किसान आंदोलन ने पश्चिमी यूपी को सांप्रदायिक धुर्वीकरण के भ्रमजाल से निकालकर गन्ना मूल्य का समय पर भुगतान तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाने के लिए सरकार को कटघरे में खड़ा कर चुका है.
पश्चिमी यूपी की बदली हुई इस राजनीतिक हवा को अपनी तरफ़ मोड़ने के लिए तथा किसान आंदोलन से उपजे असंतोष को भुनाने के लिए अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ने किसानों के लिए मुफ्त बिजली, ‘किसान शहादत सम्मान राशि’ तथा सिंघू बार्डर पर एक शहीद स्मारक बनवाने तक का वादा कर चुके हैं.
पश्चिमी यूपी की 58 सीटों के लिए प्रथम चरण की नामांकन प्रक्रिया अब समाप्त हो चुकी है तथा 10 फरवरी को पहले चरण में शामली की तीन, मुजफ्फरनगर की छह, मेरठ की सात, बागपत की तीन, गाजियाबाद की पांच, हापुड़ की तीन, गौतमबुद्धनगर की तीन, बुलंदशहर की सात, अलीगढ़ की सात, मथुरा की पांच, आगरा की नौ विधानसभा सीटों पर मतदान होना सुनिश्चित किया गया है. जबकि दूसरे चरण में 14 फरवरी को पश्चिमी यूपी के अन्य महत्वपूर्ण जिलों- सहारनपुर, बिजनौर, बिजनौर, अमरोहा, संभल, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर आदि में मतदान होगा. इसलिए राजनीतिक चहलकदमी तथा रूठने-मनाने का सिलसिला भी काफ़ी तेज हो गया है.
पश्चिमी यूपी में चुनावी समीकरण
एक पश्चिमी उत्तर प्रदेश (यूपी) में लगभग 77 विधानसभा सीटों में 17 प्रतिशत जाट तथा 33 फ़ीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. पिछले विधानसभा चुनाव (2017) में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता के गलियारे तक पहुंचाने के लिए जाट समाज का एकतरफा समर्थन प्राप्त था. हालांकि, भाजपा इस बिरादरी की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर सकी, ऊपर से कृषि सुधार बिल पारित करके जाट, गुर्जर, यादव, कुर्मी, जाटव, कश्यप आदि कृषि कार्य पर निर्भर जातियों को भी नाराज कर दिया.
बीबीसी हिंदी में छपी सीएसडीएस की एक रिपोर्ट के मुताबिक (विधानसभा-2017 में) जाट बिरादरी का 2 प्रतिशत वोट कांग्रेस, 39 प्रतिशत बीजेपी, 3 प्रतिशत बसपा तथा 11 प्रतिशत समाजवादी पार्टी को गया था. वहीं कोइरी+कुर्मी बिरादरी का 57 प्रतिशत वोट बीजेपी, 14 प्रतिशत बसपा तथा 18 प्रतिशत सपा को गया था. जाटव बिरादरी का दो तिहाई वोट बसपा को जबकि गैर-जाटव का 31 प्रतिशत वोट बीजेपी को गया था.
यह भी पढ़ें: उत्तर प्रदेश में सियासी जमीन तलाशती मायावती की चुनावी रणनीतियां
एंटी-इनकंबेंसी यानि सत्ता-विरोधी लहर
विभिन्न दलों के उम्मीदवार सियासी उम्मीदों के रथ पर बैठकर जनता के बीच जाना शुरू कर चुके हैं. अधिकांश किसान भाजपा की नीतियों के साथ-साथ गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्र ‘टेनी’ से भी नाराज हैं तथा उनसे त्यागपत्र की अपेक्षा कर रहे हैं. किसान नेता अक्सर कार से रौंदे जाने की घटना को व्यंगात्मक लहजे में कहते हैं कि ‘सईंया भये कोतवाल, अब डर कहेका’.
निजीकरण के मुद्दे पर भी किसानों के साथ-साथ बेरोजगार युवाओं में रोष व्याप्त है. किसानों को लग रहा है कि भाजपा सरकारी न्यूनतम मूल्य ख़त्म करके गरीब किसानों की जमीन को उद्योगपतियों के हाथ में देना चाहती है. आज भी किसानों के मन में यह डर व्याप्त है कि यदि भाजपा पुनः सत्ता में आती है, तो तीनों कृषि कानूनों को फ़िर से पारित किया जा सकता है. इस संदर्भ में प्रयागराज के रहने वाले अनिल कुमार विश्वकर्मा तीखे शब्दों में कहते हैं कि ‘चार लोग सरकार चला रहे हैं. उनमें दो बेच रहे हैं और दो खरीद रहे है तथा उनका विरोध करने वालों को पीटा जा रहा है.’
