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Saturday, 4 May, 2024
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अमेरिका- चीन तकनीक प्रतिद्वंद्विता के दूरगामी असर से बचने के लिए भारत को पूरी तैयारी करनी होगी

प्रौद्योगिकी सहयोग के क्षेत्र में, भारत ने ऐसे उत्पाद- यूपीआई से लेकर आधार तक- तैयार किए हैं जिनका वो फायदा उठा सकता है, बशर्ते इस्तेमाल की परिस्थितियों के बारे में सवालों के जवाब दिए जाएं.

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भारत सरकार जहां टेक्नोलॉजी को रेगुलेट करने के लिए कानूनी ढांचे को नई शक्ल देने की प्रक्रिया में है, वहीं भू – राजनीतिक वातावरण जटिल होता जा रहा है. एक तरफ, हाई- एंड टेक्नोलॉजी की लीडरशिप को लेकर लड़ाई तेजी से विवादास्पद और प्रतिस्पर्धी होती जा रही है. अमेरिका और चीन के बीच अपने दबदबे को लेकर प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है जिसके दूरगामी असर भारत जैसे देशों पर होंगे. दूसरी तरफ, भारत, अफ्रीका के कुछ हिस्से और यूरोपियन यूनियन जैसे क्षेत्रीय गुट तेजी से आपसी सहयोग के क्षेत्रों की पहचान कर रहे हैं, जिनमें सीमा पार भुगतान, जन स्वास्थ्य प्रणाली और ई-कॉमर्स में उपयोगी टेक्नोलॉजी के बारे में सीखना और उन्हें अपनाना शामिल हैं.

आज के दौर का ट्रेंड है डिजिटल प्राइवेसी के मानदंडों को अपनाया जाना और इनमें प्राइवेसी के सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों को मजबूती दी जा रही है. ये सिद्धांत हैं प्राइवेसी- बाय- डिजाइन, उद्देश्य की सीमा तय करना और पर्सनल डेटा पर यूजर का अधिकार. हालांकि इन मुद्दों पर बहस की गुंजाइश बनी हुई है, डेटा प्रोटेक्शन कानूनों के लिए खास डिजाइन तय करने और उन्हें लागू करने के लिए तंत्र विकसित करने की दिशा में निजता के सिद्धांतों पर चर्चा तेजी से आगे बढ़ी है. हालांकि, देश की सीमाओं के पार पर्सनल डेटा के ट्रांसफर, और उन तक राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों की पहुंच जैसे मुद्दों पर विवाद बना हुआ है.

भारत जैसे देशों को ना सिर्फ बढ़ती प्रतिस्पर्धा से पैदा चुनौतियों से निपटना होगा, उन्हें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि ऐसी प्रतिस्पर्धा के फैलते असर से सहयोग में रुकावट ना आए. और आखिरी बात, प्रतिस्पर्धा और सहयोग दोनों में ही पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन जैसे क्षेत्रों में घरेलू रेगुलेटरी ऑटोनॉमी को बढ़ाने या घटाने की क्षमता है.


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प्रतिस्पर्धा

7 अक्टूबर को, अमेरिका ने एडवांस्ड कंप्यूटर चिप्स हासिल करने या बनाने की चीनी कोशिशों को नाकाम करने के लिए एक्सपोर्ट कंट्रोल्स लागू किए. पिछले महीने, अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने अमेरिकी पॉलिसी में इस बदलाव का संकेत दे दिया था, जब उन्होंने तीन महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजीज- ‘कंप्यूटिंग से जुड़ी टेक्नोलॉजी, बायोटेक, और क्लीन टेक’ – को ‘फोर्स मल्टिप्लायर्स’ यानी किसी चीज की ताकत को कई गुना बढ़ाने वाला कहा था. उन्होंने यह भी कहा था कि इन सभी में लीडरशिप हासिल करना अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अनिवार्य है. फॉरेन पॉलिसी के एक हालिया लेख में कहा गया है कि चीन को सेमीकंडक्टर एक्सपोर्ट की सीमा तय करने का कदम ‘बड़े पैमाने पर टेक्नोलॉजिकल डिकपलिंग (हाई-टेक सामानों और सेवाओं के विदेशी व्यापार को खत्म करना) की तरफ आगे बढ़ने की गारंटी है.’

