23 अप्रैल को पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की नौसेना अपनी 73वीं वर्षगांठ मनाने जा रही है. पीएलए-नौसेना के लिए यह एक बड़ी घटना है क्योंकि 2021 को इसके लिए ‘अभूतपूर्व’ वर्ष करार दिया गया है. चीन ने सबको हैरत में डालते हुए 170,000 टन के नए जहाजों को नौसेना में शामिल किया है.
इस हफ्ते के शुरू में पीएलए नौसेना ने अपने तीन नवीनतम युद्धपोतों को प्रदर्शित किया, जिन्हें हाल ही में सेवा में शामिल किया गया है. इसमें दो 10,000 टन श्रेणी के टाइप 055 विशाल विध्वंसक और एक टाइप 052डी विध्वंसक है. बहुत संभव है कि शनिवार को 73वें स्थापना दिवस के मौके पर उसकी तरफ से सेवा में शामिल और नए जहाजों की एक झलक दिखाई जाएगी.
पीएलए नौसेना स्पष्ट तौर पर अपने व्यापक विकास के जरिये चीनी नागरिकों और साथ-साथ पूरी दुनिया को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है- आंकड़ों के लिहाज से यह अब दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है और कुछ सबसे घातक हथियार रखती है.
मैंने पिछले साल नवंबर में लिखा था कि चीन अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाने में सबसे ज्यादा ध्यान नौसेना पर केंद्रित कर रहा है. निश्चित तौर पर, इसकी दूसरी प्राथमिकता मिसाइल तकनीक है. चीन इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है कि भविष्य के लिहाज से समुद्री मोर्चे पर मजबूती हासिल करना कितना अहम है.
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नौसेना का कैरेक्टर
अगर हम भारतीय नौसेना की प्रगति की तुलना चीन के साथ करने की कोशिश करें, तो निश्चित तौर पर तस्वीर काफी निराशाजनक होगी.
पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा (रिटायर) ने 2019 में कहा था कि पिछले 200 सालों में किसी भी नौसेना ने चीन की तरह इतनी तेजी से प्रगति नहीं की है. उन्होंने यह भी कहा था कि चीन ने पिछले पांच वर्षों में 80 नए जहाज नौसेना में शामिल किए हैं, जो सैन्य क्षमता बढ़ाने के लिहाज से एक चौंकाने वाली गति है, जिसे अमेरिका ने ‘खतरा’ तक करार दिया है.
इसकी तुलना में, भारत ने पिछले पांच सालों में हर साल केवल 1-2 कैपिटल वॉरशिप ही शामिल किए हैं- जो कि सेना से रिटायर होने वाले पोत वाहकों की जगह लेने के लिए भी पर्याप्त नहीं है. इसलिए, इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीनी नौसेना न केवल इस क्षेत्र में बल्कि दुनिया में सबसे बड़ी और सबसे तेजी से बढ़ने वाली नौसेना है.
लेकिन ज्यादा ताकत के साथ जिम्मेदारी भी बड़ी हो जाती है. लेकिन क्या पीएलए नौसेना इस जिम्मेदारी को संभालने में सक्षम और परिपक्व है? साधारण तौर पर बात करें तो किसी भी सशस्त्र बल की प्रभावशीलता उसके पास मौजूद मशीनों से नहीं, बल्कि उन मशीनों को इस्तेमाल करने के लिए तैनात पुरुषों-महिलाओं से ही आंकी जा सकती है.
माओ-युग के कम्युनिस्ट सिद्धांत के मुताबिक, युद्ध पर असर डालने वाले मापदंडों को तीन प्रमुख हिस्सों में बांटा गया है- हथियार और अन्य सैन्य उपकरण, जंग का सिद्धांत और तरीका और सबसे महत्वपूर्ण बात है कैरेक्टर.
