scorecardresearch
Thursday, 5 December, 2024
होममत-विमतन्यूज चैनलों की खबरें रोज़ाना बदलती हैं, लेकिन स्क्रिप्ट वही रहती है

न्यूज चैनलों की खबरें रोज़ाना बदलती हैं, लेकिन स्क्रिप्ट वही रहती है

नकारात्मक प्रचार अक्सर सबसे अच्छा होता है. ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के बजाय समाचार चैनल चाहते हैं कि पार्टी कमज़ोर स्थिति में बनी रहे ताकि उनके पास उछालने के लिए कुछ न कुछ मुद्दे हों.

Text Size:

ऐसी कई चीजें हैं जो टेलीविजन दिखाना पसंद करता है, लेकिन कई समाचार चैनलों को कांग्रेस की ‘आलोचना’ करने से बेहतर कुछ नहीं लगता- वैसे ‘आलोचना’ उनके पसंदीदा शब्दों में से एक है.

सबसे पहले, पिछले कुछ दिनों की खबरों पर नज़र घुमाएं. मंगलवार की सुबह प्रदूषण के कोहरे से बमुश्किल ही बाहर निकली थी कि चैनलों ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को लेकर खतरे की घंटी बजाना शुरू कर दिया कि यह कोविड फैलाने जा रही है. इससे पहले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कांग्रेस को पत्र लिखकर कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने या फिर यात्रा को ‘रोकने’ के लिए कहा था (इंडिया टुडे).

चैनलों का आपे से बाहर होने और कांग्रेस के प्रति अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करने के लिए इतना ही काफी था- इंडिया टीवी और ज़ी न्यूज़ ने तो यहां तक कह डाला कि वह (कांग्रेस) अपनी हरकतों से चीन का समर्थन कर रहे हैं. जब इंडिया टीवी ने पूछा कि क्या कांग्रेस स्वास्थ्य मंत्री की बात सुनेगी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शहजाद पूनावाला ने बेहद चौंकाने वाला दावा किया. उन्होंने शातिराना अंदाज में कहा, ‘हो सकता है कि जिन्होंने चीन से पैसा लिया है, वे ‘कोविड जोडो इंडिया’ चाहते हैं.’ वह अपने बयान में पिछले हफ्ते बीजेपी के लगाए गए उन आरोपों का जिक्र कर रहे थे, जिसमें राजीव गांधी फाउंडेशन द्वारा चीनी फंडिंग स्वीकार करने की बात कही गई थी.

चैनल पर कांग्रेस की ओर से इसका खंडन दिखाया गया, लेकिन हेडलाइन चल रही थी- ‘क्या राहुल गांधी सुनेंगे?’ स्वास्थ्य मंत्री की बात.

सीएनएन न्यूज़ 18 के एक रिपोर्टर ने बताया कि भारत जोड़ो यात्रा उत्तर भारत में ‘एक बहुत ही महत्वपूर्ण पड़ाव पर पहुंच रही है’ और उसके कारण राजनीतिक ‘फेस ऑफ’ हो सकता है. ‘फेस ऑफ’ समाचार चैनलों पर एक और लोकप्रिय शब्द है.

हाल ही में तवांग में भारत-चीन संघर्ष पर बहस की मांग के साथ कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन किया था. ज़ी न्यूज़ का इसे लेकर ‘विपक्ष का हल्ला बोल’ कहा जाने वाला कवरेज भी उतना ही बुरा था. इसके एक रिपोर्टर ने तेज आवाज़ में सवाल किया कि क्या कांग्रेस ‘चीन की बात’ कर रही है. उन्होंने फिर कहा, ‘क्या राहुल गांधी चीन की मदद करना चाहते हैं?’

क्या टीवी पत्रकारों को ऐसे मजबूत राजनीतिक विचारों को धूर्तता से सवालों के रूप में व्यक्त करना चाहिए?

सोनिया गांधी सहित चीन के साथ सीमा संघर्ष से निपटने को लेकर कांग्रेस नेताओं की टिप्पणियों की खबरें चलीं. लेकिन समाचार चैनलों ने यह बताने में कोई संदेह नहीं छोड़ा था कि उनकी सहानुभूति किस तरफ है. संसद में कांग्रेस के व्यवहार पर रिपब्लिक टीवी की हेडलाइन थी ‘हंगामा, बाधा, अराजकता’ इसके एक एंकर ने कहा, ‘केंद्र ने अपना रुख साफ कर दिया है, इसके बावजूद विपक्ष ने अपनी हलचल जारी रखी है…’


यह भी पढ़ेंः यात्रिगण ध्यान दें! ट्रेन में छूटे आपके सामान को पहुंचाने में जुटे हैं रेलवे स्टेशन मैनेजर राकेश शर्मा


टीवी का कांग्रेस के प्रति रवैया

बुधवार को टीवी न्यूज़ पर भारत-चीन संबंधों को लेकर राजनीतिक तूफान और भारत जोड़ो यात्रा के लिए कोरोनावायरस प्रोटोकॉल सिर्फ कांग्रेस के बारे में चलाई जा रही नकारात्मक खबरों की लड़ी में नई कड़ियां थीं.

