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Wednesday, 24 April, 2024
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‘अबकी बार, 400 पार’ केवल नारा नहीं, मोदी को मिला तीसरा कार्यकाल तो, एजेंडे के लिए होगा महत्वपूर्ण

‘एक देश, एक चुनाव’ से लेकर परिसीमन और केजरीवाल के राजनीतिक खात्मे की योजना तक, मोदी-शाह के पास 2029 के चुनाव के लिए कईं एजेंडा है, लेकिन बहुत कुछ 2024 के चुनावों में भाजपा की संख्या पर निर्भर करेगा.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के लिए कम से कम 370 सीटों और बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के लिए ‘अबकी बार, 400 पार’ की भविष्यवाणी के बारे में राजनीतिक हलकों में विभिन्न रूप से व्याख्या की जा रही है. एक विचार यह है कि वे 1984-85 में कांग्रेस पार्टी के 414 लोकसभा सीटों के रिकॉर्ड को तोड़ना चाहते हैं, जहां तक 370 की बात है, तो यह अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे को खत्म करने के उनकी सरकार के फैसले को भुनाने की एक रणनीति है.

निश्चित रूप से विपक्षी खेमे का एक और दृष्टिकोण यह है कि ये ‘अवास्तविक’ आंकड़े केवल नेताओं और मतदाताओं के बीच कमज़ोर दिल वाले लोगों को डराने के लिए हैं. विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह अहंकार का भी संकेत है, जिसका उल्टा असर हो सकता है, लेकिन विपक्षी दल के नेता केवल उम्मीद ही कर सकते हैं. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि पीएम मोदी सच में 370 का आंकड़ा पार करना चाहते हैं. आखिरकार जवाहरलाल नेहरू ने जो कांग्रेस के लिए सबसे बेहतरीन किया था वह 1957 में लोकसभा में था जब कांग्रेस को 371 सीटें मिली थीं. ये कांग्रेसी किसी तरह आश्वस्त हैं कि मोदी की सबसे बड़ी इच्छा नेहरू से आगे निकलने की है जो 16 साल 286 दिन तक प्रधानमंत्री रहे थे. इसलिए वे यह भी मानते हैं कि मोदी चौथे कार्यकाल के लिए भी तैयार हैं. खैर कांग्रेस के नेताओं को अटकलें लगाने से कौन रोक सकता है.

जबकि 370 भाजपा के राष्ट्रवाद के मुद्दे को भुनाने के लिए अच्छी संख्या है, जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के मन में वास्तविक संख्या 362 हो सकती है — 543 सदस्यीय लोकसभा में दो-तिहाई बहुमत. यह संख्या भाजपा के लिए महत्वपूर्ण है, जो पीएम मोदी के तीसरे कार्यकाल में ‘एक देश, एक चुनाव’ को लागू करने के लिए ज़रूरी है — यह मानते हुए कि 4 जून को जनमत सर्वेक्षण जो दिखा रहे हैं वो सच साबित हो. रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाली समिति, जिसके अमित शाह भी सदस्य थे, ने एक साथ पूरे देश में चुनाव करवाने के लिए कई संवैधानिक संशोधनों का सुझाव दिया है. इनमें से अधिकांश संशोधनों को विशेष बहुमत से पारित करना होगा — कुल सदस्यों के 50 प्रतिशत से अधिक और सदन में उपस्थित और मतदान करने वालों के दो-तिहाई द्वारा.

चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों के अनुसार, एनडीए को लोकसभा में दो-तिहाई के आंकड़े तक आसानी से पहुंचने की उम्मीद है, लेकिन भाजपा अपने दम पर वहां तक पहुंचना चाहती है. भला, किसी पर भी निर्भर क्यों रहा जाए, यहां तक कि सहयोगियों पर भी? भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि पार्टी के आंतरिक सर्वेक्षणों में इस स्तर पर उसकी सीटें 330 के आसपास आंकी गई हैं.

जो भी हो, राज्यसभा में बीजेपी की समस्या अभी भी अनसुलझी है. संसद के 245 सदस्यीय उच्च सदन में दो-तिहाई का आंकड़ा 164 है. आज इस सदन में भाजपा के 97 सदस्य हैं, जबकि सत्तारूढ़ एनडीए की संख्या 117 है, लेकिन जैसा कि हमने पीएम मोदी के दूसरे कार्यकाल में देखा है, अमित शाह ने राज्यसभा में अंकगणित को सरकार में काम में कभी भी आड़े नहीं आने दिया.

