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Monday, 13 May, 2024
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इंडिया गेट बासमती राइस दिल्ली के नया बाज़ार से शुरू हुआ था, यह आज भी सबसे आगे बना हुआ है

इंडिया गेट बासमती चावल दिल्ली के नया बाजार में बनाया गया था. पंजाब के धुरी से एक खराब पड़े प्लांट से शुरू होने वाला और टेक्नॉलजी की मदद से यह आज भी सबसे आगे बना हुआ है.

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केआरबीएल लिमिटेड, जिसका नाम इसके संस्थापक खुशी राम और बिहारी लाल के नाम पर रखा गया है, आज दुनिया के सबसे बड़े राइस मिलर में से एक है. कंपनी का सबसे लोकप्रिय ब्रांड, इंडिया गेट, भारत में सबसे अधिक बिकने वाला बासमती चावल ब्रांड है.

इस चावल की कहानी तत्कालीन छोटे शहर लियालपुर और आज के पाकिस्तान के शहर फैसलाबाद से शुरू हुई, लेकिन तब इसके द्वारा किसी भी चावल का व्यापार नहीं होता था.

1800 के दशक में, अविभाजित पंजाब में केवल दो फ़सलें उगाई जाती थीं- सर्दियों में कपास और गर्मियों में गेहूं. भाइयों खुशी राम और बिहारी लाल ने 1889 में एक छोटी सी फर्म चलाई जिसने पंजाब के किसानों से कपास खरीदा और इसे बॉम्बे (अब मुंबई) में कपास मिलों को बेच दिया.

जैसे-जैसे व्यवसाय बढ़ता गया, अगली पीढ़ियों ने कपास की ओटाई करने वाली अपनी मिलें और कुछ कपड़ा मिलें स्थापित कीं.

वे किसानों से गेहूं भी खरीदते थे और ब्रिटिश एजेंसियों को बेचते थे. लेकिन 1947 में भारत के विभाजन के साथ ही व्यापार को बढ़ाने वाली सभी योजनाओं पर बट्टा लग गया.

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ख़ुशी राम और बिहारी लाल के परिवार डकोटा 32 विमान से भारत आ गए जिसके लिए उस समय उन्होंने 4,000 रुपये खर्च किए थे जो कि उस वक्त के अनुसार एक बड़ी रकम हुआ करती थी.

विमान सफदरजंग हवाई अड्डे पर उतरा, जो उस समय एक चालू और सक्रिय हवाई पट्टी थी. जैसा कि किस्मत में था, परिवार के पास दिल्ली के चांदनी चौक में नया बाजार में एक इमारत थी, जिसे एक कार्यालय के रूप में अंग्रेजों को किराए पर दे दिया गया था.

परिवार ने पाया कि इमारत बंद थी और इसका किसी भी तरह से प्रयोग नहीं किया जा रहा था. उन्होंने ताला तोड़ा, खाली बिल्डिंग में घुसे और नया बाजार से अपनी नई पारी की शुरुआत की.

केआरबीएल के प्रबंध निदेशक और बिहारी लाल के प्रपौत्र या पर-पोते अनिल मित्तल कहते हैं, “चूंकि बिल्डिंग किराए पर दी हुई थी इसलिए उसे तोड़ कर अंदर घुसने की वजह से एक लंबी अदालती कार्रवाई का सामना करना पड़ा, लेकिन यह 1947 के विभाजन के बाद के अशांत दिनों के दौरान हमारे सिर पर छत के लिए चुकाई जाने वाली एक छोटी सी कीमत की तरह लग रहा था.”

पुरानी दिल्ली से पूरी दुनिया में

परिवार ने जल्दी से अपने पुराने व्यवसाय को वापस पटरी पर ला दिया और पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों जैसे भटिंडा, धूरी और नाभा के कपास किसानों के साथ अपनी बातचीत फिर से शुरू कर दी, जो लाभ के लिए बंबई में मिलों को अपनी उपज बेच रहे थे.

