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Wednesday, 1 October, 2025
होममत-विमतRSS के 100 साल में विरोधियों ने भी हिंदू हित के लिए आवाज़ उठाई: दत्तात्रेय होसबाले

RSS के 100 साल में विरोधियों ने भी हिंदू हित के लिए आवाज़ उठाई: दत्तात्रेय होसबाले

संघ की प्रगति हमेशा समाज के निरंतर सहयोग पर टिकी रही क्योंकि उसका काम जनता की भावना से जुड़ा रहा, इसलिए समय के साथ-साथ उसका स्वीकार बढ़ता गया.

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का काम अब सौ साल पूरे कर चुका है. इस लंबी यात्रा में अनगिनत लोग साथी, योगदानकर्ता और शुभचिंतक बने. यह यात्रा मेहनत और चुनौतियों से भरी रही, लेकिन आम नागरिकों के अडिग समर्थन ने इसे सफल और संतोषजनक बना दिया. शताब्दी वर्ष में जब हम रुककर पीछे देखते हैं, तो कई ऐसे क्षण और लोग याद आते हैं—जिन्होंने इस मिशन की सफलता सुनिश्चित करने के लिए सब कुछ समर्पित किया.

शुरुआती वर्षों में, युवा कार्यकर्ताओं ने देश भर में समर्पित योद्धाओं की तरह कदम बढ़ाए, पूरी तरह देश प्रेम से प्रेरित. डॉ. हेडगेवार के मार्गदर्शन में, अप्पाजी जोशी जैसे परिवार वाले और दादराव परमार्थ, बालासाहेब और भाऊराव देवरस, यादवरा जोशी, एकनाथ रानाडे जैसे पूर्णकालिक प्रचारक संघ के काम को राष्ट्र के प्रति जीवनभर सेवा की पवित्र प्रतिज्ञा के रूप में अपनाया.

संघ की प्रगति हमेशा समाज के निरंतर सहयोग पर टिकी रही क्योंकि इसका काम जनता की भावना के अनुरूप रहा, इसलिए समय के साथ उसका स्वीकार बढ़ता गया.

एक बार विदेश यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद से पूछा गया: “आपके अधिकांश देशवासी अनपढ़ हैं, उन्हें अंग्रेज़ी भी नहीं आती, तो वे आपकी ये गहरी बातें कैसे समझेंगे?” स्वामीजी ने उत्तर दिया, “जैसे चींटियों को चीनी ढूंढने के लिए अंग्रेज़ी सीखने की ज़रूरत नहीं होती, वैसे ही मेरे लोग किसी उच्च और आध्यात्मिक उद्देश्य को पहचानने के लिए विदेशी भाषाओं की ज़रूरत नहीं रखते. उनकी आंतरिक बुद्धि उन्हें मार्ग दिखाएगी.” यह कथन वास्तव में सही साबित हुआ.

इसी तरह, धीमी गति के बावजूद, समाज ने हमेशा संघ के ईमानदार प्रयासों को पहचाना और समर्थन दिया.

शुरुआत से ही, संघ कार्यकर्ताओं को आम परिवारों से आशीर्वाद, आश्रय और उत्साह मिला. वास्तव में, स्वयंसेवकों के घर ही काम के आधारभूत केंद्र बन गए. माताओं और बहनों का योगदान इस यात्रा को पूर्णता देने में अहम रहा. दत्तोपंत ठेंगड़ी, यशवंतराव केलकर, बालासाहेब देशपांडे, एकनाथ रानाडे, दीनदयाल उपाध्याय और दादासाहेब आप्टे जैसे प्रेरित व्यक्तित्वों ने संघ से शक्ति पाई और सामाजिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कई संगठन बनाए.

आज ये संगठन, विशाल विकास के साथ, कई क्षेत्रों में रचनात्मक बदलाव लेकर आए हैं. महिलाओं में भी, मैसीजी केलकर और प्रमिला ताई मेधे जैसी ऊंची हस्तियों ने राष्ट्रसेविका समिति के माध्यम से मातृवत शक्ति प्रदान की, जो इस मिशन के लिए केंद्रीय रही.

