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Saturday, 27 April, 2024
होममत-विमत‘घुस के मारेंगे’ का ऐलान पड़ोसियों के लिए एक चेतावनी है, ‘हॉट पर्सूट’ को तो वैधता हासिल है ही

‘घुस के मारेंगे’ का ऐलान पड़ोसियों के लिए एक चेतावनी है, ‘हॉट पर्सूट’ को तो वैधता हासिल है ही

राजनीतिक नेतृत्व और फौजी कमांडर को ऐसी कार्रवाई की योजना बनाने और स्थानीय कमांडरों को छूट देने के मामले में सावधानी और संयम बरतना ज़रूरी है ताकि वह मान्य अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप हो.

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समाचार चैनल सीएनएन न्यूज़-18 को हाल में दिए एक इंटरव्यू में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत में आतंकवादी गतिविधियां चलाने की कोशिश करके अगर कोई सीमा पार भाग जाता है तो भारत को पाकिस्तान में घुसकर उसका खात्मा करने का अधिकार है. ज़ाहिर है, इस तरह के ऐलान पर काफी शोर मचा और पाकिस्तान ने भी करारा जवाब दिया. बहरहाल, इस ऐलान को ‘हॉट पर्सूट’ यानी अपराधी का पीछा करने के विचार के संदर्भ देखा जाना चाहिए, न कि ‘द गार्डियन’ के इस आरोप के संदर्भ में कि पाकिस्तानी ज़मीन पर कई आतंकवादियों के मारे जाने के पीछे भारत का भी हाथ है.

‘हॉट पर्सूट’ मुहावरे से एक भगोड़े का पूरी तेज़ी, जोश के साथ पीछा करने का भाव उभरता है. यह मुहावरा सेना की जवाबी कार्रवाई, कानून को लागू करवाने, एक्शन मूवी, नाटकीय घटना आदि से गहरा जुड़ाव रखता है. मामला चाहे शहर की भीड़भाड़ में अपराधियों का पीछा करने का हो, या किसी लक्ष्य को बेहद कम समय में हासिल करने का हो, इसमें तेज़ी, तात्कालिकता और संकल्प जुड़ा होता है.

फौजी कार्रवाइयों में ‘हॉट पर्सूट’ अंतरराष्ट्रीय कानूनों और आत्मरक्षा के सिद्धांतों से गहरे जुड़ा होता है. इसका अर्थ किसी हमले या आसन्न खतरे के जवाब में दुश्मन फौज का सीमा पार या विदेशी क्षेत्र में घुसकर पीछा करना होता है. इसका लक्ष्य खतरे को नाकाम करना और अपनी सेना यानी की अपने हितों की सुरक्षा करना होता है. फौजी रणनीति में ‘हॉट पर्सूट’ एक निर्णायक उपाय है, लेकिन इससे कई अहम कानूनी और नैतिक प्रश्न खड़े होते हैं.


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‘हॉट पर्सूट’ की शर्तें

सेना में ‘हॉट पर्सूट’ तभी किया जाता है जब किसी सेना पर दुश्मन की सेना सीमा पार से हमला करती है. ऐसे स्थिति में बचाव कर रही सेना अगले हमलों को रोकने या खतरे को खत्म करने के लिए हमलावर सेना का सीमा पार करके पीछा कर सकती है. इसे आत्मरक्षा के सिद्धांत के तहत जायज़ माना जाएगा, जो देशों को सशस्त्र हमले से अपने बचाव के ज़रूरी उपाय करने की छूट देता है.

लेकिन सैन्य कार्रवाइयों के तहत ‘हॉट पर्सूट’ के साथ कई शर्तें और सीमाएं जुड़ी हैं. अंतरराष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक, ‘हॉट पर्सूट’ को वैध तभी माना जाएगा जब वह इन शर्तों का पालन करते हुए किया गया हो:

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तात्कालिकता : ‘हॉट पर्सूट’ तत्काल तभी किया जाए जब हमला जारी हो या खतरा आसन्न हो. इसे पिछली घटनाओं या खतरे की अटकलों के आधार पर नहीं किया जा सकता.

अनुपात : जवाबी कार्रवाई खतरे के अनुपात में ही की जाए. ताकत का अत्यधिक इस्तेमाल या आनुषंगिक नुकसान अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का उल्लंघन होगा और इसके कानूनी नतीजे हो सकते हैं.

क्षेत्रीय संप्रभुता : पीछा करने वाली सेना जिस देश की सीमा में घुसती है उसकी क्षेत्रीय संप्रभुता का उसे सम्मान करना होगा. ‘हॉट पर्सूट’ विदेशी सीमा में कुछ समय के लिए घुसने की छूट देता है, लेकिन घुसने वाली सेना उस देश की क्षेत्रीय संप्रभुता में अनावश्यक दखल नहीं दे सकती.

अधिसूचना : आदर्श स्थिति तो यह होगी कि पीछा करने वाली सेना जिस क्षेत्र में प्रवेश कर रही है वहां के संबंधित अधिकारियों को अपनी कार्रवाई के बारे में पहले सूचित करे और उनसे सहयोग की मांग करे, लेकिन आकस्मिकता के तकाजे पर ऐसी पूर्व सूचना देना हमेशा संभव नहीं हो सकता है.

समाप्ति : तात्कालिक खतरा दूर होने या पीछा करने वाली सेना सुरक्षित स्थिति में पहुंचने के साथ ही ‘हॉट पर्सूट’ समाप्त किया जाना चाहिए. इस स्थिति के बाद भी ‘हॉट पर्सूट’ जारी रहना अवैध हमला माना जाएगा.

