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Wednesday, 18 December, 2024
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टेक्नोलॉजी में साझेदारी, डेटा सुरक्षा, सेमी-कंडक्टर के साथ भारत का जियो-डिजिटल युग शुरू

भारत के जियो-डिजिटल युग के मामले से जुड़े हैं कई पहलू, और मंत्रियों के स्तर पर तालमेल की सख्त जरूरत है.

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टेक्नोलॉजी से प्रेरित एक सक्रियता देखी जा रही है, जो निरपवाद रूप से रणनीतिक महत्व की है. इसके पीछे भावना निश्चित बाज़ारों में नेता बनने की नहीं, तो अपराजेय प्रतिस्पर्द्धी बनने की जरूर है. देश विभिन्न क्षेत्रों में बेहद अहम भूमिका निभा रहा है. ये क्षेत्र हैं—भंडारण, डेटा का प्रबंधन और संचार; सेमी-कंडक्टर के निर्माण के लिए वातावरण बनाना; समान विचार वाले देशों और अंतरराष्ट्रीय दायरों में गहरे और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में दूरगामी साझीदारी करना; साथ मिलकर अत्याधुनिक मिलिट्री प्लेटफॉर्म तैयार करना; दुनिया भर में उपयुक्त डिजिटल परिवर्तनों के लिए नया सिद्धांत और ढांचा तैयार करना. भारत उन विमर्शों और गतिविधियों का केंद्र बन रहा है जो कल्पनाशीलता और संसाधनों के प्रति प्रतिबद्धता के साथ चलाई गई तो ऐसा जियो-डिजिटल दौर का रास्ता साफ हो सकता है जो इस विशाल लोकतंत्र के इतिहास में बेमिसाल होगा.

यह उभरती अर्थव्यवस्थाओं और उनसे आगे के लिए भी में डिजिटल परिवर्तन के लिए वैकल्पिक तर्क और मार्ग बना सकता है और ग्लोबल सप्लाई चेन के एक विशिष्ट स्थल का निर्माण भी कर सकता है. इस जियो-डिजिटल दौर की ओर भारत के प्रयासों के पीछे रणनीतिक मामलों में विश्वमित्र का दर्शन लागू करने का लक्ष्य दिखता है. जाहिर है, हम डिजिटल परिवर्तन के लिए भारत के मौजूदा प्रयासों के प्रति बेहद आशान्वित हैं.


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भारत के इस ‘टेक’ परिवर्तन को गति कौन दे रहा है?

भारतीय संसद ने अगस्त में ‘डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2023’ (डीपीडीपीबी) पास किया. डेटा लोकलाइजेशन (स्थानीकरण) को लेकर अंतहीन बहस अंततः खत्म हुई. निजी डेटा का स्थानीकरण न करना है, और न डेटा की सीमापार आवाजाही को स्वाभाविक अधिकार माना जा सकता है. भारत किसे डेटा उपलब्ध कराएगा, इसका फैसला अधिसूचनाओं के मुताबिक किया जाएगा. इसमें संदेह नहीं है कि कानून में ऐसे हिस्से भी होंगे जिन्हें बदलना होगा, लेकिन अंततः भारत के पास निजी डेटा के लिए एक कानूनी ढांचा उपलब्ध हुआ है.

अगला कदम एक ‘डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड’ बनाने का है. इस नये संस्थान के निर्माण और स्वरूप के जो नियम और कायदे होंगे उन पर विचार किया जा रहा है. भारत और उसके बाहर की कंपनियों के लिए एक ऐसा कानून अस्तित्व में है जो सुनिश्चित वाले बड़े दावों के बारे में एक हद तक पूर्वानुमान को संभव बनाता है. इसके साथ कानून निर्माण को लेकर उस बहस और प्रक्रिया का अंत हुआ है, जो 2017 में शुरू हुई थी. इसके बाद आगे के भी कानूनी कदम उठाए जाएंगे. कुलमिलाकर ये आधारभूत कानून अधिक पारदर्शी डिजिटल परिवर्तन और नियम निर्माण का आधार तैयार करते हैं.

