कौन बनेगा करोड़पति के दसवें सीजन का फिनाले सोमवार को प्रसारित किया गया. भारतीय समयानुसार 10 बजकर 26 मिनट शो को होस्ट करते हुए अमिताभ बच्चन ‘भावुक’ हो गए और 11 बजकर 4 मिनट पर अपने फैंस और दर्शकों को ‘अलविदा’ कहा जी हाँ इस फिनाले का लाइव ब्लॉग भी किया गया था.
पिछले 18 सालों से (थोड़े बहुत अंतराल के साथ) यह कार्यक्रम बड़ी संख्या में दर्शक बटोर चुका है. पिछले ही साल बतौर गेस्ट अभिषेक बच्चन वाले एपिसोड को ही 3 करोड़ 71 लाख से भी ज़्यादा बार देखा गया.
उन लोगों के ‘कौन बनेगा करोड़पति’ (केबीसी) के लगाव को समझ पाना मुश्किल है. जो 2000 के दशक की शुरुआत में नहीं पले-बढ़े हैं.
वो दिन हुआ करते थे जब डायल अप इंटरनेट इतना तेज़ नहीं था कि आप सारे जवाब जल्दी से ढूंढ सके और लोग घरों में अपने लिविंग रूम में ही प्रतियोगियों के जज बना करते थे. आप प्रतियोगी के जवाब देने से पहले ही उत्तर देने से खुद को रोक न पाए होंगे या आप ने बिना किसी वजह के प्रतियोगी द्वारा लाइफलाइन के इस्तेमाल पर आपने अपनी आँखों से दुद्कारा जरूर होगा.
केबीसी खासतौर पर महत्त्वपूर्ण है क्योंकि बदलते भारत का एक आइना था. अगर मेरी तरह आप भी केबीसी देखते हुए बड़े हुए हैं, तो आपने भी देखा होगा कि कैसे प्रतियोगियों की कहानियां बदलती थीं और शो उन कहानियों के साथ चलता था. और शो कैसे इन कहानियों से जुड़ जाता था. हम सब जानते थे कि कैसे शो का एक बड़ा हिस्सा स्क्रिप्टेड होता था. लेकिन टीवी पर एक आदमी की ज़िन्दगी बदलते हुए देखने का अनुभव ही कुछ और था. कुछ सालों में शो ने कई बार समय के साथ बदलने की कोशिश की जैसे 2010 में चौथे सीजन में रुपये का नया ₹ चिन्ह लगाया गया लेकिन शो हमेशा वैसा ही रहा अमिताभ बच्चन की स्टेज पर एंट्री, केबीसी का बड़ा सा लोगो और केबीसी की धुन. यही केबीसी कोबड़ा बनाता है.
इन्हीं पुरानी यादों ने हमें शो से जोड़े रखा. केबीसी अब देश में एक घरेलु नाम बन चूका है. शो के नौवें सीजन ने 400 करोड़ रूपये की कमाई की थी. अब हमें पता चल गया कि आखिर में कौन करोड़पति बना.
केबीसी चाहे जितना भी लोकप्रिय क्यों न हो लेकिन केबीसी की भी दर्शकों के प्रति कुछ ज़िम्मेदारी है. (कुछ लोग शायद इससे असहमत हों). जैसे-जैसे स्टेज और ईनामी धनराशि बढ़ती गयी. वैसे-वैसे यह ज़िम्मेदारी घटती गयी. हंसी ठिठोली, मज़ाक और ज़ाहिर तौर पर एजेंडा सेट होते हुए देखना सिर्फ थोड़ा सा अजीब ही नहीं था बल्कि यह बेईमान और निराशाजनक भी था.
केबीसी के शुरुआती सीजन तो काफी रोचक थे और उन्होंने हमारा कई हद तक ज्ञानवर्धन भी किया. लेकिन बाद के सीजनों में बेतुके सवाल आने लग गए. अमिताभ बच्चन ने पूछा, ‘इनमें से किस फिल्मस्टार को अभिनेत्री आलिया भट्ट ने अभी तक नहीं चूमा है?’ खैर इस सवाल ने प्रत्यक्ष रूप से महिला का चरित्र हनन नहीं किया, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से एक महिला के बर्ताव पर सवाल उठना बहुत ही अजीब था.
