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Thursday, 25 April, 2024
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केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद भी जारी रहेगी जम्मू-कश्मीर में ‘दरबार मूव’ परंपरा

‘दरबार मूव’ की परंपरा ने जम्मू-कश्मीर के सभी हिस्सों के लोगों को आपस में जोड़े रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और यह ज़रूरत आगे भी बनी रहेगी.

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जम्मू-कश्मीर इस समय एक बड़े बदलाव के दौर से गुज़र रहा है. इस महीने की समाप्ति पर जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा समाप्त हो जाएगा. एक नवंबर से औपचारिक रूप से जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बन जाएगा. यह अपने आप में ऐतिहासिक क्षण है और यह क्षण जम्मू-कश्मीर के उथल-पुथल भरे इतिहास में नया अध्याय जोड़ने जा रहा है.

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 की समाप्ति और जम्मू कश्मीर व लद्दाख को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के निर्णय के बाद बड़े स्तर पर कई नए प्रशासनिक बदलाव किए जा रहे हैं. नई व्यवस्थाएं स्थापित हो रही हैं और कई पुरानी व्यवस्थाओं व परंपराओं का त्याग भी किया जा रहा है. मगर जम्मू-कश्मीर की अपनी विशेष पहचान से जुड़ी कुछ स्थापित परंपराएं ऐसी भी हैं जिनमें कोई बदलाव नही किया जा रहा.

केंद्र शासित प्रदेश बनने के बावजूद पहले की तरह जम्मू-कश्मीर की दो राजधानियां बनी रहेंगी और वर्षों पुरानी ‘दरबार मूव’ जैसी अहम परंपरा भी जारी रखी जाएगी. हालांकि राज्य का स्वरूप व आकार बदलने से कुछ स्वाभाविक परिवर्तन ‘दरबार मूव’ की परंपरा में भी होने जा रहे हैं.

सर्दियों में ‘दरबार’ का श्रीनगर से जम्मू आना और गर्मियों में ‘दरबार’ का जम्मू से वापस श्रीनगर जाना तो हर साल दो बार होता ही रहा है लेकिन इस बार हो रहा ‘दरबार मूव’ तकनीकी रूप से अविभाजित जम्मू-कश्मीर राज्य का अंतिम ‘दरबार मूव’ माना जाएगा. अंतिम इसलिए, क्योंकि आने वाली गर्मियों में जब दोबारा ‘दरबार मूव’ होगा तो उस समय तक जम्मू-कश्मीर राज्य का स्वरूप और आकार बदल चुका होगा. तब तक जम्मू-कश्मीर की पहचान एक ‘केंद्र शासित प्रदेश’ के रूप में बन चुकी होगी और उस नई व्यवस्था में जम्मू-कश्मीर राज्य का नही बल्कि ‘केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर’ का ‘दरबार मूव’ होगा.

एक नवंबर से बदल जाएगा जम्मू-कश्मीर का स्वरूप व आकार

इस दफ़ा श्रीनगर में ‘दरबार’ 25 अक्टूबर को बंद होने जा रहा है. अभी फ़िलहाल, श्रीनगर में ‘दरबार’ के बंद होने के समय तक जम्मू-कश्मीर एक पूर्ण राज्य के रूप में अस्तित्व में है, मगर चार नवंबर को जब शीतकालीन राजधानी जम्मू में ‘दरबार’ खुलेगा तो उस समय तक राज्य का तकनीकी रूप से स्वरूप व आकार पूरी तरह से बदल गया होगा.

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उल्लेखनीय है कि इस बार ‘दरबार मूव’ ऐसे समय पर हो रहा है जब जम्मू-कश्मीर राज्य का स्वरूप बदल रहा है और जम्मू-कश्मीर एक पूर्ण राज्य से केंद्र शासित प्रदेश बनने की प्रक्रिया में है. इसी प्रक्रिया के चलते ‘दरबार मूव’ के मध्य में ही 31 अक्टूबर से जम्मू-कश्मीर का औपचारिक रूप से पूर्ण राज्य का दर्जा समाप्त हो जाएगा और एक नवंबर से जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बन जाएगा.

जम्मू-कश्मीर से अलग हो जाएगा लद्दाख

दीपावली के बाद 4 नवंबर को जब ‘दरबार’ जम्मू में खुलेगा तो वह ‘दरबार’ तकनीकी रूप से सिर्फ और सिर्फ ‘केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर’ का ही ‘दरबार’ होगा और लद्दाख के साथ उसका कोई संबंध नही होगा. एक नवंबर से आधिकारिक और तकनीकी रूप से वर्तमान जम्मू-कश्मीर दो हिस्सों में विभाजित होकर दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में परिवर्तित हो चुका होगा.

क्षेत्रफल के हिसाब से जम्मू-कश्मीर का सबसे बड़ा हिस्सा – लद्दाख एक नवंबर से जम्मू-कश्मीर से अलग होकर एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बन जाएगा. लद्दाख के जम्मू-कश्मीर से अलग होने और एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के लिए इन दिनों तमाम औपचारिकताओं को युद्धस्तर पर पूरा किया जा रहा है. नए केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लिए लेह में नया ढांचा तैयार किया जा रहा है.