सोमवार की शुरुआत तेलंगाना टाइम्स नाउ में ‘कांग्रेस की अंदरूनी कलह गहराई’ और कर्नाटक विधानसभा के अंदर वीडी सावरकर के चित्र के अनावरण पर कांग्रेस का ‘मेगा हंगामा’ (सीएनएन न्यूज़ 18) खबरों की हेडिंग के साथ हुई. टाइम्स नाउ पर एक एंकर ने टिप्पणी की, ‘अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के कारण ही सावरकर को उनका हक नहीं मिल पाया है.’

समाचार चैनलों ने ‘भारत जोड़ो बैठकों में सिख दंगों के आरोपी’ (टाइम्स नाउ) हेडलाइन के साथ खूब खबरें चलाईं. दिल्ली कांग्रेस के नेता जगदीश टाइटलर की उपस्थिति का व्यापक रूप से प्रचार किया गया था और सोमवार शाम यह टाइम्स नाउ पर एक बहस का विषय भी था.

जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चीन के सामने ‘चूहे’ की तरह चलने की टिप्पणी की और आरोप लगाया कि बीजेपी के घर में देश के लिए एक ‘कुत्ते’ ने भी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेज़ों का विरोध नहीं किया था, तो टीवी चैनलों पर यह एक ‘अपमान’ के तौर पर आया और इसकी तीखी आलोचना की गई. (रिपब्लिक टीवी)

कांग्रेस के प्रति टेलीविजन के रवैये का इससे बड़ा खुलासा कुछ नहीं हो सकता. सोमवार को प्रमुख समाचार चैनलों पर मुख्य बहसें पार्टी से ही संबंधित थीं- टाइम्स नाउ पर सावरकर चित्र ‘विवाद’ और जगदीश टाइटलर छाए हुए थे, तो रिपब्लिक टीवी पर #सावरकर का सम्मान, #कांग्रेसी महिला विरोधी (केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के बारे में एक कांग्रेस नेता की टिप्पणी के संबंध में) और #राहुल ने किया हिंदी का अपमान चल रहा था.


यह भी पढ़ेंः ज़हरीली राख- आखिर क्यों पंजाब में प्रदर्शनकारी पिछले पांच महीने से कर रहे हैं शराब फैक्ट्री का घेराव


चैनलों की प्राथमिकता

अपनी बात को सही ठहराने के लिए पिछले सप्ताह, 12 दिसंबर के फ्लैशबैक में चलते हैं. मध्य प्रदेश के एक पूर्व कांग्रेस मंत्री राजा पटेरिया के ‘मोदी हत्या’ (इंडिया टुडे) के कथित आह्वान से समाचार चैनल पगला से गए थे. रिपब्लिक टीवी ने भाजपा की प्रतिक्रिया को प्रमुखता से दिखाया- केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी जानना चाहती थीं कि क्या ‘गांधी परिवार’ ने पटेरिया के बयान को मंजूरी दी है.

भाजपा विधायक विश्वास सारंग ने व्यंग्यात्मक ढंग से कहा कि यह ‘इतालवी संस्कृति’ की विशेषता है. ज़ी न्यूज़ ने मध्य प्रदेश के गृह मंत्री पर आरोप लगाया था कि ‘यह (एमके) गांधी की पार्टी नहीं है, यह इटली की कांग्रेस है.’

महाराष्ट्र में मंत्रियों के सुरक्षा काफिले के लिए निर्भया फंड के कथित दुरुपयोग की खबर उसी समय के आसपास बनी हुई थीं, लेकिन ज्यादातर समाचार चैनलों ने इस तरफ बहुत कम ध्यान दिया.

गौरतलब है कि जब बीजेपी दिल्ली की आप सरकार पर वित्तीय अनियमितताओं का दावा करती है, तो ये उनके लिए ‘आज की ब्रेकिंग न्यूज़’ बन जाती है,  और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा तवांग सीमा झड़पों की खबरों पर हावी होने वाली कांग्रेस के खिलाफ टिप्पणियों का क्या करें.

खबरें हर सप्ताह बदलती हैं, लेकिन उनकी कहानी वही रहती है- ‘कांग्रेस को बेनकाब करो’. समझ नहीं आता कि जब पार्टी सिर्फ तीन राज्यों में सत्ता में है तो उसे मीडिया की इतनी अटेंशन क्यों मिलती है.

वे कहते हैं कि नकारात्मक प्रचार अक्सर सबसे अच्छा प्रचार होता है. तो क्या हम मान लें कि ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के बजाय, समाचार चैनल चाहते हैं कि पार्टी कमजोर स्थिति में बनी रहे ताकि उनके पास उछालने के लिए कुछ न कुछ मुद्दे हो?

लेखक @shailajabajpai पर ट्वीट करती है. विचार व्यक्तिगत हैं.

(अनुवादः संघप्रिया | संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ेंः क्या है नागपुर भूमि आवंटन ‘घोटाला’ और एमवीए क्यों चाहता है शिंदे इस्तीफा दें


 

share & View comments