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Saturday, 12 October, 2024
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क्या है नागपुर भूमि आवंटन ‘घोटाला’ और एमवीए क्यों चाहता है शिंदे इस्तीफा दें

विपक्षी दल का कहना है कि मामला अदालत में विचाराधीन है, उसके बावजूद नागपुर इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट ने झुग्गी-झोपड़ियों के पुनर्वास के लिए रखी गई जमीन को 'औने-पौने दाम' पर निजी व्यक्तियों को बेच दिया था.

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मुंबई: विपक्षी महा विकास अघाड़ी (एमवीए) ने नागपुर इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट (एनआईटी) भूमि आवंटन विवाद को लेकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के इस्तीफे की मांग की है. उनकी यह मांग बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा मामले पर यथास्थिति का आदेश दिए जाने के कुछ दिनों बाद आई है.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा), कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) वाले ‘एमवीए’ ने आरोप लगाया है कि अप्रैल 2021 में, शहरी विकास मंत्री के रूप में शिंदे ने झुग्गीवासियों के लिए आरक्षित 4.5 एकड़ से ज्यादा जमीन को कौड़ियों के दामों में 16 बिल्डरों को बेच दिया था, जबकि मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन है.

हालांकि, सीएम ने किसी भी गलत काम से इनकार किया है और दावा किया कि उन्हें एनआईटी और शहरी विकास (मंत्रालय) के अधिकारियों द्वारा उच्च न्यायालय में विचाराधीन मामले के बारे में जानकारी नहीं थी. उधर उद्धव ठाकरे ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ‘अगर कोई निर्णय गलत है, तो वह गलत है. गौरतलब है कि यह फैसला उनके सीएम कार्यकाल के दौरान लिया गया था.

भूमि आवंटन का मामला क्या है और एमवीए अब शिंदे के इस्तीफे की मांग क्यों कर रहा है? दिप्रिंट ने इसकी जानकारी जुटाई है-


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मामला क्या है

यह मामला 2004 का है जब नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने NIT और पब्लिक यूटिलिटी लैंड की ओर से भूमि पार्सल के आवंटन में अनियमितता पाई थी. इसके बाद कार्यकर्ता अनिल वाडपल्लीवार ने बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में एक याचिका दायर की थी.

2017 में, उच्च न्यायालय ने रिटायर्ड जज एम.एन. गिलानी को मामले का अध्ययन और जांच करने के लिए कहा था. गिलानी समिति की शुरुआती जांच से पता चलता है कि एनआईटी ने 1964 में सक्कदरा स्ट्रीट योजना तैयार की थी, जिसे 1967 में राज्य सरकार ने अधिकारिक मंजूरी दे दी थी. इस योजना में 42.8 एकड़ जमीन का वो टुकड़ा भी शामिल था, जिसपर 1975 तक एक खेता परिवार का कब्जा रहा था. आखिरकार 1981 में जमीन एनआईटी को दे दी गई.

समिति ने भूमि आवंटन प्रक्रिया में अनियमितताएं और कानूनों का उल्लंघन पाया था.

गिलानी समिति की रिपोर्ट में कहा गया, ‘प्रथम दृष्टया यह (भूखंडों को गैर-नियमित करना/निजी बिल्डरों को आवंटित करना) सार्वजनिक संपत्ति का घोर दुरुपयोग है. यह भी देखा गया है कि 3.61 एकड़ भूमि पर लोगों ने गलत तरीके से कब्जा जमाया हुआ था. भूमि पर अतिक्रमण करने देना निंदनीय कार्य है. अधिकारियों की ओर से लापरवाही और कर्तव्य की अवहेलना है.’

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘यह अजीब है कि जिस उद्देश्य के लिए इसे बनाया गया था, वह कहीं भी इसके लेआउट में नजर नहीं आ रहा है.’

2002 में, एक सहकारी हाउसिंग सोसायटी एनआईटी के तहत आने वाली भूमि सहित 52 भूखंडों को नियमित करवाना चाहती थी. एनआईटी अनुमति के लिए नागपुर नगर निगम (एनएमसी) गई थी क्योंकि यह क्षेत्र नागरिक निकाय के अधीन था. लेकिन अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था.

2018 में, यह मामला फिर से सामने आया जब नागपुर स्थित सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता कमलेश शाह ने एनआईटी अध्यक्ष को पत्र लिखकर कहा कि वे इस भूमि को विनियमित नहीं कर सकते क्योंकि मामला उच्च न्यायालय में लंबित है. इसके बाद, उन्होंने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो, नागपुर का रुख किया और मामले से संबंधित सभी दस्तावेज जमा किए. शाह ने दिप्रिंट को बताया कि एसीबी, नागपुर ने शिकायत को अपनी मुंबई इकाई को भेज दिया. वहां से ये शिकायत प्रमुख सचिव, शहरी विकास के पास चली गई.

