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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतचीन का मानना है कि भारत अक्साई चीन वापस चाहता है, इसीलिए लद्दाख में 'एलएसी' पार किया

चीन का मानना है कि भारत अक्साई चीन वापस चाहता है, इसीलिए लद्दाख में ‘एलएसी’ पार किया

लद्दाख एकमात्र ऐसा इलाका है जहां पाकिस्तान और चीन की फौंजें एक साथ हाथ मिला सकती हैं.

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पिछले चार सप्ताह से भारत-तिब्बत सीमा पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के इर्द-गिर्द कुछ असामान्य बातें हो रही हैं. 10 मई को भारतीय मीडिया ने ब्रेकिंग न्यूज़ दी कि भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हाथापाई के दो वारदात हुए. 5-6 मई के बीच की रात को पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे पर और 9 मई को उत्तरी सिक्किम के नाकू ला में दोनों सेनाओं के बीच झड़पें हुईं.

इसके बाद से खबरें आती रही हैं कि कभी पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे पर गलवान नदी में, तो कभी चांग चेनमो नदी घाटी में आमना-सामना हुआ या अतिक्रमण किया गया और दोनों सेनाओं ने फौज की बराबर की तैनाती की, मामला बिगड़ने या हेलिकॉप्टरों की गतिविधियों में वृद्धि की स्थिति से निबटने के लिए रिज़र्व फौज की तैनाती की गई आदि-आदि. एलएसी के करीब के क्षेत्रों, खासकर उत्तराखंड के देमचोक और सेंट्रल सेक्टर में फौजी गतिविधियों में वृद्धि की भी खबरें आती रही हैं. खबर है कि अप्रैल के आखिरी दिनों से ही गश्ती के दौरान झड़पें और चीनी सेना के जमावड़े में बढ़ोतरी होने लगी थी.

चीनी मीडिया और सरकारी प्रवक्ता भारत पर आरोप लगा रहे हैं कि उसकी सेना चीनी दावे वाली सीमारेखा का आक्रामक उल्लंघन करती रही है और चीनी पीपुल्स लिबेरेशन आर्मी (पीएलए) को गश्त लगाने से रोकती रही है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग  ने अपनी सेना को राष्ट्र की रक्षा के लिए तैयार रहने के निर्देश दिए हैं.

सरकार या सेना की तरफ से कोई ब्रीफिंग न किए जाने के कारण एलएसी पर हो रही घटनाओं और चीन के राजनीतिक/सैन्य इरादों को लेकर अटकलों का बाज़ार गरम है. इसकी बड़ी वजह यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शी जिनपिंग के बीच दो बार अनौपचारिक शिखर बैठकें हो चुकी हैं- 2018 में वुहान में और 2019 में मामल्लपुरम में और दोनों नेता एलएसी पर शांति बनाए रखने और अपनी-अपनी सेना को सीमा पर तैनाती के बारे में रणनीतिक निर्देश देने के बारे में प्रतिबद्धता जाहिर कर चुके हैं.

दरअसल, दो देशों के बीच टकराव राजनीतिक लक्ष्यों को लेकर शुरू होता है. सैन्य कार्रवाई इन्हीं लक्ष्यों को हासिल करने के लिए की जाती है. मैं इस प्रक्रिया को उलट कर सैन्य परिस्थिति का और भारत-चीन में टक्कर वाले इलाकों के रणनीतिक महत्व का विश्लेषण करके राजनीतिक लक्ष्यों का खुलासा करने की कोशिश करूंगा.

सैन्य स्थिति

मैं शुरू में ही साफ कर दूं कि 1962, 1965 और 1999 की तरह एक बार फिर हम यह अंदाजा लगाने में चूक गए हैं कि रणनीतिक और सामरिक स्तरों पर क्या कुछ सामने आने वाला है. हमें दूसरे सेक्टरों से अपने सैनिकों को हड़बड़ी में वहां भेजना पड़ा है, यह बताता है कि हमें अप्रत्याशित स्थिति का सामना करना पड़ा है. रणनीतिक स्तर पर यह ‘रॉ’ (रिसर्च ऐंड एनालिसिस विंग) की नाकामी रही कि वह पीएलए के जमावड़े का, जिसमें सीमा पर तैनात टुकड़ियों को और मजबूत करना और बदलना शामिल है, पता नहीं लगा सका. यह एलएसी के इतने करीब इतनी बड़ी फौजी हरकतों की सामरिक निगरानी में विफलता को उजागर करता है.