शायद अनिल कुमार विश्वकर्मा प्रयागराज में हुई घटना से नाराज हैं. आपको यहां यह बताते चलें कि गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर प्रयागराज में हक की आवाज बुलंद करने वाले बेरोजगार छात्रों के घर में घुसकर पुलिस द्वारा बर्बरतापूर्वक पिटाई की गई. इस संदर्भ में उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ट्वीट करते हैं कि ‘प्रयागराज में छात्रों के साथ घटना दुर्भाग्यपूर्ण है, दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई होगी, छात्रों से संयम की अपील है, विपक्ष छात्रों के मामले में राजनीति न करे, जिन लोगों ने छात्रों की आड़ लेकर उपद्रव किया है जांच कर उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी, प्रत्येक छात्र हमारा परिवार है’ (26 जनवरी, 2022).
‘भाईचारा जिंदाबाद’ तथा हिन्दू तुष्टीकरण
2013 में हुए सांप्रदायिक दंगों के फलस्वरूप जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच सामाजिक दूरियां काफ़ी बढ़ चुकी थीं, जिसका फायदा भाजपा को लोकसभा (2014) तथा विधानसभा (2017) के चुनाव में मिला. बीजेपी की हिन्दू तुष्टीकरण नीतियों के कारण मुजफ्फरपुर दंगों से जुड़े मुख्य आरोपियों – संगीत सोम, संजीव बालियान, सुरेश राणा, कपिल देव आदि पर लगे केस को योगी सरकार वापस लेने की अर्जी भी डाल दी है. सरकार के इस तरह की नीतियों के कारण दंगा फ़ैलाने वालों का मनोबल और बढ़ जाता है. शायद इसलिए ‘मथुरा अभी बाकी है’ जैसे सांप्रदायिक नारों को हाल ही में पुनः तूल देने का प्रयास किया गया, लेकिन किसान आंदोलन से उपजे रोष के आगे असमाजिक तत्वों का यह प्रयास भी असफल रहा.
‘भाईचारा जिंदाबाद’ की शुरुआत करने वाले जयंत चौधरी का मानना है कि अब 2013 के सांप्रदायिक दंगों की कड़वाहट समय के लम्बे अन्तराल के साथ कम हो चुकी है तथा किसान आंदोलन के कारण ग्रामीण जनमानस की सामाजिक मुद्दों पर समझ बढ़ी है. शहरी क्षेत्रों में भी जयंत चौधरी के 300 से अधिक ‘भाईचारा जिंदाबाद’ कार्यक्रमों के कारण जाति और धर्म की गहरी खाई अब काफ़ी हद तक कम हुई हैं.
राकेश टिकैत भी गंगा जमुनी तहजीब के पथ पर चलते हुए संयुक्त किसान मोर्चा के मंच से ‘अल्लाहु-अकबर’ बोलते नजर आये तथा इसके साथ ही उनके समर्थक भी ‘हर-हर महादेव’ भी बोलते नजर आये. कई अन्य किसान नेताओं ने भी यह बात दोहराई कि आस्था एक व्यक्तिगत मुद्दा है, बीजेपी ने उसे सामाजिक और राजनीतिक रंग दे दिया.
इस संदर्भ में अलीगढ़ के प्रवींद्र का मानना है कि ‘अब मोदी लहर का असर थोड़ा कम हुआ है. जनता मंदिर-मस्जिद के खेल में उलझना नही चाहती, बल्कि रोजगार और तरक्की चाहती है. आज किसान महंगी खाद और बढ़ते बिजली के दामों से परेशान हैं. इसलिए लोग सांप्रदायिक नारों को दरकिनार करके बीजेपी को वोट की चोट देने के लिए तैयार है.’