लगभग 147 वर्ष पुरानी ‘दरबार मूव’ परंपरा के इतिहास में यह पहला मौका होगा जब तकनीकी रूप से लद्दाख किसी भी तरह से ‘दरबार’ का हिस्सा नहीं रहेगा.

उल्लेखनीय है कि गत 5 अगस्त को केंद्र सरकार ने अनुच्छेद-370 को समाप्त कर दिया था. इसी के साथ जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा भी खत्म हो गया था और राज्य को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया था.

जारी रहेगी ‘दरबार मूव’ की परंपरा

अभी तक आधिकारिक रूप से यही बताया जा रहा है जम्मू-कश्मीर का भले ही विभाजन होने जा रहा है और एक पूर्ण जम्मू-कश्मीर राज्य दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में परिवर्तित हो रहा है. मगर हर छह महीने बाद होने वाली ‘दरबार मूव’ की अर्धवार्षिक परंपरा बिना किसी रुकावट के आगे भी जारी रहेगी और वर्षों से जारी परंपरा के अनुसार सचिवालय और अन्य सरकारी कार्यालय सर्दियों में जम्मू व गर्मियों में श्रीनगर स्थानांतरित होती रहेंगे.

उल्लेखनीय है कि कश्मीर के कड़क सर्द मौसम और जम्मू की भीषण गर्मी को देखते हुए पूर्व डोगरा शासक महाराजा रणबीर सिंह ने 1872 में ‘दरबार मूव’ की अर्धवार्षिक परंपरा की शुरुआत की थी. ऐसा माना जाता है कि महाराजा रणबीर सिंह द्वारा ‘दरबार मूव’ की परंपरा को शुरू करने के पीछे एक अहम व बड़ा मकसद राज्य के सभी हिस्सों तक बेहतर ढंग से प्रशासनिक पहुंच बनाना था.

लगभग 147 वर्षों से जम्मू-कश्मीर में हर छह माह बाद राजधानी बदलती रही है. सर्दियों में छह माह के लिए राजधानी जम्मू में रहती है जबकि गर्मियां आते ही यह श्रीनगर स्थानांतरित हो जाती है. इसी को ‘दरबार मूव’ कहा जाता है. पूरे देश में अपनी तरह की यह अलग व अनोखी परंपरा है.


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स्थानांतरण की इस प्रक्रिया में राज्य विधानसभा, राज्य विधानपरिषद, राज्य सचिवालय, राज्य उच्च न्यायालय, राजभवन व मुख्यमंत्री के कार्यालय के साथ-साथ पुलिस मुख्यालय सहित अन्य कई कार्यालय सर्दियों में श्रीनगर से जम्मू और फिर छह माह बाद गर्मियां आने पर जम्मू से श्रीनगर स्थानांतरित होते हैं. राज्य सचिवालय और अन्य कार्यालयों को ही तकनीकी रूप से ‘दरबार’ कहा जाता है.

‘दरबार’ के स्थानांतरण की इस प्रक्रिया के कारण ही जम्मू को जम्मू-कश्मीर की शीतकालीन राजधानी कहा जाता है जबकि श्रीनगर जम्मू-कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी कहलाती है.

कई साल पहले जब गर्मियों में श्रीनगर और सर्दियों में ‘दरबार’ को जम्मू स्थानांतरित करने की जिस परंपरा की शुरुआत हुई वह समय के साथ और भी मज़बूत होती चली गई है. ‘दरबार मूव’ का यह सिलसिला धीरे-धीरे एक बड़ी प्रशासनिक ज़रूरत भी बन गया. वक्त बदला, राज्य के इतिहास में कई उतार-चढ़ाव आए लेकिन ‘दरबार मूव’ की परंपरा न रुकी न थमी.

इस परंपरा का जम्मू-कश्मीर के प्रशासनिक, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में ज़बर्दस्त असर रहा है और आम आदमी तक का इस परंपरा से किसी न किसी रूप से जुड़ाव रहा है.

आतंकवाद और ध्रुवीकरण के कारण कश्मीर और जम्मू के बीच गत कुछ वर्षों से जो अविश्वास उभरा है उसे भी कुछ हद तक कम करने में ‘दरबार मूव’ ने अपनी एक अहम भूमिका निभाई है. जम्मू-कश्मीर के दोनों बड़े हिस्सों के बीच ‘दरबार मूव’ ने एक मजबूत कड़ी का काम किया है. इससे इंकार नही किया जा सकता कि इस परंपरा ने राज्य की एकता, अखंडता और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. ‘दरबार मूव’ की परंपरा ने राज्य के सभी हिस्सों के लोगों को आपस में जोड़े रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और यह ज़रूरत आगे भी बनी रहेगी.

(लेखक जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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