अपुष्ट खबरों के मुताबिक पीएलए ने एलएसी को लांघकर गलवान नदी के किनारे हमारे 3-4 किलोमीटर इलाके पर और फिंगर 5 और 8 के बीच पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे पर हमारे करीब 8-10 किमी इलाके पर कब्जा कर लिया (ये इलाके ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की 2017 की रिपोर्ट में शामिल नक़्शे में चिन्हित किए गए हैं). ऐसा लगता है कि लद्दाख की चांग चेनमो नदी घाटी के ‘हॉट प्रिंग्स’ इलाके में भी छोटी-मोटी घुसपैठ की गई है.

मेरा आकलन है कि पीएलए ने गलवान नदी घाटी में और पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे पर एक-एक ब्रिगेड तक सेना की तैनाती कर दी है. एलएसी के पास-पास कमजोर इलाकों में और हमले करने के लिए संभावित ठिकानों पर भी एहतियातन तैनाती की गई होगी. भारत की जवाबी तैयारी या कार्रवाई का मुक़ाबला करने के लिए रिजर्व फौज को फौरी कूच के लिए हमेशा तैयार रखा गया होगा. एयरफील्ड नगारी को और मजबूत करके वहां लड़ाकू विमान खड़े कर दिए गए हैं.

नार्थबैंक पैंगोंग त्सो में पीएलए द्वारा सिक्योर्ड एरिया

 

गालवान नदी में पीएलए द्वारा सिक्योर्ड एरिया

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सेंट्रल सेक्टर में हमारी तैनाती हल्की है. वहां पीएलए ने एक ब्रिगेड तक की तैनाती इसलिए की है ताकि हमारी रणनीतिक रूप से रिज़र्व फौज को वह एक जगह रोके रख सके और टकराव तेज हो तो जमीन पर कब्जा कर सके. उत्तरी सिक्किम के पठारी क्षेत्र में हल्की चुनौती हमें यह संकेत देने के लिए दी जा रही है हम चुंबी घाटी में कोई आक्रामक कार्रवाई करने से बाज आएं. अरुणाचल प्रदेश में भी एहतियातन फौज की तैनाती की जा सकती थी.

चीन का संभावित सैन्य लक्ष्य हमें लद्दाख में सीमा पर अपने बुनियादी ढांचे का विकास करने से रोकना हो सकता है, जिसके कारण उसे अक्साइ चीन क्षेत्र और नेशनल हाइवे 219 के लिए खतरा महसूस हो रहा है खासकर गलवान और पैंगोंग त्सो सेक्टरों में. वह हमारी कार्रवाई के जवाब में सीमा पर झड़पों के लिए भी खुद को तैयार करना चाहता है.

सीधी टक्कर वाले इलाकों का रणनीतिक महत्व

लद्दाख एकमात्र ऐसा इलाका है जहां पाकिस्तान और चीन की फौंजें एक साथ हाथ मिला सकती हैं. ‘सब सेक्टर नॉर्थ’ (एसएसएन) सियाचिन ग्लेशियर के पूरब में है और वहां मुश्किल संचार व्यवस्था के कारण हम कमजोर स्थिति में हैं, बावजूद इसके कि दौलत बेग ओल्डी एयरफील्ड को फिर से चालू किया गया है. यह एकमात्र ऐसा इलाका है जिससे होकर भारत से सीधे अक्साई चीन पहुंचा जा सकता है. चीन नहीं चाहता कि एसएसएन में कोई खतरनाक फौजी जमावड़ा हो. 15 साल पहले चीन ने एक फौजी जंग का खेल किया था जिसमें एक डिवीजन जितनी बड़ी सेना और एक मेकेनाइज्ड टुकड़ी के साथ एसएसएन से अक्साइ चीन पर हमले के परिदृश्य की कल्पना की गई थी.

