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Thursday, 5 December, 2024
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इमरान खान दुखी हैं, विश्वास मत चाहते हैं लेकिन विपक्ष को उन्हें सत्ता से हटा पाने की उम्मीद

चुनावी हार के बाद एकदम एक्शन में आई पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी ने ऐलान किया है कि प्रधानमंत्री संसद में विश्वासमत हासिल करेंगे, विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने इसे ‘पाकिस्तान में लोकतंत्र के लिए दुखद दिन’ करार दिया है.

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चुनावी मौसम है और यह कुछ वीडियो लीक किए जाने का एक कारण भी है. ये तो रहा सीमा के इस तरफ का हाल, आपके यहां क्या हथकंडे आजमाए जाते हैं? बहरहाल, इतना तो तय है कि कुछ लड़ाइयां वीडियो लीक करके नहीं जीती जा सकतीं. टेस्ट केस के तौर पर इस्लामाबाद सीनेट सीट पर पाकिस्तानी विपक्ष की तरफ से किए गए बड़े उलटफेर को ही ले लीजिए, जहां पाकिस्तान डेमोक्रेटिक अलायंस के यूसुफ रजा गिलानी ने वित्त मंत्री हाफिज शेख को पांच वोटों से हरा दिया. इस जीत को प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार और उसकी नीतियों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के तौर पर देखा जा रहा है.

चुनावी हार के बाद एकदम एक्शन में आई पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी ने ऐलान किया है कि प्रधानमंत्री संसद में विश्वासमत हासिल करेंगे, विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने इसे ‘पाकिस्तान में लोकतंत्र के लिए दुखद दिन’ करार दिया है. हमें बताया गया है कि अब वो समय आ गया है जहां आप या तो इमरान खान के साथ हैं या फिर उनके खिलाफ हैं.

वैसे तो सत्ताधारी पीटीआई बुधवार को 18 नई सीटें हासिल करने के साथ संसद के ऊपरी सदन में बहुमत वाली पार्टी बन गई है, लेकिन उसकी चिंता का कारण यह है कि सरकार को जिस इस्लामाबाद सीट पर जीत हासिल करने के लिए 180 वोट होने का पूरा भरोसा था, वह अब उसके हाथ से खिसक चुकी है. यही नहीं प्रधानमंत्री की तरफ से विश्वासमत हासिल करने का ऐलान उनकी कुर्सी जाने का कारण भी बन सकता है. यदि वे बच भी जाते हैं तो भी पहले की तुलना में ज्यादा कमजोर हो जाएंगे. और यही बात सेना का समर्थन मिलने या न मिलने के साथ है. अब इमरान खान एक खतरनाक विकेट पर खेल रहे हैं.

विपक्ष ने ताकत दिखाई

यह विपक्षी गठबंधन के लिए राजनीतिक अवधारणा की जीत है. उसे चोर, भ्रष्ट माफिया, गद्दार तक करार दिया गया और नया पाकिस्तान बनाने में ‘बाधा’ बनने को लेकर घेरा और फटकारा भी गया. पूर्व प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी और अब पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के एक सीनेटर के तौर पर उनकी जीत ने एक नई सुबह की इबारत लिख दी है. एक ऐसी सुबह जहां सेना को अब ‘तटस्थ’ माना जाता है और विपक्ष को लगता है कि उसे अपनी राजनीति के लिए थोड़ी जगह मिली है. यह जीत सड़कों पर उतरने, असेंबली से इस्तीफा देने और फिर से चुनाव कराने की मांग, जिन्हें इमरान खान को सत्ता से बेदखल करने की पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीर की रणनीति का हिस्सा माना जाता है, के बजाय विधानसभा के अंदर से ही बदलाव लाने—अविश्वास प्रस्ताव के जरिये सरकार बदलने—के पूर्व राष्ट्रपति आसिफ ज़रदारी के विचार को मजबूती देती है. यानी कि कुल मिलाकर मार्च में प्रस्तावित लॉन्ग मार्च की जरूरत नहीं पड़ेगी?

