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Friday, 19 April, 2024
होममत-विमतदेश की सबसे हॉट सीट पर बैठने जा रहे हैं गुजरात काडर के आईएएस अफसर गिरीश चंद्र मुर्मू

देश की सबसे हॉट सीट पर बैठने जा रहे हैं गुजरात काडर के आईएएस अफसर गिरीश चंद्र मुर्मू

मोदी के विश्वस्त नौकरशाह को कश्मीर का उप-राज्यपाल बनाए जाने का प्रशासनिक और राजनीतिक मतलब क्या हो सकता है?

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केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के शासन-प्रशासन में बदलाव किया है. अब तक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे समाजवादी पृष्ठभूमि के सत्यपाल मलिक को गोवा का राज्यपाल बनाया गया है. जम्मू और कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेशों की प्रशासनिक कमान केंद्र सरकार ने गिरीश चंद्र मुर्मू को सौंपी है तो लद्दाख संभालने की जिम्मेवारी राधाकृष्ण माथुर को दी गई है.

जम्मू और कश्मीर दोनों ही अब केंद्र शासित प्रदेश हैं. जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने के बाद ये दोनों केंद्र शासित प्रदेश अस्तित्व में आए हैं. वर्तमान परिस्थितियों में जम्मू और कश्मीर के उप-राज्यपाल को देश के सबसे कठिन प्रशासनिक कार्यभार में से एक माना जा सकता है. इस मायने में मुर्मू अपने जीवन का सबसे मुश्किल पद भार संभालने जा रहे हैं, जिन पर पूरे देश ही नहीं, दुनिया की भी नजर रहेगी.

मुर्मू और माथुर दोनों वरिष्ठ आईएएस रहे हैं. माथुर रिटायर हो चुके हैं जबकि मुर्मू का कुछ दिनों का कार्यकाल बाकी है. इन दोनों पदों पर प्रशासनिक अधिकारियों को नियुक्त करके केंद्र सरकार ने स्पष्ट संदेश दिया है कि वह जम्मू-कश्मीर के मामले को प्रशासनिक नजरिए से देख रही है और इसी तरीके से वह खासकर कश्मीर विवाद को सुलझाने या नियंत्रित करने की कोशिश करेगी. राजनीतिक समाधान अगर केंद्र के एजेंडे पर होता तो वहां किसी नेता को कमान दी जाती.


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गिरीश मुर्मू अपने प्रशासनिक अनुभव का इस्तेमाल कश्मीर में हालात सामान्य करने के लिए करेंगे, जो केंद्र सरकार की प्राथमिकता है. 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर में पाबंदियां लगाए जाने के बाद अब वहां स्थितियों को सामान्य करना उप-राज्यपाल की पहली प्राथमिकता होगी. महत्वपूर्ण बात ये है कि संविधान संशोधन के बाद की स्थिति में जम्मू और कश्मीर में तैनात आईएएस और आईपीएस अफसर चुनी हुई सरकार की जगह, उप-राज्यपाल के अधीन होंगे. इस तरह पुलिस और प्रशासन की चाबी दरअसल मुर्मू के हाथों में ही होगी.

1985 बैच के गुजरात काडर के आईएएस अफसर गिरीश मुर्मू नरेंद्र मोदी के लिए बहुत खास रहे हैं. नरेंद्र मोदी ने गुजरात में मुख्यमंत्री रहने के दौरान उन्हें अपना प्रमुख सचिव बनाया था. इस पद पर वे सात साल तक रहे. यही वजह रही कि 2014 में पीएम बनने के साथ ही मोदी ने इन्हें दिल्ली बुला लिया. जब अमित शाह गुजरात के गृह राज्य मंत्री थे, उस दौरान मुर्मू गृह मंत्रालय में भी तैनात थे. यानी मुर्मू को एक साथ नरेंद्र मोदी और अमित शाह के सीधे मातहत काम करने का अनुभव रहा है. केंद्र में नियुक्ति पर रहने के दौरान भी वे बीजेपी सरकार के एजेंडे को पूरी तत्परता से लागू करते रहे. वे बेहद मेहनती अफसर माने जाते हैं.

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1959 में उड़ीसा में जन्मे मुर्मू फिलहाल केंद्र सरकार के वित्त मंत्रालय में व्यय सचिव के पद पर तैनात हैं. वे अगले महीने ही सेवानिवृत्त होने वाले थे. उन्होंने राजनीति शास्त्र से स्नातकोत्तर की डिग्री उत्कल यूनिवर्सिटी से हासिल की. बाद में उन्होंने बर्मिंघम यूनिवर्सिटी से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में भी मास्टर्स की डिग्री हासिल की. वे आम तौर पर प्रचार से दूर रहने वाले अफसर माने जाते हैं और उनके निजी जीवन के बारे में मीडिया में काफी कम चर्चा हुई है. उनकी पत्नी समाज सेवा खासकर गरीब और अनाथ बच्चों के पुनर्वास के कार्यों में शामिल रही हैं.

इसके बावजूद, विवादों से मुर्मू का पुराना नाता रहा है. मीडिया में इस बारे में ढेर सारी खबरें छपती रही हैं. खासकर गुजरात में हुई पुलिस मुठभेड़ में गवाहों को प्रभावित करके में उनका नाम आया. लेकिन इससे उनके करिअर पर कभी कोई असर नहीं पड़ा. मुर्मू की राजनीतिक नेतृत्व के प्रति निष्ठा असंदिग्ध रही है और उन्हें इसका पुरस्कार भी मिलता रहा है.

हालांकि जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल की नियुक्ति का मामला सीधे तौर पर राजनीतिक नहीं माना जा रहा है, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अगले कुछ महीनों में दिल्ली के अलावा झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं. झारखंड में आदिवासियों की संख्या सबसे ज्यादा है और मुर्मू को उप-राज्यपाल बनाकर बीजेपी आदिवासियों को एक संदेश देना चाहती है. मुर्मू आदिवासियों के सबसे बड़े समुदाय संथाल से हैं. संथाल झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ माने जाते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि झामुमो के सुप्रीमो शिबू सोरेन खुद भी संथाल हैं. इससे पहले बीजेपी ने एक और संथाल नेता द्रोपदी मुर्मू को झारखंड का राज्यपाल बनाया है. राज्यपाल बनाए जाने से पहले द्रोपदी मुर्मू ओडिशा में बीजेपी की नेता थीं.


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दरअसल जब 2000 में बिहार का विभाजन करके झारखंड बनाया गया था, तब इसे आदिवासी अस्मिता से जुड़ी मांग का पूरा होना माना गया. झारखंड की लगभग एक-तिहाई आबादी आदिवासियों की है और नया राज्य बनने के बाद से यहां आदिवासी मुख्यमंत्री ही बने. पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के बाद से ही ये परंपरा बनी रही. बीजेपी ने 2014 में गैर-आदिवासी नेता रघुवर दास को झारखंड का मुख्यमंत्री बनाकर इस क्रम को तोड़ दिया है. शायद इसलिए ही आवश्यक था कि राज्य में कोई आदिवासी राज्यपाल बनाया जाए.

गिरीश चंद्र मुर्मू को देश के एक प्रमुख पद पर नियुक्त करने के पीछे बीजेपी की मंशा आहत आदिवासी अस्मिता पर मरहम लगाना हो सकता है. हालांकि अभी ये देखना होगा कि बीजेपी इस बात को चुनाव के दौरान अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश करती है या नहीं.

(लेखक फॉरवर्ड प्रेस (हिंदी) पत्रिका के संपादक हैं)

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