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Thursday, 25 April, 2024
होममत-विमतभारत में जाति विरोधी आंदोलन को बढ़ावा देने लिए ब्लैक लाइव्स मैटर जैसी आग चाहिए, तभी वह मुख्य विलेन से लड़ पाएगा

भारत में जाति विरोधी आंदोलन को बढ़ावा देने लिए ब्लैक लाइव्स मैटर जैसी आग चाहिए, तभी वह मुख्य विलेन से लड़ पाएगा

भारत में एक राष्ट्रव्यापी शांतिपूर्ण आंदोलन वक्त की ज़रूरत है, जातीय संबंधों में बदलाव लाने और मनु को मुख्य खलनायक का दर्जा दिलाने के लिए इस आंदोलन को 'कलर रिवॉल्यूशन' से प्रेरणा लेनी होगी.

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कोविड -19 से प्रभावित दुनिया एक ऐसे दौर से गुजर रही है जिसे ‘कलर रिवॉल्यूशन’ कहा जा सकता है. डेरेक चाउविन नामक एक गोरे पुलिस अधिकारी द्वारा 46 वर्षीय अफ्रीकी-अमेरिकी जॉर्ज फ्लॉयड की निर्मम हत्या के बाद एक नई ऊंचाई पर पहुंच चुका ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आंदोलन इस क्रांति को एक नया रूप दे रहा है. दुनिया भर के अश्वेत और उनका साथ दे रहे एशियाई और लोकतंत्रवादी गोरे, इतिहास के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में, उपनिवेशवादियों के चहेते रहे गुलामों के व्यापारियों और नस्लवादियों की मूर्तियों को गिरा रहे हैं.

भारत को अभी भी ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ जैसी व्यापकता वाले जाति विरोधी आंदोलन का इंतज़ार है, जबकि नस्ली और जातीय भेदभाव दोनों के अतीत, वर्तमान और शायद भविष्य को भी जोड़ने वाला एक साझा पहलू है – हीन और श्रेष्ठ की धारणा.

श्रेष्ठता की धारणाओं के आधार पर गोरों ने बेगारी या सस्ते श्रम के लिए जिस प्रकार अश्वेतों को अपने अधीन किया, ठीक उसी प्रकार भारत में तथाकथित उच्च जातियों ने खुद को श्रेष्ठ बताकर हिंदू समाज की वर्ण व्यवस्था में अपना वर्चस्व स्थापित करने और उसे कायम रखने के लिए शूद्रों और दलितों का शोषण किया.

इसके अलावा, जैसे अमेरिकी और यूरोपीय गोरों की वर्तमान पीढ़ी गुलामों के व्यापार और उपनिवेशवाद के लिए जिम्मेदार नहीं है लेकिन उनसे जुड़े फायदे प्राप्त करती है, उसी तरह भारत में द्विज जातियां, विशेष रूप से ब्राह्मण, अपने पूर्वजों द्वारा शूद्रों और दलितों के उत्पीड़न से बहुत लाभान्वित हुए हैं. अब जबकि ‘कलर रिवॉल्यूशन’ शोषण के तमाम प्रतीकों को निशाना बनाना शुरू कर चुकी है, भारत में भी जाति प्रथा के खिलाफ क्रांति की जरूरत है.


यह भी पढ़ें: कोल्सटन और कोलंबस की प्रतिमाएं हो ना हो लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर आंबेडकर की याद में प्रतिमाएं होनी चाहिए