इन सिद्धांतों का पालन न करना अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन के मान जाएगा और हमले का आरोप लगाया जा सकता है, जिससे कूटनीतिक तनाव पैदा हो सकता है या पीछा करने वाले देश को कानूनी नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं.


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अनुपात का ख्याल रखना ज़रूरी

‘हॉट पर्सूट’ के साथ जोखिम और चुनौतियां जुड़ी होती हैं. पीछा करने के जोश में भावनाएं उग्र हो जाती हैं और निर्णय भ्रामक हो जाता है. गलतियां होती हैं, बाधाएं आती हैं, नाकामियां हाथ लगती हैं. नतीजे अंततः इन चुनौतियों के जवाब पर निर्भर करते हैं. अपने सत्तातंत्र के समर्थन के बारे में अनिश्चितता पीछा करने वालों के कदम रोक सकती है, या क्या वे नाकामी के डर से ऊपर उठकर अपना काम पूरा करेंगे? इसके अलावा, सैन्य कार्रवाई के दौरान ‘हॉट पर्सूट’ से नागरिकों को खतरा हो सकता है और लड़ाई बढ़ सकती है. इसका आदेश देने से पहले सेना के कमांडर और राजनीतिक सत्ता को दुश्मन सेना का पीछा करने की ज़रूरत और इस कार्रवाई से जुड़े जोखिम और घरेलू तथा वैश्विक स्तरों पर होने वाले नतीजों का तुलनात्मक पूर्व आकलन कर लेना चाहिए. ‘हॉट पर्सूट’ की मारामारी में फंसे नागरिकों को नुकसान हो सकता है, उन्हें विस्थापित होना पड़ सकता है, जिससे मानवीय संकट पैदा होगा और संबंधित क्षेत्र और अस्थिर होगा.

सरकार द्वारा प्रायोजित हो या अलग-अलग गुटों द्वारा की गई हो, सीमा पार से आतंकवादी कार्रवाई का भारत जो भी जवाब दे वह मान्य अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप हो. 2015 में म्यांमार से सक्रिय भारत के बागी गिरोहों ने नागालैंड में असम राइफल्स पर और मणिपुर में सेना पर जो हमले किए उनके जवाब में म्यांमार-भारत सीमा के पार जो ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की गई वह ‘हॉट पर्सूट’ की सभी शर्तों के बिलकुल अनुरूप थी. इसी तरह, 2019 में उरी में भारतीय सेना के कैंप पर हुए हमले के बाद पाकिस्तान में आतंकवादी अड्डों पर जो सर्जिकल स्ट्राइक की गई, या 2019 में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए हमले के बाद बालाकोट पर जो हवाई हमले किए गए वे भी ‘हॉट पर्सूट’ के विचार का विस्तार थे. वे भागती दुश्मन सेना का पीछा करने वाली कार्रवाई की तरह ठेठ ‘हॉट पर्सूट’ भले नहीं थे, लेकिन ज्ञात खतरे को बेअसर करना बुद्धिमानी की ही बात है.

इनमें से हरेक मामले में अनुपात का सिद्धांत प्रमुख था ताकि आतंकी कार्रवाई और उसका जवाब खुले युद्ध में न तब्दील हो जाए. उदाहरण के लिए अक्तूबर 2023 में हमास के हमले का इज़रायली जवाब इस सिद्धांत के अनुरूप नहीं था क्योंकि इसने वैश्विक संकट पैदा कर दिया. इस युद्ध में अब ज्यादा से ज्यादा देश कूदते जा रहे हैं और युद्ध का दायरा सीरिया और लाल सागर तक फैलता जा रहा है.

इसके अलावा, भारत के मामले में सर्जिकल स्ट्राइक सबक सिखाने के लिए किए गए थे और उनका मकसद किसी क्षेत्र पर कब्ज़ा करना नहीं था. फटाफट प्रवेश और फिर तुरंत वापसी, ज़मीन हो या आसमान लक्ष्य पर न्यूनतम समय में हमला गाज़ा पट्टी पर जारी कार्रवाइयों से बिलकुल अलग था.

प्रासंगिकता के हिसाब से सैन्य कार्रवाई के दौरान ‘हॉट पर्सूट’ मान्य वैध सिद्धांत है जो कि आत्मरक्षा और अंतरराष्ट्रीय मानकों पर आधारित है. यह देशों को फौजी हमले का जवाब दें और अपने हितों की रक्षा करने की छूट देता है. इसके साथ ही यह अहम कानूनी तथा नैतिक कसौटियां भी तय करता है. राजनीतिक नेतृत्व और फौजी कमांडर को ऐसी कार्रवाई की योजना बनाने और स्थानीय कमांडरों को छूट देने के मामले में सावधानी और संयम बरतना ज़रूरी है ताकि कार्रवाई को जायज ठहराया जा सके, वह अनुपात में हो, और अंतरराष्ट्रीय मानकों तथा मानवाधिकारों का सम्मान करता हो.

‘घुस के मारेंगे’ का ऐलान हमारे विद्वेषी पड़ोसियों और आतंकवादी गुटों के लिए जायज चेतावनी हो सकती है कि भारत आतंकवादी हरकतों को बर्दाश्त नहीं करेगा.

(जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, पीवीएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, भारतीय थल सेना के सेवानिवृत्त अध्यक्ष हैं. वे 28वें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थे. उनका एक्स हैंडल @ManojNaravane है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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