बिहारी लाल के पांच पुत्रों ने ‘पुरानी दिल्ली’ (पुरानी दिल्ली) की जीवंत जीवन शैली को दिल से अपनाया, राम लीला समिति में सक्रिय रूप से भाग लिया, स्थानीय गौशालाओं में ‘श्रम दान’ (स्वैच्छिक श्रम) और स्थानीय मंदिरों से जुड़ी अन्य कल्याणकारी गतिविधियों के माध्यम से योगदान दिया.

“हमारे परिवार के दिल्ली में बसने के कुछ ही वर्षों के बाद, कपास और गेहूं के कारोबार से जुड़े वरिष्ठ सदस्यों ने नया बाज़ार में व्यापारियों के बीच इतना सम्मान अर्जित किया कि उन्हें अक्सर न सिर्फ व्यापार से जुड़े विवादों बल्कि पारिवारिक विभाजनों में मध्यस्थता करने के लिए भी बुलाया जाता था,” मित्तल याद करते हुए एक बार की कहानी बताते हैं- “नया बाज़ार के एक व्यापारी और इंपीरियल बैंक ऑफ लंदन के बीच 4 लाख रुपये के एक विशेष रूप से जटिल ऋण विवाद में, मेरे दादा बिशन दास जी ने बैंक को न केवल व्यापारी को रिपेमेंट के लिए तीन साल की अवधि प्रदान करने की बल्कि साथ ही उन्हें अपने व्यवसाय को फिर से खड़ा करने में मदद करने के लिए 1 लाख रुपये का अतिरिक्त ऋण सहायता देने की भी सलाह दी. आश्चर्यजनक रूप से, बैंक ने उनकी सलाह पर ध्यान दिया, और उनके कहे के अनुसार, व्यापारी ने बैंक का पूरा ऋण चुका दिया.”


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1950 से लेकर 1970 के दशक की शुरुआत के बीच, भारत को खाने-पीने की चीजों की कमी का सामना करना पड़ा, जिसकी वजह से अमेरिका जैसे देशों से बड़े पैमाने पर आयात किया गया.

नतीजतन, सभी खाद्य पदार्थ आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के दायरे में आ गए और प्रतिबंधित आवाजाही वाले सामानों में आ गए. परमिट राज की ताकत पूरे भारत में फैल गई, जिससे व्यापारियों के लिए कारोबार करना मुश्किल हो गया.

केआरबीएल परिवार के सदस्य भी इन चुनौतियों से अछूते नहीं रहे क्योंकि वे अभी भी छोटे व्यापारियों या पुरानी दिल्ली के व्यापारियों की भाषा में कहें तो ‘आढ़तिया’ के रूप में काम कर रहे थे.

चावल के कारोबार में एक बड़ा मोड़ 1970 के दशक के मध्य में वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन के नेतृत्व में हरित क्रांति के आगमन के साथ आया, जिसके परिणामस्वरूप चावल का उत्पादन सरप्लस हो गया.

मित्तल आगे बताते हैं, “अब तक, KRBL की चौथी पीढ़ी व्यापार में प्रवेश कर गई थी और एक विश्वसनीय कमीशन एजेंट माने जाने वाले मेरे पिता सेठ भागीरथ लाल, मध्य पूर्वी देशों को चावल निर्यात करने के लिए OGL (ओपन जनरल लाइसेंस) वाली फर्मों को बड़ी मात्रा में चावल के पहले आपूर्तिकर्ताओं में से एक बन गए.”

उन्होंने आगे कहा, “हमने तन्ना एग्री और अल्लाना संस जैसी कंपनियों के लिए सैकड़ों टन चावल के बड़े ऑर्डर पूरे किए, जो पूरे अफ्रीका और मध्य पूर्व में चावल का निर्यात करती थीं. 1981 में, हमने रामा एसोसिएट्स के माध्यम से रूस भेजने के लिए 100 हजार टन चावल का एक बड़ा ऑर्डर पूरा किया – जिसे बाद में सुभाष चंद्र गोयल और परिवार के स्वामित्व वाले एस्सेल समूह के रूप में जाना गया. लेकिन इतने बड़े व्यापार के बावजूद – हम तीनों भाइयों अनिल, अरुण और अनूप मित्तल को लगा कि जब तक हमारा अपना ब्रांड नहीं होगा, तब तक व्यापार में हमारी कोई स्थिति मज़बूत नहीं होगी,”

एक ब्रांड का जन्म

जब अनिल मित्तल ने 1991 के आसपास कारोबार में प्रवेश किया, तो उन्हें अपने लिए कोई जगह नहीं दिख रही थी. इसलिए, उन्होंने परिवार को पिछली पार्टनरशिप से निकलने के लिए दबाव बनाया ताकि वे अपना खुद का फैसला कर सकें. और इस तरह केआरबीएल की यात्रा में एक नया अध्याय शुरूआत के साथ ही इंडिया गेट बासमती चावल का जन्म हुआ.

