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Thursday, 18 April, 2024
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किन 6 उत्सवों को मनाता है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और क्या है इसका महत्व

आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक एमएस गोलवलकर व तीसरे सरसंघचालक बाला साहब देवरस ने कई वक्तव्यों, बौद्धिकों व सार्वजनिक भाषणों में इन उत्सवों के बारे में अलग-अलग टिप्पणियां की हैं.

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साल 2021 में 13 अप्रैल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए संभवत: सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है. संघ इस दिन को न केवल भारतीय नववर्ष, ‘वर्ष प्रतिपदा ‘ उत्सव के रूप में मनाता है बल्कि इसी दिन संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार की जयंती भी मनाई जाती है.

अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से उनका जन्म 1 अप्रैल, 1889 को हुआ था पर संघ भारतीय पंचांग के हिसाब से चलता है और उसके अनुसार डॉ. हेडगेवार का जन्म वर्ष प्रतिपदा के दिन हुआ था. इसलिए इस साल संघ अपने संस्थापक की जयंती पर 13 अप्रैल को उन्हें स्मरण कर रहा है.

वर्ष प्रतिपदा एक प्रकार से वर्ष का पहला उत्सव है जो संघ द्वारा मनाया जाता है. इसके अलावा पांच ऐसे और उत्सव हैं जिन्हें संघ अधिकृत तौर पर मनाता है.

ये उत्सव हैं—विजयादशमी, मकर संक्रांति, हिंदू साम्राज्य दिवस, गुरु पूर्णिमा तथा रक्षा बंधन.

संघ ने इन छह उत्सवों को क्यों चुना, इसके विषय में आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक एमएस गोलवलकर उपाख्य ‘गुरूजी’ व तीसरे सरसंघचालक बाला साहब देवरस ने कई वक्तव्यों, बौद्धिकों व सार्वजनिक भाषणों में अलग-अलग टिप्पणियां की हैं. उनके इन विचारों को ‘संघ उत्सव ‘ नामक पुस्तिका में संघ से प्रेरित प्रकाशन संस्थान सुरूचि प्रकाशन ने प्रकाशित किया है.

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पुस्तक में इन त्यौहारों को मनाने के संदर्भ में कहा गया है कि संघ ने खुद ये त्यौहार नहीं बनाए हैं. आदिकाल से हिंदू समाज इन्हें मनाता आ रहा है. संघ ने इन्हें मनाना इसलिए आरंभ किया ताकि इन त्यौहारों के माध्यम से लोग राष्ट्रीयता की भावना को आत्मसात करें, अपने महापुरूषों के बारे में जानें व समाज में जागरूकता आए. इसीलिए इन त्यौहारों को विशिष्ट तरीके से मनाया जाता है.


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संघ द्वारा मनाए जाने वाले छह उत्सवों के बारे में संक्षिप्त जानकारी:

विजयादशमी: इसी दिन 1925 में संघ की स्थापना हुई थी. इस दिन संघ की शाखाओं पर शक्ति के महत्व को याद रखने के लिए प्रतीकात्मक रूप से शस्त्र पूजन होता है. कई शाखाएं मिलकर एक साथ बड़े कार्यक्रमों का आयोजन भी करती हैं, जहां खेल होते हैं तथा बाद में विजयादशमी से प्रेरणा लेकर राष्ट्र के लिए कार्य करने के संबंध में संघ के किसी अधिकारी अथवा समाज के किसी गणमान्य व्यक्ति का भाषण होता है. वैसे संघ के शब्दकोष में इस भाषण को ‘बौद्धिक’ कहते हैं.

हर साल विजयादशमी पर संघ के मुख्यालय नागपुर में सरसंघचालक का वार्षिक उद्बोधन होता है जिससे संघ की दशा और दिशा के बारे में जानकारी मिलती है.

मकर संक्रांति: यह हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र दिनों में से एक है. सूरज इस दिन से अपनी दिशा बदलता है और दिन बड़े होने लगते हैं तथा रातें छोटीं. भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में मकर संक्रांति को अंधेरे से प्रकाश की ओर यात्रा का पर्व माना गया है.

इस दिन संघ की दैनिक शाखा के उपरांत स्वयंसेवकों में गुड़ व तिल का वितरण होता है. इससे पूर्व वरिष्ठ कार्यकर्ता भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं के संदर्भ में इस पर्व के महत्व के बारे में स्वयंसेवकों को जानकारी देते हैं.

