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Friday, 22 November, 2024
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UP से लेकर MP तक- कानून का खौफ और विकास दिखाने के लिए ‘बुलडोजर’ बना एक नया मूलमंत्र

शिवराज सिंह चौहान ने यूपी के सीएम आदित्यनाथ की 'बुलडोजर बाबा' किताब से एक पत्ता निकाला और खुद को मध्यप्रदेश के 'बुलडोजर मामा' में बदलते हुए उनकी तर्ज पर काम करना शुरू कर दिया. लेकिन कानूनी तौर पर वह कितनी दूर तक जा सकते हैं?

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इस साल रामनवमी के जुलूस में मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और झारखंड में बड़े पैमाने पर हिंसा और दंगे हुए. मध्य प्रदेश का खरगोन सबसे ज्यादा प्रभावित रहा. यहां पचास से अधिक घर जो ज्यादातर मुस्लिमों के थे और दुकाने जलकर खाक हो गए. उसके बाद शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार ने शोभायात्रा पर पथराव करने वालों के खिलाफ सख्त रुख अख्तियार करते हुए 16 घरों और 29 दुकानों को ध्वस्त करने के लिए बुलडोजर चलवा दिया.

संयोग से, ध्वस्त किए गए कुछ घर ऐसे थे जिन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनाया गया था. सीएम का आभार पत्र उनकी दीवारों पर चिपका पड़ा था. लेकिन स्थानीय नगरपालिका अधिकारियों को कहां इसकी परवाह थी. उन्होंने सोमवार को बिना किसी जांच या अदालत के आदेश के इन घरों को जमींदोज कर दिया.

27 से ज्यादा एफआईआर दर्ज की गई और 80 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. नुकसान के खिलाफ मुआवजे की राशि की वसूली के लिए क्लेम्स ट्रिब्यूनल का गठन किया गया. गिरफ्तार किए गए लोगों में ज्यादातर मुसलमान हैं और जिन लोगों के घर तोड़े गए हैं वे भी मुस्लिम समुदाय से ही हैं. मध्य प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर दंगों के लिए फंडिंग करने का आरोप भी लगाया है.

उधर, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समेत कई विपक्षी नेताओं ने घरों पर बुलडोजर चलाने की कार्रवाई को ‘असंवैधानिक’ करार दिया. गहलोत ने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री तक को भी उचित जांच से पहले किसी भी आरोपी के घर को ध्वस्त करने का अधिकार नहीं है. उनके अनुसार, खरगोन में जो हुआ वह भारतीय संविधान के साथ ‘मजाक’ है.

खरगोन की घटना के बाद से शिवराज सिंह चौहान की छवि ‘बुलडोजर मामा’ की हो गई है, जो यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की ‘बुलडोजर बाबा’ की छवि को टक्कर देती नजर आ रही हैं. इसीलिए ‘बुलडोजर’ या यूं कहें कि ‘बुलडोजर राजनीति’, जिसकी शुरुआत यूपी से हुई थी और अब अन्य भाजपा शासित राज्यों में फैल रही है.

1923 में खेती के लिए बुलडोजर डिजाइन करने वाले अमेरिकी किसान जेम्स कमिंग्स और जे. अर्ल मैकलॉड ने कभी नहीं सोचा होगा कि ये विशाल मशीन भारत में चुनाव जीतने के लिए सबसे बड़े चुनावी उपकरणों में से एक बन जाएगी. अब तो ऐसा लगता है कि एक सरकार कितनी मजबूत और तेजी से निर्णय लेने में सक्षम है, इसका आकलन उसके विकास कार्यों से नहीं बल्कि नागरिकों के घरों को ध्वस्त करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बुलडोजरों की संख्या से किया जाएगा.

‘बुलडोजर बाबा’ के रूप में योगी

यूपी के एडीजी प्रशांत कुमार के मुताबिक, बीजेपी और आदित्यनाथ के दोबारा सत्ता में आने के दो हफ्ते के अंदर ही पचास से ज्यादा ‘अपराधियों’ ने बुलडोजर के डर से आत्मसमर्पण कर दिया. पहली घटना प्रतापगढ़ जिले की है, जहां पुलिस ने बलात्कार की शिकायत मिलने पर आरोपी व्यक्ति के घर के सामने बुलडोजर लगा दिया. अगले दिन आरोपी ने सरेंडर भी कर दिया.

इसी तरह 25 मार्च को सहारनपुर में पुलिस की टीम आमिर और आसिफ नाम के दो आरोपियों के घर बुलडोजर लेकर पहुंच गई और उनके घर का एक हिस्सा तोड़ दिया. यह कार्रवाई दुष्कर्म के मामले को लेकर की गई थी. पुलिस के मुताबिक आरोपी ने कुछ देर बाद ही आत्मसमर्पण कर दिया. रामपुर जिले के टांडा थाना क्षेत्र में पुलिस ने हत्या के एक आरोपी के घर को ढहा दिया. इस घटना के जांच के आदेश दे दिए गए हैं.