हम अब सीनेट चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने को लेकर इमरान खान सरकार की हड़बड़ाहट समझ पा रहे है. यह सब पार्टी को ये अहसास होने के साथ शुरू हुआ था कि प्रांतीय और नेशनल असेंबली में पीटीआई के असंतुष्ट सदस्य ‘तब्दीली’ के मंसूबे पाले बैठे हैं. और ऐसे में मोटी-मोटी रकम चुकाकर वोटों की खरीद-फरोख्त करने के बजाये इसको लेकर हायतौबा मचाने से बेहतर कोई उपाय नहीं था. यह न तो पहली बार है और न ही आखिरी बार होगा जब सांसदों ने पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर वोट दिया. हर सत्ताधारी पार्टी में बड़ी संख्या में अवसरवादी होते हैं और इमरान खान की पीटीआई भी इससे अछूती नहीं है. लेकिन इस बार यह सदस्यों को दूसरे पाले में जाने से रोकना चाहती थी और इसलिए ऑपरेशन शुरू किया गया.

सबसे पहले तो सरकार की तरफ से गोपनीय मतपत्र के बजाय ओपन वोट के जरिये सीनेट चुनाव कराने के लिए अध्यादेश लाया गया, जिसे राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने मंजूरी दे दी. दो साल पहले एक सीनेटर का वोट खरीदने के लिए पीटीआई नेताओं की तरफ से रिश्वत देने का एक वीडियो लीक हो गया था—तब पीटीआई नेताओं ने इस वीडियो का इस्तेमाल गुप्त मतदान की खामियां उजागर करने के तौर पर किया था. प्रधानमंत्री इमरान खान, जिनकी खुद की पार्टी इस पूरे मामले में घिरी पाई गई थी, इस बार वोट खरीदने को ऐसा एक बुरा कृत्य बता रहे थे, जैसे दो साल पहले वह कुछ भी नहीं जानते थे. हालांकि, इस अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिसने गुप्त मतदान को बरकरार रखा, और इस तरह से सरकार की सारी उम्मीदें धराशायी हो गईं. मतदान गोपनीय मत्रपत्रों के जरिये ही हुआ.


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यह सारी कवायद किस वजह से

गिलानी ने आखिरकार वित्त मंत्री हाफिज शेख को हरा दिया. अब, शेख को आमतौर पर ‘आईएमएफ मैन’ (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में पाकिस्तान की ओर से पक्ष रखने वाले) के तौर पर जाना जाता है, लेकिन हम उन्हें उस व्यक्ति के रूप में सबसे ज्यादा याद करते हैं, जिसने हमें उस वक्त 17 रुपये प्रति किलो के हिसाब से टमाटर मुहैया कराए जब उनके दाम 320 रुपये के पार पहुंच गए थे. यदि शेख अब मंत्री नहीं बने रह सकते हों तो वह पीएम के सलाहकार बन सकते हैं. कोई भी हार आखिरकार आईएमएफ से तो बड़ी नहीं हो सकती.

आखिरी क्षण तक हार न मानने के नीति वाक्य पर पूरी तरह अमल किया गया और नतीजा, चुनाव की पूर्व संध्या पर एक और वीडियो लीक हो गया. इसके पीछे इरादा विपक्षी उम्मीदवार—गिलानी—को अयोग्य घोषित कराने का था. लीक वीडियो में गिलानी का बेटा एक पीटीआई सदस्य को अपना वोट बर्बाद करने का सुझाव देते देखा गया. पीटीआई गिलानी को अयोग्य घोषित करने की मांग करते हुए चुनाव आयोग के पास पहुंची, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. चुनाव आयोग पिछले कुछ समय, खासकर पिछले महीने दसका में उपचुनाव के बाद, से सरकार के ज्यादा खुश नहीं है, जहां 23 मतदान अधिकारी वोटों की गिनती का समय आने से ऐन पहले गायब हो गए थे.

