मीडिया में जहां 26/11 के हमले से मिली सीखों पर खूब चर्चा हुई है, वहीं आतंकवाद के उभरते भावी स्वरूप और उसके खिलाफ अपेक्षित उपायों पर ध्यान नहीं दिया गया है.
आतंकवादी संगठन किसी बहुत सफल हमले के तरीके को दोहराते नहीं हैं, और तार्किक रूप से उनसे ऐसी अपेक्षा भी नहीं होनी चाहिए. यह उनकी प्रधान ताक़त – चौंकाने की ताक़त जोकि उन्हें सुरक्षा बलों पर बढ़त दिलाती है– के खिलाफ़ जाता है.
हमले का समय, स्तर और तरीका आतंकवादी अपने हिसाब से चुनते हैं. साथ ही, जम्मू कश्मीर में और भारत के भीतरी इलाकों में होनेवाली आतंकवादी कार्रवाइयों के अलग-अलग स्वरूप का होने की संभावना होती है. जम्मू कश्मीर में आतंकवादी पुलिस, सेना, नेताओं तथा सरकारी अधिकारियों और प्रतिष्ठानों को निशाना बनाते हैं. घाटी में उन्हें जनसमर्थन प्राप्त होने के कारण वहां सिर्फ ‘गद्दारों’ को निशाना बनाया जाता है. भारत के भीतरी इलाकों में उनका मुख्य लक्ष्य बड़ी संख्या में लोगों को मारने का होता है.
पाकिस्तान आतंकवाद का ‘निर्यातक’ होने के आरोपों से बचने के लिए जम्मू कश्मीर में आतंकवाद के स्वदेशीकरण के लिए प्रयासरत है. दो दशकों में पहली बार, राज्य में स्थानीय आतंकवादियों की संख्या पाकिस्तानी आतंकवादियों से अधिक हो गई है. अजमल कसाब वाले अनुभव के बाद, इस बाद की संभावना कम ही है कि भारत के भीतरी इलाक़ों में पाकिस्तानी आतंकवादियों का दोबारा इस्तेमाल किया जाए. अधिक संभावना इस बात की है कि पाकिस्तान अलग-थलग पड़े तत्वों, जैसे पंजाब और पूर्वोत्तर के अलगाववादी, लाल गलियारे के माओवादी और धार्मिक अल्पसंख्यक, की वास्तविक या कल्पित शिकायतों या आकांक्षाओं का फायदा उठाए.
प्रत्यक्ष हमले मुख्य रूप से जम्मू कश्मीर में केंद्रित रहने वाले हैं, जबकि देश के भीतरी इलाकों में ज़ोर ‘राष्ट्रविरोधी’ तत्वों के सहयोग से अप्रत्यक्ष हमलों पर होगा. प्रत्यक्ष हमलों का तो सही प्रशिक्षण पाए सुरक्षा बलों के सहारे सामना करना सबसे आसान है और इसमें आतंकवादी मारे जाते हैं. जबकि एक अप्रत्यक्ष हमला खुफिया सूचनाओं और ऐहतियाती सुरक्षा उपायों के सहारे ही टाला जा सकता है.
अप्रत्यक्ष हमलों के संभावित उभरते तरीकों पर गौर करें- भारी वाहनों से भीड़ को कुचलना, कंधे पर रखकर दागी जाने वाली मिसाइलों से व्यावसायिक विमानों को मार गिराना, देसी विस्फोटक उपकरणों (आईईडी) और बमों को टाइमर लगाकर बिछाना, आत्मघाती हमलावरों और ट्रकों के ज़रिए बम हमले, भीड़ भरे इलाकों में ईंधन/गैस टैंकरों का धमाका, ‘ड्रोन बमों’ से हवाई हमले, तथा रासायनिक/जैविक हमले. भीतरी इलाकों में 26/11 जैसे प्रत्यक्ष हमले प्रचलित नहीं रह गए हैं और अब ऐसा होने की आशंका बेहद कम है.
