आतंकवाद के खिलाफ सर्वागींण युद्ध की बात करना आसान है मगर दुनिया के बड़े-बड़े देश अपने संकीर्ण स्वार्थो की वजह से आतंकवाद को नजरंदाज कर देते हैं. इसकी नवीनतम मिसाल है चीन. उसने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में जैश-ए-मोहम्मद के सरगना अजहर मसूद को ग्लोबल आतंकी घोषित होने से बचा लिया. ऐसा उसने पहली बार नहीं चौथी बार किया है. चीन ने यूएन में इस प्रस्ताव के विरोध में अपने वीटो पावर का इस्तेमाल कर ऐसा किया.
मसूद अजहर पुलवामा हमले का मास्टर माइंड है और फिलहाल पाकिस्तान में है. आखिर चीन को कुख्यात आतंकी अजहर से इतना प्यार क्यों है कि वह दुनिया के कई बड़े देशों की नाराजगी मोल ले कर भी अजहर का रक्षाकवच बना हुआ है. वह दुनिया की नई महाशक्ति होने का दंभ भरता है मगर आतंकवादियों को बचाने के लिए अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा देता है .
बहुत से अंतर्राष्ट्रीय जानकार बतलाते हैं कि इसका सबसे बड़ा कारण
तो यही चीन भारत को अपना प्रतिद्वंदी मानता है और जो भी तत्व भारत के लिए सिरदर्द साबित होते हैं उनकी मदद कर रहा है. वह भारत से सीधे कोई दुश्मनी मोल लेने से बचना चाहता है मगर पाकिस्तान की मदद भी कर रहा है, उसे बचा रहा है जो सीधे भारत में दहशत फैला रहा है. इस मामले में उसके हथियार हैं आतंकवादी संगठन. चीन ऐसे ही एक आतंकवादी संगठन के मुखिया अजहर मसूद का बचाव कर रहा है.
वैसे उसके लिए यह नई बात नहीं है. भारत के उत्तर पूर्व में वह पहले भी कई आतंकवादी संगठनों की मदद करता रहा है. उनके कार्यकर्त्ताओं को प्रशिक्षण भी देता रहा है. बीबीसी फीचर्स की एक खबर के मुताबिक कुछ अर्से पहले पूर्वोत्तर भारत में नगा विद्रोही गुट एनएससीएन (यू) के अध्यक्ष खोले कोनयाक ने दावा किया था कि यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) प्रमुख परेश बरुआ पूर्वोत्तर राज्यों में सक्रिय चरमपंथी संगठनों को चीनी हथियार मुहैया करा रहें है. चीन की कुछ एजेंसियां पूर्वोत्तर के विद्रोहियों को केवल हथियार और पैसे से ही मदद नहीं कर रहीं बल्कि विभिन्न अलगाववादी संगठनों के पांच गुटों को प्रशिक्षण भी दे रही है.
नई ऊंचाइयां छूती चीन पाकिस्तान की दोस्ती
पिछले कुछ समय से चीन की पाकिस्तान के साथ मित्रता नई ऊंचाइयों को छूती जा रही है. कई बार तो लोग पाकिस्तान को चीन का 24 वां राज्य कहने लगे है. इस दोस्ती के गहराने की वजह है चीन पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर .यह एक बहुत बड़ी वाणिज्यिक परियोजना है, जिसका उद्देश्य दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान से चीन के उत्तर-पश्चिमी राज्य शिंजियांग तक ग्वादर बंदरगाह, रेलवे और हाइवे के माध्यम से तेल और गैस की कम समय में वितरण करना है. आर्थिक गलियारा चीन-पाक संबंधों में केंद्रीय महत्व रखता है.
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यह योजना को पूर्ण होने में काफी समय लगेगा. इस योजना पर 46 बिलियन डॉलर की विशाल पूंजी लग रही है. पाक चीन का यह आर्थिक कोरिडोर न केवल पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगिट बाल्टीस्तान से ही नहीं खैबर पख्तूनख्वाह के मनशेरा जिले से भी गुजरता है जहां बालाकोट स्थित है. यहां बड़ी संख्या में आतंकवादियों के ट्रैनिंग कैंप भी हैं. चीन ने इस आर्थिक परियोजना के लिए बालाकोट में काफी जमीन खरीदी है. पाक अधिकृत कश्मीर के जरिये पाकिस्तान को चीन से जोड़नेवाला काराकोरम राजमार्ग भी मनशेरा से गुजरता है. इस आर्थिक कोरिडोर में इससे जुड़ी परियोजनाओं में 10,000 हजार चीनी नागरिक काम करते हैं. चीन इनकी सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित है.
अजहर मसूद के तालिबान से भी हैं अच्छे संबंध
कई पाकिस्तानी पत्रकार बताते है कि अजहर ने इस परियोजना कि कभी खिलाफत नहीं की .अजहर के तालिबान से भी अच्छे संबंध है उन्होंने ने भी परियोजना का विरोध नहीं किया. इस कारण परियोजना सुरक्षित है और चीनी नागरिक भी. इस क्षेत्र में जैश का खासा दबदबा है. चीन को आशंका है कि अगर उसने मसूद का समर्थन नहीं किया तो उसकी इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए खतरा पैदा हो सकता है. वैसे उसे यह भी डर है कि उसके शिनजियांग प्रांत में मुस्लिमों पर जुल्म की खबरों की प्रतिक्रिया में इस्लामी आतंकवादी कोरिडोर और चीनी नागरिकों को निशाना बना सकते हैं.