मित्तल कहते हैं, “मैंने अपने ब्रांड का सपना देखना शुरू कर दिया. सफदरजंग एन्क्लेव में अपने घर से नया बाजार तक यात्रा करते हुए, मैंने हर दिन इंडिया गेट पार किया. इसलिए, एक दिन मैंने अपने चावल ब्रांड का नाम ‘इंडिया गेट बासमती राइस’ रखने का फैसला किया,”

इसके तुरंत बाद, मित्तल ऑल इंडिया राइस एसोसिएशन के अध्यक्ष बने और इसने उन्हें चावल व्यापार के राष्ट्रीय कैनवास में अपनी पसंदीदा पेंटिंग बनाने के लिए एक मंच दिया. तत्कालीन वाणिज्य मंत्री पी चिदंबरम की पहल के तहत, चावल संघ के सदस्यों ने मिलिंग ऑपरेशन्स की समीक्षा करने के लिए टोक्यो, वियतनाम और थाईलैंड की एक बहु-देशीय यात्रा की.

मित्तल कहते हैं,“हमने देखा कि उन देशों में परिष्कृत चावल मिलिंग की तुलना हमारे यहां के तरीके से की गई थी जहां महिला श्रमिक फसल को साफ करने के लिए बांस की बड़ी छलनी अपने हाथों में लेकर बैठती थीं. हमारी आधी फसल कंकड़ और मिट्टी से भरी हुई थी.

हमने देखा कि कि भारतीय मिलिंग ऑपरेशन्स इन देशों से बहुत पीछे थे. इसके कारण सॉर्टेक्स मशीनों को आयात करने की अनुमति मिली. यह राइस मिलिंग उद्योग में मील का पत्थर वाली घटना साबित हुई.”

एक किलोग्राम चावल में लगभग 5,000 दाने होते हैं और सॉर्टेक्स मशीन प्रति मिनट 35 से 50 लाख दानों को साफ कर दिया करती थी. मित्तल कहते हैं, “इस तकनीक की वजह से केआरबीएल को प्रीमियम चावल को प्रीमियम कीमत पर बेचने की स्थिति में आ गया.”

टेक्नॉलजी की सहायता से, केआरबीएल ने गाजियाबाद में अपनी पहली चावल मिल स्थापित की. इसके तुरंत बाद, इसने ओसवाल से धुरी में एक बंद पड़े चावल संयंत्र को खरीदा और इसे पूरी तरह से इंटीग्रेटेड प्लांट में बदल दिया, जो 1998 तक भारत में सबसे बड़े चावल मिलों में से एक बन गया.

एक न्यूज क्लिप की तरफ देखते हुए जिसमें इंडिया को अभी भी सबसे ज्यादा पॉपुलर राइस ब्रांड के तौर पर बताया गया था, मित्तल कहते हैं, “दूसरों के विपरीत जो भटक जाते हैं और कई तरह के व्यापार करना शुरू कर देते हैं, हमने चावल पर ही अपना ध्यान केंद्रित रखा. हमने अपने मुनाफे को कभी भी रियल एस्टेट या अन्य व्यवसायों में नहीं लगाया. हमने जो भी मुनाफा कमाया, हमने उन्हें वापस चावल के कारोबार में डाल दिया.”

यह लेख BusinessHistories नामक श्रृंखला का एक हिस्सा है, जो भारत में प्रतिष्ठित व्यवसायों के इतिहास के बारे में बताता है, जिन्होंने कठिन समय और बदलते बाजारों का सामना किया है. सभी लेख यहां पढ़ें.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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