अपनी कमजोरियों के मद्देनजर हमने एसएसएन तक दो सड़कों का निर्माण शुरू किया. पहली सड़क नुब्रा नदी घाटी में सोसोमा से शुरू होकर सासर ला दर्रे से गुज़रेगी. बदकिस्मती से, सासर ला दर्रा बर्फ से ढका होता है. जब तक हम सुरंग न बनाएं तब तक वह सड़क गर्मियों में ही काम आ सकती है. दूसरी सड़क 255 किमी लंबी है, जिसे दुर्बुक से शुरू करके मुर्गो और देस्पांग से होते हुए श्योक नदी घाटी के साथ-साथ बनाया गया. इंजीनियरिंग का चमत्कार यह सड़क श्योक नदी घाटी की पहाड़ियों से होती हुई एलएसी के समानान्तर चलती हुई मुर्गो तक जाती है. श्योक और गलवान नदियों का संगम एलएसी से मात्र पांच किमी दूर है. हमने एलएसी तक जाने के लिए एक छोटी सड़क बनाना शुरू किया तो गलवान नदी घाटी में दोनों फौजों का आमना-सामना हो गया. चीन नहीं चाहता कि हम एसएसएन तक अपनी सड़क की सुरक्षा के लिए गलवान नदी घाटी में कोई इंतजाम करें. 2013 में भी इसी सड़क के कारण देस्पांग में दोनों की टक्कर हुई थी.

अक्साई चीन तक पहुंचने का दूसरा मार्ग दक्षिण दिशा से चांग चेनमो नदी घाटी से होकर जाता है, जिसके अंत में हमारी हॉट स्प्रिंग चौकी है, जो कोंग्का ला से तीन किमी पहले है. इस इलाके में हमने लुकुंग से एक सड़क बनाई है, जो चांग चेनमो नदी के समानान्तर चलती हुई फोब्रांग-मार्सिमिक ला से गुजरती है. संभवतः यह इलाका छोटी-मोटी टक्कर का है.

इस सड़क से एक सड़क फोब्रांग से निकलकर दक्षिण-पूर्व दिशा में अने ला दर्रे की ओर जाती है. यह दर्रा पूरे साल खुला रहता है. यह इलाका हमें पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे पर सिरीजप और खुर्नक पर तैनात चीनी फौजी जमावड़े के पीछे पहुंचने की सुविधा देता है. पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे पर कई छोटी-छोटी पर्वत चोटियां हैं जिन्हें ’फिंगर्स’ कहा जाता है. फिंगर 4 तक का इलाका हमारे नियंत्रण में है लेकिन हम एलएसी पर सिरीजप तक फिंगर 8 तक गश्त करते रहे हैं. फिंगर 8 पर चीनियों की चौकी है लेकिन वह फिंगर 2 तक के इलाके पर अपना दावा करता है, जहां से इन दोनों सड़कों को खतरा पैदा किया जा सकता है. 1999 में करगिल युद्ध के दौरान चीनियों ने फिंगर 5 तक अपनी सड़क बना ली थी, जिसके कारण यह तीसरी टक्कर हो रही है.

सिंधु घाटी के नगारी में चीन का फौजी अड्डा है, जहां एक एयरफील्ड भी है. एनएच 219 नगारी से होकर गुजरता है. यह देमचोक से केवल 50 किमी दूर है, जहां का भौगोलिक क्षेत्र हमारे अनुकूल है. नगारी को चुमर से खतरा पहुंचाया जा सकता है. इसलिए इन इलाकों में निरंतर टक्कर होती रहती है.