नस्लवादियों और जातिवादियों की प्रतिमाएं गिराई जाएं

गुलामों के व्यापारियों तथा क्रिस्टोफर कोलंबस और वास्को डी गामा जैसी ऐतिहासिक शख्सियतों – जिन्हें उनकी भौगोलिक खोजों के लिए लोकप्रिय बनाया गया, लेकिन वास्तव में जिन्होंने श्वेत उपनिवेशवाद की राह बनाई – की भूमिकाओं का नए सिरे से आकलन किया जा रहा है. न केवल उनकी छोटी-बड़ी प्रतिमाओं को गिराया जा रहा है, बल्कि मांग की जा रही है कि मानव शोषण, उत्पीड़न और हिंसा को दर्शाने वाले संग्रहालय स्थापित कर वहां पर इन प्रतिमाओं को प्रदर्शित किया जाए. क्योंकि आने वाली पीढ़ियों को पता होना चाहिए कि ये लोग मानव पीड़ा, कष्ट और जनहानि का कारण बने थे.

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भारत में भी अब ऐतिहासिक रूप से प्रतिष्ठित जातिवादी शख्सियत मनु, जिनकी प्रतिमा जयपुर में राजस्थान उच्च न्यायालय के परिसर में स्थापित है, के बारे में थोड़ी जागरुकता आई है. दिसंबर 2018 में दो दलित महिलाओं, कांताबाई अहिरे और शीला पवार, ने मनु की इस प्रतिमा पर कालिख पोत दी थी, जिसके लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया था. वे जमानत पर बाहर हैं लेकिन उनके खिलाफ मामला अभी भी जारी है.

लेकिन मनु की प्रतिमा के माध्यम से ही भारत में जाति-विरोधी क्रांति शुरू की जा सकती है. एक राष्ट्रव्यापी शांतिपूर्ण आंदोलन वक्त की ज़रूरत है, तथा जातीय संबंधों में बदलाव लाने और मनु को मुख्य खलनायक का दर्जा दिलाने के लिए इस आंदोलन को ‘कलर रिवॉल्यूशन’ से प्रेरणा लेनी होगी.

जातिवादी मनु

मनुस्मृति का रचयिता होने के नाते मनु वैसे भी भारत की जाति व्यवस्था के सबसे प्रसिद्ध प्रतीक हैं.
शूद्रों, दलितों और महिलाओं के बारे में उनके विचारों की निम्नांकित बानगी एक ऐसे चरित्र को प्रकट करती है जो कतई अमानवीय है.

लेकिन एक शूद्र, वो खरीदा गया हो या बिना खरीदा हुआ, को सेवा कार्य करने के लिए विवश किया जा सकता है; क्योंकि उसे एक ब्राह्मण की दासता के लिए स्वयंभू द्वारा सृजित किया गया है. [श्लोक 8.413]

एक बार जन्म लेने वाला पुरुष (शूद्र), यदि किसी द्विज पुरुष को अपशब्दों से अपमानित करे, तो उसकी जीभ काट दी जाए; क्योंकि वह निम्न मूल का है. [श्लोक 8.270]

चांडाल के समीप जाने से व्यक्ति का पतन हो जाता है. [श्लोक 22.4.3.4.3]

यदि एक ब्राह्मण अनजाने में चांडाल या अत्यंत निचली जाति की किसी अन्य महिला के समीप जाता है, उनका अन्न खाता है अथवा उनका दान लेता है तो वह जात-बाहर हो जाता है; लेकिन यदि जानबूझकर ऐसा किया गया हो तो वह उनके बराबर हो जाता है. [श्लोक 11.176.]

बालिका हो या युवती या वृद्धा, उसे अपने घर तक में भी अपनी मर्जी से कुछ नहीं करना चाहिए. [श्लोक 5.147.]

बीआर आंबेडकर ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विरोध स्वरूप मनु की पुस्तक को जलाया था. लेकिन आंबेडकर की एक प्रतिमा के सामने सार्वजनिक रूप से घुटने टेकने और सदियों से जारी जातीय उत्पीड़न और छुआछूत – आज भी जारी प्रथाएं – के लिए पश्चाताप करने के बजाय द्विजों ने भेदभाव के प्रवर्तक की प्रतिमा स्थापित की, वो भी एक न्यायालय परिसर में.


