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Thursday, 18 April, 2024
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नयी परियोजनाओं के लिए कैसी सौदेबाजी करनी पड़ती है चीन के प्रांतों को

चीन के प्रांतीय अधिकारी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं हासिल करने के लिए अपने ‘बीजिंग ऑफ़िसों’ के जरिए मंत्रालयों में पैरवी करते हैं और केंद्र के अधिकारियों को खुश करने के लिए इन ऑफिसों में रेस्तरां, होटल, आदि भी चलाते हैं

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चीन पर लिखने वाले प्रायः इस मुहावरे का खूब प्रयोग करते हैं- चीन में हर काम ‘गुआन्शी‘ यानी निजी संबंध के जरिए होता है. यह बात सही तो है मगर प्रांतीय अधिकारियों और केंद्रीय नौकरशाहों से सौदा करना टेढ़ी खीर ही है.

पेकिंग विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर श्याओ मा का कहना है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी राज्यों को यूं ही फंड नहीं बांटती रहती है. बल्कि राजधानी बीजिंग के खजाने से फंड पाने के लिए उन्हें सौदेबाजी करने की एक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है जिसमें शहरों और प्रांतों को होड़ लगानी पड़ती है.

चीन के प्रांतों और नगरपालिकाओं तक के आला दफ्तर बीजिंग में हैं, जिन्हें देखकर आपको लगेगा कि मानो वे दूसरे देशों के दूतावास हों. उन्हें ‘बीजिंग ऑफिसेज़’ कहा जाता है और वे नयी परियोजनाओं के लिए केंद्र सरकार में पैरवी और सौदेबाजी के काम करते हैं.

हाल तक, प्रांतीय अधिकारी यही जानते थे कि तेज गति वाली रेलगाड़ी जैसे परियोजनाएं लाने का अर्थ है परियोजना पर काम करने वाले डेवलपरों से कमीशन के रूप में भारी आमदनी हासिल करना. स्थानीय अधिकारियों को केंद्र सरकार से परियोजनाएं मंजूर कराने के लिए यह लालच देकर प्रोत्साहित किया जाता था कि उनकी राजनीतिक तकदीर अपने क्षेत्र के लिए परियोजनाएं लाने से किस तरह जुड़ी है.

मा का अनुमान है कि सभी ‘बीजिंग ऑफिसेज़’ का कुल वार्षिक खर्च करीब 10 अरब आरएमबी (1.427 अरब डॉलर) के बराबर है. ये दफ्तर अपनी कमाई के लिए राजधानी में रेस्तरां और होटल चलाकर पूंजी की व्यवस्था करते हैं. रेस्तराओं के मालिक के रूप में प्रांतीय अधिकारी केंद्रीय मंत्रियों के साथ गुप्त रूप से कारोबार करते हैं, जो भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप देता है. 2010 तक स्थानीय सरकारों, स्थानीय सरकारी उपक्रमों, और सामाजिक संगठनों से लेकर विश्वविद्यालयों तक के 10,000 ‘बीजिंग ऑफिसेज़’ काम कर रहे थे.

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विशद कार्रवाई

क्षेत्रीय दफ्तरों का चलन हाण वंश (206 बीसीई-220 सीई) से शुरू हुआ, जब क्षेत्रीय अधिकारियों ने ‘लिउडी’ (निवास के महल) बनाने शुरू किए थे जिनमें हाण वंश की राजधानी का दौरा करने वाले स्थानीय अधिकारी ठहरते थे. लेकिन आधुनिक क्षेत्रीय दफ्तरों का मकसद अलग है. नेटवर्क बनाने में होशियार प्रांतीय अधिकारियों को मालूम है कि ‘बीजिंग ऑफिसेज़’ की कामयाबी केंद्रीय स्तर के अधिकारियों को निशाना बनाकर ही हासिल की जा सकती है.

मा ने ‘लोकलाइज्ड बार्गेनिंग : द पॉलिटिकल इकोनॉमी ऑफ चाइनाज़ हाई-स्पीड रेलवे प्रोग्राम’ में लिखा है, ‘कुछ ‘बीजिंग ऑफिसेज़’ तो अपना बार और कराओके बॉक्सेज़ भी चलाते हैं क्योंकि इनकी मांग ज्यादा है. वे विशेष छुट्टियों पर केंद्रीय अधिकारियों को उपहार भी देते हैं या अपने इलाके में आमंत्रित भी करते हैं.’ ‘बीजिंग ऑफिसेज़’ के करीब के रेस्तराओं में जगह मिलना मुश्किल होता है, क्योंकि प्रांतीय अधिकारियों और मंत्रालयों के आदमियों की बैठकों की बुकिंग महीनों पहले हो जाती है.