आम चुनाव में खाप पंचायतों की भूमिका
कभी-कभी लोकसभा या विधानसभा के चुनाव के समय समाचार पत्रों की मुख्य हेडिंग बनती है कि जुम्मे की नमाज के बाद फैसला किया कि फला उम्मीदवार या पार्टी को समर्थन देने का फैसला लिया गया. इसी तरह खाप पंचायत या ‘जाति पंचायत’ द्वारा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में भी निर्णय लिया जाता है. हालांकि, कभी-कभी सर्वखाप यानी सभी जातियों की एक संयुक्त पंचायत बुलाई जाती है, जिसमें 20 से 25 गांव के चौधरी भाग लेते हैं. जिनका प्रमुख उद्देश्य क्षेत्र के विकास के लिए विचार-विमर्श करना या किसी तत्कालीन समस्या का समाधान करना भी होता है. उदाहरण स्वरूप, मुजफ्फरपुर जिले के सोरम गांव में 14 दिसंबर 2020 को सर्वखाप बुलाई गई थी. जिसका प्रमुख उद्देश्य कृषि कानून के खिलाफ एकजुटता दिखना तथा किसानों की आवाज बुलंद करना था. सचिन गुप्ता ने अपने अध्ययन में पाया कि ‘यूपी की सर्वखाप, बालियान खाप, गठवाला खाप, राठी खाप, तोमर, मलिक खाप, चौहान खाप, चौगामा खाप, लाटियान खाप, अहलावत खाप, देशवाल खाप, कालखंडे खाप, बत्तीसा खाप, गुलियान खान, भटनेर, साठा चौबीसी, छत्तीसा आदि करीब 50 से ज्यादा खापों का मुजफ्फरनगर की सर्वखाप को समर्थन मिला था.’
पश्चिमी यूपी में स्थानीय खाप पंचायतें लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव के समय भी दस्तक देती रही हैं. इस संदर्भ में प्रेम शंकर मिश्रा कहते हैं कि ‘पश्चिमी यूपी में जाटों की पहली पसंद वाला राजनीतिक दल (राष्ट्रीय लोकदल) के अध्यक्ष जयंत चौधरी की हाल में ही ‘बड़े चौधरी’ घोषित किए जाने की ‘रस्म पगड़ी’ हुई. इसमें सभी खापों के चौधरियों की जुटान हुई.’ वे बताते हैं कि ‘इस समय जाटों की तीन हजार से अधिक खाप पंचायतें अस्तित्व में हैं, जिसमें बालियान और देशखाप सबसे प्रभावी हैं. हालांकि, गुर्जर, त्यागी, सैयद बिरादरी की खाप भी सक्रिय हैं.’
इन स्थानीय खाप पंचायतों के नेता या चौधरी मतदान की तारीख से एक-दो दिन पहले मीटिंग करते हैं तथा निर्णय लेते हैं कि किस दल को हराने या जिताने के लिए एकजुट होना है. संयुक्त किसान मोर्चा के लोकप्रिय किसान नेता राकेश टिकैत सार्वजनिक मंचों से वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ वोट देने की बात करते हैं. मगर इस बात पर चुप्पी साधते नजर आते हैं कि आने वाली 10 और 14 फरवरी को वोट किस राजनीतिक दल के पक्ष में डालना है.
यह भी पढ़ें: BJP के हिन्दू तुष्टीकरण की नीति के आगे सपा में ‘मेला होबे’ के क्या हैं राजनीतिक मायने
अखिलेश जयंत ने लिया अन्न संकल्प
अखिलेश यादव मुजफ्फरनगर में जयंत चौधरी के साथ किसान नेता चौधरी चरण सिंह, मुलायम सिंह यादव तथा अजित सिंह की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का ‘अन्न संकल्प’ लेते नजर आए. वे किसानों को मुफ्त बिजली तथा 15 दिन के अंदर गन्ना किसानों का भुगतान के वादे को दोहराते हुए जयंत चौधरी के साथ स्वयं को ‘किसान का बेटा’ कहकर किसानों को भावात्मक रूप से जोड़ने का प्रयास किया.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में इस समय किसान आंदोलन की गूंज स्पष्ट रूप से महसूस की जा सकती है, जिसमें जाट बिरादरी की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता. फिर यह प्रश्न उठता है कि तीनों कृषि बिल वापस लेने के बाद क्या अब भी वास्तव में भाजपा का परंपरागत जाट मतदाता भाजपा से नाराज है? जिन्हें मनाने के लिए तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आने वाली 10 और 14 फ़रवरी को होने वाले चुनाव को मद्देनजर अमित शाह जाट नेताओं के साथ बैठकें की.
