उत्पादन के लिए divert करना नैतिक सवाल उठाता है, खासकर ऐसे देश में जो अभी भी कुपोषण और खाद्य सुरक्षा की समस्या से जूझ रहा है

कौन से कदम अलग तरीके से उठाए जाने चाहिए थे?

एथेनॉल मिलावट अभी भी भारत की ऊर्जा रणनीति का हिस्सा हो सकती है, लेकिन कई कदम छोड़े गए या सही तरीके से नहीं किए गए:

  • पूरे देश में एक ही बार में बदलाव करने की बजाय सरकार को E10 और E20 दोनों उपलब्ध रखने चाहिए थे और पंपों पर स्पष्ट मार्किंग करनी चाहिए थी
  • E20 की संगतता, ईंधन क्षमता और कीमत के बारे में ड्राइवरों को जागरूक करने वाले अभियान रोलआउट से पहले होने चाहिए थे
  • उपभोक्ताओं को एथेनॉल-रहित ईंधन चुनने का विकल्प मिलना चाहिए था
  • पुराने वाहनों के मालिकों को E20-संगत इंजन में बदलने के लिए योजना दी जानी चाहिए थी

सरकार को कार और बाइक निर्माताओं को निर्देश देना चाहिए था कि वे ईंधन संगतता को स्पष्ट रूप से दिखाएं और अगर एथेनॉल सस्ता है, तो उपभोक्ताओं को इसका सीधा फायदा दिखना चाहिए.

ग्रीन पॉलिसी, गलत क्रियान्वयन

E20 नीति कार्बन उत्सर्जन घटाने, कच्चे तेल के आयात को कम करने और भारतीय किसानों को सहारा देने में स्मार्ट कदम हो सकती थी, लेकिन जल्दबाज़ी में लागू करने, पारदर्शिता न होने और आर्थिक रूप से सवाल उठने की वजह से इसे कई लोग “E20 घोटाला” कह रहे हैं.

यह सिर्फ नीति की गलती नहीं है; यह एक चेतावनी भी है. अगर भारत सतत ऊर्जा में नेतृत्व करना चाहता है, तो उसे केवल संख्या दिखाने के लिए नहीं, बल्कि लोगों और सही तथ्यों को प्राथमिकता देनी होगी.

तब तक, देशभर के ड्राइवर पेट्रोल पंप पर वही सवाल पूछते रहेंगे: मैं अपने टैंक में क्या डाल रहा हूं? और ऐसा क्यों लग रहा है कि मैं ही नुकसान उठा रहा हूं?

(कार्ति पी चिदंबरम शिवगंगा से सांसद और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य हैं. वे तमिलनाडु टेनिस एसोसिएशन के उपाध्यक्ष भी हैं. उनका सोशल मीडिया हैंडल @KartiPC है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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