जनसांख्यिकी अधिशेष की अनुकूल स्थिति के मुक़ाबले भारत को प्रशिक्षित श्रमबल की कमी और उचित कौशल के बिना अनियोजित शिक्षित युवाओं की बहुतायत रूपी दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. इससे निपटने के लिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने बहुप्रचारित ‘स्किल इंडिया’ कार्यक्रम को शुरू किया, जो मेक-इन-इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटीज़ और स्टार्टअप इंडिया जैसे अन्य महत्वाकांक्षी योजनाओं के अनुरूप है.
दुनिया के सर्वाधिक युवा राष्ट्रों में से एक भारत, जहां 62 प्रतिशत से अधिक आबादी 15-59 आयु समूह की है, में एक विशाल महत्वाकांक्षी पीढ़ी है. मोदी ने खासकर आबादी के इसी वर्ग को ध्यान में रखते हुए नवंबर 2014 में कौशल विकास एंव उद्यमिता मंत्रालय का गठन किया था.
राष्ट्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता नीति 2015 में भारतीय अर्थव्यवस्था के 24 प्रमुख सेक्टरों में 2022 तक 109.73 मिलियन कुशल लोगों की अनुपलब्धता का अनुमान लगाया गया था. सबसे निचले पायदान पर खड़े ग्रामीण भारत के 18-34 आयु समूह के 55 मिलियन लोगों को नज़रअंदाज़ कर इस खाई को पाटना असंभव होगा.
विशेषकर ग्रामीण युवाओं के कौशल और रोज़गार संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए मोदी सरकार ने 25 सितंबर 2014 को दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (डीडीयू-जीकेवाई) आरंभ की थी. इस योजना का उद्देश्य है ग्रामीण निर्धनों को आय के अतिरिक्त विकल्प उपलब्ध कराना और युवाओं की रोज़गार की आकांक्षा को पूरा करना.
इस संबंध में कौशल विकास पर केंद्रित एक पारिस्थितिकी निर्मित की जा चुकी है जिसमें ग्रामीण विकास मंत्रालय, राष्ट्रीय मिशन प्रबंधन इकाई, राज्य स्थित मिशन, परियोजना कार्यान्वयन एजेंसियां (पीआईए) या प्रशिक्षण सहभागी और तकनीकी सहयोग एजेंसियां शामिल हैं. डीडीयू-जीकेवाई की एक अनूठी विशेषता है इंटर्नशिप और उद्योगों में सहभागिता, जिसके कारण प्रशिक्षित उम्मीदवारों में से कम-से-कम 70 प्रतिशत को न्यूनतम 6,000 रुपये मासिक वेतन पर रोज़गार सुलभ कराना संभव हो पाया है.
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डीडीयू-जीकेवाई के प्रावधानों के तहत उम्मीदवारों में 50 प्रतिशत एससी/एसटी समुदाय से, 15 प्रतिशत अल्पसंख्य वर्ग से और 3 प्रतिशत विकलांग वर्ग के होने चाहिए. कुल उम्मीदवारों में से एक तिहाई महिलाएं होनी चाहिए.
परियोजना कार्यान्यवयन एजेंसियों द्वारा उम्मीदवारों को दिया जाने वाला प्रशिक्षण न्यूनतम तीन महीने से लेकर अधिकतम एक साल का होता है, और इसमें रोज़गार के साथ ट्रेनिंग की भी व्यवस्था है. योजना के प्रावधानों के अनुसार व्यक्तित्व विकास, व्यावहारिक अंग्रेज़ी और कंप्यूटर साक्षरता पर केंद्रित 160 घंटों के प्रशिक्षण की व्यवस्था है. इसके अतिरिक्त, ‘वर्क रेडीनेस ट्रेनिंग’ वाला आखिरी मॉड्यूल यह सुनिश्चित करता है कि प्रशिक्षु नौकरी के लिए बिल्कुल तैयार स्थिति में हों.
प्रशिक्षण के बाद हासिल की गई कुशलता का किसी तीसरे स्वतंत्र पक्ष से आकलन कराया जाता है. इसकी व्यवस्था भी सरकार ही करती है. इसके बाद सफल प्रशिक्षुओं को सरकार द्वारा मान्य कौशल सर्टिफिकेट दिए जाते हैं. यदि प्रशिक्षण के बाद कोई प्रशिक्षु लगातार तीन महीने रोज़गार में रहता है तो मान लिया जाता है कि उसका ‘प्लेसमेंट’ हो गया. पर, प्लेसमेंट के बाद भी उम्मीदवारों को अगले करीब एक वर्ष तक अतिरिक्त सहयोग दिया जाता है.
