कोल्ड कॉफी पीना जागरुकता के साथ अपने आरामदायक क्षणों (Mindful Leisure) का आनंद लेने जैसा है. यह चिलचिलाती गर्मी के दिनों में ठंडे हवा के झोंके की तरह है.
डीपॉल्स – छह दशकों से अधिक समय से दिल्ली की पसंदीदा कोल्ड कॉफ़ी स्पॉट में से एक है और अपने आप में जिज्ञासा का एक विषय है. 200 मिलीलीटर की छोटी, कस्टमाइज़्ड बोतलों में पैक की गई, डीपॉल्स कॉफी में पीने के लिए केवल 4 घूंट कॉफी ही होती है – लेकिन फिर भी जनपथ की हलचल भरी पुरानी या सेकैंड हैंड सामान बेचे जाने वाली गलियों में यह रुक कर थोड़ा सा आराम करने या सांस लेने जैसा है. इस कॉफ़ी शॉप ने 1950 और 1960 के दशक के युवाओं को बड़े पैमाने पर ऐसे स्वाद से न सिर्फ रू-ब-रू करवाया बल्कि लोकप्रिय भी बनाया, जिससे वे पूरी तरह से अपरिचित थे. ऐसे युग में जब ‘कोल्ड ड्रिंक’ का मतलब घर का बना नींबू पानी या शिकंजी होता था, डीपॉल्स कोल्ड कॉफी ने लोगों को एक ऐसा विकल्प प्रदान किया जो इन्सटैंट उपलब्ध था. यह दोस्तों और कॉलेज के साथियों के साथ मौज-मस्ती या ‘कूल’ हैंगआउट का साधन भी बना.
कॉफ़ी शॉप की कहानी 1952 में धर्मपाल कठपालिया और उनके परिवार के साथ शुरू हुई. डीपॉल्स नाम इसके फाउंडर के नाम के आधार पर पड़ा. कठपालिया के छह भाई थे और एक बहन थी, और स्वभाव से काफी सख्त उनके माता-पिता का मानना था कि टीचिंग या सरकारी नौकरी ही एकमात्र सम्मानजनक प्रोफेशन है. उन्होंने महसूस किया कि स्वतंत्र व्यवसाय और उद्यमिता उलझा हुआ और थकाऊ करियर ऑप्शन है और इसलिए यह काम उनके बच्चों के लिए ठीक नहीं है.
लेकिन जैसी कि कहावत है कि, नियति एक दृढ़ स्वतंत्र घोड़े की तरह है जो सवार को उसके चुने हुए रास्ते पर ले जाती है. तो कठपालिया के साथ भी बिल्कुल वैसा ही हुआ. शुरू से ही उनके मन में अपना खुद का व्यवसाय करने का विचार था. अपने पिता के विरोध और अनिच्छा के बावजूद, वह आगे बढ़े और दैनिक उपयोग की वस्तुओं को बेचने के लिए एक जनरल स्टोर खोलने के लिए एक दुकान किराए पर ली, साथ ही तैयार स्नैक्स बेचने के लिए एक काउंटर भी लिया. यह स्टोर जनपथ की मुख्य सड़क पर स्थित था, जिसे पहले क्वींसवे के नाम से जाना जाता था.
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दूध, चीनी, कॉफी और गिलास
जनपथ बाज़ार ब्रिटिश सिटी प्लानर्स द्वारा बनाए गए सबसे फैशनेबल और उच्च-स्तरीय कॉमर्शियल एरियाज़ में से एक था. जिसके एक तरफ कनॉट प्लेस जैसा बेहतरीन आर्किटेक्चर और दूसरी तरफ राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इंडिया गेट था. क्वींसवे जैसी जगह पर एक दुकान किराए पर लेना काफी महंगा था. खुशी की पहली लहर के तुरंत बाद जब खर्च और कमाई मे मेल नहीं बैठा और समस्या लगातार बढ़ने लगी तो कठपालिया ने अपने बिजनेस प्लान को बदलने का फैसला किया.