‘बीजिंग ऑफिसेज़’ प्रायः इन केंद्रीय मंत्रालयों को निशाना बनाते हैं— ट्रांसपोर्ट, चाइना रेलवे कॉर्पोरेशन, हाउसिंग एवं शहरी-ग्रामीण विकास, प्राकृतिक संसाधन मंत्रालय, क्योंकि ये प्रांतों के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर की परियोजनाएं मंजूर करते हैं.

केंद्र के अफसरों के पास पैरवी करने से ‘बीजिंग ऑफिस’ को क्या फायदा हो सकता है इसका अंदाजा इस मामले से लग सकता है.

एक शहर के ‘बीजिंग ऑफिस’ के एक कर्मचारी को केंद्र के एक मंत्रालय के एक अधिकारी के साथ अच्छे निजी संबंध के कारण पता चला कि स्टेट काउंसिल एक आदेश जारी करने जा रहा है जिसके तहत स्थानीय सरकार को जमीन खरीदने के लिए केंद्रीय स्तर से मंजूरी लेनी पड़ेगी. इस जानकारी के आधार पर शहर ने आदेश जारी होने से पहले अपने 20 साल की निर्माण योजना के लिए विशाल भूखंड खरीद लिया. अंततः आदेश तो जारी हुआ लेकिन इस शहर ने दूसरे शहरों के मुक़ाबले बड़ा फायदा उठा लिया.

लेकिन स्थानीय सरकारें लाभ उठाने के लिए केंद्रीय अधिकारियों की खातिर विशाल भोज, मुफ्त यात्रा आदि के आयोजन करने के लिए अपने ‘बीजिंग ऑफिस’ का जो इस्तेमाल करती हैं वह सब लोगों की जानकारी में आ जाता है. जनवरी 2010 में, प्रांतीय काउंसिल ने नगरपालिका स्तर से नीचे के संगठनों के ‘बीजिंग ऑफिस’ बंद करवाने के कदमों की घोषणा की. लेकिन छोटे संगठनों के ‘बीजिंग ऑफिसों’ को बंद करने का मतलब होता स्थानीय सरकार के अधिकारों में वृद्धि क्योंकि तब वे प्रांतीय काउंसिल की मंजूरी से तमाम तरह की पैरवी करतीं.


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‘प्रमुख’ शहर और तेज रेल

प्रांतीय राजनीति और प्रॉपर्टी डेवलपर आपसी साठगांठ से जिस तरह अपने इलाके के लिए परियोजनाएं लाते हैं और इस उपक्रम में एक-दूसरे को मालामाल करते हैं उसके चलते रियल एस्टेट का एक विशाल गुब्बारा बन गया है, जिसका ज़ोर टॉप शहरों पर ही रहता है. एवरग्रांदे समूह की परेशानियां इस तरह के गुब्बारे के जरूरत से ज्यादा फूलने का उदाहरण है. तमाम घोटालों के बावजूद एवरग्रांदे ने कंस्ट्रक्शन परियोजनाएं फिर शुरू कर दी है.

कुछ प्रांतीय इलाके ऐसे हैं, जिन्हें मा ‘प्रमुख’ कहते हैं, जो केंद्र सरकार की नीतियों को भी प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. ‘प्रमुख’ शहर या इलाके वे हैं जिनके नेता ऐसे पदों पर हैं कि वे सीसीपी की निर्णय समितियों में अपनी पहुंच रखते हैं. मा का निष्कर्ष है कि ऐसे नेताओं के अधीन जो शहर या इलाके हैं उनकी सौदेबाजी की ताकत बढ़ जाती है और वे बीजिंग की नीति निर्माण प्रक्रिया को भी प्रभावित करते हैं. चीन में ‘प्रमुख’ इलाकों की सफलता इस बात से जाहिर होती है कि वे किसी खास क्षेत्र में तेज रेलगाड़ी चलवा सकते हैं या नहीं. मा ने लिखा है, ’प्रमुख’ शहर न केवल सबसे पहले तेज रेलगाड़ियां हासिल करने वाले शहर हैं बल्कि उन्हें अपने क्षेत्र में ज्यादा स्टेशन बनाने की अनुमति भी मिलती है.’