य़ह भी पढ़ें: फुले और आंबेडकर ने भारत में जातिगत भेदभाव देखा था इसलिए वे काले लोगों के साथ हो रहे नस्लीय भेदभाव को समझते थे


जाति विरोधी आंदोलन

मनु और उनके अनुयायी शूद्रों, दलितों और महिलाओं को दासों वाला दर्जा देते हैं और इसके कारण जातीय पदानुक्रम, महिला असमानता और सामाजिक उत्पीड़न का प्रसार होता है. राजस्थान के गुर्जर, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के जाट, गुजरात के पटेल, महाराष्ट्र के मराठे, और यादव शूद्र कृषक वर्ग में आते हैं. इन सभी को भारत जैसे संवैधानिक लोकतंत्र में मनु की मूर्तियों की मौजूदगी पर विचार करने की ज़रूरत है.

मनु की संकल्पना में, कृषि उत्पादन का – वास्तव में उत्पादन के दर्शन का ही – एक नकारात्मक स्थान है, और यह धारणा आम भारतीयों के जीवन में भी घर कर चुकी है. शूद्रों से जुड़ाव के कारण इस तथाकथित ’प्रदूषित’ स्थिति के चलते भारत में कृषि का विकास बाधित है. श्रम के प्रति प्रणालीगत उदासीनता – गांवों में और शहरों में भी जैसा कि कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान प्रवासियों की स्थिति से उजागर हुआ – भारतीयों को मनु से मिली इस उत्पादन-विरोधी मानसिकता के कारण है.

समाज को द्विज और गैर-द्विज तथा स्पृश्य और अछूत के आधार पर बांटने का परिणाम घातक रहा है. इन जाति-आधारित सामाजिक विभाजनों को खत्म करने का समय आ गया है. मनु की प्रतिमा को राजस्थान उच्च न्यायालय परिसर से हटाकर भारत की जाति व्यवस्था के संग्रहालय में रखने से एक गणतांत्रिक लोकतंत्र के रूप में भारत का कद बढ़ सकेगा.

हमें गैर-बराबरी के अपने अतीत को पीछे छोड़ पूर्ण समानता की ओर कदम बढ़ाना चाहिए.

(लेखक, राजनीतिक सिद्धांतकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. व्यक्त विचार उनके अपने हैं.)

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22 टिप्पणी

  1. Kancha ilaiyah shepherd ek converted christchian hai Hindu dharm aur Hindu samaj ko divide Karna hee aise writers ka agenda hai

  2. I really appreciate somebody courage to charge from enamy of India to write such a provocative article at the time pandemic. Please clarify why indian govt. should not put a case of desh- droh against you to de-stabilize our country at this crucial time. Present govt. have every right to do so. You are giving example of centuries ago and trying to hide the recent achievements and changes being made in our society. You have not mentioned about others societies backwardness, who still carry their same type of system and rituals.

  3. लेख लिखने वाले ने मानो केवल अपनी निजी भड़ास निकालने के लिए ये लेख लिखा हो। मनुस्मृति का दुष्प्रचार करके हिन्दू धर्म को बाटने की लेखक की मंशा स्पस्ट उजागर हुई है। हो भी क्यों न द प्रिंट प्रोपोगेंडा चलाने का ही तो व्यवसाय करती है। राजनीतिक सिद्धांतकर और सामाजिक कार्यकर्ता नहीं ये लेखक किसी ईसाई मिशनरी के लिए कनवर्जन का काम करता होगा। वैसे ईसाईयों में क्यों रोमन कैथोलिक सीरियन ऑर्थोडॉक्स ना जाने क्या क्या जातियां बटी हुई हैं । यह भी लेखक को लिखना चाहिए था। यदि इस लेख का विरोध किया जाय तो पत्रकारिता और संविधान खतरे में आ जाएगा। अंत में इतना ही कहना चाहूंगा की द प्रिंट विशुद्ध दलाल है।
    जय हिन्द । जय भारत।