इस संदर्भ में जाट नेता व भाजपा सांसद प्रवेश साहिब सिंह ने अपने ट्वीटर हैंडल पर लिखा कि ‘पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रमुख जाट समाज के प्रतिनिधियों के साथ माननीय गृह मंत्री श्री @AmitShah जी की मेरे निवास स्थान पर एक महत्वपूर्ण बैठक हुई. जिसमें सभी जाट समाज के प्रतिनिधियों ने भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में हमेशा की तरह चट्टान की तरह खड़े रहने का फ़ैसला किया.’
किसान आंदोलन के दौरान यह देखा गया कि भाजपा के स्थानीय प्रतिनिधियों को गुस्साई भीड़ का भी सामना करना पड़ा था. हालांकि, विधानसभा चुनाव तथा जनता में व्याप्त आक्रोश को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के साथ ही माफ़ी भी मांग ली है. लेकिन अब तो आने वाली 10 मार्च (मतगणना के बाद) को ही पता चल सकेगा कि आंदोलनरत किसानों के परिवार सत्ताधीशों को माफ़ किया या नही.
आज जनमानस में यह आम धारणा है कि जिस तरह से लोकप्रिय ‘अन्ना आंदोलन’ भाजपा के लिए राजनीतिक उर्वरक जमीन तैयार की थी, उसी प्रकार किसान आंदोलन भी सत्तारूढ़ दल भाजपा के लिए नासूर साबित होगा. इस संदर्भ में रालोद और सपा के समर्थकों को लगता है कि किसान आंदोलन से कौमी एकता मजबूत हुई है, जिसका फायदा सपा और राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के गठबंधन को मिल सकता है.
राकेश टिकैत और जयंत चौधरी ने साथ में किया हवन
वहीं दूसरी तरफ़, मुस्लिम समाज का वोट बिखरा हुआ नजर आ रहा है. एआईएमआईएम, कांग्रेस, सपा और बसपा जैसे महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों की पैनी निगाह भी मुस्लिम मतदाताओं पर टिकी है. आज जाट और मुस्लिम समुदाय भी किसी दल के समर्थन में खुलकर बोलने से कतरा रहे हैं, लेकिन संघर्षरत किसान अब जान चुके हैं कि किस पार्टी को हराना है. हाल ही में राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी किसान घाट पर राकेश टिकैत के साथ हवन करते नजर आये, जिसे मीडिया में मौन राजनीतिक समर्थन माना गया. यहां यह भी बताना प्रासंगिक होगा कि 6 माई 2021 को जयंत चौधरी के पिता चौधरी अजीत सिंह का निधन हो गया, जो कि जाट बिरादरी के सबसे कद्दावर नेता माने जाते थे. जिसके फलस्वरूप, इस बार जयंत चौधरी के प्रति जाट मतदाताओं में सहानुभूति की लहर भी है.
इतिहास के पन्नों में झांकने से पता चलता है कि भाजपा से गठबंधन तोड़ने के बाद, पिछले दो चुनाव में जयंत चौधरी को करारी हार का सामना तो करना पड़ा था, मगर समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने के बाद रालोद का वोट शेयर भी बढ़ा है.
वर्तमान उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जयंत चौधरी को गठबंधन की तरफ़ से लगभग 30 सीटें दी गई हैं. अधिकांश सीटों पर जयंत चौधरी जीत को लेकर काफ़ी आशान्वित भी हैं, क्योंकि पिछले दो वर्षों से जयंत चौधरी कई सामाजिक मुद्दों पर मुखर रहे हैं तथा पश्चिमी यूपी में अपनी दमदार उपस्थिति भी दर्ज कराई है.
(लेखक हैदराबाद विश्वविद्यालय, समाजशास्त्र विभाग में डॉक्टरेट फेलो हैं. इन्हें भारतीय समाजशास्त्रीय परिषद द्वारा प्रतिष्ठित ‘प्रोफेसर एम॰एन॰ श्रीनिवास पुरस्कार-2021’ से भी नवाजा गया है. व्यक्त विचार निजी हैं.)
यह भी पढ़ें: 3-4 सियासी मुद्दों और वादों की बौछारों के बीच घूमता नजर आ रहा UP विधानसभा का चुनाव