वर्ष प्रतिपदा उत्सव: इसे आप भारतीय नववर्ष यां हिदू नव वर्ष भी कह सकते हैं. इसी दिन से विक्रमी संवत की शुरूआत हुई थी. इस दिन को मनाने के लिए संघ के स्वयंसेवक अपने पूर्ण गणवेश में संघ स्थान पर एकत्र होते हैं तथा अपने संस्थापक डॉ. हेडगेवार की स्मृति में सर झुकाकर उन्हें ‘आद्य सरसंघचालक प्रणाम ‘ के माध्यम से स्मरण करते हैं. यह प्रणाम वर्ष में केवल एक बार सभी शाखाओं पर वर्ष प्रतिपदा के दिन होता है.

हिंदू साम्राज्य दिवस: मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी ने 1674 में इसी दिन हिंदू साम्राज्य की विधिवत स्थापना की थी. उन्होंने इस दिन सिंहासनारूढ़ होते हुए घोषणा की थी कि ‘यह राज्य शिवाजी का नहीं, धर्म का है ‘.

संघ की शाखाओं में इस दिन छत्रपति शिवाजी और उनके कार्यों को याद किया जाता है. उनके शौर्य, पराक्रम व सुशासन से जुड़ी घटनाओं का पुन: स्मरण किया जाता है. साथ ही तानाजी जैसे उनके असंख्य वीर व बलिदानी सहयोगियों तथा उनकी माता जीजाबाई के जीवन से जुड़े प्रेरक प्रसंगों को याद किया जाता है.


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रक्षाबंधन: इस दिन स्वयंसेवक एक दूसरे की कलाई पर राखी बांधकर एक दूसरे की रक्षा करने का संकल्प लेते हैं. संघ के कामकाज में अक्रस यह भाव समय-समय पर प्रतिबिंबित होता है तो उसके पीछे रक्षाबंधन जैसे उत्सवों को मनाने की संगठनात्मक परंपरा का भी बड़ा योगदान है. इसके बाद स्वयंसेवक अपने आसपास की गरीब बस्तियों या निर्धन व सामाजिक रूप से पिछड़े परिवारों में जाकर वहां बहनों से राखी बंधवाते हैं और उनके साथ भोजन करते हैं. इन परिवारों के साथ स्वयंसेवक साल भर लगातार संपर्क में रहते हैं.

इस उत्सव के माध्यम से समाज में हाशिए पर खड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाने का सोचा-समझा प्रयास है. संघ के विस्तार के पीछे ऐसे प्रयासों की एक अहम भूमिका है.

गुरु पूर्णिमा: हिंदू परंपरा में गुरु का स्थान ईश्वर से भी उच्च माना जाता है. यह महोत्सव एक अवसर प्रदान करता है कि जीवन में सही दिशा दिखाने के लिए अपने गुरुजनों के प्रति सम्मान प्रदर्शित किया जाए.

संघ में भगवा ध्वज भी गुरु है. इसलिए स्वयंसेवक इस दिन भगवा ध्वज की पूजा करते हैं. यह पर्व आषाढ़ महीने की पूर्णिमा के दिन आयोजित किया जाता है. इस दिन को ‘आषाढ़ी पूर्णिमा ‘ भी कहा जाता है.

स्वयंसेवक इन दिन शुभ्र वेश- सफेद धोती, कुर्ता या कुर्ता-पायजामा तथा संघ के गणवेश का हिस्सा- काली टोपी पहनकर पुष्पों से भगवा ध्वज की पूजा करते हैं. इसके उपरांत समाज के किसी गणमान्य व्यक्ति द्वारा किसी राष्ट्रीय महत्व के विषय पर विचार रखे जाते हैं.

इस पर्व के माध्यम से स्वयंसेवकों को याद दिलाया जाता है कि संघ में व्यक्ति का नहीं विचार का महत्व है, इसीलिए किसी व्यक्ति को गुरु न मानकर संघ ने भगवा ध्वज को गुरू माना है. भगवा ध्वज को गुरु मानने का कारण यह है कि यह भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परंपरा का अभिन्न अंग रहा है जिसमें इसे त्याग, बलिदान व शौर्य का प्रतीक माना गया है.

(लेखक दिल्ली स्थित थिंक टैंक विचार विनिमय केंद्र में शोध निदेशक हैं. उन्होंने आरएसएस पर दो पुस्तकें लिखी हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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