  4. विल्कुल सत्य कहा सर आपने,जबतक देश में समाजिक एकता नही आयेगी तवतक रास्ट्रीय एकता की कल्पना करना एक स्वपन है

  5. विषयों को तोड मरोड़ कर भारतीय खासकर हिन्दू समाज को तोड कर उन्हें अपनी संस्कृति की प्रति जगुरक ना होने देना ही आपका एक मात्र उ्देश्य है

  6. कितना ज़हर फैलाओगे समाज में ? देश आप ( आंबेडकर) द्वारा बनाया गया संविधान से चल रहा है । १२०० साल से पूरा हिन्दू समाज शोषित,पीड़ित, वंचित था फिर भी संविधान के निर्माता ओ के निर्माताओं ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति को बराबर के हक दिलाने ,आगे आने के लिए आरक्षण की सुविधा दी जिस का फायदा खास कर के अजित जोगी , के नारायन जैसे ठग ईसाई , सरकारी, अर्ध सरकारी अधिकारियों के वारिस ही उठा रहे है। अनुसूचित जन जाति में करीब ३०० से ५३० जाती है लेकिन सिर्फ तीन चार जाती ही हावी हो कर सारा लाभ उठा लेती है। यह दोनों समाज का नेतृत्व ठग इसाई ओ के हाथ में आ गया है और वह एक षडयंत्र के तहत मनुवाद को आगे कर हिन्दू समाज को गाली दे रहे है। आज गाली देना है और दूसरा स्टेप ईसाई में परिवर्तन फिर भी संतोष नहीं होगा तो नक्सली बना कर हिन्दू पुलिस दल को रक्त रंजित करोगे । बेशर्मों मनु स्मृति तो आप ने संविधान की मदद से( ३० ए ) पढ़ने तक नहीं दी फिर भी गाली ? आरक्षण का लाभ सिर्फ गिने चुने सरकारी, अर्ध सरकारी अधिकारी ओ के परिवार , सैकड़ों जाती में से सिर्फ तीन, चार जाती और हिन्दू नामधारी ठग ईसाई ही उठा रहे है और आप जिसको आज तक कुछ फायदा नहीं हुआ ऐसे लोगो के मन में शेष हिन्दू समाज को जवाबदार साबित कर के ज़हर भर रहे हो ।
    १) सैकड़ों जाती है sc st सोसाइटी में उनमें सिर्फ तीन से चार जाती के शक्ति संपन व्यक्ति ही क्यों सारा लाभ उठा रहे है ? हर पांच साल में रोटेशन क्यों नहीं ?
    २) अजित जोगी, के नारायन जैसे ठग ईसाई जन्म से मृत्यु तक आरक्षण का लाभ उठा रहे है और आप क्यों चुप हो जाते है ?

  7. Think in a progressive way…. What happened that was in past…Nothing to do with current scenario…
    We even don’t know what this Manusmriti had rubbish in it…Neither we care…Nor we follow..
    So don’t start this rubbish again, India is currently battling many disputes at various front .So stop spreading Hatred Mr Kancha Shepherd ..
    You say Castism is evil, you see in any procedure be it admission ,be it promotion , all the caste benefiting from reservation ,are the first to produce” Caste certificate” to avail the best despite staying at lower merit… Then are you not ashamed ,is that not castism..
    You Give up Caste based reservation , people will themselves forget who’s who….
    Coz wen no reservation, no caste certificate…No need., All are equal !!

  8. Mr. Kancha don’t give attention to these “Manu Wadi” (believers of manu who created caste system) who are intentionally trying to malign you.
    Upper caste people will always try to degrade us socially and economically. I think we are used to it now. They are the ones who divided India into different castes and Barnes for their benefit. They use this “divide and rule” policy everywhere.