22 साल के ऐजाज़ अहमद डार जम्मू कश्मीर के बडगाम जिले के ग्रामीण इलाके से आते हैं. ड्राइवर का काम करने वाले उनके पिता को घर चलाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती थी. नौकरी लायक कौशल के अभाव और राज्य में राजनीतिक अस्थिरता के चलते ऐजाज़ घर में बेरोज़गार बैठे हुए थे. एक दोस्त से उन्हें जीकेवाई योजना की जानकारी मिली. ऐजाज़ को होटलों की नौकरी बहुत पसंद थी, सो उन्होंने इससे संबंधित एक कोर्स करने का फैसला किया.
ऐजाज़ ने मुझे बताया, ‘मैंने ओरायन एडुटेक प्राइवेट लिमिटेड में एक कौंसलिंग सत्र में भाग लिया. उन्होंने मेरे रुझान का आकलन किया. रोज़गार संबंधी प्रशिक्षण के अलावा उन्होंने हमें व्यक्तित्व विकास की भी ट्रेनिंग दी जो कि बहुत उपयोगी थी. मुझे मॉक इंटरव्यू का भी अनुभव कराया गया जो नौकरी के साक्षात्कार के लिए बहुत ही उपयोगी साबित हुआ.’
ऐजाज की मेहनत रंग लाई और उन्हें श्रीनगर में केंटुकी फ्राइड चिकन (केएफसी) के एक रेस्तरां में फ्रंट ऑफिस एसोसिएट की नौकरी मिल गई. उन्हें 14,700 रुपये प्रतिमाह का अच्छा वेतन मिलता है, और इसकी बदौलत वे अपने परिवार का सहारा बन सके हैं.
देश के दूसरे छोड़ पर मणिपुर के नुंगसाई चिरू गांव के निवासी के.एस. पारलेन चिरू की भी ऐसी ही कहानी है. उन्होंने बताया, ‘’मेरे पिता 60 साल के हैं और मां भी 55 साल से ऊपर की है. मुझसे छोटे तीन भाई-बहन हैं, जिनकी ज़िम्मेदारी एक तरह से मेरे ऊपर आती है. बारहवीं की पढ़ाई करने के बाद मैं कोई ढंग की नौकरी कर अपने परिवार की मदद करना चाहता था. पर, ऐसी कोई नौकरी मिलना असंभव था.’ वह जब इस मनोदशा में थे तभी थिंकस्किल कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड की एक टीम गांव के दौरे पर आई. चिरू ने टीम के पास उपलब्ध कोर्सों में से खाद्य एवं प्रबंधन का कार्यक्रम चुना.
उन्हें संचार, आईटी और सेवा के बारे में तीन महीने की गहन ट्रेनिंग दी गई. इसके बाद उन्हें इंटरव्यू के लिए भेजा गया. वह कहते हैं, ‘बता नहीं सकता मैं बेंगलुरू के टैको बेल में स्टीवार्ड की नौकरी के लिए स्काइप से हुए इंटरव्यू में कितना नर्वस था.’ पर, चिरू इंटरव्यू में उत्तीर्ण घोषित हुए और वह नौकरी के लिए बेंगलुरू आ गए. उन्हें प्रतिमाह 13,730 रुपये का वेतन मिलने लगा, साथ ही खाना और रहने की सुविधा मुफ्त में.
कुछ ही महीनों के भीतर वह टैका बेल के सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी का पुरस्कार पा चुके थे. वह कहते हैं, ‘मैंने सोचा तक नहीं था कि मैं जीवन में सफल भी होऊंगा. कौशल्य योजना के कारण मेरा जीवन पूरी तरह बदल गया. मैं पैसे बचाकर घर भेजता हूं. मैं अब टैको बेल में ही अगले पद पर प्रोन्नति चाहता हूं, मैं और पढ़ाई करने के लिए पैसे भी बचाना चाहता हूं. मैं मानता हूं कि ये संभव है.’ अंतिम पंक्ति कहते हुए उनके चेहरे पर चमक साफ झलती है.