जैसा कि अमेरिका का कदम दिखाता है, हाई-एंड टेक्नोलॉजी तेजी से बढ़ रही रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का विषय होंगी, और इनसे संबंधित भारत और दूसरे देशों के फैसलों को प्रभावित करेंगी. प्रौद्योगिकी का आयात करने वाले देशों को उन प्रौद्योगिकियों के मालिक देशों पर अपनी निर्भरता जारी रखने, और थोड़ी आत्म-निर्भरता विकसित करने के बीच संतुलन तेजी से बनाना होगा. गरीब और औद्योगिक रूप से पिछड़े देशों के नजरिए से देखें, तो उन्हें सहयोग के क्षेत्रों में इस प्रतिस्पर्धा के फैलते प्रभाव से सावधान रहना चाहिए.

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सहयोग

रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के साथ- साथ, दुनिया में डिजिटल प्रौद्योगिकी में सहयोग का रुझान बढ़ा है. ऐसा ही एक क्षेत्र है स्वास्थ्य. कोविड- 19 महामारी ने दिखाया कि किस तरह बीमारी के प्रसार को रोकने, और वैक्सीन की डिलीवरी के लिए प्रौद्योगिकी-आधारित पहचान प्रणालियों का इस्तेमाल बढ़ा. वैक्सीन डिलीवरी के क्षेत्र में भारत का कोविन प्लेटफॉर्म सबसे आगे था. इस अनुभव ने भविष्य में महामारी की रोकथाम के लिए और मोटे तौर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों में भी ऐसी तकनीक को अपना जाने पर चर्चा तेज कर दी है.

डेटा पर आधारित सार्वजनिक स्वास्थ्य, भुगतान और ई-कॉमर्स जैसी सेवाओं को मजबूत करने के लिए डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सहयोग, प्रसार और इस्तेमाल संभव है. भारत में, यह इंफ्रास्ट्रक्चर एक डिजिटल आईडी सिस्टम (आधार) पर बनाया गया था. इसने भुगतान प्रणालियों, वैक्सीन डिलीवरी और कई दूसरी जगहों पर जरूरी बदलावों को मुमकिन किया. महामारी से पहले भी, डिजिटल सहयोग पर संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र संघ के टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सभी तक डिजिटल नेटवर्क की पहुंच बनाने का विचार दिया गया था. रिपोर्ट के नतीजों में एक है “डिजिटल पब्लिक गुड्स” या डीपीजी का विचार. डीपीजी ओपन- सोर्स सॉफ्टवेयर, डेटा, स्टैंडर्ड और मॉडल

हैं जिनमें प्राइवेसी- बाय- डिजाइन शामिल है और ये संयुक्त राष्ट्र संघ के टिकाऊ विकास लक्ष्यों को लागू करने में मदद करते हैं. डिजिटल पब्लिक गुड्स एलायंस इन डीपीजी को रजिस्टर करता है जिन्हें उसके बाद सरकार और बहुपक्षीय संगठन बढ़ावा देते हैं.

भारत अपने पब्लिक डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को दुनिया भर में फैलाने और बढ़ावा देने के लिए उत्सुक है. आधार, इंडियास्टैक, और यूपीआई को कामयाब डीपीजी के उदाहरणों के तौर पर पेश किया जा रहा है जिनके बुनियादी ढांचे को दूसरे देश भी अपना सकते हैं. लेकिन इसके साथ ही, जिन तौर- तरीकों से ऐसी टेक्नोलॉजीज को काम में लिया जाता है,
उनकी परिस्थितियों, और अलग-अलग संदर्भ में उनकी लागत और फायदों को सावधानी से परखने और समझने की जरूरत है. डीपीजी का मकसद सार्वजनिक हित हो सकता है, लेकिन फिर भी उन्हें बाजार की प्राथमिकताओं और इन्सेंटिव्स के आधार पर अपनाया जाना चाहिए, ना कि सरकारी आदेश से.