  9. Apki baat se, sehmat hu to fr jati bhedh bhabh ko khatam karne ke liye arkashan ko kab khgatam kar rahe ho kyuki jab tak arkshan nhi khatam hoga tab tak dalit khud apni jati nhi shodenge

  10. Hindu samajh ko divide karna hi aapka goal hai.Aap jaise log chahte hai ki Bhartiya Culture khatm ho jaaye. Aur wo tabhi hoga jab aap aaj ki nayi generation me unke dharm aur culture ke prati nafrat aur heen bhawna bharoge.
    Bharat ki sanskriti ko todne me tum asafal hi rahoge.Meri sabhi Bhartiyon se ye appeal hai ki Hum is Bharatvarsh ki bhoomi me rehne wale Bhartiya Hain,Hum sab pehle ek Bhartiya hai.Isliye Hame apne desh ko ek rakhna hai.Aisi foot daalne wali ideologies ke viruddh ek saath khada hona hai.
    Jai Hind
    Vande Matarm???

  11. We never follow manusamarti,but many officials, of higher post follow and it has been found that they made injustice with others. This is also important to penalise them… In India many official do this, no penalties for them, improves manuwaditia. No means I do not know,,,, not in India Manuwad…Rajesthan high court MA bhi manumahraj ko statchu ha.

  12. Mr. तुम्हारे अपने पैतृक गांव में तुम्हारी स्वम् की जाति वालो ने दलित सांसद को घुसने नही दिया था। तब तुम्हे जातिवाद याद नही आया । असल मे जातिवाद की जड़ आप जैसे लोग ही हो, जो मिशनरियों के इशारे पर जहर घोलते हो।

  13. ये साला ना तो मनु के अध्ययन को जनता है केबल काल्पनिक बाते कर रहा है।इस ने अपने नाम में अपनी जाति को लेकर घूम रहा है,सरकार को बराबर का दर्जा देना चाहिए ये मनु को गाली दे सकते है लेकिन आधुनिक भारत के मनु को गाली नहीं दी जा सकती है।जिन जातियों को ये सुद्र कह रहा है केबल बहकाने की कोशिश है ये सभी क्षत्रिय जातियां हैं इसको ज्ञान नहीं है हिन्दू धर्म में कभी भी भेदभाव नहीं रहा है ब्राह्मण भी सूद्र बने है और शूद्र भी ब्राह्मण।

  14. चावल के बोरे के बदले धर्म बदलने वाले क्रिप्टो ईसाई जो विदेशी पैसों के दम पर देश मे आग लगाना चाहते हैं।