राजस्थान में उदयपुर की 23-वर्षीया संतोष भटनागर दसवीं पास हैं. आर्थिक अभाव में वह आगे नहीं पढ़ सकीं. उन्होंने एनआईएफए उदयपुर में एक कौशल विकास कोर्स में दाखिला लिया, जहां उन्हे परिधान सिलाई का काम सिखाया गया, और साथ ही कंप्यूटर की बुनियादी ट्रेनिंग एवं व्यक्तिगत विकास का प्रशिक्षण दिया गया. कोर्स करने के बाद उन्हें मोनेटरी सॉल्युशंस में सिलाई मशीन ऑपरेटर की 12,500 रुपये मासिक की नौकरी मिल गई.
संतोष कहती हैं, ‘ना सिर्फ मैं आर्थिक रूप से सशक्त हूं, बल्कि मेरा आत्मविश्वास भी बढ़ गया है. मेरे साथ ट्रेनिंग सेंटर में और भी महिला प्रशिक्षु मिली थीं और उनमें से सभी को नौकरी मिल चुकी है. हम परस्पर मिलकर अपने अनुभवों को साझा करते रहते हैं. हमारे शिक्षकों ने प्लेसमेंट के बाद भी कई महीनों तक हमारा साथ दिया. वे हमारी नौकरी के बारे में पूछते रहते थे. पहले मेरा सामना जिस निराशावाद से था, वो विदा ले चुका है. और मुझे उम्मीद है कि यदि मैंने काम करते हुए अगले कुछ वर्षों तक पैसे बचाए तो मैं स्नातक स्तर तक पढ़ाई जारी रख सकती हूं.’
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हरियाणा की 26-वर्षीय नीरज की बड़ी बहन से बात करना एक भावनात्मक अनुभव था. ना सिर्फ बचपन में ही नीरज के सिर से मां-बाप का साया उठ गया, बल्कि उन्हें बोलने और सुनने में भी परेशानी है. उनकी बहन कहती हैं, ‘हमने बहुत दयनीय ज़िंदगी देखी है. मैं ही नीरज की देखभाल करती थी. पर एक समय आ गया जब उसे खुद अपने पैरों पर खड़ा होना, अपनी ज़िंदगी को संभालना था. मुझे रेडियो से जीकेवाई योजना की जानकारी मिली और मैंने इसमें उसका नाम लिखवा दिया.’ दो महीनों तक नवज्योति ग्लोबल सोल्युशंस प्राइवेट लिमिटेड में नीरज को गहन प्रशिक्षण दिया गया. प्रशिक्षण के बाद मार्च 2018 में उन्हें लेमन ट्री होटल्स में सेल्स एसोसिएट की नौकरी मिल गई. वह प्रतिमाह 12,500 रुपये कमा रहे हैं.
ये डीडीयू-जीकेवाई योजना से जुड़ी प्रेरक कहानियों की बानगी मात्र हैं. आरंभ होने के बाद से यह योजना 21 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में विस्तार पा चुकी है, और यह 568 जिलों के 6,215 प्रखंडों में युवाओं का जीवन संवार रही है. ताज़ा आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण कौशल्य योजना के तहत 300 सहभागी एजेंसियों की मदद से 82 औद्योगिक सेक्टरों के 330 व्यवसायों के बीच 690 से ज़्यादा परियोजनाओं का कार्यान्वयन किया जा चुका है. इस अवधि में 5,600 करोड़ रुपये के निवेश से 2.7 लाख से ज़्यादा उम्मीदवारों को प्रशिक्षित किया गया, जिनमें से 1.34 लाख उम्मीदवारों को रोज़गार मिल भी चुका है.
ग्रामीण कौशल्य योजना इस बात का प्रमाण है कि महज कुछ महीनों के प्रशिक्षण, कड़े परिश्रम और सही पारिस्थितिकी के सहारे ना सिर्फ हमारे युवाओं में आवश्यक कौशल विकसित किए जा सकते हैं, बल्कि गरिमा, आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता भरी ज़िंदगी जीने के लिए उन्हें सशक्त भी बनाया जा सकता है.
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(यह नरेंद्र मोदी सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों से लेखक की बातचीत पर आधारित श्रृंखला की सातवीं कड़ी है.)
(लेखक एक इतिहासकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं. वर्तमान में वह नेहरू स्मृति संग्रहालय और पुस्तकालय में सीनियर रिसर्च फेलो हैं.)