ये भारत-पाकिस्तान के बीच नई नई मिलनसारी का मामला नहीं है, बल्कि बात दरअस्ल ये है, कि जब चीनी कम होती है, तो चाय शानदार नहीं होती. पिछले दो सालों में अगर हमने कुछ सीखा है, तो वो ये कि पाकिस्तानी और हिंदुस्तानी दोनों को, चाय में जरा सी भी कमी हो तो वो अच्छी नहीं लगती.
बस, हमारे वज़ीरे आज़म ने इस बारे में कुछ करने का फैसला किया है. सरकार की तरफ से भारत के साथ कारोबार पर लगी पाबंदी हटाए जाने के बाद, पाकिस्तान भारत से 5 लाख टन सफेद चीनी, कपास और धागा, आयात करने के लिए तैयार है. अगस्त 2019 में धारा 370 हटाए जाने के बाद, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को एक ख़ास दर्जा हासिल था, आपसी व्यापार को स्थगित कर दिया गया था. जो हो गया सो हो गया, भारत हमारा नया शुगर डैडी है.
उसके बाद से अब तक जो हुआ, वो किसी से छिपा नहीं है. लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात ये है, कि पाकिस्तान में कुछ हो ही नहीं रहा है. ऐतिहासिक रूप से, पाकिस्तान में कोई भी राजनीतिक सरकार, जो भारत से बेहतर रिश्तों की उम्मीद भी करती है, उसके खिलाफ ग़द्दारी का फतवा जारी कर दिया जाता है. लेकिन क्या हम किसी को वज़ीरे आज़म से ये कहते सुन रहे हैं ‘मोदी का जो यार है ग़द्दार है?’ नहीं, क्योंकि अब जो लोग हुक्म देने वाले हैं, और जो हुक्म मानने वाले हैं, उनकी सोच एक ही है. इसलिए भले ही भारत से चीनी आयात करने का फैसला, उस बड़े चीनी घोटाले की प्रष्ठभूमि में लिया गया हो, जिसमें कथित रूप से पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के एक लीडर, और उनका परिवार शामिल हैं, जो ख़ामोश हैं और सराहना कर रहे हैं, कि भारत से दोस्ताना नया राष्ट्रीय हित है.
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तब और अब
अगर नवाज़ शरीफ इस वक़्त प्रधानमंत्री होते, तो पाकिस्तानियों को प्राइम टाइम न्यूज़ टेलीविज़न पर, दिन रात बताया जाता कि कैसे कई रॉ एजेंट्स उनकी चीनी मिल में भर्ती किए गए; किस तरह भारत से व्यापारिक समझौते करके, शरीफ भारत और यहूदी दोनों लॉबियों को ख़ुश करते हैं. अब, एक हज़ार दिन के बाद, पाकिस्तानी नेतृत्व वही कह रहा है, जो पहले भी कहा जा चुका है: अपने घर को दुरुस्त कीजिए या फिर अंतर्राष्ट्रीय अलगाव का सामना कीजिए. लेकिन बेशक, 2021 में, इसे एक ‘अच्छा’ दुरुस्त घर समझा जाना चाहिए; 2016 में, ये एक ‘ख़राब’ दुरुस्त घर था. शरीफ अभी भी पूछ सकते हैं, कि अगर पाकिस्तान को चला रहे वाले सभी समानांतर सिस्टम्स, भारत से कारोबार करना चाहते थे, तो फिर ‘मुझे क्यों निकाला?’