इस ‘प्रमुखता’ के साथ दूसरी बातें भी जुड़ी होती हैं. ऐतिहासिक या कम्युनिस्ट आंदोलन वाले दौर से जुड़े शहर अपने यहां से तेज रेलगाड़ियां पहले चलवा लेते हैं, खासकर तब जबकि उसके नेता को प्रांतीय स्तर पर विशेष ओहदा मिला हुआ हो. ‘प्रमुखता’ के कुछ तत्वों से लैस चीन के उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों को तेज रेलगाड़ी हासिल करने में देर हुई, हालांकि वे बीजिंग के करीब थे. यह बताता है कि किसी क्षेत्र में इन्फ्रास्ट्रक्चर की परियोजना लाने के मामले में नौकरशाही की राजनीति कितनी जटिल है. हुआंग और जोंग का मानना है कि मध्य और पूर्वी चीन को सबसे ज्यादा तेज रेलगाड़ियां मिली हैं. इसके अलावा दक्षिणी समुद्रतटीय प्रान्तों और यांग्ज़े नदी क्षेत्र के मध्यवर्ती इलाके में इन सेवाओं का व्यापक जाल बिछा है.

शहरों में तेजी चाहिए

केंद्र सरकार ने 2014 में निजी उपक्रमों को भी तेज रेलगाड़ी की परियोजनाओं में पैसा लगाने की इजाजत दे दी तो इन परियोजनाओं के लिए सौदेबाजी और बढ़ गई.. सो, प्रांत अब केंद्र सरकार की दया पर निर्भर न रहकर दूसरे स्रोतों से पैसे ला रहे हैं. लेकिन निजी फंडिंग शुरू होने से बीजिंग ऑफिसेज़ की भूमिका खत्म नहीं हुई है और ‘प्रमुखता’ की वजह से कुछ शहरों और प्रांतों को ज्यादा इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं हासिल हो रही हैं.

शहरों के पास अपनी कोई सामाजिक या सांस्कृतिक पूंजी या राजनीतिक ताकत भले न हो, कई इलाकों ने तेज गति वाली रेल के लिए केंद्र सरकार पर दबाव डालने के लिए जन प्रदर्शन का सहारा भी लिया है. 2009 में, हुनान प्रांत के शिन्हुआ और शाओयांग इलाकों में ‘तेज गति वाली रेल के लिए संघर्ष’ की खबरें आई थीं.

झिगु ट्रेंड रिसर्च सेंटर के संस्थापक यान जिउयुआन ने लिखा है, ‘तेज गति वाली रेल के लिए संघर्ष में जीत हासिल करने के लिए स्थानीय अधिकारियों को न केवल सिस्टम के अंदर के पारंपरिक चैनल के जरिए स्थानीय अधिकारियों के पास पैरवी करनी पड़ती है बल्कि आक्रोशित जनमत के सहारे सौदेबाजी की अपनी ताकत भी बढ़ानी पड़ती है. नतीजतन, स्थानीय सरकार और जनता के बीच एक अप्रत्यक्ष संबंध बन जाता है.’

बीजिंग ऑफिसेज़ की ओर से पैरवी और सर्वव्यापी भ्रष्टाचार के कारण चीन के कुछ हिस्सों में आर्थिक वृद्धि तेज हुई है. लेकिन शी जिनपिंग के राज में नयी किस्म की राजनीति ने करीब 10 लाख पार्टी पदाधिकारियों को भ्रष्टाचार के आरोपों के जरिए अनुशासित करके जिन्न को बोतल में बंद करने की कोशिश की है. शी के इन प्रयासों के बावजूद क्षेत्रीय संस्थाओं की सौदेबाजी की ताकत ही फैसला कर रही है कि चीन का कौन राज्य या शहर समृद्धि में सांस लेगा और किसका जीवन कठिन ही रहेगा.

(लेखक एक स्तंभकार और एक स्वतंत्र पत्रकार हैं जो वर्तमान में स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज. लंदन यूनिवर्सिटी में चीन पर ध्यान केंद्रित करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में एमएससी कर रहे हैं. वह पहले बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में चीन मामलों के मीडिया पत्रकार थे. वे @aadilbrar से ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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