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Monday, 4 November, 2024
होममत-विमतइमरान खान के फैन उनके लिए टैंकों के आगे लेटने और गोली खाने को तैयार लेकिन सिर्फ ट्विटर पर

इमरान खान के फैन उनके लिए टैंकों के आगे लेटने और गोली खाने को तैयार लेकिन सिर्फ ट्विटर पर

इमरान खान के समर्थक किसी को अपने ‘कप्तान’ को छीन लेने देना नहीं चाहते, चाहे उसी से लड़ना पड़े, जिसने उन्हें कुर्सी पर बैठाया.

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इस हफ़्ते पाकिस्तानी मर्द इस रहस्योद्घाटन से तबाह सा महसूस कर रहे हैं कि एर्टुअरुल की उनकी पसंदीदा ‘हलीमा बाजी’ एक ब्रा पहनती है, औरतें यह सोचकर बाल्टी भर आंसू बहा रही हैं कि उनके चमकते, अंग्रेजी बोलने वाले वजीर-ए-आजम इमरान खान को हटाया जा रहा है. वे कहती हैं, बुरे दिन आ रहे हैं.

 

तुर्की सीरिज द्रीलिस: एर्तुग्रुल में हलीमा का किरदार निभाने वाली इसरा बिलजिक को पाकिस्तानी फैन्स ने विक्टोरियाज सेक्रेट में मॉडल बनने नहीं दिया, तो इमरान खान के समर्थक अपने ‘कप्तान’ को किसी को छीन ले जाने नहीं दे सकते, चाहे इसके लिए उन्हीं लोगों से लड़ना क्यों न पड़े, जिन्होंने उन्हें कुर्सी पर बैठाया था.

ढेरों ऐसे हैं, जो जहां-तहां से उड़कर सिर्फ पाकिस्तान से कहने आ रहे हैं, ‘मैं इमरान खान के साथ खड़ा हूं’ लेकिन इससे भी खास यह है कि कुछ ऐसे भी हैं, जो सिर्फ ‘तुम्हारे साथ हैं कप्तान’ जताने के लिए सब कुछ गंवाने को तैयार हैं. जबसे अविश्वास प्रस्ताव का बम फेंका गया है, हर घंटा गम का है, हर मिनट वजीर-ए-आजम के ‘नौजवान ब्रिगेड’ के लिए गम बढ़ रहा है. वे आपको यकीन दिलाने के लिए चीख-चिल्ला रहे हैं कि कितनी गलत है यह सियासत. वे नाराज हैं कि किसी को अपने अलावा देश के भविष्य की फिक्र नहीं है, खासकर तब, जब वो तो विदेश में हैं, आप तो पाकिस्तान में हो.


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‘डॉक्टर’ तक आ गए

अब स्टोरी यह है कि ‘कैसे.’ कैसे इमरान खान के फैन्स की जिंदगी उलटा-पुलटा हो गई है. हां, उनकी कहानी द फ्रेश प्रिंस ऑफ बेल एयर (1990) से ज्यादा मजेदार है. ऑस्ट्रेलिया से एक डॉक्टर की नींद उड़ गई है क्योंकि ‘मुल्क का क्या बनेगा’, उनका तो वजूद ही मुश्किल लगता है, आखिर ‘चोर’ और ‘डाकू’ पाकिस्तान में वापसी करने वाले हैं. आंसू रोककर वो कहती हैं, ‘यहां (ऑस्ट्रेलिया में) इमरान खान जैसे लोग बहुत-से हैं.’ लेकिन वे आपको यह नहीं बतातीं कि ऑस्ट्रेलिया को वाकई इसकी फिक्र नहीं है. क्या है? डॉ. ऑस्ट्रेलिया के ‘इमोशनल अत्याचार’ से विचलित होकर डॉ. गुयाना कहते हैं कि भले वे वहां नहीं रहते मगर वे पाकिस्तान में ही जीते और सांस लेते हैं. मगर सुनो, लंबी दूरी की ‘देशभक्ति’, देशभक्ति का सबसे अच्छा रूप है. उनकी आवाज मिल्क-शेकर से ज्यादा तेज कांपते हुए कहती है कि, ‘नौजवानों की हसरत तोड़ी जा रही है.’