शाह ने कहा कि बार-बार पत्राचार करने के बावजूद उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. उनके सवालों का जवाब देने के बजाय एसीबी नागपुर फाइल आगे बढ़ाते रहे.

20 अप्रैल 2021, को शहरी विकास मंत्री के रूप में शिंदे ने एक आदेश पारित किया, जिसमें एनआईटी को पट्टा निष्पादित करने और 16 बिल्डरों को झुग्गीवासियों के आवास विकास के लिए रखी गई जमीन का कब्जा सौंपने का निर्देश दिया. दिप्रिंट के पास दस्तावेज की एक प्रति है.

सौंपी गई जमीन कथित तौर पर 83 करोड़ रुपये के बाजार मूल्य के बजाय 2 करोड़ रुपये में बेची गई थी.

शाह ने विरोध करते हुए कहा, ‘अब वे (सरकार) कहते हैं कि उन्हें कुछ नहीं पता, लेकिन मेरी शिकायत 2018 से चला आ रही है और 2021 में, शिंदे ने खुद आदेश पारित किया था. वह शीर्ष पद पर थे. या तो अधिकारियों की गलती थी या मंत्री की. चूंकि मेरी शिकायत अभी भी लंबित है और गिलानी की रिपोर्ट भी इसके पक्ष में आई थी, तो शिंदे को रिपोर्ट क्यों नहीं दी गई?’

बता दें कि 14 दिसंबर को न्यायमित्र अधिवक्ता आनंद परचुरे द्वारा पेश की गई समाचार रिपोर्टों का संज्ञान लेते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती एमवीए सरकार में मंत्री रहने के दौरान शिंदे द्वारा झुग्गी निवासियों के लिए रखी गई भूमि को निजी व्यक्तियों को आवंटित करने के फैसले पर यथास्थिति का आदेश दिया है.

अदालत ने कहा, ‘एमिकस द्वारा पेश किए गए समाचार रिपोर्ट्स अगर सच हैं, तो इस बात की संभावना है कि राज्य सरकार ने अदालत की न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप किया हो, जबकि यह मामला इस अदालत के समक्ष लंबित है. हम राज्य सरकार से अपना जवाब दाखिल करने का अनुरोध करेंगे.’

विधानसभा में हंगामा

उच्च न्यायालय के आदेश के बाद, 19 दिसंबर को शुरू हुए विधानसभा सत्र में विपक्ष एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के खिलाफ खड़ा हो गया.

सीएम के इस्तीफे की विपक्ष की मांग के बीच, डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने मंगलवार को विधानसभा को बताया कि शिंदे ने विलासराव देशमुख के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा 2007 में लिए गए एक फैसले को लागू किया था. उन्होंने सदन को यह भी बताया कि सरकार ने अब जमीन का आवंटन वापस ले लिया है.

शिंदे ने मंगलवार को विधानसभा को सूचित किया कि उन्होंने पहले ही भूमि आवंटन को रद्द कर दिया है और दावा किया कि उन्हें नहीं पता था कि मामला अदालत में विचाराधीन है.

उद्धव ठाकरे ने मंगलवार को मीडिया ब्रीफिंग करते हुए मांग की कि शिंदे को निष्पक्ष सुनवाई के लिए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘अगर सब ठीक है, तो सरकार ने भूमि आवंटन रद्द क्यों किया? क्या अदालत द्वारा इस तरह की टिप्पणियों के बाद ऐसे व्यक्ति के लिए पद पर बने रहना ठीक है? आरोपों के बाद मंत्रियों के इस्तीफे की मिसालें हैं. इसका अनुसरण किया जाना चाहिए.’

यह पूछे जाने पर कि निर्णय उनके शासन के दौरान लिया गया था, ठाकरे ने कहा, ‘तो क्या? अगर कोई निर्णय गलत है, तो वह गलत है.’

एमवीए ने बुधवार को भी विधानसभा के अंदर और बाहर नारेबाजी की.

विपक्षी नेताओं ने विधानसभा के बाहर ‘भुखंडा चा श्रीखंड (जमीन आवंटन के लिए रिश्वत)’ के संदेश वाले बैनरों के साथ विरोध किया, जबकि एमवीए नेताओं पृथ्वीराज चव्हाण, जितेंद्र आव्हाड और छगन भुजबल ने सदन के अंदर चर्चा के लिए विषय को हरी झंडी दिखाई. लेकिन सरकार ने यह कहकर चर्चा से किनारा कर लिया कि मामला कोर्ट में विचाराधीन है.

एमवीए के एक नेता ने कहा, ‘अगर श्रद्धा वाकर और (महाराष्ट्र-कर्नाटक) सीमा विवाद मामलों पर अदालत के विचाराधीन होने के बावजूद चर्चा की जा सकती है, तो एनआईटी पर क्यों नहीं.’

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्य/ संपादन: अलमिना खातून)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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