राजनीतिक मंसूबे

रणनीतिक दृष्टि से चीन ने 1962 से पहले ही उन सभी भारतीय इलाकों पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी जिनकी उसे जरूरत थी. उनमें मुख्य है अक्साई चीन, जिसकी उसे तिब्बत-शिंजियांग एनएच 219 के लिए जरूरत है. 1962 की लड़ाई के बाद उसने उन सारे इलाकों को वापस कर दिया जिनकी उसे जरूरत नहीं थी लेकिन लद्दाख में सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण उन इलाकों पर उसने कब्जा बनाए रखा, जो उसे अक्साई चीन और एनएच 219 तक पहुंचने से रोकते थे. ऐसा उसने देस्पांग में 1960 के अपने दावे के तहत किया. इसके अलावा उसने गलवान नदी, पैंगोंग त्सो के उत्तर में सिरीजप-खुर्नक फोर्ट, और देमचोक के 10 किमी उत्तर कैलास पर्वतों पर अपना कब्जा बनाए रखा. इसके बाद से एलएसी पर टकराव इसलिए हुए क्योंकि चीन अपनी दादागीरी जताते हुए भारत को परेशान करता रहा है. लेकिन भारत ने सीमा पर बुनियादी ढांचे को सुधार कर हालात को बदल दिया है.


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चीन भारत को भारी संदेह की नज़र से देखता है. उसका मानना है कि भारत का दीर्घकालिक लक्ष्य चीन द्वारा कब्जा किए गए अक्साई चीन और दूसरे इलाकों को वापस हासिल करके 1950 वाली स्थिति को बहाल करना है. अमेरिका के साथ भारत का तालमेल, भारत में तिब्बत की निर्वासित सरकार की मौजूदगी, पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) और गिलगिट बाल्तीस्तान (जिससे होकर चाइना पाकिस्तान एकोनोमिक कॉरीडोर, सीपीईसी गुजरता है) पर भारत के आक्रामक दावे चीन के संदेहों को और मजबूत करते हैं.

जहां तक चीन के व्यापक राजनीतिक लक्ष्यों की बात है, मेरा ख्याल है कि उसका प्रत्यक्ष राजनीतिक लक्ष्य सीधा-सा है. एलएसी पर अपनी शर्तों के मुताबिक यथास्थिति बनाए रखो, यानी अक्साइ चीन और एनएच 219 पर हरेक खतरे को, चाहे वह कितना भी हल्का क्यों न हो, रोको.

चीन से आंखों में आंखें डाल कर मुक़ाबला करें

भारत आगे कुआं पीछे खाई वाली स्थिति मैं है. कोई भी सरकार एलएसी पर कोई झटका बर्दाश्त नहीं कर सकती. जब भी चीन छोटी फौजी टुकड़ी के बूते भी दबाव बनाएगा, हमें बदतर स्थिति के लिए भी तैयार रहना होगा, जिसका मतलब है कि हमें बड़े पैमाने पर सेना की तैनाती करनी पड़ेगी. हमें जैसे को तैसा वाला जवाब देने के लिए पहल करनी पड़ेगी. लेकिन हमारी सैन्य क्षमता हमें सावधानी बरतने को मजबूर करती है. लेकिन हम हमला करने वाले को धूल छटा सकते है और उसे जहां के तहां रोक सकते हैं. जो भी हो, हममें चीन को हार मानने पर मजबूर करने की क्षमता है. कोई भी देश युद्ध नहीं चाहता, इसलिए 1 अप्रैल 2020 वाली स्थिति में वापस लौटने के लिए कूटनीति को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. लेकिन अगर इससे बात नहीं बनती तो भारत को सीमा पर टक्कर या सीमित युद्ध तक के लिए तैयार रहना होगा.

और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यथास्थिति लौट जाए तब भी खुफियागीरी के मोर्चे पर विफलता, एलएसी पर अगर कोई घुसपैठ हुई है तो उसके लिए, और चीन के मुक़ाबले भारत की क्षमता में अंतर के लिए नरेंद्र मोदी सरकार और सेना को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए.

