हम कौन हैं? हम पाकिस्तानी और भारतीय हैं. हमें क्या करना पसंद है? हमें एक-दूसरे से लड़ना पसंद है. और हमें इसके लिए किसी खास मौके की तलाश भी नहीं होती है. क्या हमें लड़ने के लिए कोई नई जगह चाहिए? बिल्कुल, हम इससे इनकार नहीं करेंगे. जितनी ज्यादा हो सके, उतनी ही अच्छी बात है.
तो फिर ट्विटर स्पेस में कदम रखें, जो हमारी दबी-छिपी आवाजों को ‘मुखर’ करने के लिए एक नया ऑडियो चैट रूम है.
यहां, दिखाया तो ऐसा जाता है जैसे एक-दूसरे को बहुत पसंद करते हों, जिसे दूसरे शब्दों में एक-दूसरे को अच्छी तरह ‘समझना’ कह सकते हैं, लेकिन होता क्या है, चैट रूम में दो मिनट बाद ही सब कुछ भारत बनाम पाकिस्तान बन जाता है. ऐसा लगता है कि अगला विश्व युद्ध यहीं पर शुरू होगा और हम सभी को ट्विटर की दुनिया से मिटाकर ही दम लेगा.
ऐसा नहीं है कि यूट्यूब के कमेंट सेक्शन, फेसबुक पोस्ट या किसी ट्वीट पर मुंहतोड़ जवाब देकर लड़ने के दिन चले गए हैं—यह सब तो बदस्तूर जारी है. लेकिन स्पेस कुछ ऐसा है जैसे सड़क हादसे के बाद एकदम देसी अंदाज में जुटी भीड़, जहां दो लोगों की मोटरबाइक एक-दूसरे से टकरा जाने के बाद 100 लोग बस जानने के लिए एकत्र हो जाते हैं कि आखिर चल क्या रहा है.
जब बोलने वाले हैं, तो सुनने वाले भी रहेंगे ही, लेकिन यहां सुनना कौन किसकी चाहता है जबकि कुछ बोलने में पीछे रह जाने को दुनिया के अंत जैसा मान लिया जाता हो. मित्रों! यह कोई आपकी मुहल्ला समिति की बैठक तो है नहीं. भारत और पाकिस्तान के मामले में यह संयुक्त राष्ट्र से छोटा मंच नहीं है. इस स्पेस में हिस्सा लेने वाले लोग खुद को इतनी गंभीरता से लेते हैं कि मानों उनकी बातें ही देश को बनाने और बिगाड़ने की कूव्वत रखती है.
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गर्मागर्म चर्चाओं के लिए स्पेस
ट्विटर स्पेस पर खूब गर्मागर्म बहस-मुबाहिसे चल रहे हैं: भारत की तरफ से फिर से सर्जिकल स्ट्राइक की चेतावनी दिए जाने से लेकर भारत में वैक्सीन को लेकर जाति के आधार पर भेदभाव पर पाकिस्तानियों के चिंता तक. जुनून इस हद तक बढ़ जाता है कि लोग यह भी भूल जाते हैं कि उनकी सरकार का अभी टीके खरीदना ही बाकी है. फिर अखंड भारत पर भी चर्चा होती है—आखिर हम सब फिर से एक बड़ा परिवार कैसे बनेंगे. सोचिए तब स्पेस कितना रोचक होगा. इसके अलावा गजवा-ए-हिंद के जरिये भारत पर कब्जे और लाल किसे पर पाकिस्तानी झंडा फहराने की मंशा रखने वाले भी अपने मिशन पर हैं.
वक्ताओं को तो यहां तक लगता है कि आईएमएफ का यह अनुमान लगाना कि भारत की जीडीपी 11.5 प्रतिशत और पाकिस्तान की 1.5 प्रतिशत बढ़ेगी, और कुछ नहीं पाकिस्तान के खिलाफ दुनिया की एक साजिश है.
भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार फिर से बहाल होने को लेकर एक सबसे बड़ी चिंता पर जमकर बहस होती है लेकिन इसका नतीजा घूम-फिरकर कुछ नहीं निकलता है. हो सके तो भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा दोनों को स्पेस को आजमाना चाहिए और देखना चाहिए कि यहां किस आला दर्जे की चर्चा होती है. यह स्पेस इस्तेमाल करने वाले एजेंटों का एक सुझाव मात्र है. न्यूक्लियर मसले पर बातचीत? बेशक, अब तक स्पेस पर मौजूद हर किसी ने अपने परमाणु हथियार बना लिए है, और हम जैसे सिर्फ श्रोता बनने वाले लोगों को इससे डरना चाहिए. आपको लग रहा होगा कि यह मुद्दा तो छूट ही गया लेकिन ऐसा नहीं है, कश्मीर बनेगा पाकिस्तान भी हमारे जिक्र से निकलकर स्पेस तक पहुंच चुका है. गनीमत है, इसमें थोड़ी-बहुत उदारता बरती जा रही है.
India VS Pakistan? pic.twitter.com/CC4maC4aJc
— KESHU 9.0 (@Keshu__10) March 31, 2021
ये स्पेस एजेंट ज्वलंत मुद्दे उठाने से कतराते नहीं हैं; उन्हें अपने पड़ोसियों पर तो चर्चा करना पसंद है लेकिन खुद अपने मसलों पर नहीं. एक पाकिस्तानी ने इस पर जोर दिया कि उसके देश में महिला सशक्तीकरण भारत की तुलना में अधिक है. यह वही समय था जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने ‘बढ़ती अश्लीलता’ को महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा में वृद्धि के लिए जिम्मेदार ठहराया, मानवाधिकार समूहों ने पीएम को ‘रेप एपॉलाजिस्ट’ करार दिया और एक धुर कट्टरपंथी अखबार दैनिक उम्मत ने महिला प्रदर्शनकारियों को रंडी (वेश्या) तक कहने से गुरेज नहीं किया. मजहबी अल्पसंख्यक? आप बेहतर जानते हैं कि यह मामला किस दिशा में बढ़ रहा है.
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मुकाबला सख्त, समय काम
स्पेस में कभी-कभी ऐसी स्थिति आ जाती है कि जब हर कोई एक-दूसरे से अपनी बात कहना शुरू कर देता है और किसी को पता नहीं होता (या परवाह भी नहीं होती) कि आखिर कहा क्या जा रहा है. ऐसे वक्त में मुझे कुछ याद आता तो हमारे प्राइमटाइम न्यूज शो, भारत और पाकिस्तान दोनों में, जिसमें सभी मेहमान चीख-चिल्ला रहे हैं लेकिन हमें एक ऐसे न्यूज एंकर की कमी महसूस हो रही है जो इन सबसे अधिक तेज चिल्लाकर मुकाबला जीत सके. हम्म! स्पेस का हिस्सा बनने वालों को एक अर्णब गोस्वामी की जरूरत है.
इस ब्रेन-ब्लोइंग ऑडियो चैट के दौरान कई बार हमें यह एहसास कराया जाता है कि कैसे स्पेस सही दिशा में उठाया गया एक कदम है, चंद्रमा पर नील आर्मस्ट्रांग के पहले कदम से बस थोड़ा ही कम. यह मत पूछिये कि कैसे. ये मत भूलिये कि हर कोई यही दावा करता है कि वे शांति के लिए हर पहलू पर चर्चा के उद्देश्य से यहां है, सिवाये उनकी हाई डेसीबल बहस (यदि आप उन्हें ऐसा मानें तो) को छोड़कर, जो कुछ और ही संकेत देती है. यह नई और बदली हुई अमन की आशा है, जहां हर कोई अमन चाहता है लेकिन हमें आशा कहीं नजर नहीं आती. लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है, चीजें हमेशा बदलती रहती हैं.
थोड़ी-थोड़ी देर के बाद मेजबान और वक्ताओं की तरफ से बेहद कम अहमियत रखने वालों यानी श्रोताओं को ये याद दिलाया जाता रहता है कि अगर दृढ़ विश्वास और लगन के साथ पूरी तरह सकारात्मक भाव रखें तो स्पेस एक बड़ा बदलाव लाने वाला साबित होगा. यह ठीक उसी तरह है जब हम ऑनलाइन शॉपिंग एप्स का बहुत ज्यादा इस्तेमाल करते हैं तो अपनी कार्ट में चीजें एड कर लेते हैं लेकिन उन्हें कभी खरीदते नहीं हैं. एकमात्र वास्तविक बदलाव यही है.
लेखिका पाकिस्तान की स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. व्यक्त विचार निजी हैं.
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