हां, पूर्व मे मतपत्र गायब होने के पर्याप्त रिकॉर्ड हैं, लेकिन यहां तो मतपत्रों के साथ अधिकारी ही गायब हो गए थे—और फिर अगले दिन इस बहाने के साथ लौटे कि वे धुंध में भटक गए थे. इन सब तरीकों से ही सपने पूरे किए जाते हैं. दसका में फिर से चुनाव की घोषणा हुई. कुछ को लगा कि चुनाव आयोग ने डटकर खड़ा होना दिखा दिया है; दूसरों ने माना कि सेना तटस्थ हो गई है. आखिरकार, अगर कोई उम्मीद न हो तो जीवन और राजनीति में रखा ही क्या है.

पीटीआई को उम्मीदवारों के चयन में जबर्दस्त अंतर्कलह का सामना करना पड़ा. एक प्रमुख सदस्य थे संघीय मंत्री फैसल वावदा थे, जो दोहरी नागरिकता के मामले का सामना कर रहे हैं. ये वही मंत्री हैं जिन्होंने एक न्यूज शो के दौरान अपना बूट दिखाया था. बुधवार को उन्होंने अपना बूट दिखाए बिना वोट डाला, और नेशनल असेंबली से इस्तीफा दे दिया—यह सब 15 मिनट के अंतराल पर हुआ और शाम को वह सीनेटर बन चुके थे. हालांकि, इस्लामाबाद हाई कोर्ट पर इस सबका कोई खास असर नहीं पड़ा और उसने उन्हें दोहरी नागरिकता के मामले गलत हलफनामा पेश करने का जिम्मेदार माना, और चुनाव आयोग को उनके खिलाफ कार्रवाई का निर्देश दे दिया.

सफलता है या नहीं?

बताया गया था कि सीनेट चुनाव की सारी तैयारियों पर पीएम इमरान खान खुद नजर रखेंगे. कैसे? ये मत पूछो. चुनाव के दिन कश्मीर समिति के अध्यक्ष शहरयार अफरीदी ने तो अपना वोट ही खराब कर दिया क्योंकि उन्होंने मतपत्र पर अपना नाम लिख दिया था. उनके फिर से वोट डालने देने के अनुरोध को ठुकरा दिया गया. तो तैयारी ऐसी थी कि शायद अफरीदी को लगा कि वह ऑटोग्राफ दे रहे हैं. कल्पना कीजिए कि सरकार कश्मीर जैसे पेचीदा मामले में उन पर कैसे भरोसा करती है? और विपक्ष की अटकलें तो यहां तक बताती हैं कि पर्यावरण मंत्री जरताज गुल के साथ-साथ प्रधानमंत्री इमरान खान का वोट भी बर्बाद हो गया था. हैरानी होगी, अगर यह गलत हो. इससे पता चलता है कि इमरान खान ने अपने साथियों को सुपर ओवर में नो-बॉल करने के लिए कितनी अच्छी तरह प्रशिक्षित किया था. कोई अचरज की बात नहीं, जैसा पीटीआई सदस्य ने कहा, अगर इमरान खान ने उन्हें गधे को वोट करने के लिए कहा होगा तो उन्होंने ऐसा किया भी होगा.

अब यह तो वक्त ही बताएगा कि विश्वासमत के बाद इमरान खान का क्या होगा. लेकिन पिछले 24 घंटे अगर हमें कुछ बता रहे हैं तो सिर्फ यही है कि दूसरी तरफ से बदलाव की बयार चलने लगी है. यदि खान सरकार बचा लेते हैं तो फिर हम समझेंगे कि यह सब कैसे हुआ—ये नहीं कि जैसा फर्स्ट लेडी बुशरा इमरान ने हमें बताया है कि हर सफल व्यक्ति के पीछे उसकी पत्नी का हाथ होता है. अब कामयाब होने के लिए इमरान खान को अपने चयनकर्ताओं के रहमो-करम की जरूरत है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखिका पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह @nailainayat हैंडल से ट्वीट करती हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)


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