आतंकवाद निरोधक सुधारों के केंद्र में अभी तक प्रत्यक्ष हमले का सामना करना ही रहा है. सभी राज्यों ने त्वरित आतंकवाद निरोधक कार्रवाई करने के लिए विशेष इकाइयों और उप-इकाइयों का गठन किया है और वे सामान्यतया पुलिस की कुशलता में वृद्धि का दावा करते हैं. त्वरित कार्रवाई के लिए महानगरों में राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) के केंद्र स्थापित किए गए हैं.
अप्रत्यक्ष हमलों को रोकने के लिए बेहतर खुफिया प्रणाली और ऐहतियाती सुरक्षा पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया गया है. आतंकवादी दुष्प्रचार के खिलाफ़ जवाबी अभियान चलाना और आतंकवादियों के वित्तीय लेनदेन को रोकना भी बहुत महत्वपूर्ण है. अप्रत्यक्ष हमलों में अक्सर विस्फोटकों की दरकार होती है. इसके लिए बेहतर आंतरिक नियंत्रण और तस्करी पर रोक आवश्यक है. ड्रग्स-आतंकवाद का सामना करने पर भी नहीं के बराबर ध्यान दिया गया है.
भीड़ हमारे जनजीवन का अनिवार्य अंग है, जोकि अप्रत्यक्ष हमलों का एक आदर्श लक्ष्य होता है. हमारे मेला, धार्मिक स्थल और जुलुस, राजनीतिक रैलियां और अन्य भीड़ भरे स्थल हमलों के प्रमुख लक्ष्य हो सकते हैं. इसलिए भीड़ प्रबंधन हमारी पुलिस के लिए एक बड़ा काम रहेगा.
आतंकवाद पर तमाम बड़े अध्ययनों यह बात सामने आई है कि आतंकवादी हमलों खासकर अप्रत्यक्ष हमलों को रोकने में खुफिया सूचनाओं की मुख्य भूमिका होती है. इसमें केंद्रीय एजेंसियों के अलावा पुलिस खुफिया तंत्रों की भी बड़ी भूमिका होती है. राज्यों की खुफिया व्यवस्था लगभग निष्क्रिय पड़ी है. खुफिया सूचनाएं जुटाने और उनके आधार पर सम्नवित कार्रवाई के लिए हमें राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक केंद्र (एनसीटीसी) और राष्ट्रीय खुफिया ग्रिड तथा संबंधित राज्यस्तरीय संस्थाओं को पुनर्जीवित और स्थापित करने की ज़रूरत है. एनसीटीसी को विशेषज्ञों और अनुसंधानकर्ताओं से सलाह लेते हुए आतंकवाद पर एक थिंकटैंक का भी काम करना होगा. एनसीटीसी की स्थापना राष्ट्रहित में है. इसलिए संघवाद को इसकी राह का अवरोध नहीं बनने देना चाहिए. उचित सुरक्षा प्रावधानों की व्यवस्था कर राज्यों को भी साथ लेकर चलना होगा. वर्तमान में केंद्र और राज्य स्तर पर मौजूद बहुएजेंसी केंद्र (एमएसी) एक सर्वसमावेशी एनसीटीसी का विकल्प नहीं हो सकते.
मैं समझता हूं, आज हमें पाकिस्तानी आतंकवादियों के प्रत्यक्ष हमलों के मुक़ाबले स्थानीय आतंकवादियों के अप्रत्यक्ष हमलों से ज़्यादा खतरा है. दुश्मन हमारे बहुसांस्कृतिक, बहुधार्मिक और बहुभाषी समाज में मतभेदों का लाभ उठाएंगे. हमारे नेताओं और आंतरिक सुरक्षा बलों को इस चुनौती के लिए तैयार होना होगा, क्योंकि स्थानीय आतंकवादियों के अप्रत्यक्ष हमलों से समाज को एक व्यापक संघर्ष में झोंकने वाली प्रतिक्रियाओं का सिलसिला शुरू हो सकता है.
(ले.जन. एच.एस. पनाग पीवीएसएम, एवीएसम (आर) ने भारतीय सेना को 40 साल तक अपनी सेवाएं दीं. वे उत्तरी तथा सेंट्रल कमान के जीओसी एन सी रहे. सेवानिवृत्त होने के बाद वे आर्म्ड फोर्सेस ट्रिब्यूनल के सदस्य थे.)
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