बिहार में इस बार के विधानसभा चुनाव में भी जाति एक बड़ा मुद्दा है. इसलिए इन दिनों जो चर्चाएं हो रही हैं उनमें उम्मीदवारों के जातीय समीकरण पर ज़ोर दिया जा रहा है. पिछले लेख में हमने यह विश्लेषण किया था कि जनता दल (यू) ने किस जाति के कितने उम्मीदवारों को टिकट दिया. एनडीए गठबंधन के दो अन्य घटकों, लोक जनशक्ति पार्टी और राष्ट्रीय लोक मोर्चा ने पहले ही घोषणा कर दी है कि उन्होंने किस जाति के कितने उम्मीदवारों को टिकट दिया है.
इस लेख में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के घोषित उम्मीदवारों की जातीय पृष्ठभूमि का विश्लेषण किया जा रहा है. पूरे बिहार के स्थानीय नेताओं और विशेषज्ञों से बातचीत के बाद जुटाई गई जानकारियों से पता चला कि भाजपा के करीब 50 फीसदी उम्मीदवार अगड़ी जातियों के हैं. अति पिछड़े वर्गों (ईबीसी) की ओर से पर्चा भरने वालों की संख्या भी बढ़ी है. यह बताता है कि यह पार्टी अब अगड़ी जातियों और ईबीसी पर ज्यादा ज़ोर दे रही है.
भाजपा उम्मीदवारों का जातीय समीकरण
एनडीए में सीटों का जो बंटवारा हुआ है उसमें भाजपा को जदयू के बराबर 101 सीटें मिली हैं, जबकि 2020 में उसे 110 सीटें मिली थीं. इस बार दोनों दलों को आवंटित सीटों की संख्या घटी है क्योंकि एनडीए में शामिल हुई उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा को 6 और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) को 29 सीटें दी गई हैं. पिछले चुनाव में एलजेपी ने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा था और जदयू के उम्मीदवारों को काफी नुकसान पहुंचाया था.
भाजपा ने अपनी सभी 101 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. ‘चित्र 1’ बताता है कि चार सामाजिक समूहों के बीच किस जाति के कितने उम्मीदवारों को टिकट दिए गए—अगड़ी जातियों को 49, पिछड़े वर्गों को 25, अति पिछड़े वर्गों को 15, और अनुसूचित जातियों/जनजातियों (एससी/एसटी) को 12. पार्टी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं खड़ा किया है. आंकड़े बताते हैं कि भाजपा के 50 फीसदी उम्मीदवार अगड़ी जातियों से हैं.

2020 के चुनाव से फर्क
‘चित्र 2’ 2020 के चुनाव और इस बार के चुनाव में खड़े उम्मीदवारों की जातियों के समीकरणों का तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करता है. यह बताता है कि इस पार्टी के उम्मीदवारों में अगड़ी जातियों की संख्या में इस बार 4 फीसदी की वृद्धि हुई है, इसके ईबीसी उम्मीदवारों की संख्या में करीब 9 फीसदी की वृद्धि हुई है, लेकिन पिछड़े वर्गों के उम्मीदवारों का अनुपात 35.45 प्रतिशत से घटकर 24.75 फीसदी हो गया और एससी/एसटी उम्मीदवारों का अनुपात 14.55 फीसदी से घटकर 11.88 फीसदी हो गया. हो सकता है कि यह गिरावट आरक्षित सीटों के टिकट एलजेपी और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेकुलर) को देने के कारण आई हो.
वैसे, संभव है कि पिछड़े वर्गों के उम्मीदवारों की संख्या में कमी ईबीसी जातियों का समर्थन हासिल करने और अगड़ी जातियों के वोटों को मजबूत करने की रणनीति की वजह से आई हो.