अमिताभ बच्चन की दर्शकों और प्रतियोगियों के साथ हुई बातचीत भी कुछ इसी प्रकार है. उनको लगता है कि राष्ट्रीय टेलीविज़न पर फूहड़ चुटकुले सुनाना बिलकुल ठीक है. यह बात सिर्फ उनको एक साधारण व्हाट्सऍप अंकल की व्याख्या करते हुए ही नहीं दिखाती बल्कि यह लोगों को ऐसे ही जोक्स बनाने की इजाज़त दे डालने का माहौल तैयार करती है. ज़रा सोचिये कितने लोगों ने आदरणीय बच्चन को यह जोक मारते हुए देखा होगा और उनको लगा होगा कि ऐसे जोक मारना उचित है. हमारे सारे प्रयास जो इन सूक्ष्म, लैंगिक हिंसा को ख़त्म करने में लगते हैं बच्चन के ऐसे जोक मरने पर ढेर हो जाते हैं.
हम में से कितने लोग शरमाते हैं जब वो प्रतियोगियों से पूछते हैं ‘आप शादी क्यों नहीं करना चाहते हैं?’ इस बात का 3,20,000 रुपये के दसवें सवाल का क्या मतलब? हम सिर्फ अचंभित ही हो सकते हैं. भारत में तो शादी का सवाल खास तौर पर भारी होता है और किसी के ऊपर एक दम से इसे ठोक देना सिर्फ अनुचित ही नहीं अपितु बहुत क्रूर होगा.
आखिरकार क्या आपको याद है कि कैसे इस शो की कड़ी निंदा हुई थी. जब इसने कथित तौर पर सत्तारूढ़ पार्टी के प्रवक्ता बनने की कोशिश की थी? यह नौंवे सीजन के कुछ सवाल हैं
जुलाई 2017 में नरेंद्र मोदी कौन से देश में जाने वाले पहले प्रधानमंत्री बने?
उज़्मा अहमद को गोली की नोक पर शादी करने के लिए मजबूर किया गया था. हमारी विदेश मंत्री की मदद से वे किस देश से वापिस भारत आईं?
गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को सरकार की कौन सी स्कीम के तहत एलपीजी कनेक्शन दिलवाया गया?
और बड़े विचित्र तरीके से कैसे एक शो मन की बात के विज्ञापन में तब्दील हो गया? बार-बार शो के डिजीकरण की याद कराते हुए डिजिटल इंडिया को सपोर्ट करने की बात कोई कैसे भूल सकता है? ‘डिजिटल का ज़माना आ गया है’
जिस तरीके से लोगों के बीच बातचीत बदल रही है उसी के अनुसार केबीसी की स्क्रिप्ट भी बदल रही है. अब जो समय अतिश्योक्ति का, अजीबो गरीब ढोंगियों का आ ही गया है, प्रतियोगियों की कहानियां भी कुछ ऐसी ही बनती जा रही हैं. हमारे टीवी पर ऐसी ढेरों कहानियां आती हैं. जिनमें दया जगाने की बातें होती हैं, गर्व महसूस करने की नहीं. लोगों की पीड़ा दर्शाने से इस शो की रेटिंग पर कुछ फायदा तो शायद पहुंचा होगा, लेकिन इसने उस शो को बर्बाद कर दिया, जिसका अर्थ एक पीढ़ी के लिए कुछ और ही था.
ये शिकायतें शायद थोड़ी छोटी हैं. हो सकता ये केबीसी की प्रशंसा के लिए लिखी गयी गीति काव्यों के सामने बौना प्रतीत हों. लेकिन यह समझाना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है कि प्रौढ़, स्मार्ट और बेहतर की मांग करने वाली जनता बढ़ने के साथ-साथ शो की इन के प्रति ज़िम्मेदारी भी बढ़नी चाहिए.
केबीसी एक कड़वा रिमाइंडर है इस बात का कि हर अच्छी चीज़ की एक एक्सपायरी डेट होती है, और यह जानना जरूरी है कि यह तिथि कब आती है. और अगर ये न आए? फिर शो अपने होस्ट अमिताभ बच्चन की तरह ही बन जाता है. एक अवशेष जो फिर से खुद की खोज करता है पर फिर भी अपने आप को ‘वोक’ या जागृत बनने से रोकता है.
लॉक किया जाए?
लेखिका एक कवियत्री हैं
इस लेख का अंग्रेजी से अनुवाद किया गया है. मूल लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.