आज 80 वर्षीय मुलायम सिंह यादव अपनी ही पार्टी में अलग-थलग हो चुके हैं और कमान पूरी तरह से उनके बेटे अखिलेश यादव के हाथों आ चुकी है. वहीं 79 वर्षीय शरद पवार अपने परिवार की अगली पीढ़ी के लिए चुनाव न लड़ने का ऐलान कर चुके हैं. मगर दोनों दिग्गज नेताओं से उम्र में बड़े 82 वर्षीय फ़ारूक़ अब्दुल्ला आज भी न केवल पूरी ताकत के साथ सक्रिय हैं बल्कि अपने पुत्र उमर अब्दुल्ला से दो कदम आगे रह कर उम्र के इस दौर में भी दमदार पारी खेल रहे हैं.
उमर से अधिक सक्रिय फ़ारूक़
खुशमिजाज़ फ़ारूक़ अब्दुल्ला 82 वर्ष की उम्र में भी जिस तरह से ऊर्जावान बने हुए हैं उससे लोग दांतों तले अंगुली दबा लेने को मजबूर हो जाते हैं. यहां तक की सक्रियता के मामले में अगर उनकी तुलना उनके बेटे उमर अब्दुल्ला से की जाए तो पिता कहीं न कहीं बेटे पर भी भारी पड़ते ही नज़र आते हैं.
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फ़ारूक़ अब्दुल्ला और उनके पुत्र उमर अब्दुल्ला की कार्यशैली में ज़मीन आसमान का अंतर रहा है. उमर अब्दुल्ला सार्वजनिक स्थलों पर बेहद गंभीर, बुझे-बुझे से नज़र आते हैं और आसानी से सहज नहीं हो पाते. वहीं फ़ारूक हर रंग में फ़ौरन ढल जाते हैं व बड़े आराम से हर किसी से संवाद स्थापित कर लेते हैं.
आज भी फ़ारूक़ अब्दुल्ला अपने पुत्र उमर के मुकाबले रोज़ अधिक लोगों से मिलते हैं. जम्मू कश्मीर ही नहीं देश के हर हिस्से में उनके प्रशंसक मौजूद हैं, देशभर से विभिन्न राजनीतिक व सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए उन्हें हर दिन कहीं न कहीं से निमंत्रण मिलता ही रहता हैं.
जबकि उमर के साथ ऐसा नही है, राज्य से बाहर तो दूर राज्य के भीतर भी उनकी मांग बहुत कम है. यहां तक कि नेशनल कांग्रेस के कार्यक्रमों में भी उमर को सुनने-देखने की उत्सुकता बहुत अधिक देखने को नही मिलती. साल 2014 में मुख्यमंत्री पद छूटने के बाद से उमर पार्टी कार्यक्रमों को छोड़ कर कभी भी कहीं भी नज़र नही आए. उमर का अधिकतर समय श्रीनगर के गुपकार रोड स्थित आवास में या दिल्ली में बीतता है और वे जम्मू भी बहुत कम आते हैं. जबकि फ़ारूक़ अब्दुल्ला को सुनने व देखने की बेसब्री व बेकरारी हर तरफ रहती है. खुशी हो या गम फ़ारूक़ हर जगह पहुंचते हैं.
‘न ट्विटर न फेसबुक’
उमर अब्दुल्ला अपने ट्विटर को लेकर काफी चर्चित रहते हैं और उन्हें ‘ट्विटर नेता’ के रूप में ज्यादा जाना जाता है. उमर के बारे में मशहूर है कि वह सार्वजनिक कार्यक्रमों में कम और ट्विटर पर अधिक दिखलाई पड़ते हैं. जबकि फ़ारूक़ अब्दुल्ला ट्विटर सहित अन्य मंचों पर सक्रिय नही हैं. फ़ारूक़ अब्दुल्ला 2012 में ट्विटर पर आए थे और उन्होंने 26 अगस्त 2012 को अपना पहला और अंतिम ट्विट किया था.
