सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर में एक फैसला सुनाकर सेना में महिलाओं को नेशनल डिफेंस एकेडमी के जरिए सीधे कमीशन किए जाने का रास्ता साफ कर दिया. पिछले साल 17 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्देशक फैसला सुनाकर शॉर्ट सर्विस कमीशन की महिला अधिकारियों को भारतीय सेना के उनके पुरुष सहकर्मियों के बराबर का दर्जा दे दिया था ताकि उन्हें स्थायी कमीशन के लिए, और इन्फैन्ट्री/ मेकनाइज्ड इन्फैन्ट्री/ आर्मर्ड कोर तथा आर्टिलरी को छोड़ सेना की दूसरी सभी सेवाओं के लिए तैनात किया जा सके.
महिलाओं को छोटी संख्या में मिलिटरी पुलिस कोर और असम राइफल्स में भी दूसरे पदों पर नियुक्त किया गया है. भारतीय वायुसेना में उन्हें फाइटर पाइलट के पद पर पहले से ही नियुक्त किया जा रहा है और नौसेना ने सिद्धांत रूप में कबूल कर लिया है कि उन्हें युद्धपोतों/पनडुब्बियों पर तैनात किया जा सकता है. जल्द ही महिलाओं को सेना में सभी भूमिकाओं के लिए पुरुषों के पूर्ण बराबर का दर्जा मिल जाएगा.
भारत की महिलाएं जब अंतिम मोर्चे को फतह करने के लिए आगे बढ़ रही हैं, सेना को महिलाओं के साथ यौन दुर्व्यवहार और उन्हें परेशान किए जाने की समस्या का सामना करना पड़ सकता है. दूसरी सेनाओं के अनुभव बताते हैं कि पुरुषों को ‘योद्धा मानने की संस्कृति’ महिलाओं को बराबर मानने से इनकार करती है और इस तरह की सामाजिक समस्या सेना में ज्यादा गंभीर रूप में प्रकट होती है. मेरे ख्याल से 20-40 साल की उम्र महिलाओं और पुरुषों का साथ-साथ रहना, प्रशिक्षण लेना और करीब-करीब रहकर लड़ाई में हिस्सा लेना एक बड़ा कारण है. वास्तव में, जिन सेनाओं में महिलाओं की संख्या ज्यादा होती है उनमें उनके साथ यौन अपराध के मामले अनुपाततः ज्यादा होते हैं.
क्या हमारी सेना इस आसन्न समस्या का सामना करने के लिए तैयार है? हाल में वायुसेना की एक महिला अधिकारी ने पुलिस में शिकायत दर्ज कारवाई कि उसके एक सहकर्मी ने उसका बलात्कार किया और इस मामले में उसके ऊंचे अधिकारियों का रवैया उपेक्षा भरा रहा और उसका ‘दो उंगली वाला’ परीक्षण भी किया गया जबकि यह प्रतिबंधित है. जाहिर है, हमारे अधिकारी इस तरह के आरोपों और मामलों से निबटने के लिए तैयार नहीं हैं.
विश्वव्यापी समस्या
सेना में महिलाओं की भूमिका का हमारा अनुभव मुख्यतः अफसर कोर तक सीमित रहा है. 1992 से उन्हें इस कोर में शामिल किया जा रहा है. 2020 से दूसरे पदों पर उन्हें सीमित संख्या में ही शामिल किया गया. प्रतिशत के हिसाब से देखें तो थलसेना में 0.56, वायुसेना में 1.08, और नौसेना में 6.5 प्रतिशत महिला अधिकारी हैं. मेरे गणना के मुताबिक, केवल अफसर काडर में थलसेना में करीब 14-16 प्रतिशत, वायुसेना और नौसेना में 13-13 प्रतिशत महिलाएं काम कर रही हैं.