भारत ने जब डीपीडीपीबी पास कर दिया उसके कुछ दिनों बाद एक नयी बहुपक्षीय पहल शुरू हो गई. 19 अगस्त को जी-20 देशों के डिजिटल मंत्रियों की बैठक बेंगलुरू में हुई. वे ‘डिजिटल इकोनॉमी वर्किंग ग्रुप’ (डीईडब्लूजी) की चौथी और अंतिम बैठक में भाग ले रहे थे. इससे निकले दस्तावेज़ ‘आउटकम डॉक्युमेंट’ ने ‘डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर’ (डीपीआई) को लेकर वैश्विक सहमति से घोषित पहली भाषा (फर्स्ट ग्लोबली एग्रीड लैंग्वेज) तय की, जो कि अभी एक साल पहले तक अस्तित्व में नहीं थी. जी-20 के एक और मंच ‘ग्लोबल पार्टनरशिप फॉर फिनैंशियल इंक्लुजन’ (जीपीएफआई) पर डीपीआई के निर्माण की सर्वोत्तम प्रक्रिया तथा नियमों को सर्वसम्मति से तय किया गया.

साल 2023 की पहली तिमाही में जी-20 का लगभग कोई सदस्य डीपीआई को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे. कूटनीति, मान-मनौव्वल, नेतृत्व, और समावेशी प्रक्रिया के मामले में डीपीआई की उपयोगिता ने उन वार्ताकारों का मन बदला, जो चंद महीने पहले तक डीपीआई में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे थे. यहां तक कि चीन ने भी दस्तखत कर दिया.
डीपीआई के गठन के प्रस्तावित ढांचे को स्वीकार कर लिया गया है. इसे सितंबर में जी-20 नेताओं की नयी दिल्ली घोषणा में रेखांकित किया गया था.

नवंबर में, जी-20 की वर्चुअल शिखर बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “दुनिया के गरीब देशों में डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर को आगे बढ़ाने” के लिए ‘सोशल इम्पैक्ट फंड’ के गठन की घोषणा की. भारत ने इस फंड के लिए 2.5 करोड़ डॉलर के शुरुआती योगदान की घोषणा भी की. इस फंड की संस्था कहां बनाई जाएगी इस पर फिलहाल विचार हो रहा है. यह जी-20 की भारत की अध्यक्षता की सबसे उल्लेखनीय संस्थागत उपलब्धि के रूप में कारगर हो सकती है.

जी-20 में और उसके लिए काम करने वाले वार्ताकार जबकि 205 एक्शन प्वाइंट्स पर जरूरी काम कर रहे थे, भारत के सेमी-कंडक्टर मिशन (आइएसएम) की तत्पर टीम नया वातावरन बनाने पर ज़ोर दे रही थी. वे इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी मिनिस्ट्री (एमईआईटीवाई) में स्थित हैं. वे विदेश मंत्रालय और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (एनएससीएस) के सहकर्मियों के साथ मिलकर काम करते हैं. सितंबर 2023 में अमेरिका की अग्रणी सेमी-कंडक्टर उत्पादक कंपनी माइक्रोन ने गुजरात के साणंद में शुरुआत की. वे अब एसेंबलिंग, टेस्टिंग और पैकेजिंग की व्यवस्था बना रहे हैं. सबकी आंखें माइक्रोन पर लगी हैं. यह कारगर रहा तो और भी अमेरिकी, कोरियाई, जापानी फ़र्में यहां इकोसिस्टम का निर्माण करने आ सकती हैं, जिसकी कोई संभावना एक साल पहले तक नहीं दिख रही थी.

माइक्रोन के इर्द-गिर्द जो प्रयास चल रहे हैं वे भारत और अमेरिका के बीच अपनी तरह के टेक्नो-कूटनीतिक ढांचे ‘इनीशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड एमर्जिंग टेक्नोलॉजी’ (आईसेट) से सीधे जुड़े हुए हैं. ‘आईसेट’ फ्रेमवर्क की घोषणा जनवरी के अंत में भारत और अमेरिका में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (एनएसए) की बैठक के बाद की गई थी. इसका विस्तृत उल्लेख इस साल जून में प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे के दौरान जारी संयुक्त बयान में किया गया था.

संक्षेप में, आईसेट निर्णायक और उभरती टेक्नोलॉजियों के विभिन्न क्षेत्रों में कार्रवाई करने का एक राजनीतिक फ्रेमवर्क है.
सेमी-कंडक्टरों के मामले में गहरी और निरंतर निगरानी चल रही है, लेकिन इसके अलावा आईसेट को लेकर भारत-अमेरिका के गहराते रक्षा संबंधों में जो कुछ चल रहा है वह सबसे स्पष्ट दिख रहा है. जनरल इलेक्ट्रिक (जीई) एयरोस्पेस और हिंदुस्तान एरोनॉटिकल लि. (एचएएल) भारत में साथ मिलकर जेट इंजन का उत्पादन करने के लिए तैयार हैं. इस समझौते में टेक्नोलॉजी का अहम हस्तांतरण शामिल है. दोनों सरकारें इस कदम को कागज से जमीन पर उतारने के लिए नियमों आदि की अड़चनों को मिलकर दूर करने में लगी हैं. अगस्त के आखिरी दिन अमेरिकी कांग्रेस ने इस अनूठी और नयी साझीदारी के लिए रास्ता साफ कर दिया.

