scorecardresearch
Thursday, 21 November, 2024
होमएजुकेशन'हो सके तो गांव में एक स्कूल बनवा दें': कैसे मेरठ की इस लड़की का सपना पूरा हुआ

‘हो सके तो गांव में एक स्कूल बनवा दें’: कैसे मेरठ की इस लड़की का सपना पूरा हुआ

जैनब आज भी नेहरू युवा केंद्र के साथ मेरठ और आस-पास के गांवों और युवाओं को सकारात्मक गतिविधियों से जोड़ने में जुटी है. और हां वो आज भी गांव की पहली लड़की है जिसने मास्टर्स पूरी की है.

Text Size:

पढ़ने में ऐसा लगेगा की सरकारी स्कूल बनने में क्या नई बात है. देशभर में सरकारी और प्राइवेट स्कूल बनते और बंद होते रहते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद के चन्दौरा गांव में बने राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की एक अलग ही दास्तां है. इसी साल सितंबर में शुरू हुआ ये स्कूल एक लड़की की जिद, साहस और अपने क्षेत्र की हर लड़की खासकर मुस्लिम लड़कियों को उच्च शिक्षा से जोड़ने के सपने का मूर्त रूप है.

लगभग 14 साल पहले इस लड़की से मेरी मुलाकात उसके गांव में हुई थी जब वो अपने मां-बाप के साथ फुटबॉल सिलने का काम किया करती थी. तब ये 9-10 साल की रही होगी. मैं बाल मजदूरी के खिलाफ एक अभियान के सिलसिले में मेरठ के इस गांव में लोगों से मिल रहा था और बच्चों खासकर लड़कियों को काम की बजाय स्कूल जाने के लिए प्रयास कर रहा था.

इस बच्ची ने कहा कि पांचवी तक पढ़ भी लेंगे तो क्या होगा? उसके बाद तो स्कूल ही नहीं है फिर कहां जायेंगे? दसवीं तक का स्कूल 15 किलोमीटर दूर है और हमारे मां बाप हमें कभी वहां अकेले नहीं भेजने वाले.

इस बच्ची का नाम भी सरकारी स्कूल के रिकार्ड में कक्षा 4 में दर्ज था पर उसके मां-बाप उसे फुटबॉल सिलने के काम में लगाये रखते थे. वो कभी-कभार ही स्कूल जाया करती थी. काफी मान मनौवल और समझाने के बाद उसके परिवार वाले उसे काम की बजाय लगातार स्कूल भेजने पर राजी हुए. लड़की को भी पढ़ने में मजा आने लगा और वह कक्षा पांच पास करने वाली गांव की पहली लड़की बन गयी.

किसी तरह लड़की के पिता उसे भाई के साथ 15 किलोमीटर दूर स्थित सरकारी स्कूल में भेजने को राजी हुए और दसवीं पास करनी वाली भी वो गांव की पहली लड़की बन गयी. सबसे बड़ी बात यह थी कि उसने यह सुनिश्चित किया कि उसके गांव की हर लड़की स्कूल जाए जिसके चलते पिछले 10 सालों में 4,000 से अधिक लड़कियों ने फिर से स्कूल जाना शुरू किया.

मेरठ जनपद के चन्दौरा गांव में बने राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय | फोटो: विशेष प्रबंध

यह भी पढ़ें: ‘गायक जी’- स्टार प्रचारकों से पहले ये गुमनाम सितारे UP चुनावों में बांधते हैं समां


स्कूल को लड़कियों के पास लाने की वकालत

इस बीच 2009-2010 के दौरान शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाने के लिए स्वयंसेवी संगठन विभिन्न स्तरों पर प्रयास कर रहे थे. इसी क्रम में हम बच्चों के साथ जाकर दिल्ली के नॉर्थ एवेन्यू और साउथ एवेन्यू स्थित सांसदों से मिल रहे थे और शिक्षा अधिकार विधेयक को संसद में पास करवाने के लिए जोर लगा रहे थे.

इस अभियान के दौरान भी यह लड़की (जैनब) लगभग 45 सांसदों से मिली और सभी ने उसकी बात ध्यान से सुनी. वो लड़कियों के स्कूल जाने के लिए स्कूल को लड़कियों के पास लाने की पुरजोर वकालत कर रही थी. साथ ही शिक्षा को मौलिक अधिकार बना उसके निशुल्क और गुणवत्तापूर्ण होने के लिए भी सांसदों को समझा रही थी.