(ले. जनरल एच.एस. पनाग पीवीएसएम, एवीएसएम (रिट.) ने भारतीय सेना की 40 साल तक सेवा की. वे उत्तरी कमान और सेंट्रल कमान के जीओसी-इन-सी रहे. सेवानिवृत्ति के बाद वे आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल के सदस्य रहे. ये उनके निजी विचार हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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7 टिप्पणी

  1. हमेसा देश के लिए नेगेटिव नजरिया रखते हो तुम Theprint

  2. China Is a country who wants to grab all lands nearby its territory either the boundary belong to sea or land.There is not democracy so none can raise voice against the government. Vietnam Japan Philippines south Korea Taiwan India New start maunt Everest of Nepal claimed by China Burma are on China ‘s agenda

  3. पनाग साहेब, मोदी की ही कूटनीतिक और सैन्य नीति है जो हर आक्रामक झड़प के बाद चीन को वापस लौटना पड़ा है। कांग्रेस के ६० सालों के कार्यकाल की ढुलमुल रीति-नीति की वजह श्रेष्ठ भारतीय सेना निरुपाय होकर रह गई थी। नतीजतन चीन की विस्तारवादी में महत्त्वाकांक्षाओं को प्रोत्साहन मिलता गया और अब वह भारत आर्थिक, राजनीतिक और सामरिक अभ्युत्थान से बिलबिला रहा है। सीमा पर सजगता ने ही समय पर चीन की रोकथाम हो पा रही है। पनाग महोदय, क्या आप सीमा पर आक्रामक जमावड़े की निरंतरता को दूरदर्शिता मानते हैं? क्या आप चाहते हैं कि चीनी इसे हमारी पड़ौसियों के प्रति झगड़ालू मनोवृत्ति के प्रचारित कर अंतरराष्ट्रीय शक्ति समूहों को हमारे विरुद्ध कर हमें अलग थलग करने सफल हो जाये? जो स्थिति आज चीन की है वह भारत की हो जाये? आपसे विनम्र आग्रह है कि सिर्फ़ छपास की संतुष्टि के लिए राष्ट्र विरोधी वामपंथी मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अपना दुरुपयोग न होने दें।
    जयतु भारत:

  4. The review of General Panag is very balanced.We must be very careful regarding our National Security. It is very unfortunate that Raffle aircraft process started in year 2007 but no decision was taken till 2016. Only 36 aircrafts were purchased in place of 126.
    MMR aircrafts the process started in 2018 still
    it is lingering on. 6 submarines under project 75 A process started still no progress. Aircraft carrier Vikrant was to be operanised in 2020 still not known when it would work. China cannot be our friend, and it should be dealt with firmly. We still remember the 1962 dabcle. Leadership failed miserably and Pandit Nehru almost died.

  5. You always met my expectations.alway anti-indian sentiments….kudos to you atleast you don’t leave your master and always behaved faithful Dog ….

  6. भारत को सभी चीन के प णोसी देश को एक साथ बात करना चाहिए अपनी सेना को गूप्त रूप से पहूचा दे साथ लडाई करे यही सही समय ह़ै बलूच पहच कर। पाक और चाईना के त रफ अन्दर से युध्य करे गुजरात के समुद् से जम्मु से हवाई

  7. ये बात सही है की भारत ने एक बार फिर 1962 के हालात से गुजर रहा है आज का भारत नेहरू युग का भारत नहीं है किन्तु हम आज भी 1962 में अपनी हार को नहीं भूले हैं हमारा लक्ष्य अक्साई चीन की पुनः प्राप्ति होनी चाहिए और ये बिना युद्ध के संभव नहीं युद्ध सेना सरकार और जनता को लड़ना है आपका कहना सही है हमे अपनी पूरी तैयारी के साथ समय और युद्ध भूमि का चुनाव कारणा होगा सेना को भी नए आयुधों से सुसज्जित करना होगा जिसके लिए अभी यद्ध को सम्मानजनक रूप से टालने की जरूरत है अगर युद्ध हो भी तो हमारी सुबिधा अनुसार हमारे शर्तों पर हमारे तय समय के अनुसार हो और हम जीतें ।

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