हालांकि, कैरेक्टर अमूर्त रूप में ही होता है लेकिन अन्य दो मानदंडों को साथ जोड़ता है और सैन्य बल को अपने सिद्धांतों के आधार पर हथियार और अन्य उपकरणों के उपयोग की अनुमति देता है. किसी भी सशस्त्र बल का कैरेक्टर दो घटकों से तय होता है— ‘पेशेवर क्षमता’ और ‘मनोबल’, जो सीधे तौर पर जनशक्ति, नेतृत्व क्षमता और कमांड-एंड-कंट्रोल स्ट्रक्चर की गुणवत्ता पर निर्भर है.
इसलिए, इन तीन मानदंडों पर पीएलए-नौसेना का आकलन करना बेहद अहम है.
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पीएलए की पेशेवर क्षमता
भारतीय नौसेना और पश्चिमी नौसेनाओं के सूत्र मुझे बताते हैं कि पीएलए नौसेना के सामने बड़ी समस्या है कुशल जनशक्ति का अभाव.
चीन में सशस्त्र बलों में शामिल होना सम्मानजनक नहीं माना जाता. जैसा कि पिछले साल सितंबर में निक्केई एशिया के एक लेख में उल्लिखित किया गया था कि चीन में एक कहावत प्रचलित है, ‘अच्छे इस्पात को कील बनाने में इस्तेमाल नहीं करते’— जिसका मतलब है कि सम्मानित लोग सैनिक नहीं बनते. बीजिंग तमाम तरह के प्रोत्साहनों के जरिये नागरिकों को सेना में शामिल होने के लिए आकर्षित करने में जुटा है लेकिन सब निरर्थक साबित हो रहा है, खासकर देश की घटती प्रजनन दर के सामने.
पीएलए-नौसेना ने पिछले कुछ सालों में जहाजों, पनडुब्बियों और विमानों की तैनाती काफी बढ़ाई है लेकिन उनका ऑपरेटिंग रेट बहुत अधिक नहीं है, इसकी मुख्य वजह यह है कि हाई-टेक हार्डवेयर के रखरखाव और उसकी मरम्मत करने में सक्षम कुशल प्रशिक्षित कर्मियों को जुटाना एक बेहद मुश्किल काम है.
बीजिंग को यह बात महसूस हो रही है कि उसका तीव्र सैन्य आधुनिकीकरण तैनात किए गए कर्मियों के कौशल से मेल नहीं खाता है. यह एक कारण है कि वह मानव रहित प्लेटफॉर्म और बैलिस्टिक मिसाइल जैसे अन्य समाधानों पर जोर दे रहा है.
जहां तक बात नेतृत्व की है तो खुद केंद्रीय सैन्य आयोग (सीपीसी) ही प्रभावहीन नेतृत्व के कारण सशस्त्र बलों के कमजोर होने को लेकर संदेह जता चुका है.
वॉर ऑन द रॉक्स लेख में पूर्व अमेरिकी सैनिक डेनिस जे. ब्लास्को ने बताया था कि 2006 में चीनी राजनेता हू जिंताओ ने स्थानीय जंग जीतने और ऐतिहासिक मिशनों को अंजाम देने में पीएलए की अक्षमता को इंगित करते हुए हो ‘दो अयोग्यताएं’ शब्द गढ़ा था. 2013 में शी जिनपिंग ने देंग-युग के शब्द ‘दो अक्षमताओं’ को फिर से उभारा, जिसका मतलब था पीएलए की आधुनिक युद्ध लड़ने की क्षमता और खराब युद्धक नेतृत्व गुणों के कारण कमांड के सभी स्तरों पर इसके अधिकारियों की अक्षमता पर संदेह करना.
इसे ध्यान में रखकर व्यापक स्तर पर पीएलए के आधुनिकीकरण के प्रयास हुए. 2015 में शी ने फिर पीएलए नेतृत्व की आलोचना की और इसे ‘पांच अक्षम (क्यों न कर दें)’ करार देते हुए खुले तौर पर कहा कि ‘कुछ’ अधिकारी स्थितियों के आकलन, उच्च अधिकारियों के इरादे समझने, ऑपरेशनल फैसले लेने, सैनिकों की तैनाती तय करने या अप्रत्याशित परिस्थितियों से निपटने में अक्षम हैं और हर स्तर के युद्ध और सेना की हर शाखा में यही स्थिति है.