जब 1 अप्रैल 2010 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा कानून को लागू किया तो इस लड़की ने उन सभी 45 सांसदों को धन्यवाद पत्र लिखा और कुछ सांसदों ने उसके धन्यवाद पत्र का लिखित जवाब भी दिया.

राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय | विशेष प्रबंध

यह भी पढ़ें: नागालैंड में हुई हत्याओं ने दिखाया है कि AFSPA की कैसे लत लग चुकी है, क्या मोदी सरकार इसे हटाने की हिम्मत करेगी


‘हो सके तो गांव में स्कूल बनवा दें…’

2015 में एक अखबार समूह द्वारा उत्तर प्रदेश में विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर काम करने वाली महिलाओं को सम्मानित करने के लिए लोगों से नॉमिनेशन मंगाए गए. तब तक इस लड़की की उम्र 18 वर्ष नहीं हुई थी. फिर भी मैंने इस लड़की के द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किये गए काम को लिखकर, इसके लिए आवेदन किया.

आश्चर्य की बात है कि उस अखबार समूह ने इस लड़की के कामों को पढ़कर अवॉर्ड की एक नई श्रेणी घोषित कर इसे विशेष पुरस्कार देने के लिए लखनऊ आमंत्रित किया.

अवॉर्ड समारोह के दौरान उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मंच पर मौजूद थे. इस लड़की ने मुझसे पूछा कि जिन लोगों को सिर्फ टीवी या अखबार में देखते हैं, उनसे पुरस्कार लेते हुए क्या कहूंगी.

मैंने इस लड़की से कहा कि मुझसे जो पहला सवाल था, उसका जवाब इसी व्यक्ति के पास है. वो समझ गई और उसने अखिलेश यादव से पुरस्कार लेने के दौरान कहा कि उसके गांव में पांचवी के बाद लड़कियों के लिए कोई स्कूल नहीं है, अगर हो सके तो उसके गांव में बारहवीं तक एक स्कूल बनवा दें.

जैनब के प्रयासों से मेरठ में बना राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय | विशेष प्रबंध

मुख्यमंत्री भी ताज्जुब में थे कि जहां हर कोई उनसे कुछ न कुछ अपने लिए मांगता हो वहां यह लड़की अपने गांव के लिए कुछ मांग रही है. यादव ने कहा कि बिल्कुल बनेगा.

जब यह लड़की पुरस्कार समारोह के बाद ट्रेन से वापस मेरठ लौट रही थी तो मुख्यमंत्री कार्यालय से उसके पास फोन आया और उन्होंने गांव का नाम और उसके संबंध में अन्य जानकारी मांगी और फिर स्कूल बनने का काम शुरू हो गया.

ये स्कूल तो 2019 में ही तैयार हो गया था पर कोविड-19 के चलते इसका पहला शैक्षणिक सत्र इस साल सितंबर से शुरू हुआ. जब जैनब ने अपने व्हाट्सएप स्टेटस पर इस स्कूल का और स्कूल जाते बच्चों की फोटो डाली तो पहली मुझे जैनब से ज्यादा गर्व महसूस हुआ. ऐसा लगा कि जैनब का एक सपना कितनी लड़कियों के सपने पूरा करेगा.

जैनब आज भी नेहरू युवा केंद्र के साथ मेरठ और आस-पास के गांवों और युवाओं को सकारात्मक गतिविधियों से जोड़ने में जुटी है. और हां वो आज भी गांव की पहली लड़की है जिसने मास्टर्स पूरी की है. शिक्षा के क्षेत्र में उसके द्वारा किये काम के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने उसे रानी लक्ष्मी बाई वीरता पुरस्कार से भी नवाजा है. योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने भी इस लड़की का कई अवसरों पर सम्मान किया.

(लेखक बाल अधिकारों के क्षेत्र में पिछले दो दशकों से सक्रिय हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(कृष्ण मुरारी द्वारा संपादित)


यह भी पढ़ें: कम ब्याज दरें अल्पकालिक उपाय, महंगाई के बीच घरेलू बचत बढ़ाने के लिए RBI को इन्हें बढ़ाना ही होगा


 

share & View comments