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एजेंडे में परिसीमन

2024-29 के लिए भाजपा के एजेंडे में एक और बड़ा मुद्दा अगली जनगणना के बाद निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन है — जिसकी उम्मीद 2026 में लगाई जा रही है. सुप्रीम कोर्ट में केंद्र द्वारा प्रस्तुत एक हलफनामे के अनुसार, परिसीमन अभ्यास से लोकसभा की संख्या 888 सदस्यों और राज्यसभा की संख्या 384 तक बढ़ने की संभावना है.

यह एक विवादास्पद मुद्दा है, दक्षिणी राज्य इस कदम का विरोध कर रहे हैं जिससे संसद में उत्तरी राज्यों का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा, जिससे भाजपा को काफी फायदा होगा. जब तक ‘अबकी बार, 400 पार’ एनडीए के लिए वास्तविकता नहीं बन जाती, तब तक इन सीटों को बढ़ाने के लिए संसदीय मंजूरी प्राप्त करना आसान नहीं होगा.

मोदी-शाह के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए रास्ते में कुछ झटके के लिए तैयार रहना होगा. जब कोई उनके कल के फैसलों के बारे में निश्चित नहीं हो सकता, तो यह अनुमान लगाना व्यर्थ है कि अगले पांच साल के लिए उसके मन में क्या है. हालांकि, एक बात तो तय है कि जब पीएम मोदी 370 के बारे में बात करते हैं, तो यह सिर्फ एक आकर्षक नारा नहीं है. उनके दिमाग में दो-तिहाई बहुमत का आंकड़ा है और वे इसका इस्तेमाल किन चीज़ों के लिए करेंगे.


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दिल्ली की स्थिति

बहरहाल, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को चिंता करनी चाहिए. दो-तिहाई बहुमत भाजपा को वो करने में सक्षम कर सकता है जो कई भाजपा नेताओं का कहना है कि यह पार्टी का अंतिम उपाय हो सकता है — अगर वह केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी पर लगाम लगाने में विफल रहती है तो दिल्ली को उसके मूल केंद्र शासित प्रदेश का दर्ज़ा वापस दिलाना. भाजपा के लोगों ने मुझसे कहा कि पार्टी नेतृत्व के आकलन के अनुसार, केजरीवाल को “बहुत बड़ा होने से पहले” बहुत नीचे खींचना होगा.

सत्ताधारी खेमे के एक मित्र ने मुझे बताया, “देखिए क्या हुआ जब कांग्रेस मोदी जी को नीचे नहीं रख सकी जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे. कांग्रेस ने मोदी जी से दीर्घकालिक खतरा देखा और इसलिए उनके और अमित शाह जी के पीछे पड़ गए. उन्होंने अमित शाह को जेल भी भेजा. फिर वे राहुल गांधी के चक्कर में व्यस्त हो गए और देखिए क्या हुआ. मोदी जी केजरीवाल के साथ वही गलती नहीं कर सकते.” भाजपा नेतृत्व जड़ पर प्रहार करने के विकल्प पर विचार कर रही है: दिल्ली को फिर से केंद्र शासित प्रदेश बनाओ और विधानसभा को खत्म कर दो.

दिल्ली में 1956 तक एक विधानसभा हुआ करती थी जब यह केंद्रशासित प्रदेश बन गया. अगले साल दिल्ली नगर निगम अस्तित्व में आया और 1966 में 56 निर्वाचित और पांच नामांकित सदस्यों के साथ इसकी जगह दिल्ली मेट्रोपॉलिटन काउंसिल ने ले ली. संयोग से, लालकृष्ण आडवाणी, जो उस समय जनसंघ के नेता थे, 1967 से 1970 तक इस परिषद के अध्यक्ष थे. 59वें संशोधन अधिनियम 1991 के माध्यम से दिल्ली को फिर से विधानसभा मिली.

सत्ताधारी पार्टी के नेता अगर 1993 से पहले की स्थिति में लौटने के बारे में सोच भी रहे हैं तो इससे आम आदमी पार्टी में खतरे की घंटी बज जानी चाहिए. राष्ट्रीय राजधानी का मुख्यमंत्री होने के नाते केजरीवाल को बहुत अधिक राजनीतिक महत्व और राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय ध्यान मिलता है. अगर दिल्ली में कोई मुख्यमंत्री पद नहीं है, तो वे या तो दिल्ली में एमसीडी चुनाव लड़ सकते हैं या हरियाणा जा सकते हैं, जहां उन्हें फिर से लॉन्च करने के लिए किसी अन्य अन्ना हज़ारे की तलाश करनी पड़ेगी.

यह और कई अन्य चीज़ें मोदी-शाह के दिमाग में आकार ले रही होंगी जब वे भाजपा के लिए 362-370 सीटों और एनडीए के लिए 400 से अधिक सीटों के लक्ष्य का पीछा कर रहे हैं.

(डीके सिंह दिप्रिंट के पॉलिटिकल एडिटर हैं. उनका एक्स हैंडल @dksingh73 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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