scorecardresearch
Friday, 3 May, 2024
होममत-विमतपूर्व आतंकवादी, पूर्व मुख्य सचिव, पूर्व मंत्रियों संग जम्मू-कश्मीर में बनी पार्टी का क्या है राजनीतिक भविष्य

पूर्व आतंकवादी, पूर्व मुख्य सचिव, पूर्व मंत्रियों संग जम्मू-कश्मीर में बनी पार्टी का क्या है राजनीतिक भविष्य

‘अपनी पार्टी’ में शामिल होने वाले नेताओं में सबसे अधिक बड़ा व बहुचर्चित नाम गुलाम हसन मीर का है. जम्मू-कश्मीर की राजनीति में अब्दुल्ला व मुफ्ती परिवारों की तरह ही गुलाम हसन मीर की अपनी पहचान है.

Text Size:

पूर्व आतंकवादी से लेकर पूर्व मुख्य सचिव और पूर्व मंत्रियों व विधायकों तक के एक-साथ एक मंच पर आने के बाद ‘जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी’ नाम से एक नई पार्टी का गठन तो हो गया, मगर बड़ा सवाल अभी भी शेष है कि क्या नया दल आम लोगों की आशाओं पर खरा उतर पाएगा ?

यही नहीं नई पार्टी में शामिल हुए कुछ नेताओं का राजनीतिक नाम और कद इतना बड़ा है कि यह आशंका भी बनी हुई है कि कहीं नवगठित पार्टी उनके नाम व कद के कारण उभर ही न पाए. पार्टी में शामिल हुए कुछ नेताओं का विवादों से भी गहरा नाता रहा है, यह नेता भी नई पार्टी के भविष्य को लेकर चिंता पैदा करते हैं.

नवगठित ‘अपनी पार्टी’ को लेकर व्यक्त की जा रही चिंताए व्यर्थ नही कही जा सकती. ‘अपनी पार्टी’ के संस्थापक और प्रमुख अलताफ़ बुख़ारी को एक बड़े और सफल व्यवसायी के रूप में जाना जाता है. लेकिन, राजनीति के मैदान में उनका अनुभव बहुत अधिक नहीं है. पहली बार 2014 में श्रीनगर की अमीराकदल विधानसभा सीट से विधायक बन कर बुख़ारी ने राजनीति में कदम रखा. वे जम्मू-कश्मीर के वित्त मंत्री भी रहे मगर राजनीति में अभी भी उन्हें नया खिलाड़ी ही नहीं माना जाता है.

जबकि अलताफ़ बुख़ारी की पार्टी में शामिल होने वाले कईं नेताओं के पास लंबा अनुभव है और उन्हें राजनीति का माहिर माना जाता है. क्या इन अनुभवी और मझे हुए राजनीतिक नेताओं के साथ तालमेल बिठा पाएंगे ? क्या आने वाले समय में व्यक्तित्वों का टकराव नही होगा ? इन नेताओं में गुलाम हसन मीर, दिलावर मीर, एजाज़ अहमद खान, चौधरी ज़ुल्फ़िकार अली आदि प्रमुख हैं.

सबसे बड़ा नाम हैं गुलाम हसन मीर

‘अपनी पार्टी’ में शामिल होने वाले नेताओं में सबसे अधिक बड़ा व बहुचर्चित नाम गुलाम हसन मीर का है. जम्मू-कश्मीर की राजनीति में अब्दुल्ला व मुफ्ती परिवारों की तरह ही गुलाम हसन मीर की अपनी पहचान हैं. गुलाम हसन मीर बेहद चर्चित और शक्तिशाली नाम माना जाता है. लगभग हर दौर में दिल्ली दरबार से लेकर जम्मू-कश्मीर तक उनकी ज़रूरत हर किसी को रही है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें


यह भी पढ़ें : पीडीपी से निकले अल्ताफ बुखारी बनाएंगे ‘अपनी’ पार्टी, क्या जम्मू कश्मीर में ये राजनीतिक प्रयोग सफल होगा


छोटे कद के होने का बावजूद गुलाम हसन मीर का राजनीतिक कद बहुत लंबा रहा है. लंबे समय से राज्य की राजनीति में अपनी भूमिका निभा रहे गुलाम हसन मीर पहली बार उस समय चर्चा में आए थे जब उन्होंने 1984 में फारूक अब्दुल्ला की सरकार को गिराने और फारूक अब्दुल्ला के बहनोई गुलाम मोहम्मद शाह की सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाई. हालांकि, शाह के साथ उनकी ‘दोस्ती’ अधिक दिन तक चली नहीं.

इसी तरह से 1999 में मुफ्ती मोहम्मद सईद ने जब पीडीपी बनाई तो गुलाम हसन मीर यहां मुफ्ती के साथ कंधे से कंधा मिलाकर पार्टी को बनाने में जुटे रहे. उन्हें भी पीडीपी का संस्थापक माना जाता था, लेकिन मुफ्ती के साथ पैदा हुए मतभेदों के चलते उन्होंने बहुत जल्दी पीडीपी को छोड़ दिया.