उन्होंने एल-आकार के बाजार के अंत में एक अलग-थलग और सस्ती जगह चुनी और डीपॉल्स के कैंटीन-कम-स्टोर को फिर से शुरू किया. इस बार उन्होंने उन चीजों पर अधिक ध्यान दिया गया जो युवा लोगों को पसंद हैं जैसे- सौंदर्य प्रसाधन, सीमित रूप से लोकप्रिय फास्ट-फूड स्नैक्स, और कोल्ड कॉफी. कैफीन वाले पेय को लेकर कठपालिया को काफी जुनून था, उन्होंने इसे परफेक्ट बनाने के लिए इसकी रेसिपी के साथ तमाम प्रयोग किए.
धरमपाल के बेटे और डीपॉल्स के वर्तमान मालिक अश्वनी कठपालिया कहते हैं, “उन्होंने स्थानीय डेयरियों के दूध के बजाय अमूल ब्रांड के फुल क्रीम वाले पाश्चुराइज़्ड मिल्क के ताज़ा स्टॉक का उपयोग करना शुरू किया, जो दिल्ली भर में काफी मात्रा में उपलब्ध थे. स्थानीय स्तर पर मिलने वाला दूध सस्ता होता है, लेकिन उन्हें लगा कि इसमें मानकीकरण का अभाव होता है यानी इसका कोई तय मानक नहीं होता है, इसलिए उन्होंने ब्रांडेड मिल्क को उपयोग में लेना शुरू किया.”
उन्होंने न केवल सबसे बेहतर गुणवत्ता वाले कॉफी पाउडर और चीनी का उपयोग किया, बल्कि जिन बोतलों में डीपॉल्स की कॉफी बेची जाती थी, उन्हें बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला ग्लास या शीशा भी नेशनल ग्लास कंपनी से लिया गया था, जिसमें अच्छी गुणवत्ता वाली सामग्री का उपयोग किया गया था. बोतल के डिज़ाइन में काफी नयापन था और लोगों को ‘स्मॉल रिफ्रेशमेंट’ देने के लिए इसका आकार जानबूझकर पतला और छोटा रखा गया था. युवा उपभोक्ता को लुभाने के लिए इसकी शुरुआती कीमत महज 1 रुपये रखी गई थी.
सफलता का रहस्य कभी कोई नहीं जानता, लेकिन ऐसा लगता है कि डीपॉल्स कॉफी के लिए सब कुछ एक साथ ही हो गया. यह कॉलेज जाने वाले युवा लड़कों और लड़कियों के बीच एक जबरदस्त हिट बन गया, जो पूरे शहर से आते थे और दोस्तों से मुलाकात करने के लिए दुकान के बाहर भीड़ लग जाती थी. गली के अंतिम छोर पर स्थित, इस छोटी सी कैंटीन में न तो बैठने की फैंसी जगह थी और न ही इस कैंटीन में खूबसूरत आर्ट पेंटिंग थी. लेकिन यह उन युवाओं के बीच एक पसंदीदा स्थान बन गया, जो प्रसिद्ध डीपॉल्स कोल्ड कॉफी के साथ सैंडविच, बर्गर और पैटी का आनंद लेते थे.
अश्विनी मुस्कुराते हुए कहते हैं, “ऐसा लगता है कि स्वाद, गुणवत्ता, मात्रा और कीमत वैसी ही थी जैसी युवा चाहते थे. इस दुकान में शाहरुख खान, नसीरुद्दीन शाह और मल्लिका शेरावत जैसी मशहूर हस्तियों को कोल्ड कॉफी का आनंद लेते देखा गया है जब वे दिल्ली में युवा छात्र थे. एनआरआई जब भी भारत आते हैं तो अपनी पुरानी यादों को ताज़ा करने के लिए यहां आते हैं.”
यह लेख बिजनेस हिस्ट्रीज़ नामक एक सीरीज़ का हिस्सा है जो भारत में उन आइकॉनिक बिज़नेस के बारे में बताता है, जो कठिन समय से गुज़रे हैं और बाज़ार की बदलती परिस्थितियों में खुद को बचाए रखा है. सभी लेख यहां पढ़ें.
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