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पीएलए का मनोबल
भारतीय रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों के मुताबिक, एक पेशेवर नौसेना एक कमांड-एंड-कंट्रोल संरचना की नींव पर काम करती है, जो अपने अधिकारियों की पेशेवर क्षमता, साहस और ईमानदारी से मजबूत होती है.
हालांकि, पीएलए-नौसेना में यह बुनियाद डगमगाती जा रही है. सूत्रों का कहना है कि नौसेना के सभी कैरियर अधिकारी सीपीसी के सदस्य हैं और सभी ऑपरेशनल यूनिट में पार्टी नियंत्रण बनाए रखने के लिए राजनीतिक अधिकारियों को नियुक्त किया गया है. ऐसे में स्थिति यह है कि किसी जहाज का ‘कप्तान’ निर्णय लेने वाले अधिकारी की तुलना में बस एक संचालक बनकर रह जाता है और समुद्री गतिविधियों में सभी अहम निर्णय ‘राजनीतिक कमिश्नर’ लेते हैं, जो शीर्ष स्तर के मंसूबों और उन पर अमल के बीच की कड़ी है.
पेशेवर क्षमता के मुद्दे पर, इसमें कोई संदेह नहीं है कि पीएलए नौसेना निश्चित तौर पर एक पेशेवर लड़ाकू बल नहीं है, बल्कि एक ‘पार्टी नेवी’ है, यानी एक तरह से यह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सशस्त्र शाखा है.
जहां तक सवाल मनोबल का है तो मुझे जनवरी 2018 में सेनकाकू द्वीप समूह में जापानी नौसेना की नज़र में आने के बाद चीनी पनडुब्बी पर फहराये गए चीनी ध्वज को बाद में उतार लेने की अपमानजनक घटना याद आ जाती है. इसने चीनी बल के क्षीण मनोबल को विश्व मीडिया की नज़र में ला दिया था.
जैसा निक्केई एशिया के लेख में कहा गया है, ऐसा माना जाता है कि इस क्षीण मनोबल की वजह चीन की लंबे समय से जारी एक बच्चा नीति हो सकती है.
सूत्रों का कहना है कि नौसेना में काम करने की खराब परिस्थितियों, खासकर एक ही यूनिट में लंबी नियुक्ति (पांच वर्ष से अधिक) के साथ एक ही ऑपरेशन प्लेटफार्म पर तैनात रखना, विवाहित कर्मियों के लिए ऐसा कोई प्रावधान न होना कि जहाजों के डेरा डाले होने के दौरान अपने परिवारों के साथ रह सके और एक सीमित फ्री टाइम के साथ लंबे कामकाजी घंटे होना, आदि भी बड़े कारण हैं.
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बस समय की बात है
स्पष्ट तौर पर, चीनी नौसेना भले ही सबसे बड़ी क्यों न हो, ऑपरेशन के मामले में यह सबसे अच्छी नहीं है. लेकिन जब कई लोग इस पहलू पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं, मेरा यही मानना है कि कुछ ही सालों की बात है जब चीनी अपनी स्थिति को सुधार लेंगे.
जैसा रक्षा विशेषज्ञ टिमोथी आर. हीथ ने लिखा है, फरवरी 1943 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मन सेना के साथ अपनी पहली बड़ी लड़ाई में अमेरिकी सैनिकों को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा. ट्यूनीशिया के कैसरिन दर्रे के पास जंग में अमेरिकी सैनिकों की अनुभवहीनता, अनुशासनहीनता और क्षीण मनोबल, कमजोर और बिखरी हुई तैनाती और कमांड और कंट्रोल में तालमेल का अभाव साफ नज़र आया.
लेकिन इस सबसे सबक लेकर उसने बहुत कुछ सीखा और खुद को उनके अनुरूप ढाला. और फिर बाकी तो इतिहास है.
(लेखक दिप्रिंट के सीनियर एसोसिएट एडिटर हैं. वो @sneheshphilip. हैंडल से ट्वीट करते हैं व्यक्त विचार निजी हैं)
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