दोनों सरकारों ने निर्यात संबंधी कठिन मुद्दों को सुलझाने के लिए कड़ी मेहनत की है जिसके कारण भारतीय स्टार्ट-अप, एमएसएमई और बड़े उद्योगों को स्पष्ट संदेश मिला है कि वे केवल अमेरिका में उपलब्ध टेक्नोलॉजियों का किस तरह उपयोग कर सकते हैं.

यह निरंतर जारी प्रक्रिया है और आईसेट से प्रेरित बाजार का अभिन्न अंग है, जो गहरी साझीदारी और साझा नये प्रयोगों को प्रोत्साहित करती है. इनमें क्वान्टम कंप्यूटिंग और आर्टिफ़ीशियल इंटेलिजेंस (एआई) में प्रगति से निपटना शामिल हैं. यह पहली बार है कि ‘एनएससीएस’ इस तरह की तकनीकी साझीदारी को आगे बढ़ा रहा है. यह संभवतः सशर्त साझीदारी के नये युग की शुरुआत है. ब्रिटेन, जापान, और दक्षिण कोरिया अपनी विशिष्ट टेक्नोलॉजियों को ध्यान में रखकर ऐसी साझीदारी के लिए भारत के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं.

वास्तव में, यूरोपियन यूनियन (ईयू) और इंडिया ट्रेड ऐंड टेक्नोलॉजी काउंसिल भी एक और नया प्रयोग है. दोनों पक्षों के मंत्रियों की मई 2023 में उच्चस्तरीय बैठक के बाद तीन वर्किंग ग्रुप बनाए गए ताकि टेक्नोलॉजी के मामले में पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर के बीच रिश्ते और व्यापक हों. ईयू ने केवल अमेरिका के साथ ऐसी ही व्यवस्था बनाई है. कोई वजह नहीं है कि कुछ सेक्टरों में ट्रेड एंड टेक्नोलॉजी काउंसिल के दो सेट साथ न आएं.

इस बीच, जेनेवा और दूसरी जगहों पर भारत के वार्ताकारों ने ‘स्पेस डिप्लोमेसी’ में भी बड़े कदम बढ़ाए हैं. जून में, भारत ने ‘आर्टेमिस एकॉर्ड’ नामक सम्झौता किया और यह करने वाला 27वां देश बन गया. यह समझौता ‘टिकाऊ सिविल स्पेस एक्सप्लोरेशन’ के लिए दिशा-निर्देश देता है. कई लोग इसके कारण सदमे में थे. भारत इन समझौतों पर दस्तखत करने से वर्षों से मना करता रहा ताकि उसकी अंतरिक्ष नीति और खोज प्रभावित न हो. अंततः, सरकार ने माना कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में साझेदारी अच्छी नीति है, और यह बाह्य अंतरिक्ष में उसके संप्रभु अधिकारों को खत्म नहीं करती. रूस और चीन इस समझौते में शामिल नहीं हैं. पूरी संभावना है कि भारत देशों के एक छोटे गठबंधन का हिस्सा बन जाए, जो साथ मिलकर अगला अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन बनाने जा रहे हैं.

संक्षेप में, उभरती अर्थव्यवस्थाओं और उनके अलावा दूसरे देशों में डेटा से लेकर स्पेस, और टेक्नोलॉजी में साझीदारी से लेकर डीपीआई का फ्रेमवर्क बनाने तक, इसमें कम ही संदेह है कि भारत ने हाल के वर्षों में आगामी जियो-डिजिटल युग के लिए अपनी तैयारी कर ली है. ऊपर की बातें घोषणाओं और नतीजों की गिनती लग सकती है, लेकिन आज की गंभीर भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं और बढ़ते विभाजनों के दौर में उठाए जा रहे इन समानांतर कदमों के विस्तार पर गौर करना उपयुक्त होगा. इस गति का पूरा लाभ उठाने के लिए हम यहां कुछ सलाह दे रहे हैं.