मुफ्ती मोहम्मद सईद व पीडीपी से अलग होने के बाद गुलाम हसन मीर ने जम्मू-कश्मीर डेमोक्रेटिक पार्टी नेशनलिस्ट का गठन किया और 2008 के विधानसभा चुनाव में कईं जगह से अपने उम्मीदवार खड़े किए. उनका कोई प्रत्याशी तो जीत नहीं सका अलबत्ता खुद टनमर्ग निधानसभा क्षेत्र से जीत गए. बाद में नेशनल कांफ्रेस-कांग्रेस गठबंधन सरकार में कांग्रेस कोटे से मंत्री बने.

मंत्री रहते गुलाम हसन मीर का नाम उस समय अचानक चर्चा में आया था जब 2013 में पूर्व सेनाध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री वी के सिंह ने यह कह कर तूफ़ान खड़ा कर दिया था कि सेना की ओर से कश्मीर में कुछ राजनीतिक नेताओं को पैसा दिया जाता है.

पूर्व मुख्यसचिव से लेकर पूर्व आतंकवादी हैं पार्टी में

पूर्व मुख्यसचिव विजय बकाया से लेकर पूर्व आतंकवादी से नेता बने उस्मान मजीद सहित लगभग 38 राजनीतिक नेताओं ने फ़िलहाल ‘अपनी पार्टी’ का दामन थामा है.

विजय बकाया 2005 से 2006 तक जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्य सचिव रहे. सेवानिवृत्त होने के बाद राजनीति में आ गए और नेशनल कांफ्रेस में शामिल हो हुए. विजय बक़ाया नेशनल कांफ्रेस की ओर से विधान परिषद के सदस्य भी रह चुके हैं.

इसी तरह से नए दल में शामिल होने वाला अन्य चर्चित चेहरा उस्मान मजीद का है. उस्मान मजीद आतंकवादी रह चुके हैं. आतंकवाद छोड़ने के बाद 2002 और 2014 में दो बार कांग्रेस की टिकट पर बांडीपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और विधायक भी चुने गए.

हर दल का है अनुभव

इस नए राजनीतिक दल में शामिल होने वाले कईं लोग ऐसे भी हैं जो पहले भी कईं दल-बदल चुके हैं. कुछ राजनीतिक दलों को छोड़ने का रिकार्ड बना चुके हैं जबकि कुछ-एक ऐसे भी हैं जो नए दलों को बनवाने ही नहीं उनको तोड़ने के जिम्मेदार भी रहे हैं. लेकिन जिस तरह से बड़ी संख्या में विभिन्न राजनीतिक दलों से अलग हुए नेता अलताफ़ बुख़ारी की ‘अपनी पार्टी’ के बैनर तले इकट्ठे हुए हैं. उसे लेकर यह सवाल अहम है कि यह सब कब तक पार्टी में बने रहेंगे.

लगभग हर दल में रहने के बाद ‘अपनी पार्टी’ में शामिल होने वाले कुछ नेताओं में से ऐसा ही एक चर्चित नाम है पूर्व विधायक दिलावर मीर का. दिलावर मीर को जम्मू-कश्मीर में राजनीति का मौसम वैज्ञानिक माना जाता है. मीर कब कहां, किस पार्टी में हों कहा नहीं जा सकता.


यह भी पढ़ें : जम्मू-कश्मीर में डोमिसाइल के मुद्दे पर सभी राजनीतिक पार्टियां एकमत दिखाई दे रही हैं


1984 में फारूक अब्दुल्ला की सरकार को गिराने और उन्ही के बहनोई गुलाम मोहम्मद शाह की सरकार बनवाने से लेकर ‘अपनी पार्टी’ में शामिल होने तक दिलावर मीर नेशनल कांफ्रेस, जनता दल, पीडीपी का सफ़र तय कर चुके हैं.

दिलावर मीर की तरह ही जम्मू क्षेत्र के विजयपुर विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक मंजीत सिंह भी ऐसे ही नेता हैं जिनके पास कईं दलों का अनुभव है.

जम्मू-कश्मीर के एक क्षेत्रीय दल पैंथर्स पार्टी से अपने राजनीतिक सफ़र की शुरूआत करने वाले मंजीत सिंह बहुजन समाज पार्टी, पीडीपी और कांग्रेस में रह चुके हैं. बहुजन समाज पार्टी में रहते हुए 2002 में विधायक भी बने.

ऐसे भी कई नेता हैं जो अलग-अलग विचारधारा से जुड़े रहे हैं. लेकिन विपरीत विचारधाराओं से जुड़े रहने के बावजूद आज सभी ‘अपनी पार्टी’ में हैं.

(लेखक जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

share & View comments