अपने इरादे पर अडिग इमरान खान के एक समर्थक तो ‘सब कुछ बेचकर नया पाकिस्तान’ में लौट आने की कौल उठाते हैं. अमेरिका में एक एक डॉक्टर ने वादा किया था कि इमरान खान के लिए सब कुछ छोड़ देंगे, अपने पैसे वतन को लौटा देंगे और ‘अपनी झील किनारे का मकान भी बेच देंगे.’ अपने इरादे में वे वैसे ही पक्के लग रहे थे जैसे जिम में पहले दिन आप लगते हो. झील वाले डॉक्टर का एक ओर का सफर 2018 में पीएम खान के देश के नाम पहले भाषण से शुरू हुआ. लेकिन पता चला कि डॉ. अमेरिका का सफर अपना ट्विटर अकाउंट डिलिट करने तक ही पहुंचा. क्या झील वाले डॉक्टर कृपया खड़े होंगे? ‘कप्तान’ को अब आपकी जरुरत है.

हालांकि फिक्र की बात नहीं है, किराए के एक्टर ने अब खुद को पूरी तरह ढंक लिया है. कई बार वे इमरान खान की विदेशी फैन की तरह नश्वर पाकिस्तानियों को भाषण पिलाती हैं कि कहीं कोई महंगाई नहीं है क्योंकि हर कोई खुशकिस्मत है कि ‘ब्रांडिड कपड़े’ पहनता है. और, अगले ही मिनट वही एक्टर स्थानीय आंटी बन जाती है और बताती है कि कैसे सब्जी विक्रेता उन्हें धनिया और टमाटर मुफ्त दे देता है और अपनी गरीबी की दुहाई नहीं देता क्योंकि सब्जी विक्रेता का मानना है, ‘इमरान खान आखिरी उम्मीद है’. पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) बिना कुछ के चीजें बना लेने में माहिर है. शायद आप भूल गए हों कि ‘सिनेटर टॉनी बूकर’ खान के पीएम चुने जाने पर दीवाने हो गए थे. जो सिनेटर थे ही नहीं.


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‘लंगोट’ वालों के बीच इमरान खान

आइए, डॉक्टरों से इंजीनियरों की ओर चलें. नौजवान ब्रिगेड टैंक के सामने कूदने, गोली खाने को तैयार है. भले ही सिर्फ ट्विटर पर. वे कौल उठाते हैं कि इमरान खान सरकार को गिराने की पहल करने वालों के पीछे जो भी हों उन्हें छोड़ेंगे नहीं. चाहे इसके मायने सोशल मीडिया पर फौज के खिलाफ अभियान ही क्यों न चलाना पड़े, जिससे वे नाराज हैं क्योंकि उसके हुक्मरान ‘निष्पक्ष’ नहीं हैं. यही वही बिरादरी है, जो तकरीबन तीन साल पहले चीख रही थी कि फौज का पाकिस्तान सियासत में कोई दखल नहीं है और आज चिल्ला रही है कि कोई दखलंदाजी क्यों नहीं है.

इस बार हर किसी का काम बंटा हुआ है. नेशनल असेंबली के सत्तारूढ़ सदस्य ट्विटर पर दिल खोलकर रख दे रहे हैं कि कैसे पीएम इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव इसलिए आया है क्योंकि वे कुछ ‘इंस्टीट्यूट’ को भ्रष्टाचार नहीं करने दे रहे हैं. वही एमपी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो की ‘ट्रांसजेंडर’ कहकर खिल्ली उड़ा रहे हैं और फिर इस्लामाबाद हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को ‘फिरौन’ बता रहे हैं. फिर, पीएम के एक खास सहायक हैं, जो अपनी पंजाबी-इंग्लिश डिक्शनरी को खंगालने में व्यस्त हैं. उन्होंने विरोधी सांसदों को सियासी ‘दल्ला’ बताया है, जबकि दो दिन बाद पीएम खान ने खुद को उनका अब्बा बताया. अब यह क्या काम आएगा? पता नहीं, ये परिभाषाएं मौजूदा सियासी उथल-पुथल के दौर में पीएम के दफ्तर पर कैसा असर डालेंगी?

देश आज तीन ‘एन’: नैपी, न्यूट्रल, और नो कॉन्फिडेंस में फंस गया है. सहयोगियों के मुताबिक, खान सरकार के ‘नैपी’ इस्टैबिलेसमेंट तीन साल से बदल रहा है. बकौल पीएम न्यूट्रल सिर्फ एक जानवर है क्योंकि उनके मुताबिक, इंसान न्यूट्रल नहीं हो सकते. और, ‘नो कॉन्फिडेंस यानी विरोधी और विपक्षी सांसदों का कहना है कि पीएम खान हाउस में बहुमत खो चुके हैं. लेकिन पीएम जोर डालते हैं कि उनकी रैलियां साबित करती हैं कि वे अभी भी लोकप्रिय हैं और उन्हें यकीन है कि इस्तीफा नहीं देंगे.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

लेखक पाकिस्तान में एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल है @nailainayat. व्यक्त विचार निजी हैं.


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