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Saturday, 21 December, 2024
होममत-विमतकेवल एक 'एक्ट ऑफ गॉड' ही मोदी सरकार के राजस्व को बढ़ाने मदद कर सकता है

केवल एक ‘एक्ट ऑफ गॉड’ ही मोदी सरकार के राजस्व को बढ़ाने मदद कर सकता है

घोर वित्तीय संकट में घिरी सरकार आर्थिक तेजी आने पर जोखिम उठाने का फैसला कर सकती है. धीमी रिकवरी की कीमत पर ज्यादा राजस्व आ सकता है लेकिन यह पहले से ही ऊंची मुद्रस्फीति को और बढ़ा सकता है.

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अगला बजट तैयार करने की प्रक्रिया वित्त मंत्रालय में जल्द ही शुरू होने वाली है. वित्तीय स्थिति पिछले तीन दशकों पहले कभी इतनी खराब नहीं थी जितनी कि आज है और सामने चुनौतियां भी अभूतपूर्व हैं. पिछले दो वर्षों में (2018-19 और 2019-20) ऋण से इतर राजस्व में वृद्धि ‘नॉमिनल जीडीपी’ (वास्तविक वृद्धि और मुद्रास्फीति का योग) में वृद्धि के मुक़ाबले सुस्त हुई है. इस साल का ‘नॉमिनल जीडीपी’ बहुत-तो-बहुत पिछले वर्ष के स्तर (204 ट्रिलियन) को ही छू पाएगा, जबकि मुद्रास्फीति ‘रियल नंबर्स’, इससे मुक्त आर्थिक आंकड़ों में गिरावट को संतुलित कर देगी. लेकिन सरकार का ऋण मुक्त राजस्व इसकी बराबरी नहीं कर पाएगा क्योंकि साल के पूर्वार्द्ध में यह पिछले साल के स्तर के बमुश्किल दो तिहाई हिस्से के बराबर पहुंच पाया था. यानी अप्रैल-सितंबर में ‘नॉमिनल जीडीपी’ में गिरावट से भी यह बड़ी गिरावट होगी. वर्ष के उत्तरार्द्ध में स्थिति बेहतर हो सकती है लेकिन जीडीपी के अनुपात में ऋण मुक्त राजस्व लगभग निश्चित ही लगातार तीसरे साल भी सिकुड़ेगा.

इस खाई को उधार लेकर पाटना पड़ेगा. सरकार ने बजट में प्रस्तावित 8 ट्रिलियन की जगह 12 ट्रिलियन की सीमा तय करने का संकेत दिया है. यह सीमा और भी बढ़ सकती है. तीन साल पहले इससे एक चौथाई सरकारी खर्चों को पूरा किया गया था, तो इस साल 40 प्रतिशत सरकारी खर्चों को पूरा किया जा सकता है.

कोई गृहिणी भी जानती है कि यह चल नहीं सकता, जबकि प्रतिरक्षा, सामाजिक सुरक्षा, इन्फ्रास्ट्रक्चर आदि पर सरकारी खर्च बढ़ाने की जरूरत बढ़ गई है. इसलिए खर्चों में कटौती की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए. इन्हें पूरा करने के लिए टैक्सों के रूप में उगाही, जो कि अर्थव्यवस्था में तेजी लौटने के साथ बढ़ सकती है, के अलावा भी राजस्व बढ़ाने के उपाय करने होंगे.


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राजस्व बढ़ाने के और उपाय क्या हो सकते हैं? दुनियाभर में कॉर्पोरेट टैक्स की दरों में कमी करने के चलन के कारण बने दबाव में सरकार ने कंपनियों के लिए टैक्सों की दरों को घटा दिया है. लेकिन व्यक्तिगत आयकर की दरों को इसने बढ़ा दिया है, जिसका चरम बिन्दु 5 करोड़ की आय पर 43 प्रतिशत तक पर पहुंच गया है. इनमें से दोनों मामलों में कुछ नहीं किया जा सकता है, सिवाय इसके कि टैक्स ढांचे में उन खामियों को दूर किया जाए जिनका लाभ कंपनियां उठाया करती हैं. इसके साथ ही पूंजीगत लाभ पर टैक्स की दरों को बढ़ाया जा सकता है. सरकार ‘वेल्थ टैक्स’, संपदाकर को फिर से लागू कर सकती है. इसे अरुण जेटली ने खत्म कर दिया था क्योंकि इससे बेहद मामूली राजस्व आता था. इस तरह के उपाय शेयर बाज़ार में गिरावट ला सकते हैं और परपीड़ा सुख दे सकते हैं क्योंकि अरबपतियों की संख्या घटेगी, मौजूदा अरबपतियों के पास अरब के आंकड़े कम हो जाएंगे, और सम्पदा में असमानता घटेगी. लेकिन इससे ज्यादा राजस्व आने की संभावना कम ही है क्योंकि जो सचमुच अमीर हैं वे टैक्स से बचाव के उपाय कर चुके होते हैं. वैसे, ’गार्डन वाले’ अमीरों को जरूर कष्ट होगा.

मुनाफे पर टैक्स के साथ ही कॉर्पोरेट संपत्ति या कुल संपत्ति पर टैक्स शुरू करना ज्यादा फायदेमंद हो सकता है. राजस्व बढ़ सकता है क्योंकि सबसे बड़ी कंपनियों को सबसे ज्यादा टैक्स देना पड़ेगा लेकिन इसी वजह से शेयर बाज़ार ज्यादा प्रभावित हो सकता है जबकि बड़ी संख्या में उन कंपनियों को सबसे ज्यादा चोट पहुंच सकती है, जो बमुश्किल मुनाफा कमा पाती हैं. इस तरह का टैक्स फर्मों को अपनी कुल संपत्ति का आकार घटाने के लिए इक्विटी जारी करने की जगह कर्ज ले-ले कर वृद्धि करने के लिए प्रोत्साहित करेगा. इस तरह की वृद्धि अपने साथ जोखिम भी ला सकती है, समय-समय पर आने वाली गिरावट को झेलने की उनकी क्षमता कमजोर पड़ सकती है.

अप्रत्यक्ष करों के मामले में, जीएसटी की दरें अपेक्षित राजस्व-निरपेक्ष दर से औसतन काफी नीची हैं. टैक्स का सिद्धान्त कहता है कि मंदी के दौर में ऐसे टैक्स की दरें नहीं बढ़ानी चाहिए, बल्कि कई परेशान व्यवसायों की ओर से मांग उठ रही है कि जीएसटी की दरें कम की जाएं. लेकिन घोर वित्तीय संकट में घिरी सरकार आर्थिक तेजी आने पर जोखिम उठाने का फैसला कर सकती है. धीमी रिकवरी की कीमत पर ज्यादा राजस्व आ सकता है और यह पहले से ही ऊंची मुद्रास्फीति को और बढ़ा सकता है.

इसलिए, वित्तमंत्री के लिए हर एक विकल्प के साथ कीमत जुड़ी है. अब मंत्री महोदया वित्त आयोग के अध्यक्ष एन.के. सिंह के रूप में ‘ईश्वर कृपा’ की उम्मीद कर सकती हैं, जिनकी रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है. अगर आयोग राज्यों को टैक्स की कमाई में से कम हिस्सा देने की सिफ़ारिश करता है तब केंद्र को ज्यादा पैसे मिल सकते हैं. इससे ‘सहकारी संघीय व्यवस्था’ का क्या होगा, इसके बारे में ज्यादा अटकलें लगाने की जरूरत नहीं है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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