इसके विपरीत, अधिकतर पश्चिमी देशों की सेना की कुल ताकत में महिलाओं का अनुपात 10 से 20 प्रतिशत के बीच है, अमेरिका में यह सबसे ज्यादा 18-20 प्रतिशत है. इन देशों की सेना में यौन दुर्व्यवहार और परेशान किए जाने की समस्या एक बड़ी समस्या है. इस मामले में लंबे अनुभव के बावजूद इन देशों में सेना के अंदर अनुशासन बनाए रखने और महिलाओं को मानसिक तथा शारीरिक दुर्व्यवहार से बचाने के लिए नियम-कानून अभी भी दुरुस्त किए जा रहे हैं और सांस्कृतिक परिवर्तन की कोशिश की जा रही है.
जो बाइडन ने राष्ट्रपति बनने के बाद जो पहली काम किए उनमें यह आदेश जारी करना भी शामिल था कि ‘सेना में यौन दुर्व्यवहार की समस्या की 90 दिन की स्वतंत्र समीक्षा के लिए आयोग’ गठित किया जाए. लिन्न रॉजेंथाल की अध्यक्षता में इस आयोग को यह ज़िम्मेदारी सौंपी गई है कि वह सेना में यौन दुर्व्यवहार की समस्या से जिस तरह निबटा जाता है उसका ‘स्वतंत्र, निष्पक्ष आकलन’ करे. गौरतलब है कि ‘फौजी मानसिकता’ से बचने के लिए आयोग में रक्षा विभाग/सेना से बाहर के 12 विशेषज्ञ शामिल किए गए हैं जिन्हें ‘असैनिक आपराधिक न्याय, पीड़ित की पैरोकारी, यौन हिंसा की रोकथाम के लिए नीति तथा कार्यक्रम विकास, सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा, और शोध का अनुभव हासिल हो’. इस आयोग से पहले ऐसे कई अध्ययन किए जा चुके हैं और सीनेट से कई निर्देश जारी किए जा चुके हैं. यौन दुर्व्यवहार की समस्या के बारे में शिक्षण, रोकथाम, कार्रवाई, और ऐसे मामलों की बढ़ती संख्या से निबटने के लिए ऐसा आयोग बनाना जरूरी माना गया.
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आयोग ने पाया कि 2010 के बाद से 65,400 महिला और 69.600 पुरुष फ़ौजियों यानी कुल 135,000 फ़ौजियों को यौन दुर्व्यवहार झेलना पड़ा है, जबकि 223,000 महिला और 286,000 पुरुष यानी कुल 509,000 फ़ौजियों को यौन उत्पीड़न झेलना पड़ा है. 2018 में महिलाओं के साथ यौन दुर्व्यवहार के मामलों में 44 फीसदी की वृद्धि हुई. अकेले उस साल 20,000 से ज्यादा फ़ौजियों (13,000 महिलाओं और 7,500 पुरुषों) को यौन दुर्व्यवहार झेलना पड़ा. लेकिन केवल 8,000 फ़ौजियों न इसकी शिकायत दर्ज करवाई. हर चौथी महिला फौजी को यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा. आयोग ने आश्चर्य के साथ लिखा कि ‘फौजी नेतृत्व ने अमेरिका की बेटियों और बेटों से न्याय नहीं किया, और सेना वाले इसे जानते हैं.‘
आयोग ने यौन दुर्व्यवहार और यौन उत्पीड़न के मामलों के निबटारे और समर्थन की फौजी न्याय व्यवस्था, शिक्षण, रोकथाम, कार्रवाई के लिए दूरगामी सिफ़ारिशें की हैं. दूसरी सेनाओं के लिए भी इस तरह के आयोग का गठन किया गया है और अध्ययन भी किए गए हैं. सबमें समान बात यही पाई गई कि चालू व्यवस्था उस स्तर की नहीं है जो यौन दुर्व्यवहार और यौन उत्पीड़न के मामलों के निबट सके. कैलिफोर्निया के प्रतिनिधि जेन हरमन ने 2008 में एक विधेयक पेश इसलिए किया था कि ‘सेना में यौन दुर्व्यवहार और बलात्कार के मामलों की जांच को बढ़ावा मिले.’ उनका कहना है कि ‘ज्यादा आशंका यही है कि देश की रक्षा के लिए शपथ लेने वाली महिला फौजी दुश्मन की गोली से शहीद होने की जगह साथी फौजी के बलात्कार की शिकार हो जाए.’