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भविष्य पर नजर

हम यहां दो तरह के सुझाव दे रहे हैं. पहला इस मायने में मौलिक है कि हम यह विशेष सुझाव दे रहे हैं कि भारत डीपीआई और एआई में और उनके साथ क्या कुछ कर सकता है. दूसरा सुझाव प्रशासनिक व्यवस्थाओं के बारे नयी तरह से सोच के बारे मैं है जो भारत में जियो-ग्लोबल युग को समर्थन देने, उसे विस्तार देने और आगे बढ़ाने में मददगार हों.

पहला यह कि भारत सरकार ने विकासशील देशों में डीपीआई को लागू करने के लिए ‘सोशल इम्पैक्ट फंड’ की स्थापना की घोषणा की है, तो इसके साथ भारत के नेतृत्व में एक वास्तविक ग्लोबल डीपीआई संस्थान की भी जरूरत है और इसका मौका भी है. इसे बहुपक्षीय दांव वाले संस्थान के रूप में बनाया जा सकता है, जिसमें बहुपक्षीय संस्थान बनने की संभावना हो.

दूसरा, एआई के मामले में भारत के रुख पर सावधानी से विचार करने की जरूरत है. एआई के सुरक्षित इस्तेमाल के लिए सुरक्षा बाड़ बनाने और कंप्यूटिंग की जरूरत के सवाल से लेकर रणनीति बनाने की भी जरूरत है. विशिष्ट रुख अपनाने की भी गुंजाइश है. एआई के भारतीय तरीके की कल्पना भी असंभव नहीं है. भारत दिसंबर के दूसरे सप्ताह में ‘ग्लोबल पार्टनरशिप इन आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस’ (जीपीएआई) शिखर बैठक की अध्यक्षता करने जा रहा है. भारत उन चार विकासशील देशों में शामिल है जो 29 सदस्यीय पहल का हिस्सा हैं, जिसकी शुरुआत 2020 में हुई थी. संयोजन के मामले में भारत की क्षमता उन बौद्धिक रूप से हंगामी सत्रों में उल्लेखनीय रही है जिनमें दुनियाभर के सैकड़ों पात्र भाग लेते हैं. इस तरह की पहुंच दुर्लभ है. एआई के मामले में भारत के विचार को आगे बढ़ाने के लिए जीपीएआई सही मंच है. इसके लिए उसे ऐसे रुख का हल्का खाका बनाने की सख्त जरूरत है.

अंत में, एमिन, जैसा कि इस लेख में स्पष्ट किया गया है, भारत के नये जियो-डिजिटल युग से संबंधित कई परिवर्तनशील बातें हैं. मंत्रियों के स्तर पर तालमेल की सख्त जरूरत है. एनएससीएस, विदेश मंत्रालय, एमईआइटीवाई ने अपनी-अपनी सीमित क्षमता के साथ अपनी ताकत से ज्यादा आगे बढ़ने की कोशिश की है. भारत अगर परिवर्तन के सभी तत्वों और पिछले कुछ वर्षों में हुई कार्रवाइयों का लाभ उठाना चाहता है तो उसे क्षमता बढ़ानी होगी. पूरी संभावना है कि आईसीईटी जैसे कई और ढांचे बन रहे हैं.

डीपीआई की वैश्विक यात्रा अभी शुरुआती चरण में है. यह कई दिशाओं में प्रगति कर सकता है, जिसमें तकनीकी समाधानों, कूटनीति और निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी की जरूरत पड़ेगी. कई देशों ने क्रिटिकल एंड एमर्जिंग टेक्नोलॉजी या ऐसी अवधारणाओं से संबंधित ‘विशेष दूत’ के कार्यालय के लिए काफी संसाधन उपलब्ध कराए हैं.

कुछ देशों ने निजी क्षेत्र से एक्सपर्टों को लाकर 3-4 साल के लिए सरकार में बिताया है. भारत को भी ऐसा करना पड़ेगा. ऐसी पहल के लिए राजनीतिक दूरदर्शिता तो दिखती है. सिविल सेवाओं में बाहर से प्रवेश देने की सरकार ने शुरुआत की है. इसे कई कदम आगे बढ़ाने, और टेक्नोलॉजी के इस भू-राजनीति दौर का लाभ उठाने के लिए क्षमता बनाने की जरूरत है.

(रुद्र चौधरी कार्नेगी इंडिया के निदेशक हैं. शतक्रतु साहू और उपासना शर्मा कार्नेगी इंडिया में अनुसंधान विश्लेषक हैं. साथ में, वे कार्नेगी इंडिया और भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से वैश्विक प्रौद्योगिकी शिखर सम्मेलन का आयोजन करते हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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