  15. व्यवसाय के आधार पर चोटी बड़ी जाति जनजाति के छोटे बड़े समूह से भारतीय समाज बना हैं।
    किसानों की आत्महत्या जैसे व्यवसायिक समस्याओं का निराकण यही प्राचीन भारतीय समाज में मिलता है।
    बचपन से व्यवसाय की सीख मिलती थी तो बेरोजगरी अपने आप खत्म होती थी।
    लेकिन लंबे समय के साथ बाहरी आक्रमणकारी और सत्ता की होड़ से समाज के कुछ घटकों को बहिष्कृत किया गया।
    उन्हें गांव की बाहर सब सुविधाओं से दूर रखा गया।
    यही गांव के बाहर निकले लोगोंको गांव की गन्दगी और इन्सानी सेवा एवं मजदूरी करने का काम दिया गया।
    उनके जीने के अधिकार पर मर्यादाएं लायी गयी।
    जिस्मानी और बौद्घिक क्षमता होते हुए उनको नागरी हक से दूर रख कर निचले गंदे काम करने पर मजबुर किया।
    सदियों से इस समाज पर हुई बर्बरता की कारण समाज में आक्रोश तयार हुआ।
    समाज में सुधार की प्रक्रिया शुरू की गई।
    महात्मा फुले, राजा राम मोहन राय, राजर्षी शाहू महाराज, संत तुकाराम, संत नामदेव जैसे कई समाज सुधारकों ने समाज की यह अन्यायक रीति रिवाजों का विरोध किया।
    भारत स्वतंत्र होने के बाद संविधान तैयार करते समय संविधान सभा में इन सुधारों पर बहस हुई।
    बड़ी विचार विमर्श के बाद समाज से आहत वर्ग के लोगों को संविधान में विशेष सुविधाओं से नवाजा गया।
    ऐसे समाज की सूची बनाकर उन्हें अनु सूचित किया गया। ऐसी अनुसूचित जाति जनजाति के लिए संविधान में न्याय दिलाने की पूरी कोशिश की।
    अनुसूचित जाति में कई जातियां हैं। लेकिन महाराष्ट्र में एक जाति के लोग उन सब जाति के कुल आबादी के लगभग ७० प्रतिशत हैं। अनुसूचित जाति में शामिल दूसरी एक जाति के २० प्रतिशत लोग है। और तीसरे जाती के ७ प्रतिशत। इस तरह इन तीन जतियोंके लगभग ९७ प्रतिशत लोग हैं। उसी हिसाब से उन जातियोंके लोग दिखाई देते है।
    कुछ लोगोंको यह अन्याय कारक महसूस होता हैं तो ओ उनकी अज्ञान के कारण।
    हमें डॉ आंबेडकर, महात्मा फुले, राजर्षी शाहू महाराज, शिवाजी महाराज, संत तुकाराम, संत नामदेव महाराज ऐसे कई दिशा दर्शक समाज सुधारक मिले हैं।
    और उनके समाज सुधार की जरूरत को पूरे देशको प्रतिनिधित्व करते संविधान सभा ने माना है।
    इन सब सामाजिक न्याय की मान्यताओं को संविधान से सबको अनुकरणीय बनाया है।
    गलत प्रथा और अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के लोगों पर होते अत्याचार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का प्रावधान किया गया है।
    इन सब बातों चलते हमें अमेरिका में शुरू जाति विरोधी आंदोलन की नीव भारत में शुरू करने की कोई जरूरत नहीं है।
    जहां हमें डॉ आंबेडकर जैसे iconic leader है वहां जॉर्ज फ्लॉयड को आइकॉन बनाने की कोशिश करना बहुत गलत है।
    हम उस जाति विरोधी आंदोलन के दौर से कई पीढ़ियां आगे चल रहे हैं।
    कुछ राजकीय पक्ष शासन को कमजोर कराने हेतु, समाज में अराजकता निर्माण करने हेतु और कुछ देश द्रोही गतविधियोंके कारण भारत में जाति विरोधी आंदोलन शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं।
    आज के अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों पर अन्याय हुआ यह सत्य है।
    लेकिन इसलिए पूरी हिन्दू समाज को और हिन्दू संस्कृति और सभ्यता को दोषी करार देना और उनकी कड़ी आलोचना करना गलत है।
    इस अन्याय का मनुसृति का आधार सही है। लेकिन भारतीय संविधान में article १३ में इस तरह की सभी मान्यताओं का कानूनी विरोध किया है।
    इतना सब होने के बावजूद जातीय आंदोलन की भारत में शुरुआत करना गलत होगा।
    हमें संविधान द्वारा दी गई सुविधाओं का लाभ मिल रहा है या नहीं? इस के लिए चौकन्ना रहना चाहिए।
    हमें तरक्की में शासन का साथ देना चाहिए।
    इसलिए भारत में जाति आंदोलन शुरू करना मतलब दो सदियां पीछे जाना।
    राजनैतिक छवि चमकाने हेतु और हिन्दू समाज को विरोध करने हेतु इस तरह के मंच तैयार करके हिन्दू विरोधियों को इकट्ठा करने की यह कोशिश हैं।
    जब की डॉ आंबेडकर साहब ने कहा था की जातीय अत्याचार छोड़ दिया तो हिन्दू संस्कृति दुनिया में सबसे अच्छी हैं।
    आज हम उन्हीं डॉ आंबेडकर का आधार लेकर हिन्दू समाज हिन्दू संस्कृति के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश कर रहे हैं।
    जो कि डॉ आंबेडकर की विचार धारा के पूर्णतः विरुद्ध हैं।
    उन्होंने मनुस्मृति जलाई लेकिन क्योंकि उन्हें सामाजिक अन्याय का विरोध प्रदर्शन करना था। और उन्हें मनुस्मृति के अन्याय कारक चिजोंको हटाने का अधिकार नहीं था। इसलिए अन्याय करनेका स्त्रोत आधार कम करने हेतु उन्होंने मनुसृती जलाकर प्रतीकात्मक विरोध जताया।
    लेकिन संविधान सभा में देश के सब लोगोंके प्रतिनिधियों के समर्थन से उन्होंने मनुस्मृति के अन्याय कारक भाग को कानूनी तरिकेसे निकाल दिया, उसे निष्प्रभ कर दिया।
    कानून बनने के बाद उसी मांग के लिए आंदोलन करना मूर्खता पूर्ण हैं।
    डॉ आंबेडकर साहब ने बौद्ध धर्म स्वीकारते हुए यह धर्म धरती से जुड़ा होने के कारण और इसी भारतीय संस्कृति का होने के कारण स्वीकारा।
    डॉ. आंबेडकर जी की विचार धारा और उन्होंने दिखाएं रास्ते पर चलना है या अमेरिका के जॉर्ज फ्लॉयड के दुखद निधन के कारण अमेरिका में शुरू आंदोलन के रास्ते पर चलना है यह समाज ने सोचना चाहिए।