कुल मिलाकर यूपी पुलिस कोर्ट जाने की जगह कानून का खौफ पैदा करने के लिए खुलेआम बुलडोजर का इस्तेमाल कर रही है. आदित्यनाथ सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले मुसलमानों के खिलाफ एक वसूली अभियान शुरू किया था. जिला प्रशासन द्वारा जारी नोटिस के खिलाफ अदालत को हस्तक्षेप करना पड़ा और इनमें से ज्यादातर मामलों में पुलिस आज तक अपराध साबित नहीं कर पाई है. नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ उपद्रव में गिरफ्तार थिएटर अभिनेता दीपक कबीर का मामला काफी सुर्खियों में रहा था. इस मामले में कार्रवाई को लेकर सरकार की काफी आलोचना की गई थी और उनकी रिहाई के बाद सरकार काफी किरकिरी भी हुई.

गैंगस्टर अधिनियम के अनुसार, बुलडोजर के इस तरह के किसी भी इस्तेमाल से पहले पुलिस जांच अनिवार्य है. लेकिन ज्यादातर मामलों में इस नियम का पालन नहीं किया गया है. सत्ता में अपनी मजबूती दिखाने के लिए 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान रैलियों में बुलडोजर का इस्तेमाल किया गया था. उन्हें रैली स्थलों पर भी तैनात किया गया. आदित्यनाथ ने करहल (अखिलेश यादव की सीट) से घोषणा करते हुए कहा था कि कि बुलडोजर रखरखाव के लिए भेजे गए हैं और 10 मार्च (नतीजे वाले दिन) के बाद फिर से काम करना शुरू कर देंगे.


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शिवराज मामा से ‘बुलडोजर मामा’

संघ परिवार के भीतर आदित्यनाथ की तेजी से बढ़ती लोकप्रियता, उनकी हिंदुत्ववादी नीतियों, ‘लव जिहाद’ के खिलाफ कार्यक्रम, एंटी-रोमियो स्क्वॉड और बुलडोजर का इस्तेमाल कुछ ऐसी वजह हैं, जो अन्य भाजपा सीएम को ‘योगी मॉडल’ का अनुकरण करने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं. शिवराज सिंह चौहान, जो कभी एल.के. आडवाणी के सबसे भरोसेमंद सीएम हुआ करते थे, योगी के पदचिन्हों पर चलने में सबसे आगे रहे हैं.

उन्होंने दंगों की वजह से होने वाले नुकसान की वसूली के लिए यूपी से ज्यादा कठोर कानून पारित किए हैं. इसमें एक निश्चित समय के भीतर क्षतिग्रस्त संपत्तियों के दुगने कीमत वसूलने का प्रावधान है. 22 मार्च को जब रायसेन जिले में दो समुदायों के बीच झड़प के बाद एक आदिवासी युवक की मौत हो गई, तो शिवराज ने आरोपी व्यक्तियों के घरों को गिराने का आदेश दे दिया. वहीं श्योपुर में एक बलात्कार के मामले के चलते घरों को ध्वस्त कर दिया गया था. प्रशासन ने दावा किया कि वे घर अवैध जमीन पर बनाए गए थे.

31 मार्च को जब एक रेप के मामले में साधु का नाम सामने आया तो सीएम ने अधिकारियों से खुलकर कहा कि बुलडोजर कब काम आएगा. बीजेपी विधायक रामेश्वर शर्मा ने बुलडोजर के साथ अपनी एक फोटो भी खिंचवाई थी. ‘मैं अपराधियों को दफनाऊंगा’ पिछले एक साल में शिवराज का पसंदीदा नारा बन गया है.

‘मस्कुलर सीएम’ क्लब

कई भाजपा नेता बताते हैं कि ‘ ‘मस्कुलर पोलिटिक्स’ या कहें कि दादागिरि वाली राजनीति शिवराज की मजबूरी बन गई है. क्योंकि भाजपा खासकर अमित शाह व मोदी और साथ ही आरएसएस अब ऐसे नेताओं को पसंद करने लगे हैं जो जैसे को तैसा जवाब देते हैं. शायद यही वजह है कि बीजेपी में असम के हिमंत बिस्वा सरमा से लेकर कर्नाटक के बी.आर. बोम्मई तक ‘मस्कुलर सीएम’ क्लब में शामिल होने के लिए जबरदस्त मुकाबला है.

कानूनी जानकार पूछते हैं कि अगर सरकार अपनी पसंद-नापसंद के आधार पर ‘न्याय’ करना शुरू कर देती है, तो अदालतें किस लिए हैं? उनका तर्क है कि ‘बुलडोजर राजनीति’ एक खतरनाक प्रवृत्ति की शुरुआत है और अपराधियों के मन में डर पैदा करने के लिए कानून को दरकिनार करने के बजाय, उन्हें और कड़ा बनाए जाने की जरूरत है.

भाजपा संस्थापक अटल बिहारी वाजपेयी की ‘विकास पुरुष’ की छवि उनके कार्यकाल के दौरान राष्ट्रीय राजमार्गों और पीएम सड़क योजना के राष्ट्रव्यापी नेटवर्क की वजह से बनी थी। मोदी की ‘विकासोन्मुख मुख्यमंत्री’ की छवि इसी तरह ‘वाइब्रेंट गुजरात समिट्स’ के कारण संभव हुई. यहां तक कि कांग्रेस की शीला दीक्षित की लोकप्रियता भी दिल्ली में फ्लाईओवर और मेट्रो नेटवर्क के निर्माण का नतीजा थी. और इस सब में बुलडोजर कहीं नहीं था. योगी आदित्यनाथ और शिवराज सिंह चौहान को यह बात अच्छे से याद रखनी होगी.

(ये विचार व्यक्तिगत हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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