फ़ारूक़ अब्दुल्ला आज भी ट्विटर या फेसबुक आदि को इस्तेमाल किए बिना आम लोगों में लोकप्रिय हैं बने हुए हैं. इस उम्र में भी फ़ारूक़ अब्दुल्ला लगातार यात्राएं करते रहते हैं. देश भर में विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के साथ-साथ राज्य के हर कोने में लगातार घूमते रहना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है.
2014 में नेशनल कांफ्रेस के सत्ता से बाहर होने के बाद नेशनल कांफ्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए फ़ारूक़ पूरे राज्य का दौरा करते रहे हैं. पार्टी कार्यक्रमों के अलावा फ़ारूक़ का विभिन्न सामाजिक व अन्य संगठनों के कार्यक्रमों में जाना उनके सार्वजनिक जीवन का एक अहम अंग है. आम कार्यकर्ता से लेकर वरिष्ठ नेताओं के साथ फ़ारूक अब्दुल्ला बड़े आराम के साथ मिल बैठते हैं. पार्टी के छोटे से छोटे कार्यकर्ता को नाम से बुलाना फ़ारूक़ के लिए सामान्य बात है. दूसरी तरफ उमर के लिए पार्टी के अंदर आम कार्यकर्ता से लेकर वरिष्ठ नेताओं तक के साथ ठीक से संवाद व सामंजस्य बिठा पाने में समस्या आती रही है.
वरिष्ठ पत्रकार दिनेश मन्होत्रा का मानना है कि क्षेत्रीय राजनीति, विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों व उप संस्कृतियों में विभाजित जम्मू कश्मीर जैसे राज्य में फ़ारूक़ अब्दुल्ला ही एकमात्र ऐसे राजनीतिक नेता हैं जो सभी के बीच लोकप्रिय हैं. दिनेश का कहना है कि फ़ारूक़ ऐसे नेता हैं जो कश्मीर, लद्दाख और जम्मू में एक समान सभी वर्गों में अपनी पकड़ रखते हैं. हालांकि, दिनेश मानते हैं कि फ़ारूक़ अब्दुल्ला की लोकप्रियता का उनकी पार्टी पूरा लाभ कभी भी नहीं उठा पाई. मगर निर्विवाद रूप से फ़ारूक़ अब्दुल्ला ही पूरे राज्य के एकमात्र सर्वमान्य लोकप्रिय नेता हैं.
उमर को लेकर यह शिकायत रही है कि वो पार्टी के भीतर दो-तीन नेताओं से ही घिरे रहते हैं और वरिष्ठ नेताओं व कार्यकर्ताओं को नज़रअंदाज़ करते हैं.
उमर ने कभी भी इन शिकायतों को दूर करने की कोशिश नहीं की जबकि फ़ारूक़ को लेकर ऐसी कोई शिकायत कभी रही नहीं और अगर कभी रही भी तो उन्होंने फ़ौरन उस शिकायत को दुरुस्त किया. फ़ारूक और उमर में यही सबसे बड़ा फ़र्क़ है कि फ़ारूक अपने से दूर किसी को जाने नहीं देते जबकि उमर अपने क़रीब किसी को आने नहीं देते.
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कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार सलीम पंडित का कहना है कि उमर अब्दुल्ला अपने पिता जैसा राजनीतिक नेता चाह कर भी नहीं बन सकते और यही उमर की सबसे बड़ी कमज़ोरी है. सलीम का कहना है कि लोग उमर के अंदर फ़ारूक को ढूंढ़ने का प्रयास करते हैं पर उमर पुत्र होने के बावजूद अपने पिता के विशाल व्यक्तित्व को छू सकने की क्षमता पैदा नहीं कर पाए.