  16. अमेरिका में एक जार्ज फ्लायड की हत्या होती है तो उस देश के श्वेत भी इतने आंदोलनरत होते हैं कि ट्रंप को भी व्हाईट हाऊस के बंकर मे छुपना पडता है। वह इस लिए कि वहां के समाज में लोकतांत्रिक मुल्य रच बस गए हैं। भारत में तो रोज दलित, आदिवासी,पिछडे वर्ग और अल्पसंख्यक लोगों की हत्यायें आम बात है लेकिन पीडितों की जाति के अलावा कोई आंदोलन नही करता। क्योंकि ब्राम्हणी धर्म (जिसे चालाकी से हिंदु धर्म कहा जाता है) ने पारंपारिक रुप से जनता को जातियों मे विभाजित और एक दुसरे के प्रति उच्च-नीच की भावना से भरा हुआ रखा। साथ ही लोकतांत्रिक मुल्यों के बजाए सामंती मुल्यों को सर्वोपरि बनाये रखा।

  17. Sir Jai Bharat! Jai Bhim!! JaiSanwidhan!!!.
    We need of unity with one issue like that Manu Pratima and Castism Must Target

  18. This topic is motivated by a cryptochristian because he wants to motivate something notorious, I am brahmin by birth and would say when equality come in sanatani samaj then it will be better for all and this I think was dream of baba Ambedkar ki…..there is a simple solution in my opinion give 50% arakchan to intercaste marriage within ten years this all will be over…….But savdhan from all business minded political parties and CRYPTOCHRISTIANS.

  19. I myself belong to backward caste, but during this crisis when we are fighting on multiple fronts, like covid and our international borders, how can someone think of getting involved in this fight? Our first identity at this point of time is Indian, such matters like caste system etc, would be entertained only when India is saved, so rather than fighting amongst ourselves, we should head towards fighting external forces, because of whom our soldiers are martyred everyday despite of their caste, they don’t ask our brothers there which caste they belong to, Indian word is enough for them. So rather getting indulged in this fight and diverting our attention from external affairs, we should all fight for our nation as one with the external forces.

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