उम्मीदवारों का जातीय समीकरण
‘चित्र 3’ भाजपा उम्मीदवारों का जातिवार विश्लेषण प्रस्तुत करता है. यह बताता है कि इस पार्टी ने सबसे ज्यादा राजपूत जाति के उम्मीदवारों को टिकट (21) दिया है. इसके बाद भूमिहार जाति को 16, ब्राह्मण को 11 और कायस्थ को 1 टिकट दिया है. भाजपा ने जिन उम्मीदवारों को नामजद किया है उनमें सभी जातियों में से ये तीन जातियां ही पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं.
पिछड़ी जातियों में, इस पार्टी ने सबसे ज्यादा सात उम्मीदवार कुशवाहा जाति से नामजद किया है. इसके बाद यादव (6), कलवार (4), सूरी (2), मारवाड़ी (2), कुर्मी (2), रौनियार (1) और केशरवानी (1) जातियों का नंबर आता है.
गौरतलब है कि जदयू की पिछड़ी जातियों के उम्मीदवारों की सूची में भी कुशवाहा ही सबसे ऊपर हैं, बावजूद इसके कि उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम एनडीए का हिस्सा है. इसके अलावा, भाजपा और जदयू, दोनों ने कायस्थ जाति के एक-एक उम्मीदवार को टिकट दी है. बिहार में 2023 में जातीय सर्वे करवाया गया था उसके आधार पर सामाजिक-आर्थिक असमानता पर किए गए शोध के मुताबिक, औसत घरेलू आय और शिक्षा के मामले में कायस्थ सबसे ऊपर हैं, लेकिन टिकट बंटवारे से ज़ाहिर है कि राजनीति के क्षेत्र में उन्हें दरकिनार किया गया है.

भाजपा ने अपने ईबीसी उम्मीदवारों की संख्या बधाई है. उनमें भी इसने सबसे ज्यादा 4 टिकट तेली जाति के उम्मीदवारों को दिया है. इसके बाद कानू (3), राजबंशी (1), नोमीन (1), मल्लाह (1), कहार (1), धानुक (1), दांगी (1), चौरसिया (1), और बिंद (1) समुदायों का नंबर आता है.
ऐसा लगता है कि यह पार्टी ईबीसी के किसी खास समूह पर ज़ोर देने की जगह यथासंभव ज्यादा से ज्यादा जातियों को टिकट देना चाहती थी. भाजपा ने एससी/एसटी से कुल 12 उम्मीदवारों को टिकट दिया है जिनमें सबसे ज्यादा 6 सीटें दुसाध जाति को दी और इसके बाद रविदास (3), मुसहर (1) और तुडु (1) का नंबर आता है. इन सभी को आरक्षित सीटों से खड़ा किया गया है. एनडीए में दो दलों, एलजेपी और एचएएम (एस) का नेतृत्व दलित नेता कर रहे हैं इसलिए भाजपा को उम्मीद है कि वह इस बार बड़ी संख्या में आरक्षित सीटें जीतेगी.
भाजपा ने जातीय आधार पर उम्मीवारों को नामजद करने की जो रणनीति अपनाई है उससे जाहिर है कि उसने सबसे ज्यादा टिकट अगड़ी जातियों के उम्मीदवारों को दिया है, लेकिन इसके गठबंधन सहयोगी जदयू ने सबसे ज्यादा टिकट पिछड़ी और ईबीसी जातियों के उम्मीदवारों को दिया है. यह दोनों दलों की चुनावी रणनीति में फर्क को उजागर करता है. एक पार्टी अगड़ी जातियों पर ज़ोर दे रही है, तो दूसरी पार्टी पिछड़ों और अति पिछड़ों पर अपना दांव लगा रही है.
(अरविंद कुमार यूनिवर्सिटी ऑफ हर्टफोर्डशायर, यूके में पॉलिटिक्स और इंटरनेशनल रिलेशन के विज़िटिंग लेक्चरर हैं. उनका एक्स हैंडल @arvind_kumar__ है. पंकज कुमार जामिया मिलिया इस्लामिया में पीएचडी शोधार्थी हैं. यह लेखकों के निजी विचार हैं.)
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