‘भजन गाते भी नज़र आते हैं फ़ारूक’
हरफनमौला फ़ारूक़ अब्दुल्ला कहीं भी किसी भी समय नज़र आ सकते हैं. कहीं कोई सत्संग हो या जगराता या कोई शादी, फारूक अब्दुल्ला दिखाई दे जाते हैं. जगराते में भजन गाते हुए और शादी समारोह में नाचते गाते हुए फ़ारूक़ ही हो सकते हैं कोई दूसरा नहीं.
सोशल मीडिया के इस दौर में जब राजनीतिक नेता सार्वजनिक जगहों पर अपने हाव भाव को लेकर बेहद चौकन्ने हो गए हैं, उस दौर में भी फ़ारूक़ आम आदमी के साथ हंसते-खेलते, मज़ाक़ करते और नाचते-गाते सार्वजनिक जगहों पर दिख जाते हैं. यही नहीं कश्मीर में इस्लामी कट्टरता बढ़ने के बावजूद उन्होंने कभी किसी की परवाह नहीं की और अपना अंदाज़ नही छोड़ा. अक्सर नाचते-गाते हुए उनके वीडियो वायरल हो जाते है. मगर फ़ारूक न थकते हैं न रुकते हैं.
कभी श्रीनगर की सड़कों पर फ़िल्म अभिनेत्रियों को मोटरसाइकिल पर बिठा कर मोटरसाइकिल दौड़ाने को लेकर चर्चित हुए फ़ारूक़ अब्दुल्ला आज भी ज़िन्दगी को बिंदास जीने का मौक़ा नहीं छोड़ते. हमेशा व्यस्त और सक्रिय रहने वाले वह गप्पबाजी और मिलने मिलाने को लिए वक़्त निकाल ही लेते हैं. किसी के साथ भी संवाद स्थापित कर लेने की कला फ़ारूक़ के पास ही है. संबंधों को निभाने का कमाल का कौशल फ़ारूक के पास है. उनके दोस्तों की फ़ेहरिस्त में अगर शरद पवार से लेकर चंद्रबाबू नायडू हैं तो जम्मू व श्रीनगर के आम आदमी के नाम भी हैं. यही बातें हैं जो फ़ारूक अब्दुल्ला को फ़ारूक अब्दुल्ला बनाती हैं.
फ़ारूक़ को समझने और जानने के लिए यह तीन किस्से काफी कुछ बयां कर देते हैं-
किस्सा एकः सभी संबंधों को महत्वपूर्ण मानना
बात फरवरी 2014 की है जब फ़ारूक़ अब्दुल्ला केंद्र में मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री थे. एक सुबह जम्मू की एक तंग गली को पूरी तरह से पुलिस ने अपने सख़्त घेरे में ले लिया और गली के एक कोने में एक घर के आगे-पीछे पुलिस पूरी मुस्तैदी से तैनात हो गई. सभी एक दूसरे से जानने की कोशिश करने लगे कि आखिर माजरा क्या है. पता चला कि गली के आख़िरी छोर पर रहने वाले बीएसएनएल के एक सेवानिवृत्त लाईनमैन मदनलाल की बेटे की शादी की बधाई देने फ़ारूक़ अब्दुल्ला आ रहे हैं, पुलिस ने घेराबंदी इसीलिए ही की है.
दरअसल, जिन दिनों वह जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री थे तो मुख्यमंत्री आवास पर मदनलाल बीएसएनएल के लाईनमैन के रूप में कार्यरत थे. लैंडलाइन फ़ोन का ज़माना था, मुख्यमंत्री आवास पर फ़ोन ठीक करने अक्सर मदनलाल को आना जाना पड़ता. इसी दौरान कभी कभार उनकी मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्ला से मुलाकात हो जाती. कुछ ही दिनों में मदनलाल और मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्ला के बीच अच्छी जान-पहचान हो गई.