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डेटा रेगुलेशन

ग्लोबल डेटा रेगुलेशन पर चर्चाओं का फोकस डेटा के मुक्त प्रवाह के साथ- साथ स्थानीयकरण और कानून के पालन के लिए डेटा तक सरकारी पहुंच के मुद्दों पर बढ़ रहा है. डेटा के मुक्त प्रवाह पर प्रतिबंध होने चाहिए या नहीं, इस पर देशों के बीच मतभेद हैं. 60 से ज्यादा देशों में डेटा के प्रवाह पर किसी ना किसी तरह का प्रतिबंध है. भारत में टेलीकॉम और फाइनेंस में ऐसे प्रतिबंध हैं और यहां स्थानीयकरण की और जरूरतों पर काम चल रहा है.

भारत के पास डेटा के मुक्त प्रवाह पर अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण पर असर डालने की क्षमता है क्योंकि यह एक बड़ा डेटा बाजार है. लेकिन अभी जब अवसर है, तब अपनी स्थिति को साफ- साफ नहीं बताकर हम इस अवसर को गंवा सकते हैं.

हालांकि, डेटा के मुक्त प्रवाह पर फोकस में यह माना जाता है कि पर्सनल डेटा रेगुलेशन के दूसरे ज्यादातर हिस्से पहले से मौजूद हैं – कंज्यूमर की सहमति, डेटा प्रोसेसिंग के मकसद की सीमा तय होना, सुरक्षा और भंडारण की जरूरतों, वगैरह पर फोकस. जब ये सिद्धांत मजबूत होते जाएंगे, तब घरेलू मोर्चे पर इनमें ढिलाई लेना मुश्किल हो जाएगी, खासकर इसलिए क्योंकि वैश्विक सहयोग और प्रतिस्पर्धा दोनों में माना जाता है कि देशों को अपने घरेलू ढांचे में भी एक जैसी डिजाइन रखने का फैसला करना चाहिए. उदाहरण के लिए, डीपीजी रजिस्ट्री में किसी भी सॉफ्टवेयर, प्रोडक्ट या डिजाइन को एक डीपीजी के तौर पर रजिस्टर करने की बुनियादी जरूरत है प्राइवेसी- बाय- डिजाइन. यह एक अच्छी चीज हो सकती है, लेकिन यह ऐसा मानक अपनाती है जिससे बाद में हटना मुश्किल है. ग्लोबल डेटा रेगुलेशन में कई विवादित मुद्दों पर अच्छी तरह तैयार और स्पष्ट घरेलू स्थिति का ना होना भारत को नुकसान पहुंचा सकता है जैसे- जैसे ऐसी और कसौटियां और मानदंड बनाए जाएंगे.

‘जैसे- जैसे ग्लोबल टेक्नोलॉजी पॉलिसी की राजनीति अधिक जटिल होती जाएगी, भारत को दोनों चीजें करनी होंगी – टेक्नोलॉजी में अमेरिका- चीन प्रतिद्वंद्विता के किसी नकारात्मक असर से निपटना, और इस तरह की प्रतिस्पर्धा से मिलने वाले मौकों का फायदा उठाना. प्रौद्योगिकी सहयोग के क्षेत्र में, भारत ने ऐसे मानक और उत्पाद बनाए हैं जिनका वो फायदा उठा सकता है, बशर्ते इस्तेमाल करने की परिस्थितियों और उन्हें लागू कराने के तौर- तरीकों से जुड़े सवालों के जवाब दिए जाएं. आखिरी बात, भारत को बदलती परिस्थिति का फायदा उठाने के लिए डेटा रेगुलेशन से जुड़े विवादास्पद मुद्दों पर अच्छी तरह सोच- समझकर अपनी स्थिति को स्पष्ट करना चाहिए.

अनिरुद्ध बर्मन कार्नेगी इंडिया में फेलो और एसोसिएट रिसर्च डायरेक्टर हैं. विचार निजी हैं.

यह लेख प्रौद्योगिकी की भू-राजनीति की पड़ताल करने वाली सीरीज का हिस्सा है, जो कार्नेगी इंडिया के सातवें ग्लोबल टेक्नोलॉजी समिट की थीम है. विदेश मंत्रालय के साथ संयुक्त मेजबानी में ये समिट 29 नवंबर से 1 दिसंबर तक होगी. दिप्रिंट इसमें डिजिटल सहयोगी है. रजिस्टर करने के लिए यहां क्लिक करें. 

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़नी के लिए यहां क्लिक करें)


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