‘अब क्या करना है?’ ये सवाल वो सब पाकिस्तानी कर रहे हैं, जो हर जुमे को दोपहर 12 से 12.30 बजे के बीच, कुछ न करके बस इमरान ख़ान के हुक्म पर खड़े रहकर, कश्मीरियों के साथ एकजुटता दिखा रहे थे. क्या वो सब अब बैठ सकते हैं, क्योंकि ख़ान सरकार लेटने के मूड में है? वो सब लोग जो गा रहे थे ‘इंडिया जा जा, कश्मीर से निकल जा’, जानना चाहते हैं कि क्या वो, अब ये गाना बंद कर सकते हैं. पीएम की मंशा बिल्कुल सही थी, जब उन्होंने कहा था कि कश्मीर के लिए, वो किसी भी हद तक जा सकते हैं. दो साल के अंदर सिर्फ इतना हुआ, कि हाई कमिश्नर को दिल्ली से बुला लिया गया, जो पहले से ही दिल्ली में नहीं थे. या हिंदुस्तानी फिल्मों को बैन कर दिया गया. या वज़ीरे आज़म की तरफ से सर्जिकल स्ट्राइक, जिसमें उन्होंने अपने ट्विटर पर एक काली डिसप्ले पिक्चर लगा ली. वो सब मोदी-हिटलर ट्वीट्स कभी मत भूलिए, प्लीज़. गंभीरता दिखाई गई और यक़ीन कीजिए, कि इसे हर उस शख़्स ने देखा, जो ख़ान सरकार को लेकर गंभीर था. ख़ान के लिए अब मोदी कोई ‘फासिस्ट’ या ‘छोटा’ आदमी नहीं है, अब वो ‘एक्सिलेंसी’ हैं. बात कीजिए भू-रणनीतिक बदलते रिश्तों की.
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हाईब्रिड भावनाएं
कुछ इमरान ख़ान समर्थक ऐसे हैं, जो अब चकराए हुए हैं कि नरेंद्र मोदी, अब भी कोई हिटलर या फासिस्ट हैं या नहीं, जो उनके प्रधानमंत्री ने उन्हें सिखाया था. क्योंकि पाकिस्तान डे पर एक पत्र पर उछलना, और मोदी का ‘गेट वेल सून’ ट्वीट ही आज का रिवाज है. सच में भ्रमित करने वाला समय है.
ये कनफ्यूज़न फैलकर केंद्रीय मंत्रियों तक पहुंच गया है, जो दो साल से भारत के खिलाफ सियासी लफ़्फ़ाज़ी बघारते आ रहे हैं. और अब इस नए लेन-देन पर अमल करने के हुक्म के साथ, वो दरअसल समझ नहीं पा रहे, कि उन्हें शेख़ी बघारनी चाहिए, या ख़ुश होना चाहिए. हाईब्रिड हुकूमत के लिए थोड़ी हाईब्रिड भावनाएं.
बड़े हितों के साथ बड़ी ज़िम्मेदारी भी आती है. इसलिए अब नए माहौल में, हम ये बताए जाने के लिए तैयार हैं, कि ये यक़ीनन पाकिस्तान के बड़े हित में है, कि कोविड-19 वैक्सीन, टमाटर, प्याज़, और अदरक भारत से आयात किए जाएं. अब कोई मोदी का यार 2.0 नहीं है. बल्कि, राज्य के न्यूज़ एंकर्स की मदद से, यही शासक कल लोगों को यक़ीन दिला देंगे, कि पाकिस्तान भारत से क़र्ज़ लेगा, जो उनके मुल्क के हित में हैं.
हम साज़िश की ये कहानियां सुनने के लिए भी तैयार हैं, कि कैसे भारत से खाद्य पदार्थों का आयात, पाकिस्तान की ओर से अगली पीढ़ी का युद्ध है, जिसके नतीजे में भारत में खाने का अभाव पैदा हो जाएगा. अगर ऐसा न हो, तो चौंकिएगा मत.
अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद, जब पाकिस्तान ने भारत के साथ कूटनीतिक रिश्तों का दर्जा घटा दिया, और आपसी व्यापार बंद कर दिया, तो ये वादा किया गया, कि जब तक भारत अपने फैसले को वापस नहीं लेता, तब तक कोई भी चीज़ वापस सामान्य नहीं होगी. अब चूंकि हम गुफाओं में रहते हैं, इसलिए हमें पता ही नहीं चला कि भारत ने, 5 अगस्त 2019 को उठाए गए अपने क़दम को कब वापस खींच लिया, जिससे पाकिस्तान सरकार फौरन हरकत में आ गई. ये कहना सुरक्षित रहेगा कि इमरान ख़ान सरकार के लिए, विदेश नीति की ये एक और जीत है.
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