पाकिस्तान के इस्लामी आतंकी संगठन तो नहीं क्षेत्रीयतावादी आतंकी संगठन परियोजना और चीनी नागरिकों पर हमला कर रहे हैं .इन संगठनों में सबसे सक्रिय संगठन है बलोच लिबरेशन आर्मी.हाल ही में उसके कसांडर असलम बलोच ने कहा कि वे पाकिस्तान और चीन के विरूद्ध बलोचिस्तान में संघर्ष जारी रखेंगे. यहां पर चीन का दखल बढ़ रहा है, जो कि पाकिस्तान के खिलाफ उनकी लड़ाई के लिए बड़ा खतरा है. बलोच लिबरेशन आर्मी ने ही हाल ही में लाहौर स्थित चीनी दूतावास पर हमले की जिम्मेदारी ली थी.
बलोच ने कहा, ‘पिछले 15-20 साल से, बलोचिस्तान में पाकिस्तान का दखल तेजी से बढ़ा है. सीपीइसी के नाम पर चीन बलोच के संसाधनों को लूट रहा है. इसी मेगा प्रोजेक्ट के दम पर बलोचिस्तान और सिंध में चीन और पाकिस्तान दोनों हीं अपनी सैन्य शक्ति बढ़ा रहे हैं. बता दें कि बलोच लिबरेशन आर्मी ने चीनी-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर के काम में लगे चीनी कर्मचारियों पर कई बार हमले किए हैं.
जैश के आतंकियों से डरा हुआ है चीन
चीन को डर है कि यदि अजहर पर पाबंदी लगी तो यह कॉरिडोर और यहां काम करनेवाले चीनी नागरिक जैश के आतंकियों का निशाना बन सकते है. हाल ही में चीन के उप विदेशमंत्री 5 और 6 मार्च को पाकिस्तान गए उनका मकसद था कोरिडोर के लिए सुरक्षा की गारंटी हासिल करना. इस इलाके में खासकर जैश के बहुत से ट्रैनिंग कैंप हैं.
कुछ खबरों के मुताबिक चीन ने मसूद अजहर को अपनी एक अंदरूनी समस्या को भी हल करने की कोशिश में लगाया हुआ है. मसूद अजहर चीन की कम्यूनिस्ट सरकार द्वारा उत्तरी-पश्चिमी राज्य शिंजियांग में फैले अलगाववाद और इस्लामिक आतंकवाद को खत्म करने में भी उसकी मदद कर रहा है. चीन सरकार ने मुस्लिम बहुल शिनजियांग को एक तरह से ‘नजरबंदी शिविर’ में तब्दील कर दिया है .
संयुक्त राष्ट्र की एक समिति की रपट के अनुसार चीन के उइगर प्रांत में लगभग दस लाख मुसलमानों को जेल में बंद करके रखा हुआ है और 20 लाख को पकड़ कर उनका रिएजुकेशन किया जा रहा है याने इस्लाम-विरोधी प्रशिक्षण दिया जा रहा है.. लगभग सवा करोड़ उइगर मुसलमान चीन के शिनजियांग प्रांत में रहते हैं. इस प्रांत की सीमा भारत, पाकिस्तान, मंगोलिया और मध्य एशिया के देशों को छूती है. चीन की फितरत साम्राज्यवादी और विस्तारवादी है. तिब्बत की तरह शिनजियांग भी कभी चीन का हिस्सा नहीं था.
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चीनी सेना ने 1949 में आक्रमण कर इसको चीन में शामिल किया. आज चीन की कम्युनिस्ट पार्टी शिनजियांग की पहचान को खत्म कर रही है. बीसवीं सदी में वहां चीन-विरोधी बगावतें होती रही हैं. इस अलगाव को खत्म करने के लिए चीन सरकार ने अपना जाना पहचाना हथकंडा अपनाया है कि इस प्रांत में इतने हान चीनियों को बसा दिया गया है कि उइगर लोग अपने ही घर में अल्पसंख्यक बन गए . यही हथकंडा उसने तिब्बत में भी अपनाया है. इसका मकसद यह भी है कि उइगरों के उग्रवादी आंदोलन ‘ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट’ को दबाया जा सके.
शिनजियांग में चीन के खिलाफ इतना आक्रोश है कि वहां दंगे आम बात है . मगर ज्यादातर दंगों को मीडिया दबा देता है. आतंकी घटनाओं के लिए चीनी सरकार उइगरों के उग्रवादी संगठन ‘ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट’ को दोषी ठहराती है. चीन कहता आया है कि शिनजियांग को इस्लामिक आतंकवादियों और अलगाववादियों से खतरा है. अपने देश में आतंकवाद का दंश झेलने के बावजूद चीन इससे कोई सबक नहीं सीखता अन्यथा वह जैश के खिलाफ कठोर कार्रवाई के लिए जरूर तैयार होता.
(लेखक दैनिक जनसत्ता मुंबई में समाचार संपादक और दिल्ली जनसत्ता में डिप्टी ब्यूरो चीफ रह चुके हैं. पुस्तक आईएसआईएस और इस्लाम में सिविल वॉर के लेखक भी हैं.)