मैंने विकसित देशों की सेनाओं के अनुभव और कार्रवाई को इसलिए रेखांकित किया है ताकि हमारी सेना में भी इस मामले में बुनियादी सुधार किया जा सके.
भारतीय सेना के लिए समय फिसल रहा है
जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, अब तक हमारा अनुभव सेना में विशेष ओहदों पर तैनात महिला अधिकारियों से संबंधित रहा है. यौन दुर्व्यवहार और यौन उत्पीड़न के मामलों के आंकड़े सार्वजनिक दायरे में नहीं हैं. मीडिया में जिन मामलों का जिक्र हुआ वे मुख्यतः ऊंचे पद वालों, सहकर्मियों और कभी-कभी मातहत कर्मचारियों द्वारा बलात्कार, यौन दुर्व्यवहार और यौन उत्पीड़न के हैं. महिला अधिकारियों द्वारा लगाए गए झूठे आरोपों के मामले भी कई हैं.
इस तरह के मामलों की आधी-अधूरी खबर देने के विश्वव्यापी चलन के मद्देनजर मेरा विचार है कि ऐसे कई मामले दबे ही रह जाते हैं. नेतृत्व की विफलताओं की लीपापोती करने और यूनिट/संगठन की साख बचाने के लिए ऐसे मामलों को दबा देने की प्रवृत्ति भी कमांडरों में पाई जाती है. सेना युवा पुरुष रंगरूटों और सैनिकों के साथ यौन दुर्व्यवहार और उत्पीड़न के मामलों की लीपापोती करने के लिए भी बदनाम है. महिलाओं के कारण इसमें नया आयाम जुड़ गया है. ‘खामोश कर देना’ फौज की खासियत रही है. एक जूनियर महिला अधिकारी के साथ यौन दुर्व्यवहार के एक स्पष्ट मामले में मैंने आर्मी कमांडर के रूप में एक मेजर जनरल पर मुकदमा चलाने का आदेश दिया था. सेनाध्यक्ष ने मुझे फोन करके सलाह दी कि मैं अपने फैसले पर पुनर्विचार करूं क्योंकि सेना की प्रतिष्ठा को चोट पहुंचेगी. मैं अटल रहा और उस अफसर को बरखास्त कर दिया गया.
आर्मी एक्ट में यौन दुर्व्यवहार और उत्पीड़न के मामलों के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं किया गया है . ज़्यादातर जांच सेना के अंदर ही होती है और उसकी विश्वसनीयता नहीं होती. फौजी न्याय व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों पर अमल नहीं करती. खास तौर से यौन दुर्व्यवहार और उत्पीड़न के मामलों में जांच करने, पीड़ित को समर्थन देने की प्रक्रिया और फौजी न्याय व्यवस्था में सेना को तुरंत आमूल परिवर्तन करने की जरूरत है.
अमेरिकी सेना में यौन दुर्व्यवहार के मामलों के लिए जिस तरह स्वतंत्र समीक्षा आयोग बनाया गया है उस तरह भारत में भी सरकार को अधिकार संपन्न आयोग के गठन का आदेश देना चाहिए और उसकी सिफ़ारिशों पर सुधार लागू करने चाहिए. सेना में बड़ी संख्या में महिलाओं को जगह देने के बाद ऐसे मामले बढ़ जाएं इससे पहले सेना को भी कदम उठा लेना चाहिए. सेना में महिलाओं को शामिल करने को लेकर जनता, मीडिया और कार्यरत/ सेवानिवृत्त फ़ौजियों की पहली चिंता यही रही है कि दुश्मन जब उन्हें युद्धबंदी बनाएगा तो उन्हें बलात्कार और यातना झेलनी पद सकती है. मेरा विचार है कि फिलहाल तो बड़ी समस्या यह है कि उनके मन और शरीर को उनके ऊपर और नीचे के वरिष्ठ, सहकर्मी और अधीनस्थ से कैसे सुरक्षा प्रदान की जाए.
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