हिंदू एकता और समाज का समर्थन

सदियों के दौरान, संघ ने कई राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे उठाए, हमेशा सामाजिक समर्थन के साथ. कभी-कभी, जो लोग सार्वजनिक रूप से विरोधी थे, उन्होंने भी हिंदू हित के लिए अपनी आवाज़ दी. संघ लगातार हिंदू एकता, राष्ट्रीय सुरक्षा, सामाजिक सामंजस्य, लोकतंत्र और संस्कृति संरक्षण के मामलों में सहमति और सहयोग की कोशिश करता रहा. हज़ारों स्वयंसेवकों ने असहनीय कठिनाइयों का सामना किया और कई ने अपनी जान भी दी. इसके बावजूद, समाज का समर्थन हमेशा साथ रहा.

1981 में, जब तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम में कुछ हिंदुओं को भ्रामक परिस्थितियों में धर्मांतरण कराया गया, तो इसके बाद विशाल हिंदू जागरण आंदोलन शुरू हुआ. लगभग पांच लाख लोग शामिल एक सम्मेलन की अध्यक्षता डॉ. करन सिंह ने की थी, जो उस समय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे.

1964 में, विश्व हिंदू परिषद की स्थापना हुई, जिसमें स्वामी चिन्मयानंद, मास्टर तारा सिंह, जैन मुनि सुशील कुमार, बौद्ध भिक्षु कुशोक बकुला और नामधारी सिख गुरु जगजीत सिंह जैसे विभिन्न पृष्ठभूमि के प्रसिद्ध आध्यात्मिक नेताओं की सक्रिय भागीदारी थी. यह पहल श्री गुरुजी गोवलकर से प्रेरित थी, जिसका उद्देश्य यह दोहराना था कि हिंदू शास्त्रों में अस्पृश्यता की कोई जगह नहीं है. इस सिद्धांत को बनाए रखने के लिए, उडुपी में एक भव्य विश्व हिंदू सम्मेलन बुलाया गया, जिसमें आदरणीय आध्यात्मिक नेता, संत और महंत आए और अपना आशीर्वाद एवं समर्थन दिया.

प्रयागराज सम्मेलन में जो भावना व्यक्त हुई “ना हिंदू पतितो भवेत” (कोई हिंदू कभी अपवित्र नहीं हो सकता) वही इस सम्मेलन में “हिंदवः सोदरा सर्वे” (सभी हिंदू भाई हैं, भारत माता के बच्चे हैं) के रूप में दोहराई गई. गाय संरक्षण अभियान से लेकर राम जन्मभूमि आंदोलन तक, संत-समाज ने हमेशा संघ के स्वयंसेवकों को अपना आशीर्वाद दिया.

तूफानों में भी अडिग

स्वतंत्रता के बाद, जब राजनीतिक कारणों से संघ की गतिविधियों पर रोक लगा दी गई थी, तब केवल आम लोग ही नहीं बल्कि समाज के प्रतिष्ठित लोग भी खुले तौर पर संघ के साथ खड़े हुए और उन कठिन समयों में हौसला दिया. यह अनुभव आपातकाल के दौरान भी हुआ. यही वजह है कि इतनी बाधाओं के बावजूद, संघ का कार्य लगातार और निर्बाध चलता रहा. ऐसे संकटों में अक्सर माताओं और बहनों ने स्वयंसेवकों और उनके कार्य को बनाए रखने की जिम्मेदारी उठाई और वे निरंतर प्रेरणा का स्रोत बनीं.

आगे देखते हुए, इस शताब्दी वर्ष में संघ के स्वयंसेवक हर घर तक पहुंचने का विशेष प्रयास करेंगे—बड़े शहरों में, दूर-दराज के गांवों में, और समाज के सभी वर्गों में राष्ट्रीय सेवा के मिशन में व्यापक सहयोग और भागीदारी के लिए आमंत्रित करने के लिए. समाज की सभी शुभचिंतक शक्तियों के समन्वित प्रयास से, हमारे राष्ट्र की अगली यात्रा—संपूर्ण विकास की ओर निश्चित ही आसान और अधिक सफल होगी.

(लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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