आखिर एक दिन मदनलाल सेवानिवृत्त हो गए और 2002 में फ़ारूक़ को मुख्यमंत्री न रहने पर मुख्यमंत्री आवास छोड़ना पड़ा. मगर दोनों के बीच संबंध बने रहे. कुछ वर्षों बाद मदनलाल ने बेटे की शादी आई तो कार्ड उन्हें भेजा. शादी वाले दिन फ़ारूक़ जम्मू में न होने के कारण आ न सके, मगर दो दिन बाद जब फ़ारूक़ जम्मू आए तो सबसे पहले अपने दोस्त मदनलाल को बधाई देने उनके घर जाना नहीं भूले.
किस्सा दोः ड्राई फ्रूट की दुकान पर बतियाना
जम्मू के प्रसिद्ध रघुनाथ बाज़ार की एक मशहूर ड्राई फ्रूट की दुकान पर फ़ारूक़ का आना और घंटों गप्पे मारना आज भी जारी है. जब भी फ़ारूक़ जम्मू में होंगे तो इस दुकान पर ज़रूर आएंगे. मुख्यमंत्री के पद पर हों या दिल्ली में मंत्री जम्मू के रघुनाथ बाज़ार की इस दुकान पर फ़ारूक़ का आना कभी नहीं थमा. दुकान पर बैठ कर घंटो गप्पे मारना और दुकान पर आने वाले ग्राहकों के साथ फोटो खिंचवाना व आटोग्राफ देना अब एक आम बात हो चुकी है. यह सिलसिला बरसों से जारी हैं. बाज़ार की एक मशहूर कपड़ों की दुकान के मालिक पवन गुप्ता बताते हैं कि बचपन से वे देखते आ रहे हैं कि जब भी फ़ारूक़ जम्मू में होंगे तो पड़ोस की ड्राई फ्रूट की दुकान पर जरूर आंएगे. पवन कहते हैं कि उनके आने से बाज़ार में रौनक आ जाती है.
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किस्सा तीनः आम लोगों में बेहद सहज-सरल
फ़ारूक़ अब्दुल्ला आम लोगों से बड़ी सरलता से संवाद स्थापित कर लेते हैं और लोगों के बीच बैठने का, उनसे जुड़ने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते. पिछले दिनों जनवरी की कड़कती ठंड़ में जम्मू के एक पांच सितारा होटल में स्थानीय व्यापारियों की सबसे बड़ी संस्था ‘जम्मू चैंबर आफ कामर्स’ के एक कार्यक्रम में देर रात 10 बजे पहुंच गए और जम्मू के व्यापारियों के साथ गर्मजोशी के साथ बातचीत करने के बाद फ़िल्मी गाने गुनगुनाए लगे.
जम्मू चैंबर आफ कामर्स के प्रधान राकेश गुप्ता ने बताया कि फ़ारूक़ अब्दुल्ला उस दिन जम्मू में थे सरसरी बातचीत के दौरान जब उन्हें पता चला कि चैंबर का कोई कार्यक्रम है तो वे उत्सुक हुए और देर रात खुद ही कार्यक्रम में आ गए.यह सब फ़ारूक़ अब्दुल्ला किसी विशेष तात्कालिक राजनीतिक लाभ को ध्यान में रख कर नहीं करते.
उल्लेखनीय है कि जम्मू नगर या जम्मू जिले में नेशनल कांफ्रेस का कोई ख़ास आधार नहीं है बावजूद इसके जम्मू में आम लोगों के बीच घंटों बिताना बताता है कि फ़ारूक़ उन राजनीतिक नेताओं से अलग हैं जिनका हर क़दम राजनीतिक लाभ को ध्यान में रख कर उठाया जाता है.
हर समय जोश से भरपूर उनके बारे में उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भी मानते हैं कि उनका कोई मुकाबला नहीं. ज़िदादिल फ़ारूक़ एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं और श्रीनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने जा रहे हैं.
(लेखक जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं .लंबे समय तक जनसत्ता से जुड़े रहे अब स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं .)